मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है : महात्मा गांधी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि अक्टूबर 2014 को डीआरआई (Directorate of Revenue Intelligence), जो वित्त मंत्रालय की एक संस्था है, ने घोषणा की थी कि कोयले के निर्यात के मामले में एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ है और उसकी जांच की शुरुआत हुई है।
जयराम रमेश ने कहा कि पहली घोषणा अक्टूबर, 2014 में हुई, डीआरआई ने एक बयान दिया कि कोयले के आयात में जो ऑवर इन्वॉयसिंग हुआ है, उसके बारे में जांच के आदेश दिए गए हैं। इसके बाद 31 मार्च, 2016 को डीआरआई ने एक दूसरा बयान दिया और इस बयान में पहली बार ये जानकारी दी गई कि 40 कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही के पहले जांच की जा रही है, 40 कंपनियाँ इस घोटाले में शामिल हैं और कुल मिलाकर 29,000 करोड़ रुपए का घोटाला है। ये डीआरआई से दूसरी बार बयान दिया गया, 31 मार्च, 2016 को। 40 कंपनियाँ और ज्यादातर इंडोनेशिया से कोयले की खरीद में 29,000 करोड़ रुपए के घोटाले की जांच, DRI की ओर से यह बयान आया था।
कोयला आयात घोटाला : कांग्रेस मुख्यालय में जयराम रमेश द्वारा एआईसीसी प्रेस ब्रीफिंग
प्रेस ब्रीफिंग की मुख्य बातें:
राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) इंडोनेशियाई कोयले के आयात के अत्यधिक मूल्यांकन के लिए लगभग 40 कंपनियों की जांच कर रहा है।
कोयला आयात का यह अतिवृद्धि ₹ 29, 000 करोड़ रुपये है।
इन 40 कंपनियों में से, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्योगपति मित्र गौतम अदानी की कंपनी भी शामिल है।
डीआरआई ने एसबीआई बैंक की विदेशी शाखाओं के साथ जुड़े दस्तावेजों तक पहुंचने में मदद की मांग के लिए सिंगापुर को लेटर्स रोगटोरी (एलआर) जारी किया, जहां कोयला आयात लेन-देन हुआ।
अदानी फर्म ने सिंगापुर कोर्ट से डीआरआई द्वारा जारी एलआर को रद्द करने के लिए कहा था, लेकिन सिंगापुर अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी। अब अदानी फर्म ने डीआरआई जांच को रोकने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का रूख किया है।
कांग्रेस ने मांग की है कि उद्देश्य और समयबद्ध पूछताछ सुनिश्चित करने के लिए एक एसआईटी स्थापित की जानी चाहिए।
भारत में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में व्यवस्था दी है कि एक राज्य में एससी-एसटी का व्यक्ति दूसरे राज्य में जाकर सरकारी नौकरी में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। हालांकि दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में यह व्यवस्था लागू नहीं होगी। इसमें पूरे देश के लोग नौकरियों में आरक्षण का लाभ ले सकते हैं।
जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को दिए सर्वसम्मत फैसले में कहा कि किसी एक राज्य में अनुसूचित जाति के किसी सदस्य को दूसरे राज्यों में भी अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता, जहां वह रोजगार या शिक्षा के इरादे से गया है। यह व्यक्ति अपना एससी-एसटी का दर्जा दूसरे राज्य में लेकर नहीं जाता। यह जरूर है कि वह वहां रहकर अपने मूल राज्य में आरक्षण का दावा कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि यह दावा वह केंद्र शासित प्रदेशों में कर सकता है, जिनकी सेवाओं को अखिल भारतीय सेवा माना गया है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एन वी रमना, आर भानुमति, एम शांतानागौडर और एस ए नजीर शामिल हैं।
हालांकि जस्टिस भानुमति ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एससी-एसटी के बारे में केंद्रीय आरक्षण नीति लागू होने के संबंध में बहुमत के दृष्टिकोण से असहमति व्यक्त की। संविधान पीठ ने यह व्यवस्था उन याचिकाओं पर दी, जिनमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या एक राज्य में एससी-एसटी के रूप में अधिसूचित व्यक्ति दूसरे राज्य में आरक्षण प्राप्त कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने बीरसिंह बनाम दिल्ली जल बोर्ड मामले में कहा कि कोई राज्य आरक्षण का लाभ अपने राज्य में अधिसूचित लोगों के अलावा अन्य राज्यों के लोगों को भी देना चाहता है तो उसे इसके लिए केंद्र सरकार को बात करनी पड़ेगी। केंद्र सरकार संसदीय प्रक्रिया द्वारा उस राज्य के लिए एससी-एसटी की सूची में संशोधन करेगी। इस बारे में राज्य का एकतरफा फैसला संविधान के अनुच्छेद 16(4) की कसौटी पर सही नहीं होगा और इससे संवैधानिक अराजकता फैल जाएगी। इसलिए इसकी किसी भी कीमत पर अनुमति नहीं दी जा सकती।
