उत्तर प्रदेश के कासगंज में शुक्रवार को भड़की हिंसा पर शनिवार को भी पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका। शनिवार को कई इलाक़ों में पथराव, लूटपाट और आगजनी की ख़बरें आईं।
हालांकि इन घटनाओं में किसी के हताहत होने की ख़बर नहीं है, लेकिन शहर में तनाव बरक़रार है। दूसरी तरफ पुलिस स्थिति को पूरी तरह नियंत्रण में बता रही है।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, घटना को लेकर दो प्राथमिकी दर्ज़ की गई हैं और नौ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। 39 लोगों को हिरासत में लिया गया है।
शुक्रवार को तिरंगा यात्रा निकाले जाने के दौरान हुई हिंसा में मारे गए युवक का शनिवार को अंतिम संस्कार किया गया और इसी के बाद शहर में एक बार फिर अचानक हिंसा भड़क उठी।
सहावर गेट इलाक़े में क़रीब दो दर्जन दुकानों में लूटपाट करने के बाद आगजनी करने की कोशिश की गई।
इसके अलावा नदरई गेट और बाराद्वारी में कई दुकानों में आग लगा दी गई।
ये दोनों इलाक़े कासगंज नगर कोतवाली से मुश्किल से तीन सौ मीटर की दूरी पर हैं।
ये घटनाएं तब हुईं, जबकि पूरे कासगंज शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। हर जगह पुलिस और सुरक्षाबलों की मौजूदगी है। कासगंज शहर के भीतर दाख़िल होने वाले सारे रास्तों को लगभग बंद कर दिया गया है और आने-जाने वालों की तलाशी ली जा रही है।
कासगंज की सड़कों पर पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी गश्त लगा रहे हैं और सड़क पर किसी को भी देखते ही भगा रहे हैं।
लेकिन चौकसी के बावजूद शहर के अंदर तीन बसों को आग के हवाले कर दिया गया जिनमें एक रोडवेज़ बस भी शामिल है।
इसके अलावा कई दोपहिया वाहन भी जला दिए गए। दुकानों और वाहनों में लगी आग घंटों बाद भी बुझाई नहीं जा सकी है।
नदरई गेट पर अलीगढ़ परिक्षेत्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजय आनंद भी गश्त कर रहे थे।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि अब स्थिति बिल्कुल नियंत्रण में है। ये पूछने पर कि इतने भारी-भरकम पुलिस बल के बावजूद शनिवार को हिंसा दोबारा कैसे भड़क गई, तो उनका जवाब था, ''देखिए हर एक व्यक्ति पर तो निगरानी रखी नहीं जा सकती है, लेकिन पुलिस और प्रशासन पूरी मुस्तैदी से तैनात हैं। जो लोग भी हिंसा के लिए दोषी हैं उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी। 39 लोगों को एहतियात के तौर पर हिरासत में लिया गया है और दूसरे लोगों की तलाश की जा रही है।''
एडीजी अजय आनंद के मुताबिक, घटना से संबंधित दो एफ़आईआर दर्ज की गई हैं और उन्हीं के आधार पर नौ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है।
इससे पहले, शुक्रवार रात क़रीब नौ बजे कासगंज शहर में ही मथुरा-बरेली हाइवे पर सफ़ारी सवार एक मुस्लिम परिवार पर कुछ दंगाइयों ने हमला कर दिया। हमले में गाड़ी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई और उसमें सवार एक व्यक्ति की आँख में गंभीर चोटें आई हैं। इस व्यक्ति को दंगाइयों ने गोली भी मारी है, इसी हालत गंभीर है, इसका इलाज आई सी यू में चल रहा है। एक अन्य मुस्लिम युवक को गोली लगी है, उसका भी इलाज चल रहा है।
इस बीच, बीजेपी के द्वारा इस मामले को राजनीतिक रंग देने की भी कोशिश की गई। कासगंज-एटा क्षेत्र के बीजेपी सांसद राजवीर सिंह और इलाक़े के तीन बीजेपी विधायक मृत युवक के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
इससे पहले साध्वी प्राची भी कासगंज आने की कोशिश कर रही थी, लेकिन प्रशासन ने उसे अनुमति नहीं दी।
कासगंज में शुक्रवार की शाम हिंसा उस वक़्त शुरू हुई, जब कुछ युवक तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे और मुस्लिम विरोधी नारे लगा रहे थे, परिणामस्वरूप बड्डूनगर इलाक़े में मुस्लिम समुदाय के कुछ युवकों के साथ उनकी झड़पें हो गई। तिरंगा यात्रा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के लोगों ने निकाली थी। झड़प होने के बाद पत्थर और गोलियां चलीं। वाहनों और दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की गई।
इन्हीं झड़पों के बाद दोनों पक्षों के बीच पथराव और आगजनी की घटनाओं के अलावा गोलीबारी भी हुई जिसमें चंदन गुप्ता नाम के एक युवक की मौत हो गई और नौशाद नाम के एक युवक गोली से गंभीर रूप से घायल हो गए जिसे अलीगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। एक अन्य मुस्लिम युवक को गोली लगी है, उसका भी इलाज हॉस्पिटल में चल रहा है।
क्या 'काले सोने' के उदय के पीछे है?
