कमज़ोर होते डॉलर से तेल सस्ता हुआ
- By न्यूज़ ब्यूरो --
- 18 August 2020 --
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दुनिया की प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमरीकी डॉलर के कमज़ोर होने की वजह से कच्चा तेल ख़रीदने वाले देशों को तेल सस्ता मिल रहा है। अमरीका के एनर्जी इनफार्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी ईआईए ने ये जानकारी शुक्रवार को दी है।
कच्चे तेल का कारोबार अमरीकी डॉलर में ही होता है, इस वजह से उन देशों को ये तेल सस्ता पड़ रहा है जिनकी मुद्रा डॉलर के मुक़ाबले मज़बूत हुई है। यूरोज़ोन के देश भी इसमें शामिल हैं। इनमें कई देश ऐसे हैं जो कच्चा तेल आयात करते हैं। एक जून से 12 अगस्त के बीच ब्रेंट क्रूड ऑयल के दामों में 19 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
लेकिन ईआईए के अनुमान के मुताबिक़ डॉलर के मुक़ाबले यूरो की क़ीमत बढ़ने की वजह से यूरो में ये बढ़ोतरी 12 फ़ीसदी ही हुई है। बीते कुछ महीनों से ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम और डॉलर के दाम विरोधी दिशाओं में बढ़ रहे हैं।
जहां ब्रेंट क्रूड ऑयल महंगा हो रहा है वहीं वैश्विक मुद्राओं के मुक़ाबले डॉलर कमज़ोर पड़ रहा है। हाल के सप्ताह में महामारी के असर की वजह से क्रूड ऑयल की वैश्विक मांग कम होने का अनुमान लगाया गया है, लेकिन कमज़ोर हो रहे डॉलर ने तेल के दामों का समर्थन ही किया है।
कमज़ोर अमरीकी डॉलर का मतलब ये है कि तेल ख़रीदने वाले देशों को तेल सस्ता पड़ रहा है। इस सप्ताह ईआईए की सूची रिपोर्ट के मुताबिक 7 अगस्त तक के सप्ताह में 45 लाख बैरल क्रूड ऑयल निकाला गया है। वहीं सात लाख बैरल गैसोलीन और 23 लाख बैरल डिस्टिलेट फ्यूल सूची से कम हुआ है।
इससे तेल के दामों को बढ़त मिली है। तेल की इस कमी से तेल के दाम कुछ ऊंचे हुए थे लेकिन इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी और ओपेक ने इस साल के लिए तेल की खपत के अपने अनुमान को कम कर दिया है और स्वीकार किया है कि कोरोना महामारी पर वैश्विक असर अनुमान से कहीं ज़्यादा होगा।