संविधान पीठ ने कहा कि जहां तक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का सवाल है यहां की अधीनस्थ सेवाएं स्पष्ट रूप से केंद्रीय सेवाएं हैं। कोर्ट ने केंद्रीय सेवा नियमों का हवाला देते हुए कहा कि जहां तक केंद्र सरकार के मामलों से जुड़ी सेवाएं हैं, चाहे उसका दफ्तर कहीं भी हो, चाहे यह दिल्ली में हो या अन्य राज्य में या केंद्रीय प्रदेश के क्षेत्र में हो, यहां सभी पदों के लिए भर्ती अखिल भारतीय आधार पर होगी। इनमें आरक्षण अखिल भारतीय स्तर पर होगा।
संविधान पीठ ने कहा कि दास रूल - 1967 तथा सी सी एस नियम - 1965 को देखें तो यह पर्याप्त रूप से एन सी टी दिल्ली की अधीनस्थ सेवाओं की प्रकृति बयान करती है। ये स्पष्ट रूप से सामान्य केंद्रीय सेवाएं हैं और शायद यह इस वजह है कि केंद्र सरकार ने शपथ-पत्र में कहा है कि दिल्ली प्रशासनिक अधीनस्थ सेवाएं केंद्रीय सिविल सर्विसेज ग्रुप बी (दानिक्स) के लिए फीडर कैडर है। इसी वजह से अखिल भारतीय योग्यता नीति को पूर्ण रूप से अपनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली एक सूक्ष्म भारत है।
फ्रांस ने फीफा विश्व कप के रोमांचक फाइनल में दमदार क्रोएशिया को 4-2 से हराकर दूसरी बार विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। फ्रांस ने 18वें मिनट में मारियो मैंडजुकिच के आत्मघाती गोल से बढ़त बनायी, लेकिन इवान पेरिसिच ने 28वें मिनट में बराबरी का गोल दाग दिया। फ्रांस को हालांकि जल्द ही पेनल्टी मिली जिसे एंटोनी ग्रीजमैन ने 38वें मिनट में गोल में बदला जिससे फ्रांस मध्यांतर तक 2-1 से आगे रहा।
पॉल पोग्बा ने 59वें मिनट में तीसरा गोल दागा, जबकि किलियान एमबापे ने 65वें मिनट में फ्रांस की बढ़त 4-1 कर दी। जब लग रहा था कि अब क्रोएशिया के हाथ से मौका निकल चुका है, तब मैंडजुकिच ने 69वें मिनट में गोल करके उसकी उम्मीद जगायी।
फ्रांस ने इससे पहले 1998 में विश्व कप जीता था। तब उसके कप्तान डिडियर डेसचैम्प्स थे जो अब टीम के कोच हैं। इस तरह से डेसचैम्प्स खिलाड़ी और कोच के रूप में विश्व कप जीतने वाले तीसरे व्यक्ति बन गये हैं। उनसे पहले ब्राजील के मारियो जगालो और जर्मनी के फ्रैंक बेकनबऊर ने यह उपलब्धि हासिल की थी।
क्रोएशिया पहली बार फाइनल में पहुंचा था। उसने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किये और अपने कौशल और चपलता से दर्शकों का दिल भी जीता, लेकिन आखिर में जालटको डालिच की टीम को उप विजेता बनकर ही संतोष करना पड़ा। निसंदेह क्रोएशिया ने बेहतर फुटबाल खेली, लेकिन फ्रांस ने अधिक प्रभावी और चतुराईपूर्ण खेल दिखाया, यही उसकी असली ताकत है जिसके दम पर वह 20 साल बाद फिर चैम्पियन बनने में सफल रहा।
दोनों टीमें 4-2-3-1 के संयोजन के साथ मैदान पर उतरी। क्रोएशिया ने इंग्लैंड के खिलाफ जीत दर्ज करने वाली शुरुआती एकादश में बदलाव नहीं किया तो फ्रांसीसी कोच डेसचैम्प्स ने अपनी रक्षापंक्ति को मजबूत करने पर ध्यान दिया। क्रोएशिया ने अच्छी शुरुआत की। पहले हाफ में न सिर्फ गेंद पर अधिक कब्जा जमाये रखा बल्कि इस बीच आक्रामक रणनीति भी अपनाये रखी। उसने दर्शकों में रोमांच भरा, जबकि फ्रांस ने अपने खेल से निराश किया। यह अलग बात है कि भाग्य फ्रांस के साथ था और वह बिना किसी खास प्रयास के दो गोल करने में सफल रहा।
फ्रांस के पास पहला मौका 18वें मिनट में मिला और वह इसी पर बढ़त बनाने में कामयाब रहा। फ्रांस को दायीं तरफ बाक्स के करीब फ्री किक मिली। ग्रीजमैन का क्रास शॉट गोलकीपर डेनियल सुबासिच की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन तभी मैंडजुकिच ने उस पर हेडर लगा दिया और गेंद गोल में घुस गयी। इस तरह से मैंडजुकिच विश्व कप फाइनल में आत्मघाती गोल करने वाले पहले खिलाड़ी बन गये। यह वर्तमान विश्व कप का रिकार्ड 12वां आत्मघाती गोल है।
पेरिसिच ने हालांकि जल्द ही बराबरी का गोल करके क्रोएशियाई प्रशंसकों और मैंडजुकिच में जोश भरा। पेरिसिच का यह गोल दर्शनीय था जिसने लुजनिकी स्टेडियम में बैठे दर्शकों को रोमांचित करने में कसर नहीं छोड़ी। क्रोएशिया को फ्री किक मिली और फ्रांस इसके खतरे को नहीं टाल पाया।