2014 के बाद से तेल की कीमतें पहली बार 70 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं। पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग देशों के संगठन (ओपेक) ने कहा कि तेल की कीमतों के अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड ने आपूर्ति को सीमित करना जारी रखेगा। संगठन दुनिया के 40% उत्पादन के लिए जिम्मेदार है।
लंदन स्थित थिंक मार्केट्स के मुख्य बाजार विश्लेषक नईम असलम कहते हैं कि कीमतें बढ़ने के तीन प्रमुख कारक हैं: आपूर्ति में कटौती, मांग में स्थिरता और सबसे महत्वपूर्ण, अरमको आईपीओ।
असलम का कहना है, "सउदी अरब की कीमत स्थिरता के पीछे मुख्य कारण आईपीओ है ... (यह है) क्योंकि हमने आपूर्ति कटौती के फैसले में निरंतरता को देखा है।"
असलम ने आगे कहा, ''(यह प्रवृत्ति) जारी रखने की बहुत संभावना है कीमत निश्चित रूप से ऊपर की तरफ बढ़ सकती है। क्योंकि मुझे लगता है कि मांग के संदर्भ में स्थिरता है, विशेषकर चीनी मांग .... हमने पिछले वर्ष में 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी है; प्रति दिन 8 मिलियन बैरल से अधिक।''
लेकिन औसत उपभोक्ता के लिए इसका क्या मतलब है? माल और सेवाओं जैसे परिवहन और उड़ानों की कीमतों में वृद्धि होगी? असलम का मानना है कि मुद्रास्फीति अपरिहार्य है।
''यूके में, हमने पहले ही देखा है कि (मूल्य वृद्धि हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करती है) कई विभिन्न कारकों में। वैश्विक परिप्रेक्ष्य से, उच्च तेल की कीमतें पहले से ही समीकरण के विभिन्न हिस्सों में बढ़ोत्तरी जारी रखा है।"
अमेरिकी तेल उत्पादन के साथ अब सऊदी अरब के प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित हो गया है, यह भविष्यवाणी वैश्विक तेल उत्पादन परिदृश्य को कैसे प्रभावित करेगा?
असलम कहते हैं, ''जब तक यहाँ मांग है, तब तक उच्च तेल उत्पादन समस्या नहीं है और न ही यह स्थायित्व को प्रभावित करेगा।''
एक नया संतुलन: चीन और फ्रांस
फ्रांस और चीन के राष्ट्रपतियों ने एयरोस्पेस और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं सहित साझेदारी-निर्माण अभ्यास के दौरान अरबों के व्यापार सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के एक नए युग की शुरुआत के रूप में तीन दिनों की यात्रा, जिसका उद्देश्य आर्थिक संबंधों को गहरा करना है, दोनों पक्षों ने स्वागत किया। यह भी देखा गया कि वैश्विक सुरक्षा, मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक पारस्परिक सहमति पहुंच गई है - एक ऐसा दृष्टिकोण जो पूरी तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विपरीत है।
जैसा कि अमेरिका के साथ संबंध तनाव से भरा है और ब्रिटेन पर ब्रेटीट करघे हैं, क्या चीन के साथ एक मुक्त व्यापार संबंध है जो यूरोप के लिए हमेशा की तरह आकर्षक है?
