एच-1बी वीजा पर ट्रम्प के शिकंजे से भारतीय कंपनियों का बड़ा नुकसान

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प के एच-1बी वीजा के लिए अनिवार्य न्यूनतम वेतन स्तर को बदलने की नीति से अमेरिका को भी बड़ा नुकसान हो सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि भारतीय कंपनियां अमेरिका में 91 हजार से अधिक अमेरिकियों को नौकरियां दे रही हैं और करीब 15 अरब डॉलर का निवेश भी कर रखा है।

2015 में कन्फेडेरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) और ग्रांट थ्रोनटन (जीटी) ने एक रिपोर्ट जारी की थी। उसमें पहली बार अमेरिका में व्यवसाय कर रहीं 100 भारतीय कंपनियों के निवेश और रोजगार सृजन का प्रांतवार ब्यौरा दिया गया था।

‘भारतीय मूल, अमेरिकी माटी’ नाम के इस रिपोर्ट के मुताबिक, न्यू जर्सी, कैलिफोर्निया, टेक्सास, इलिनोइस और न्यूयॉर्क ऐसे अमेरिकी प्रांत हैं, जहां भारतीय कंपनियों ने अधिकतर अमेरिकियों को सीधे रोजगार दिए हैं। वही टेक्सास, पेंसिलवेनिया, मिनिसोटा, न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी ऐसे अमेरिकी प्रांत हैं, जहां भारतीय कंपनियों ने सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया है।

जानकारों का कहना है कि भारतीय कंपनियां अमेरिका में अपना कारोबार और निवेश लगातार बढ़ा रही हैं। यह प्रक्रिया लगातार जारी है। भारतीय कंपनियां अब अमेरिका में निवेश और रोजगार देने तक सीमित नहीं हैं। वह स्थानीय अमेरिकी समुदायों की संपन्नता में अहम योगदान देती है। वे शैक्षिक कार्यक्रमों और क्षमता निर्माण का समर्थन करती हैं।

भारत अब अमेरिका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का चौथे सबसे तेजी से बढ़ता स्रोत बन चुका है। इस स्थिति में ट्रंप प्रशासन यदि एच-1बी वीजा पर शिकंजा कसेगा तो इसका प्रभाव अमेरिका में भारतीय कंपनियों के निवेश पर भी पड़ेगा।

अमेरिका उच्च तकनीकी कौशल प्राप्त कर्मचारियों को अपने यहां काम करने का मौका देने के लिए सालाना 85 हजार एच-1बी वीजा जारी करता है। यह पूरी दुनिया के लिए होता है, लेकिन इसमें भारतीयों का दबदबा है। इसका 60 फीसदी से अधिक भारतीयों को मिलता है। इसकी असली वजह उनकी कुशलता और काफी कम वेतन पर काम करना है।

आंकड़ों के मुताबिक, एच-1बी वीजाधारक भारतीय कर्मचारियों की शुरुआती तनख्वाह 65 से 70 हजार डॉलर सालाना के बीच होती है। वहीं पांच साल का अनुभव रखने वाले कर्मचारियों को 90 हजार से 1.1 लाख डॉलर तक की राशि मिलती है।

भारतीय आई टी कंपनी इंफोसिस के अमेरिका में मौजूद कुल तकनीकी विशेषज्ञों में से 60 फीसदी एच-1बी वीजा धारक हैं। ऐसे में उसकी लागत बढ़ जाएगी। अन्य प्रभावित होने वाली कंपनियों में विप्रो, टीसीएस और एचसीएल शामिल हैं।

अब तक पति या पत्नी में से एक को एच-1बी वीजा मिलने की स्थिति में उसके जीवनसाथी को भी अमेरिका में काम करने की मंजूरी मिल जाती थी। आम तौर पर उन्हें एल-1 श्रेणी का वीजा दिया जाता है, लेकिन नया कानून पारित हो जाने की स्थिति में यह सुविधा नहीं मिलेगी।

अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पेश विधेयक भले ही भारतीय कंपनियों के लिए परेशानी खड़ी करेगा, लेकिन इसके साथ ही यह उन युवाओं के लिए रास्ता भी खोलेगा जो वहां पर नया कारोबार शुरू करना चाहते हैं।

विधेयक में छात्र वीजा और स्थायी निवास अनुमति के फर्क को कम करने का प्रस्ताव है। देशों का कोटा भी खत्म कर 20 फीसदी वीजा छोटे कारोबारियों और स्टार्टअप कंपनियों को देने की बात की गई है।