मैंडजुकिच और डोमागोज विडा के प्रयास से गेंद विंगर पेरिसिच को मिली। उन्होंने थोड़ा समय लिया और फिर बायें पांव से शाट जमाकर गेंद को गोल के हवाले कर दिया। फ्रांसीसी गोलकीपरी ह्यूगो लोरिस के पास इसका कोई जवाब नहीं था। लेकिन इसके तुरंत बाद पेरिसिच की गलती से फ्रांस को पेनल्टी मिल गयी। बाक्स के अंदर गेंद पेरिसिच के हाथ से लग गयी। रेफरी ने वीएआर की मदद ली और फ्रांस को पेनल्टी दे दी। अनुभवी ग्रीजमैन ने उस पर गोल करने में कोई गलती नहीं की। यह 1974 के बाद विश्व कप में पहला अवसर है, जबकि फाइनल में मध्यांतर से पहले तीन गोल हुए।
क्रोएशिया ने इस संख्या को बढ़ाने के लिये लगातार अच्छे प्रयास किये, लेकिन फ्रांस ने अपनी ताकत गोल बचाने पर लगा दी। इस बीच पोग्बा ने देजान लोवरान को गोल करने से रोका। क्रोएशिया ने दूसरे हाफ में भी आक्रमण की रणनीति अपनायी और फ्रांस को दबाव में रखा। खेल के 48वें मिनट में लुका मोड्रिच ने एंटे रेबिच को गेंद थमायी जिन्होंने गोल पर अच्छा शाट जमाया, लेकिन लोरिस ने बड़ी खूबसूरती से उसे बचा दिया। लेकिन गोल करना महत्वपूर्ण होता है और इसमें फ्रांस ने फिर से बाजी मारी। दूसरे हाफ में वैसे भी उसकी टीम बदली हुई लग रही थी।
खेल के 59वें मिनट में किलियान एमबापे दायें छोर से गेंद लेकर आगे बढ़े। उन्होंने पोग्बा तक गेंद पहुंचायी जिनका शॉट विडा ने रोक दिया। रिबाउंड पर गेंद फिर से पोग्बा के पास पहुंची जिन्होंने उस पर गोल दाग दिया। इसके 6 मिनट बाद एमबापे ने स्कोर 4-1 कर दिया। उन्होंने बायें छोर से लुकास हर्नाडेज से मिली गेंद पर नियंत्रण बनाया और फिर 25 गज की दूरी से शाट जमाकर गोल दाग दिया जिसका विडा और सुबासिच के पास कोई जवाब नहीं था।
एमबापे ने 19 साल 207 दिन की उम्र में गोल दागा और वह विश्व कप फाइनल में गोल करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गये। क्रोएशिया लेकिन हार मानने वाला नहीं था। तीन गोल से पिछड़ने के बावजूद उसका जज्बा देखने लायक था, लेकिन उसने दूसरा गोल फ्रांसीसी गोलकीपर लोरिस की गलती से किया। उन्होंने तब गेंद को ड्रिबल किया, जबकि मैंडजुकिच पास में थे। क्रोएशियाई फारवर्ड ने उनसे गेंद छीनकर आसानी से उसे गोल में डाल दिया।
इसके बाद भी क्रोएशिया ने हार नहीं मानी। उसने कुछ अच्छे प्रयास किये, लेकिन उसके शॉट बाहर चले गये। इस बीच इंजुरी टाइम में पोग्बा को अपना दूसरा गोल करने का मौका मिला, लेकिन वह चूक गये। रेफरी की अंतिम सीटी बजते ही फ्रांस जश्न में डूब गया।
पॉल पोग्बा ने 59वें मिनट में तीसरा गोल दागा, जबकि किलियान एमबापे ने 65वें मिनट में फ्रांस की बढ़त 4-1 कर दी। जब लग रहा था कि अब क्रोएशिया के हाथ से मौका निकल चुका है, तब मैंडजुकिच ने 69वें मिनट में गोल करके उसकी उम्मीद जगायी।
स्विस बैंकों में किसी देश के नागरिक और कंपनियों द्वारा धन जमा कराने के मामले में 2017 में भारत 73वें स्थान पर पहुंच गया। इस मामले में ब्रिटेन शीर्ष पर बना हुआ है। वर्ष 2016 में भारत का स्थान इस मामले में 88वां था।
हाल में जारी स्विस नेशनल बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि में 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है और यह करीब 7,000 करोड़ रुपये हो गयी। 2016 में इसमें 44 फीसदी की गिरावट आई थी और भारत का स्थान 88 वां था।
इस सूची में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का स्थान भारत से एक ऊपर यानी 72 वां हो गया है। हालांकि यह उसके पिछले स्थान से एक कम है क्योंकि उसके द्वारा जमा किए जाने वाले धन में 2017 के दौरान 21 फीसदी कमी आयी है। स्विस नेशनल बैंक की रिपोर्ट में इस धन को उसकी ग्राहकों के प्रति देनदारी के रुप में दिखाया गया है। इसलिए यह स्पष्ट नहीं होता कि इसमें से कितना कथित कालाधन है।
स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक द्वारा इन आधिकारिक आंकड़ों को सालाना आधार पर जारी किया जाता है। इन आंकड़ों में भारतीयों, अनिवासी भारतीयों और अन्य द्वारा अन्य देशों से इकाइयों के नाम पर जमा कराया गया धन शामिल नहीं है। अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि भारतीय और अन्य देशों के लोग अपनी अवैध कमाई को स्विस बैंकों में जमा कराते हैं, जिसे टैक्स से बचने की सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है।