नाटिक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री फिलिप वाएकटर कहते हैं, ''यह वाकई एक आकर्षक बाजार है। हम एक वसूली अवधि में हैं और ब्रेक्सिट का प्रबंधन हमारे लिए कुछ है। यूरोप में पुनर्प्राप्ति सबसे महत्वपूर्ण है: अमेरिका, अफ्रीका, एशिया से।"
क्या मैक्रॉन के प्रयासों को फ्रेंच और फिर आखिरकार, यूरोपीय बाजारों को चीनी बाजारों में व्यापार करने के लिए और अधिक स्वतंत्रता के लिए प्रयास की सफलता है?
वाएकटर कहते हैं, ''यह यूरोपीय रणनीति में पहला कदम था। जब हम विश्व व्यापार को देखते हैं, तो तीन चैंपियन हैं: अमेरिका, चीन और यूरोप .... हमें चीन और यूरोप के बीच एक नया संतुलन बनाना होगा।''
भारत में आधार कार्ड की गोपनीय जानकारी को लेकर बड़ा एक बड़ा खुलासा हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आप मात्र 500 रुपये देकर किसी भी शख्स की आधार से जुड़ी जानकारी को खरीद सकते हैं।
अंग्रेजी अखबार 'द ट्रब्यून' ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि उसके एक संवाददाता ने 500 रुपये में एक अज्ञात शख्स से व्हाट्सअप के जरिये एक ऐसा साफ्टवेयर लिया जिसके जरिये भारत के लगभग एक अरब लोगों का आधार डाटा की जानकारी ली जा सकती थी।
हालांकि UIDAI ने इस रिपोर्ट को गलत बताया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मात्र 500 रुपये में भारत में अब तक बनाये गये सभी के आधार के सारे विवरण को पढ़ा जा सकता था। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिपोर्टर ने इस गिरोह को चलाने वाले एक एजेंट से संपर्क किया और उसे पेटीएम के जरिये 500 रुपये दिये। 10 मिनट के बाद एक शख्स ने उसे एक लॉग इन आईडी और पासवर्ड दिया। इसके जरिये पोर्टल पर किसी भी आधार नंबर की पूरी जानकारी ली जा सकती थी। इन जानकारियों में से नाम, पता, पोस्टल कोड, फोटो, फोन नंबर, और इमेल शामिल है। यहीं नहीं, जब उस एजेंट को 300 रुपये और दिये गये तो उसने ऐसा साफ्टवेयर दिया जिसके जरिये किसी भी शख्स के आधार को प्रिंट किया जा सकता था।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस रैकेट में लगभग 1 लाख लोग शामिल है। ये लोग ऐसे हैं जिन्हें इलेक्ट्रानिक्स और तकनीकी मंत्रालय ने कॉमन सर्विस सेंटर्स स्कीम के तहत देश भर में आधार कार्ड बनाने की जिम्मेदारी दी थी। इस दौरान इन्हें UIDAI डाटा तक पहुंच दी गई थी। इन्हें विलेज लेवल एंटरप्राइज (VLE) कहा जाता है।
पिछले साल नंवबर में सरकार ने आधार डाटा लीक होने के खतरे को देखते हुए इनसे यह काम वापस ले लिया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, पैसे कमाने की लालच में लगभग एक लाख विलेज लेवल एंटरप्राइज ने आधार डाटा का गलत इस्तेमाल किया है। इस खबर पर कांग्रेस, लेफ्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्वीटर अकाउंट से लिखा है कि, ''जिस योजना को यूपीए सरकार ने लोगों को विकास के दायरे में लागू करने के लिए चुना था, वह योजना अब एनडीए सरकार में आपके पहचान को चुराने का जरिया बन गया है।'' माकपा नेता सीताराम येचुरी ने लिखा है कि, ''क्या अब इस पागलपन को बंद करने के लिए और सबूत चाहिए।''
हालांकि इस खबर पर UIDAI ने भी प्रतिक्रिया दी है और इस रिपोर्ट को खारिज किया है। UIDAI का कहना है कि यह गलत रिपोर्टिंग का मामला है। UIDAI ने कहा, ''हम भरोसा देते हैं कि आधार डाटा की कोई चोरी नहीं हुई है और यह डाटा पूरी तरह सुरक्षित और संरक्षित है।''
बता दें कि इससे पहले भी आधार डाटा के लीक होने की खबरें आईं हैं। पिछले साल नवंबर में भी UIDAI ने कहा था कि देश के नागरिकों का आधार डाटा सुरक्षित है।
