क्या शिव सेना सेक्यूलर और मराठी हो गई है?

भारत में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उद्धव ठाकरे ने गुरुवार देर शाम कैबिनेट की पहली बैठक की।

इस बैठक के बाद सीएम उद्धव ठाकरे ने मीडिया को सम्बोधित किया। उद्धव ठाकरे ने कहा, ''मैंने अधिकारियों से कहा है कि किसानों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की जो योजनाएँ हैं, मुझे उसकी पूरी जानकारी दी जाए। अगले दो दिनों में महाराष्ट्र सरकार किसानों के लिए बड़े ऐलान करेगी। सरकार किसानों की खुशहाली के लिए काम करेगी।''

उद्धव ठाकरे सरकार ने रायगढ़ के शिवाजी किले के सरंक्षण के लिए 20 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी है। शिवाजी की रियासत की राजधानी रायगढ़ रहा था और फिलहाल इस किले की हालत बहुत अच्छी नहीं है।

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने उद्धव ठाकरे से पूछा कि क्या शिवसेना सेक्यूलर हो गई है?

इस पर ठाकरे ने कहा, ''सेक्यूलर का मतलब क्या है? आप मुझसे पूछ रहे हैं सेक्यूलर का मतलब। आप बताओ न सेक्यूलर का मतलब क्या है? संविधान में जो कुछ है वो है।''

इस सवाल से उद्धव ठाकरे साफ़ असहज नज़र आए। संभवत: उद्धव ने इस सवाल की उम्मीद नहीं की होगी।

दूसरा ये कि उद्धव ने अब तक अपने घोर राजनीतिक विरोधी रहे कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई है।

इसकी कल्पना कुछ वक़्त पहले तक राजनीति के जानकारों ने भी नहीं की होगी। शिवसेना 60 के दशक में अपने गठन के बाद से ही और ख़ासकर 80 के दशक से अपने कट्टर हिंदुत्व की छवि के लिए जानी जाती रही है।

वहीं कांग्रेस हमेशा ये दावा करती रही है कि वो एक सेक्यूलर पार्टी है। ऐसे में दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं की पार्टियों के एक साथ आने से ऐसे सवालों का उठना लाज़िमी है।

शिव सेना और कांग्रेस सत्ता में कभी साथ नहीं रहे लेकिन कई मुद्दों पर दोनों पार्टियां एक साथ रही हैं।

शिव सेना उन पार्टियों में से एक है जिसने 1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल का समर्थन किया था। तब बाल ठाकरे ने कहा था कि आपातकाल देशहित में है।

आपातकाल ख़त्म होने के बाद मुंबई नगर निगम का चुनाव हुआ तो दोनों पार्टियों को बहुमत नहीं मिला। इसके बाद बाल ठाकरे ने मुरली देवड़ा को मेयर बनने में समर्थन देने का फ़ैसला किया था।

1980 में कांग्रेस को फिर एक बार शिव सेना का समर्थन मिला। बाल ठाकरे और कांग्रेस नेता अब्दुल रहमान अंतुले के बीच अच्छे संबंध थे और ठाकरे ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में मदद की।

1980 के दशक में बीजेपी और शिव सेना दोनों साथ आए तो बाल ठाकरे ने खुलकर कांग्रेस का समर्थन कम ही किया लेकिन शिव सेना ने 2007 में एक बार फिर से राष्ट्रपति की कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को समर्थन दिया, ना कि बीजेपी के उम्मीदवार को।

शिव सेना ने प्रतिभा पाटिल के मराठी होने के तर्क पर बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया था। पाँच साल बाद एक बार फिर से शिव सेना ने कांग्रेस के राष्ट्रपति उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी को समर्थन दिया। बाल ठाकरे शरद पवार को पीएम बनाने पर भी समर्थन देने की घोषणा कर चुके थे।

इन उदाहरणों से साबित होता है कि शिव सेना को मराठी और हिदुत्व में से किसी एक को चुनना होगा तो वह मराठी को चुनेगा और हिंदुत्व को छोड़ देगा।

जो महाराष्ट्र में शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन सरकार बनने से एक बार फिर से साबित हो गया है।