हालांकि स्विट्जरलैंड ने भारत समेत कई देशों के साथ स्वत: सूचना साझा करने की संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे अब भारत को अगले साल जनवरी से स्विस बैंक में धन जमा करने वालों की जानकारी स्वत: मिलना शुरु हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि धन के हिसाब से 2015 में भारत का स्थान इस सूची में 75 वां और 2014 में 61वां था। ब्रिटेन इस सूची में पहले और अमेरिका दूसरे स्थान पर है।
शीर्ष दस देशों की सूची में वेस्ट इंडीज, फ्रांस, हांगकांग, बहामास, जर्मनी, गुएर्नसे, लक्जमबर्ग और केमैन आईलैंड शामिल है। ब्रिक्स देशों की सूची में चीन का स्थान 20वां, रूस का 23वां, ब्राजील का 61वां, दक्षिण अफ्रीका का 67वां है। पड़ोसी मुल्कों में मॉरीशस का स्थान 77वां , बांग्लादेश का 95वां, श्रीलंका का 108वां, नेपाल का 112वां और अफगानिस्तान का 155वां स्थान है।
वर्ष 1996 से 2007 के बीच भारत इस सूची में शीर्ष 50 देशों में शामिल था। उसके बाद 2008 में वह 55वें, 2009 और 2010 में 59वें, 2011 में 55वें, 2012 में 71वें और 2013 में 58वें स्थान पर रहा।
मोदी शासनकाल में भारतीयों का स्विस बैंकों में जमा धन 50 फीसदी बढ़ गया है। चार साल में पहली बार स्विस बैंक में जमा धन बढ़ कर पिछले साल एक अरब स्विस फैंक (7,000 करोड़ रुपये) के दायरे में पहुंच गया है। यह आंकड़ा एक साल पहले की तुलना में 50 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
स्विट्जर लैंड के केंद्रीय बैंक के ताजा आंकड़ों में यह बात सामने आयी है। इसके अनुसार, भारतीयों द्वारा स्विस बैंक खातों में रखा गया धन 2017 में 50 फीसदी से अधिक बढ़कर 7000 करोड़ रुपये (1.01 अरब फ्रेंक) हो गया।
इससे पहले तीन साल यहां के बैंकों में भारतीयों के जमा धन में लगातार गिरावट आई थी। अपनी बैंकिंग गोपनीयता के लिए पहचान बनाने वाले स्विट्जर लैंड में भारतीयों के जमाधन में ऐसे समय दिखी बढ़ोत्तरी हैरान करने वाली है, जबकि भारत सरकार विदेशों में कालाधन रखने वालों के खिलाफ अभियान चलाए हुए है।
स्विस नेशनल बैंक (एस एन बी) के सालाना आंकड़ों के अनुसार, स्विस बैंक खातों में जमा भारतीय धन 2016 में 45 प्रतिशत घटकर 67.6 मिलियन फ्रेंक (लगभग 4500 करोड़ रुपये) रह गया। यह राशि 1987 से इस आंकड़े के प्रकाशन की शुरुआत के बाद से सबसे कम थी।
एस एन बी के आंकड़ों के अनुसार, भारतीयों द्वारा स्विस बैंक खातों में सीधे तौर पर रखा गया धन 2017 में लगभग 6891 करोड़ रुपये (99.9 मिलियन फ्रेंक) हो गया। वहीं प्रतिनिधियों या धन प्रबंधकों के जरिए रखा गया धन इस दौरान 112 करोड़ रुपये (1.62 मिलियन फ्रेंक) रहा।
ताजा आंकड़ों के अनुसार, स्विस बैंक खातों में जमा भारतीयों के धन में ग्राहक जमाओं के रूप में 3200 करोड़ रुपये, अन्य बैंको के जरिए 1050 करोड़ रुपये शामिल है। इन सभी मदों में भारतीयों के धन में आलोच्य साल में बढ़ोत्तरी हुई।
स्विस बैंक खातों में रखे भारतीयों के धन में 2011 में इसमें 12 फीसदी, 2013 में 43 फीसदी, 2017 में इसमें 50.2 फीसदी की वृद्धि हुई। इससे पहले 2004 में यह धन 56 फीसदी बढ़ा था। एस एन बी के ये आंकड़े ऐसे समय में जारी किए गए हैं, जबकि कुछ महीने पहले ही भारत और स्विटजरलैंड के बीच सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान की एक नयी व्यवस्था लागू की गई है। इस व्यवस्था का उद्देश्य काले धन की समस्या से निजात पाना है।
इस बीच स्विटजरलैंड के बैंकों का मुनाफा 2017 में 25 फीसदी बढ़कर 9.8 अरब फ्रेंक हो गया। हालांकि इस दौरान इन बैंकों के विदेशी ग्राहकों की जमाओं में गिरावट आई। इससे पहले 2016 में यह मुनाफा घटकर लगभग आधा 7.9 अरब फ्रेंक रह गया था।
एक निगरानी वेबसाइट ने बुधवार को दावा किया कि सिंगापुर शिखर वार्ता में कोरिया प्रायद्वीप के निरस्त्रीकरण की प्रतिबद्धता की घोषणा के बावजूद उत्तर कोरिया तेजी से अपने परमाणु अनुसंधान केंद्र में सुधार कर रहा है।