इतिहासकार इरफान हबीब ने आज कहा कि इतिहास तथ्यों के घटनाक्रम पर निर्भर करता है और तथ्यों को सृजित करने की कोई भी कोशिश कपोल कल्पना ही मानी जाएगी।
मार्क्सवादी इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने कहा कि प्रख्यात इतिहासकार ताराचंद और ईश्वरी प्रसाद का इतिहास कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा लिखे गये इतिहास से भिन्न नहीं है। उनका इशारा इन आरोपों की ओर था कि भारत का इतिहास वामपंथी और कम्युनिस्ट दृष्टिकोण से लिखा गया है। हबीब ने कोलकाता में भारतीय इतिहास कांग्रेस के मौके पर कहा, ''ज्ञान का विस्तार हुआ है, लेकिन आकलन वही है। उन्हें हमारे साथ ऐसी बात करने से पहले भारत का इतिहास जान लेना चाहिए, हम ताराचंद और ईश्वरी प्रसाद से कहां भिन्न हैं।''
उन्होंने कहा, ''मैं उनसे कहना चाहता हूं कि आप ताराचंद और ईश्वरी प्रसाद द्वारा लिखित इतिहास को पढ़ें तथा उसकी तुलना हमारे द्वारा लिखे गये इतिहास से करें। कहां अंतर है? आप इतिहास नहीं बदल सकते क्योंकि इतिहास तथ्यों के घटनाक्रम पर निर्भर करता है। यदि आप तथ्यों को सृजित करेंगे तो वह इतिहास नहीं है, वह कपोल कल्पना है।''
हबीब की टिप्पणी ऐसे समय में आयी है, जब विपक्षी दल बीजेपी और आरएसएस पर अपने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भारत के इतिहास का पुनर्लेखन करने और उसे 'तोड़-मरोड़कर' पेश करने का आरोप लगा रहे हैं। आरएसएस और हिंदुत्व संगठनों के एक वर्ग ने आरोप लगाया है कि वाम और उदारवादी इतिहासकार भारत में इतिहास का विकृत स्वरुप पढ़ा रहे हैं क्योंकि इन इतिहासकारों ने देश की आजादी के बाद से ही बौद्धिक जगत पर कब्जा कर लिया।
भारत में भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यन स्वामी अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलने से नहीं चूकते हैं। उन्होंने एक बार फिर से नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला है। सुब्रमण्यन स्वामी ने केंद्र की मोदी सरकार पर सनसनीखेज आरोप लगाया है।
सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि सरकार केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के अधिकारियों पर बेहतर आर्थिक आंकड़े देने के लिए दबाव बनाया था, जिससे यह दिखाया जा सके कि नोटबंदी का अर्थव्यवस्था और जीडीपी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। उन्होंने इन आंकड़ों को फर्जी बताया है। सुब्रमण्यन स्वामी के इस आरोप से मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सुब्रमण्यन स्वामी ने शनिवार को अहमदाबाद में चार्टर्ड अकाउंटेंट के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्र सरकार पर सीएसओ के अधिकारियों पर अच्छे आंकड़े देने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, ''कृपा करके जीडीपी के तिमाही आंकड़ों पर न जाएं। वे सब फर्जी हैं। यह बात मैं आपको कह रहा हूं, क्योंकि मेरे पिता ने सीएसओ की स्थापना की थी। हाल ही में मैं केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा (सांख्यिकी मंत्री) के साथ वहां गया था। उन्होंने सीएसओ अधिकारियों को आदेश दिया, क्योंकि नोटबंदी पर आंकड़े देने का दबाव था। इसलिए वह जीडीपी के ऐसे आंकड़े जारी कर रहे हैं, जिससे यह पता चल सके कि नोटबंदी का कोई असर नहीं पड़ा। मैं घबराहट महसूस कर रहा हूं, क्योंकि मुझे पता है कि इसका प्रभाव पड़ा है। मैंने सीएसओ के निदेशक से पूछा था कि आपने उस तिमाही में जीडीपी के आंकड़ों का अनुमान कैसे लगाया था जब नोटबंदी का फैसला (नवंबर 2016) लिया गया था?''
