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स्वदेशी वैक्सीन क्या कोरोना के अंत की शुरुआत है?

भारत में कोरोना वायरस के लिए स्वेदशी वैक्सीन Covaxin और ZyCov-D को ह्युमन क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दिए जाने के बाद सरकार ने कहा है कि यह 'कोरोना के अंत की शुरुआत' है।

भारत में केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय ने अपने पत्र में कहा है कि पूरी दुनिया में 100 से अधिक वैक्सीन का परीक्षण चल रहा है और उनमें से सिर्फ़ 11 का इंसानी परीक्षण जारी है।

मंत्रालय के पत्र में लिखा है, ''ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया से अनुमति मिलने के बाद वैक्सीन का इंसानी परीक्षण शुरू हो जाएगा जो एक अंत की शुरुआत है।''

''कोविड-19 की वैक्सीन पर छह भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं। पूरी दुनिया में 140 वैक्सीन में से 11 पर इंसानी परीक्षण हो रहा है जिसमें दो भारतीय वैक्सीन Covaxin और ZyCov-D भी है।''

आमतौर पर किसी दवाई के परीक्षण के शुरुआती दो चरण सुरक्षा को लेकर होते हैं जबकि तीसरा चरण दवा के असर को लेकर होता है।

हर चरण को पूरा होने में महीनों से लेकर सालों तक लग सकते हैं।

मंत्रालय का यह पत्र ऐसे समय में आया है जब आईसीएमआर के वैक्सीन जारी करने की अंतिम तारीख़ 15 अगस्त तय करने पर विवाद हुआ था।

हालांकि, आईसीएमआर ने अब साफ़ कर दिया है कि वैक्सीन वैश्विक नियमों के आधार पर ही बाज़ार में आएगी।

भारत में जिन दो स्वदेशी वैक्सीन को लेकर इंसानी परीक्षण की अनुमति दी गई है, उनमें एक भारत बायोटेक की Covaxin और दूसरी ज़ाएडस कैडिला की ZyCov-D है।

इनके पहले और दूसरे चरण के परीक्षण की अनुमति इस हफ़्ते मिली थी।

क्या मां बन चुकीं महिलाएं प्लाज़्मा डोनेट नहीं कर सकतीं?

कोरोना महामारी से निपटने के लिए हाल ही में दिल्ली में प्लाज़्मा बैंक शुरू किया गया है। प्लाज़्मा थेरेपी को कोरोना वायरस के मरीज़ों के इलाज़ के लिए मंज़ूरी दी गई थी। अब गंभीर हालत वाले मरीज़ों के इलाज में इसका इस्तेमाल भी हो रहा है।

कोरोना के इलाज के लिए ये भारत का पहला प्लाज़्मा बैंक है। यह बैंक इंस्टिट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी साइंस (आईएलबीसी) अस्पताल में बनाया गया है। उम्मीद की जा रही है कि प्लाज़्मा बैंक से मरीज़ों को प्लाज़्मा मिलने में आसानी होगी।

ऐसे में कोविड-19 के ठीक हो चुके मरीज़ों से प्लाज़्मा डोनेट करने की अपील भी की जा रही है। लेकिन, कोरोना वायरस का हर मरीज़ प्लाज़्मा डोनेट नहीं कर सकता। इसके लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं।

बताया गया है कि अपने जीवन में कभी भी मां बन चुकीं और वर्तमान में गर्भवती महिलाएं प्लाज़्मा डोनेट नहीं कर सकतीं।

आईएलबीएस के निदेशक ए के सरीन ने एक अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स को दिए साक्षात्कार में बताया है कि मां बन चुकीं और गर्भवती महिलाओं से प्लाज़्मा नहीं लिया जा सकता। उनका प्लाज़्मा कोविड-19 के मरीज़ को और नुक़सान पहुंचा सकता है।

कोरोना संक्रमित मरीज़ों पर हाइ़ड्रोक्सिक्लोरोक्वीन और एचआईवी की दवा का इस्तेमाल क्यों बंद किया गया?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शनिवार को कहा कि कोरोना संक्रमित मरीज़ों पर हाइ़ड्रोक्सिक्लोरोक्वीन और लोपिनएविर/रिटोनाविर दवा का इस्तेमाल बंद किया जा रहा है।

मलेरिया के इलाज में काम आने वाली हाइ़ड्रोक्सिक्लोरोक्वीन और एचआईवी मरीज़ों को दी जाने वाली लोपिनएविर/रिटोनाविर दवा से कोरोना संक्रमितों की मृत्यु दर रोकने में कामयाबी नहीं मिली, जिसके बाद ये फ़ैसला लिया गया है।

कोरोना के इलाज की खोज में जारी अलग-अलग वैक्सीन और मेडिसिन ट्रायल में इस दवा को एक उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा था और ये बुरी ख़बर ऐसे वक्त में आई है जब खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि दुनिया भर में पहली बार एक दिन में दो लाख से ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले रिपोर्ट हुए हैं।

शुक्रवार को दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के 212,326 मामले रिपोर्ट हुए जिनमें अकेले अमरीका में 53,213 मामले दर्ज किए गए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान में कहा, ''मेडिकल ट्रायल से ये नतीजे सामने आए कि हाइ़ड्रोक्सिक्लोरोक्वीन और लोपिनएविर/रिटोनाविर के इस्तेमाल से हॉस्पिटल में भर्ती कोरोना मरीज़ों की मृत्यु दर में बहुत कम या फिर न के बराबर कमी आई। इसलिए इन दवाओं का ट्रायल तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाएगा।''

दुनिया के अलग-अलग देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगुवाई में इन दवाओं के कोरोना मरीज़ों पर असर को जांचा-परखा जा रहा था।

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने बताया कि एक अंतरराष्ट्रीय कमिटी की सिफारिश के आधार पर ये फ़ैसला लिया गया है।

हालांकि डब्ल्यूएचओ ने ये स्पष्ट किया है कि वैसे मरीज़ जो अस्पताल में भर्ती नहीं हैं और रोगनिरोधक के रूप में उन पर इसके इस्तेमाल से जुड़ी स्टडी पर इस फ़ैसले का असर नहीं पड़ेगा।