परमाणु हथियार संपन्न उत्तर कोरिया के नेता किम जांग उन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ इस महीने की शुरुआत में सिंगापुर में हुई ऐतिहासिक वार्ता में इस लक्ष्य की दिशा में काम करने का वादा किया था, लेकिन सिंगापुर बैठक निरस्त्रीकरण की स्पष्ट परिभाषा देने या उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु हथियार भंडार नष्ट करने के लिए स्पष्ट समयसीमा देने में नाकाम रही।
'38 नार्थ' वेबसाइट के अनुसार, ट्रंप ने दावा किया कि प्रक्रिया जल्द शुरू होगी और उन्होंने पिछले सप्ताह कहा था, पूर्ण निरस्त्रीकरण होगा जो शुरू हो चुका है, लेकिन वेबसाइट के अनुसार, हालिया उपग्रह तस्वीरों में दिखाया गया कि उत्तर कोरिया के मुख्य योंगबयोन परमाणु स्थल पर न केवल अभियान जारी है बल्कि वहां आधारभूत ढांचा संबंधी कार्य भी किए जा रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन सिंगापुर में ऐतिहासिक शिखर वार्ता के लिये मिले। इस बैठक का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाना और कोरियाई प्रायद्वीप में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण था। ट्रंप और किम के बीच यह मुलाकात सिंगापुर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल सेंटोसा के एक होटल में हुई। दोनों नेताओं ने शिखर वार्ता की शुरुआत होटल में मीडियाकर्मियों के सामने गर्मजोशी से हाथ मिलाकर की। ट्रंप और किम के बीच यह मुलाकात सिंगापुर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल सेंटोसा के लग्जरी होटल कापेला सिंगापुर में हुई।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन यहां गर्मजोशी से मिले और उनके बीच पहले दौरे की वार्ता हुई। इसके साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने और कोरियाई प्रायद्वीप में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के उद्देश्य से दोनों नेताओं के बीच ऐतिहासिक शिखर वार्ता की शुरुआत हुई। ट्रंप और किम के बीच यह मुलाकात सिंगापुर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल सेंटोसा के लग्जरी होटल कापेला सिंगापुर में हुई।
उत्तर कोरियाई मीडिया के मुताबिक, किम वास्तव में वार्ता स्थल पर ट्रंप से सात मिनट पहले पहुंच गए थे। ऐसा उन्होंने सम्मान व्यक्त करने के लिये किया क्योंकि यह संस्कृति है, जिसमें युवा बुजुर्गों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिये उनसे पहले पहुंचते है। ट्रंप ने जो लाल टाई पहनी हुई थी, वह भी किम के प्रति कुछ सम्मान व्यक्त करने वाली हो सकती है क्योंकि उत्तर कोरियाई इस रंग को पसंद करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि बातचीत कैसी रही, ट्रंप ने कहा, ''बहुत, बहुत अच्छी। शानदार रिश्ते। किम से कम से कम तीन बार पूछा गया कि क्या वह परमाणु हथियार छोड़ देंगे, इसकी प्रतिक्रिया में वह सिर्फ मुस्कुराए। ट्रंप और किम दोनों ने संक्षिप्त टिप्पणी की।
ट्रंप ने कहा कि वह मानते हैं कि वह और किम ''बड़ी समस्या, बड़ी दुविधा को दूर कर लेंगे और साथ काम करके हम इसका ध्यान रखेंगे। किम ने कहा, ''आगे चुनौतियां आएंगी, लेकिन हम ट्रंप के साथ काम करेंगे। हम इस शिखर वार्ता को लेकर सभी तरह की अटकलों और संदेहों से पार पा लेंगे और मेरा मानना है कि शांति के लिये यह अच्छा है।''
दक्षिणी भारतीय राज्य केरल को पिछले हफ्तों में निपाह वायरस से संक्रमित कम से कम 17 लोगों की मौत के बाद "सर्वकालिक चेतावनी" पर रखा गया है।
केरल के स्वास्थ्य मंत्री के के शैलाजा ने सोमवार को कहा कि राज्य संक्रामक बीमारी को रोकने के लिए "सर्वकालिक चेतावनी" पर है जो आगे बढ़ने से इंसानों के बीच तीव्र श्वसन समस्याओं या घातक मस्तिष्क की सूजन का कारण बनता है।
वह कहती हैं, "अधिकारियों ने यह पुष्टि करने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं कि निपाह के कारण अधिक जिंदगी गुम नहीं हुई है।"
स्वास्थ्य और सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि वायरल प्रकोप के परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्य में अपने घरों में 2,37 9 लोगों की संगरोध हुई है।
केरल के मलाबार क्षेत्र में 2,000 से अधिक लोग चिकित्सा अवलोकन के अधीन हैं, अनिश्चित है कि वे इस बीमारी से संक्रमित हैं या नहीं।
जिन लोगों को संक्रमित व्यक्तियों के साथ कोई संपर्क था, उन्हें सूची में शामिल किया गया है।
स्वास्थ्य सेवाओं के राज्य के निदेशक आर एल सरिथा ने सोमवार को कहा कि 1 जून से कोई नया मामला दर्ज नहीं हुआ है।