बकौल स्वामी, सीएसओ निदेशक ने बताया कि वह क्या कर सकते हैं? वह दबाव में थे। उनसे आंकड़े मांगे गए और उन्होंने दे दिए। स्वामी ने बताया कि ऐसे में तिमाही आंकड़ों पर भरोसा न करें।
सुब्रमण्यन स्वामी का यह बयान ऐसे समय आया है, जब वित्त मंत्री अरुण जेटली नोटबंदी और जीएसटी के प्रतिकूल प्रभावों को लेकर जताई आशंका को खारिज कर चुके हैं। उन्होंने सितंबर 2017 में आर्थिक विकास की दर के 6.3 प्रतिशत रहने का भी हवाला दिया था। जून में यह 5.7 रहा था।
सुब्रमण्यन स्वामी ने चार्टर्ड अकाउंटेंट से कहा कि मूडीज, फिच जैसों पर कतई विश्वास न करें। आप पैसे देकर उनसे आंकड़े हासिल कर सकते हैं। मालूम हो कि मूडीज ने हाल में ही भारत की रेटिंग को अपग्रेड किया है।
भारत में राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में विशेष अदालत ने गुरुवार को भारत के पूर्व संचार मंत्री ए राजा और द्रमुक नेता कनीमोई सहित सारे आरोपियों को बरी कर दिया।
विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन इस मामले में आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है। विशेष न्यायाधीश ओ पी सैनी ने फैसले में पूर्व संचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, ए राजा के पूर्व निजी सचिव आर के चंदोलिया, स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर्स शाहिद उस्मान बलवा और विनोद गोयनका, यूनिटेक लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संजय चन्द्रा और रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (आरएडीएजी) के तीन शीर्ष कार्यकारी अधिकारी गौतम दोशी, सुरेन्द्र पिपारा और हरी नायर सहित 15 अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया गया।
इस मामले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने आरोप लगाया था कि 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंसों के आवंटन के दौरान 30,984 करोड़ रुपए के राजस्व की हानि हुई। उच्चतम न्यायालय ने दो फरवरी, 2012 को इन आवंटनों को रद्द कर दिया था।
विशेष अदालत ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के दौरान सामने आए धन शोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय के मुकदमे में भी ए राजा और द्रमुक प्रमुख एम. करूणानिधि की पुत्री कनीमोई को बरी कर दिया। प्रवर्तन निदेशालय ने अपने आरोपपत्र में द्रमुक प्रमुख एम. करूणानिधि की पत्नी दयालु अम्मल को भी आरोपी बनाया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि स्वान टेलीकॉम (प्राइवेट) लिमिटेड (एसटीपीएल) के प्रमोटर्स ने द्रमुक द्वारा संचालित कलैग्नार टीवी को 200 करोड़ रुपए दिए।
इनके साथ ही एसटीपीएल के शाहिद बलवा और विनोद गोयनका, कुसेगांव फ्रूट्स एंड वेजीटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक आसिफ बलवा और राजीव अग्रवाल, कलैग्नार टीवी के निदेशक शरद कुमार, बॉलीवुड फिल्म निर्माता करीम मोरानी और पी. अमृतम सहित 16 अन्य लोगों को भी धन शोधन मामले में अदालत ने बरी कर दिया है।
2जी मामले की सुनवाई के लिए 14 मार्च, 2011 को गठित विशेष अदालत के न्यायाधीश ओ. पी. सैनी ने एस्सार समूह के प्रोमोटर्स रवि कांत रुइया और अंशुमन रुइया तथा छह अन्य लोगों को 2जी घोटाला जांच से जुड़े अन्य मामले में बरी कर दिया है।
रुइया के अलावा अदालत ने लूप टेलीकॉम के प्रमोटर्स आई. पी. खेतान और किरण खेतान तथा एस्सार समूह के निदेशकों में से एक विकास सर्राफ, लूप टेलीकॉम लिमिटेड, लूप मोबाइल (इंडिया) लिमिटेड और एस्सार टेलीहोल्डिंग लिमिटेड को भी अदालत ने बरी कर दिया है।
खचाखच भरे अदालत कक्ष में न्यायाधीश ने कहा, ''मुझे यह कहते हुए कोई संकोच नहीं है कि अभियोजन पक्ष किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई आरोप साबित करने में बुरी तरह असफल रहा है।''