सरिथा ने कहा, "निवारक उपायों को अधिक दक्षता के साथ लागू किया गया है। घबराने की कोई जरूरत नहीं है।"
माना जाता है कि निपाह वायरस जानवरों से मनुष्यों तक फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, फल चमगादड़ रोग के प्राकृतिक मेजबान हैं।
भारत के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ विरोलॉजी (विषाणु विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान) के विशेषज्ञों ने कहा कि वे भी स्थिति की निगरानी कर रहे हैं।
खतरे की घंटी बज उठी
बीमारी के फैलने और इसके प्रसार के जोखिम ने राज्य के मलाबार क्षेत्र के चार सबसे प्रभावित जिलों में लोगों के बीच खतरे की घंटी बजाई है।
कोझिकोड जिले के कोइलांडी तालुक अस्पताल में सर्जन डॉ अजाज अली ने कहा कि चूंकि बीमारी की खबर फ़ैल गई है, इसलिए कई मरीजों ने अस्पताल आने से बचना शुरू कर दिया है।
"यहां हर दिन 1,200 से ज्यादा लोग आ रहे थे, और अब यह 200 से नीचे हो गया है। निपाह जोखिम के कारण सभी भीड़ से डरते हैं।''
निपाह से संक्रमित मरीजों के लिए अलगाव वार्ड कोझिकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में स्थापित किया गया है।
इस बीमारी ने राज्य अधिकारियों को स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने और मालाबार में परीक्षा स्थगित करने के लिए मजबूर कर दिया है।
जिला अधिकारियों ने भी लोगों से सावधानी पूर्वक उपाय के रूप में भीड़ वाले क्षेत्रों से दूर रहने के लिए कहा है। कुछ क्षेत्रों में जिला अदालतों ने अस्थायी रूप से संचालन को निलंबित कर दिया है।
व्यवसाय प्रभावित
बीमारी के फैलने से लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है क्योंकि कारोबार बंद हो गया है। पिछले कुछ हफ्तों में उपज, मांस और मछली बेचने वाले रेस्तरां और दुकानों में बिक्री गिर गई है।
कोझिकोड जिले के एक बस कंडक्टर राजीव ने कहा, "बस स्टैंड खाली हैं। लोग यात्रा से परहेज कर रहे हैं। वे घर पर रहते हैं और यात्रा करते समय सुरक्षात्मक मास्क का उपयोग करते हैं।"
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और कतर ने केरल से ताजा और जमे हुए सब्जियों और फलों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रकोप नियंत्रित होने तक प्रतिबंध जारी रहेगा।
बहरीन और कतर ने अपने नागरिकों और निवासियों से आग्रह किया कि महामारी नियंत्रण में आने तक केरल यात्रा करने से बचें।
केरल के अनुमानित 1.6 मिलियन प्रवासियों ने संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन में भारतीय समुदाय का बहुमत बनाया है।
स्रोत का पता लगाना
भारत में स्वास्थ्य प्राधिकरणों ने कहा कि उनके पास यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है कि केरल में निपाह वायरस फल चमगादड़ द्वारा प्रसारित किया गया था। जैसा पहले माना गया था।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज के अधिकारियों ने कहा कि ड्रॉपपिंग, सीरम और चमगादड़ के रक्त से एकत्र किए गए नमूने जाँच में निपाह वायरस के लिए नकारात्मक पाए गए हैं।
आखिरी निपाह प्रकोप 2001 और 2007 में भारत के पश्चिम बंगाल में रिपोर्ट किया गया था जिसमें 70 लोगों की मौत हुई थी। 1 99 8 से निपाह ने बांग्लादेश, मलेशिया, भारत और सिंगापुर में 260 से अधिक लोगों की हत्या कर दी है।
घातक वायरस का नाम मलेशिया में कम्पांग सुंगई निपाह गांव से मिला, जहां इसकी पहली सूचना मिली थी।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने कहा कि निपाह को फैलाने से रोकने के लिए टीका की अनुपस्थिति के बावजूद, हेपेटाइटिस सी संक्रमण के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा में रोगियों में बुखार और उल्टी को रोकने की क्षमता है।
स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक ने कहा कि केरल में दो पुष्टि किए गए मामले, जो अब इलाज में हैं, में भी हेपेटाइटिस सी संक्रमण के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एंटीवायरल दवा निपाह के नियंत्रण के लिए कारगर साबित हो रहा है।
इस बीच, भारत की राष्ट्रीय रोग नियंत्रण एजेंसी ने कहा कि देश के अन्य हिस्सों में निपाह का कोई भी मामला नहीं मिला है।