विशेष अदालत ने गुरुवार को जिन तीन मामलों में फैसला सुनाया है। उनमें कई कंपनियों सहित कुल 35 आरोपी थे। पहले मुकदमे में अभियोजक सीबीआई ने 17 लोगों को आरोपी बनाया था, दूसरा मुकदमा प्रवर्तन निदेशालय का था जिसमें उसने 19 लोगों को आरोपी बनाया था। तीसरे मुकदमे में एस्सार के प्रमोटर्स सहित आठ लोगों को आरोपी बनाया गया था।
राजा और कनीमोई सहित सभी आरोपियों ने फैसले का स्वागत किया है और द्रमुक कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं के बरी होने पर जमकर जश्न मनाया।
भारत में हर साल सांप्रदायिक दंगों में दर्जनों लोगों को जान गंवानी पड़ती है। इसके अलावा व्यापक पैमाने पर संपत्ति का भी नुकसान होता है। भारत सरकार ने पिछले तीन वर्षों में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की जानकारी साझा की है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, तीन साल में ऐसी 2,098 घटनाएं हुई हैं। इसमें भाजपा शासित राज्य शीर्ष पर हैं। भारत में केंद्र सरकार ने बुधवार को संसद में इसकी जानकारी दी। सांप्रदायिक हिंसा से निपटने के तमाम दावों के बावजूद इसे रोकने में ज्यादा सफलता नहीं मिल पा रही है।
सांप्रदायिक दंगों के मामले में भाजपा शासित राज्यों की स्थिति भारत के अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा खराब है।
भारत में केंद्र की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, भारत में तकरीबन 2100 सांप्रदायिक दंगे हुए। भारत में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक दंगे उत्तर प्रदेश में हुए। जहाँ भाजपा की सरकार है। इसके बाद एक अन्य भाजपा शासित राज्य महाराष्ट्र का नंबर आता है।
भारत के गृह मंत्रालय ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी 450 घटनाएं हुईं। इसमें 77 लोगों की मौत हुई। इसके अलावा महाराष्ट्र में 270 दंगे हुए। इसमें 32 लोग मारे गए। इसके अलावा सांप्रदायिक दंगों में व्यापक पैमाने पर संपत्ति का भी नुकसान हुआ।
मालूम हो कि हर साल भारत के विभिन्न हिस्सों में कई सांप्रदायिक दंगे होते हैं। भारत गृह मंत्रालय इससे जुड़ा आंकड़ा इकट्ठा करता है।
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। उत्तर प्रदेश में इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल कर सरकार बनाई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने राज्य से अपराध को खत्म करने का आश्वासन दिया था। इससे पहले उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे।
वहीं, महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई है। इससे पहले कांग्रेस और राष्ट्रवदी कांग्रेस पार्टी की गठबंधन सरकार थी।
गुजरात की सत्ता में वापसी के लिए अपनी जुमलेबाजी के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार और मायावती का धन्यवाद करना चाहिए। मायावती का तो खास शुक्रिया अदा करना जरूरी है, जिसका हाथी कांग्रेस के वोट काटता रहा।
भाजपा के खाते में कम से कम 20 ऐसी सीटें गई हैं, जहां जीत का अंतर केवल 300 - 400 से एक हज़ार वोटों तक रहा।
जानकारों के अनुसार, इन स्थानों पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी को दो से चार हज़ार तक वोट मिले।
नीतीश कुमार का भी मायावती की ही तरह कहीं खाता तो नहीं खुला, लेकिन मोदी से वफ़ादारी निभाने में पीछे नहीं रहे।
सवाल उठता है कि बिहार में महा गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार ने गुजरात में मोदी की बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव क्यों नहीं लड़ा ? नीतीश अगर मोदी के साथ मिलकर चुनाव लड़ते तो सेक्युलर वोट बैंक में कैसे सेंध लगा पाते ?