भारत के मध्यप्रदेश में फर्जी वोटर लिस्ट तैयार हो रही है। इसी को लेकर कांग्रेस नेताओं ने सुबह चुनाव आयोग से शिकायत की थी, जिसके बाद चुनाव आयोग ने टीम बनाकर इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
कांग्रेस नेता कमलनाथ ने 4 लाख फ़र्ज़ी मतदाताओं की शिकायत राज्य निर्वाचन आयोग से पहले की थी, लेकिन कोई संतोषजनक कार्रवाई न होने के बाद अब दिल्ली में इसकी शिकायत की गई है।
कमलनाथ के साथ फर्जी वोटर लिस्ट की शिकायत लेकर दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सत्यव्रत चतुर्वेदी चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे।
इन नेताओं ने चुनाव आयोग को वो लिस्ट भी सौंपी जिसमें एक नाम पर कई वोटर है। इसके अलावा एक वोटर की आईडी पर कई फोटो के साथ वोट बने हुए है। यहीं नहीं, मरे हुए लोगों का नाम अभी भी वोटर लिस्ट में है।
हिंदी विश्वविद्यालय में छुट्टी लेना अनुसूचित जनजाति के छात्र को महँगा पड़ा, पीएचडी रद्द हुई। हिंदी विश्वविद्यालय ने आनन-फानन में जाँच कमेटी गठित की। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एल कारूण्यकारा पर पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) संस्था के नाम पर धन उगाही का आरोप लगा।
महाराष्ट्र के वर्धा में महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के दलित एवं जनजाति अध्ययन केन्द्र के अनुसूचित जनजाति के पीएचडी शोधार्थी भगत नारायण महतो जो मूल रूप से बिहार के पश्चिमी चम्पारण की थारू जनजाति से ताल्लुक रखते है। उनका प्रवेश दिसम्बर 2017 में इस केंद्र में पीएचडी शोधार्थी के रूप हुआ था और वह इसी केंद्र से एम फिल के टॉपर भी रहें हैं, उनकी पीएचडी अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित एवं पंजीयन पूर्व सेमिनार प्रस्तुत न करने का आरोप लगाते हुए केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारूण्यकारा की अनुशंसा पर निरस्त कर दिया गया है।
जबकि शोधार्थी भगत नारायण महतो ने आरोप को निराधार बताते हुए अपने पक्ष को तथ्य सहित सभी सम्बंधित दस्तावेज प्रस्तुत करते हुए कहा है कि प्रवेश की तिथि एवं जब भी उसका अवकाश स्वीकृत या अस्वीकृत हुआ उसने केंद्र निदेशक से अनुमति ली थी तथा उनका यह भी कहना था कि उसे पूर्व सेमीनार प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में विभाग के द्वारा उसे कोई जानकारी नहीं दी गई थी जिसे किसी भी रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति मानने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत छात्र पर लापरवाह एवं पढ़ने में कमजोर छात्र के श्रेणी में रख रहे हैं। उसके पी एच डी प्रवेश निरस्त को सही बताने में लगे हुए हैं। परन्तु कुलपति गिरिश्वर मिश्र को यह ज्ञात नहीं है कि उनके ही विश्वविद्यालय के अपने विभाग में एम फिल प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला भगत नारायण महतो एक होनहार छात्र है।
पीड़ित छात्र भगत नारायण ने कहा, ''उसके केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारुण्यकारा जो इस पीएचडी प्रवेश निरस्त के मुख्य कर्ताधर्ता है। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाकर मेरा प्रवेश निरस्त कर दिया और विश्वविद्यालय प्रशासन ने बिना किसी जाँच पड़ताल किये ही निरस्त के आदेश को स्वीकृत कर लिया तथा मुझे अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया।''
शोधार्थी भगत नारायण महतो के पिता की मृत्यु के उपरांत घर की जिम्मेदारी उस के ऊपर ही थी जिस कारण छात्र अपनी पढाई के साथ परिवार का भी ख्याल रख रहा है। समस्त घटनाक्रम प्रवेश के उपरांत आरम्भ होती है जिसमें छात्र को किन्ही कारणवश अलग-अलग तिथि में अपने घर पश्चिमी चम्पारण (बिहार) जाना पड़ जाता है। घर जाने से पूर्व विश्वविद्यालय की सभी संवैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन करता है जिसमें घर जाने से पहले अवकाश के लिए आवेदन देना आदि शामिल है। जिस अवकाश को आधार बनाकर छात्र का प्रवेश निरस्त किया गया है, उस अवकाश लिए भी छात्र ने 20 अप्रैल 2018 को आवेदन दिया था जिसे उसके केन्द्र निदेशक के कार्यालय द्वारा 25 अप्रैल 2018 को ई-मेल के माध्यम से अस्वीकृत करने की सूचना दी गई। छात्र के अपने गृह स्थान बिहार के पश्चिमी चम्पारण पहुँच जाने एवं इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण विलम्ब से अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त हुई। जब छात्र को अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त हुई तो तत्पश्चात वर्धा (महाराष्ट्र) आने के लिए ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिलना, आर्थिक तंगी और पारिवारिक समस्या के कारण विश्वविद्यालय पहुँचने में विलम्ब हुआ जिसके बाद छात्र ने कुलपति से इसके लिए क्षमा माँगी।