गुजरात चुनाव में मायावती और नीतीश कुमार की भूमिका 'वोट कटवा' की रही जिससे कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ, जबकि बीजेपी गुजरात में निश्चित हार से बच गई और सत्ता में वापस भी आ गई।
गुजरात चुनाव में मायावती और नीतीश कुमार ने सेक्युलर वोट में सेंध लगाने का काम किया। ऐसा करके गुजरात चुनाव में मायावती और नीतीश कुमार ने बीजेपी को फायदा पहुँचाया। अब वक़्त आ गया है कि लोगों को मायावती और नीतीश कुमार को वोट देने से बचना चाहिए।
मायावती की सियासत बेजोड़ है। विपक्ष की एकता की बात हो, चंद्रशेखर की भीम सेना हो, गुजरात के ऊना में दलित उत्पीड़न हो, जिग्नेश मेवाणी का आन्दोलन हो, किसी से लेना-देना नहीं।
याद रहे, 2002 की हिंसा के बाद 2004 में हुए चुनावों में मायावती ने गुजरात जाकर भाजपा के समर्थन में प्रचार किया था। कांशीराम का संघर्ष कहाँ तक ले आया 'बहिन' जी को !
गुजरात विधानसभा चुनावों के नतीजों के विश्लेषण में कम-से-कम 11 सीटें कांग्रेस महज 2,000 से भी कम मार्जिन से हारी, जहां बसपा को इस मार्जिन से कहीं ज्यादा वोट मिले हैं।
जिन सीटों पर कांग्रेस बहुत ही कम वोटों से हारी है। वे हैं: गोधरा से 258, धोलका से 327, बोटाद से 906, हिम्मतनगर से 1712, खंभात से 2318, पोरबंदर से 1855, प्रांतिज से 2551, राजकोट रूरल से 2179, उमरेथ से 1883, वागरा से 2370 और वीजापुर से 1164 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशियों की हार हुई है। इन सीटों पर इन प्रत्याशियों के हार के मार्जिन से कहीं अधिक वोट बहुजन समाज पार्टी को मिली।
अगर इन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार खड़े नहीं होते तो गुजरात का रिजल्ट कुछ और होता। बीजेपी चुनाव हार जाती और गुजरात में कांग्रेस की सरकार बनती !
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का 15 वां दिल्ली राज्य सम्मेलन आज दक्षिण-पश्चिम ज़िले के विजय एन्कलेव, पालम डाबरी रोड, नई दिल्ली में शुरू हुआ। यह 2 दिवसीय सम्मेलन 16 और 17 दिसम्बर, 2017 तक चलेगा। पार्टी के वरिष्ठ साथी बलदेव सिंह ने झण्डारोहण किया। सम्मेलन का उद्घाटन कॉमरेड प्रकाश कारात पोलिट ब्यूरो सदस्य, सी.पी.आई. (एम) ने किया।
प्रकाश कारात ने अपने उद्घाटन भाषण में वर्तमान राजनीतिक हालात पर बोलते हुए कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा अपनाई गई जन-विरोधी नीतियों के चलते मोदी सरकार रोजगार के नए अवसरों को पैदा करने में पूरी तरह विफल रही हैं, बल्कि उलटे उन्होंने बची हुई रोजगारपरक संभावनाओं को भी खत्म करने का काम किया है। प्रति वर्ष 2 करोड रोजगार देने का वायदा करके आज रोजगार देने की बात तो दूर इसके उल्ट 'नोटबंदी' व 'जी.एस.टी.' लाने के बाद से 70 लाख रोजगार छीन गए। निजीकरण के माध्यम से देशी-विदेशी निवेश को सरकारी क्षेत्रों में ले आने का विनाशकारी असर रोजगार के सृजन पर भी पड़ेगा। कृषि संकट के चलते तथा मानरेगा में कटौती के कारण देहातों में उपलब्ध रोजगार में भारी कमी आई है। किसानों को उनकी फसल की सही कीमत न मिल पाने के कारण आज लाखों किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर किया गया है।
उन्होंने कहा कि तेल व गैस खनन में निजी क्षेत्र को और बढ़ावा दिया गया है। जिसका नतीजा है कि रसोई गैस व डीजल-पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। महंगाई से आज देश की गरीब मेहनतकश जनता बुरी तरह त्रस्त है। सब्जियां, दालें और खाद्य तेल के दाम काफी बढ़ गए हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा के केन्द्र में आने के बाद से सांप्रदायिक हिंसा में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। पिछले साढे़ 3 सालों में ऐसी अनेक घटनाएँ सामने आई हैं, जहां तथाकथित गोरक्षकों ने पशु-व्यापार में लगे लोगों या गोमांस रखने-खाने के आरोपितों की या तो हत्या की है या उन्हें बुरी