पीएचडी प्रवेश निरस्त का दूसरा कारण पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति को आधार बताया गया है। छात्र के अनुसार, इससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सूचना विश्वविद्यालय की वेबसाइट, ई-मेल के माध्यम एवं अन्य किसी भी प्रकार के संचार माध्यम से छात्र को सूचना नहीं दी गई। विश्वविद्यालय पहुँचने के तुरंत बाद छात्र के द्वारा पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति के विषय में केंद्र सहायक से पता करने पर मालूम हुआ कि 2017 बैच के पीएचडी शोधार्थी का पंजीयन पूर्व सेमीनार हुआ ही नहीं है।
इस विषय को लेकर विश्वविद्यालय के छात्र पीड़ित शोधार्थी भगत नारायण महतो को लेकर दिनांक 25 मई 2018 को कुलपति से मिले तथा समस्त घटनाक्रम से उन्हें अवगत कराया एवं इससे सम्बंधित अपना पक्ष रखते हुए आवेदन पत्र दिया और आवश्यक कार्यवाही करने का आग्रह किया।
केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारुण्यकारा के सम्बन्ध में अवैध वसूली जो कि पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) के नाम पर प्रत्येक एम फिल के छात्र से 500 रूपए प्रति माह, पीएचडी छात्र से 1000 रूपये प्रति माह एवं नेशनल फेलोशिप, आर जी एन एफ एवं जे आर एफ पाने वाले छात्र से 3000 रूपये प्रति माह की अवैध वसूली के बारे में भी अवगत कराया। जिसके बारे में विभाग में पढने वाले छात्रों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर खुलासा किया। इन सभी बातों को बेमन से कुलपति ने सुना और कहा कि हम इस विषय पर 28 मई 2018 को जवाब देंगे।
इसी क्रम में फिर से छात्र राजेश सारथी, राजू कुमार, राम सुन्दर शर्मा और अनुपम राय पीड़ित शोधार्थी के साथ कुलपति से मिलने गये तथा कार्यवाही के बारे में जानना चाहा तो कुलपति उल्टे ही छात्र को लापरवाह एवं प्रोफेसर एल कारुण्यकारा की पीएचडी प्रवेश निरस्त निर्णय को सही बताने में लगे।
अंतत: छात्रों ने पूरे पीएचडी निरस्त की प्रक्रिया के असंवैधानिक पहलू से कुलपति को अवगत कराया तथा कहा कि किसी भी छात्र की पीएचडी निरस्त करने का अधिकार बीओएस (बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़) के क्षेत्र में नहीं आता है। उसे सिर्फ छात्र के विषय से सम्बंधित एवं उसे शोध निदेशक उपलब्ध कराने का अधिकार है। छात्र को पीएचडी में रखना या न रखना विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद् के अधिकार क्षेत्र में आता है।
आश्चर्य की बात ये भी है कि विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद के किसी भी सदस्य के साथ पीएचडी निरस्त से सम्बंधित किसी प्रकार का बैठक नहीं किया गया जिसमें छात्र के पक्ष को जाना जा सके। छात्र के केंद्र निदेशक प्रोफेसर एल कारूण्यकारा ने सभी नियमों को ताक पर रखते हुए गलत तरीके छात्र के पीएचडी प्रवेश को निरस्त किया तथा छात्र को अकादमिक परिषद के सामने अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।
28 मई 2018 को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस सन्दर्भ में प्रोफेसर मनोज कुमार की अध्यक्षता में प्रोफेसर हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रोफेसर प्रीति सागर एवं डॉ सुरजीत कुमार सिंह की चार सदस्यीय जाँच समिति का गठन किया गया है तथा एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया, लेकिन जानकार सूत्रों की माने तो प्रोफेसर मनोज कुमार और प्रोफेसर प्रीति सागर आधिकारिक रूप से छुट्टी पर हैं तो ऐसी जाँच समिति क्या रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
इस घटना के सन्दर्भ में जब हमने प्रोफेसर एल कारूण्यकारा का पक्ष जानना चाहा तो उनके द्वारा फोन रिसीव नहीं किया गया एवं कार्यकारी कुलसचिव कादर नवाज़ खान का फोन स्विच ऑफ़ मिला।