तरह घायल किया है। गोरक्षा के नाम पर मुसलमानों के साथ ही दलितों को भी निशाना बनाया जा रहा है। वास्तव में इस प्रकार की हिंसा सरकार के खिलाफ उठने वाले स्वर को दबाने तथा भय का ऐसा माहौल बनाने के लिए की जाती है जिसमें कोई भी सरकार के खिलाफ कुछ न बोल सके। अनेकों तार्किक-वैज्ञानिक बुद्धिजीवियों तथा पत्रकारों की हत्याएँ और उनके हत्यारों का आज तक पता न चलना इस बात की पुष्टि करता है। सांप्रदायिकता मजदूर वर्ग और अन्य मेहनतकशों को विभाजित करती है। लिहाजा, इसके खि़लाफ़ लड़ने के लिए हमें पूरी तरह सावधान रहना चाहिए।
साथ ही, उन्होंने दलित समुदाय की बदहाली, उनके साथ किये जा रहे भेद-भाव व तिरस्कार और विभिन्न शासक वर्गीय पार्टियों द्वारा उपेक्षा की कड़ी निंदा करते हुए, दलितों के बुनियादी हकों को हासिल करने के लिए लगातार संघर्ष करने पर भी जोर दिया।
उद्घाटन भाषण की समाप्ति पर काॅमरेड प्रकाश कारात ने सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की इन विनाशकारी जनविरोधी नीतियों के खि़लाफ़ संघर्ष को और मजबूत बनाने का संकल्प करना होगा और भाजपा को हराने का आह्वान किया।
सीपीआई (एम) के 15 वें दिल्ली राज्य सम्मेलन में राज्य सम्मेलन की प्रस्तावित रिपोर्ट सीपीआई (एम) के राज्य सचिव के एम तिवारी ने रखा। आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के विरोध में अनुराग सक्सेना ने प्रस्ताव रखा और समर्थन गंगेश्वर दत्त ने किया। सांप्रदायिकता के विरुद्ध प्रस्ताव सहबा फारुकी ने रखी और समर्थन बृजेश सिंह ने किया। जाति के उत्पीड़न के खिलाफ प्रस्ताव नत्थू प्रसाद ने रखा और समर्थन जगदीश शर्मा ने किया। महिला उत्पीड़न के विरुद्ध प्रस्ताव मैमूना मौला ने रखा और समर्थन सुबीर बनर्जी ने किया, रोजगार की मांग को लेकर प्रस्ताव प्रमोद ने रखा और समर्थन अमन ने किया।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बुधवार को भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का अनुमान चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। इस गिरावट के लिए बैंक ने पहली छमाही के कमजोर प्रदर्शन, नोटबंदी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के लागू होने के बाद की चुनौतियों का हवाला दिया है।
बहुपक्षीय ऋणदाता ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारत का जीडीपी अनुमान 7.4 फीसदी से घटाकर 7.3 फीसदी कर दिया है, जिसका मुख्य कारण कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोत्तरी तथा भारत में स्थिर निजी निवेश को बताया है।
एडीबी ने एशियाई विकास परिदृश्य रपट में कहा है, ''वित्त वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में उत्साहविहीन विकास दर, साल 2016 के नवंबर में की गई नोटबंदी के असर, नई कर प्रणाली को लागू करने में आनेवाली शुरुआती चुनौतियों, 2017 में अपूर्ण मानसून के कारण कृषि क्षेत्र पर होनेवाले असर को देखते हुए अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब 6.7 फीसदी की दर से बढ़ेगी, जबकि पहले के अनुमानों में इसके सात फीसदी रहने की बात कही गई थी।''
अपने सितंबर के अपडेट में एडीबी ने भारत के विकास दर अनुमान को चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर सात फीसदी कर दिया था, तथा अगले वित्त वर्ष के लिए इसे 7.6 फीसदी से घटाकर 7.4 फीसदी किया था।
बता दें कि हाल ही में आए दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) के आंकड़ों के मुताबिक, जीडीपी दर बढ़कर 6.3 फीसदी पर पहुंच गई। इससे पहले अप्रैल से जून के बीच पहली तिमाही की जीडीपी दर 5.7 फीसदी रही थी। तब मोदी सरकार की खूब आलोचना हुई थी।
लेकिन बुधवार को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर का अनुमान चालू वित्त वर्ष के लिए घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। इससे मोदी सरकार को करारा झटका लगा है।