असम में सीएए विरोधी प्रदर्शन में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के पुतले फूंके गए, सैकड़ों प्रदर्शनकारी पुलिस हिरासत में
मंगलवार, 12 मार्च 2024
भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किए जाने के ख़िलाफ़ मंगलवार, 12 मार्च 2024 को पूरे भारत के राज्य असम में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है।
इस दौरान डिब्रूगढ़ में असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद के कार्यकर्ताओं ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पुतले फूंके। असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद ने सीएए कानून की प्रतियां जलाई और सरकार के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की।
सीएए के ख़िलाफ़ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), कृषक मुक्ति संग्राम समिति समेत करीब 30 जनजातीय संगठनों ने असम के विभिन्न हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है।
असम में सीएए के ख़िलाफ़ शुरू हुए आंदोलन के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार, 12 मार्च 2024 को कहा, "कानून बनने से पहले आंदोलन किया जाता है और अगर अब कानून का विरोध करना है तो कोर्ट में जाना चाहिए। लोग जब पोर्टल में नागरिकता के लिए आवेदन करेंगे तो 45 दिन में ही हमें पता चल जाएगा कि कितने लोगों ने आवेदन किया है। अगर आवेदन करने वाले लाखों की संख्या में हुए तो मैं खुद इसका विरोध करूंगा।''
हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, "अगर राज्य (असम) में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के लिए आवेदन नहीं करने वाले एक व्यक्ति को सीएए के तहत नागरिकता मिलती है, तो वह इस्तीफा देने वाले पहले व्यक्ति होंगे।''
सीएए के ख़िलाफ़ जोरहाट ज़िले में वकीलों की बिरादरी ने मंगलवार, 12 मार्च 2024 को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू करने के केंद्र सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया।
असम के जोरहाट ज़िले के वकीलों के एक समूह ने अपना विरोध जताने सड़कों पर पैदल मार्च किया। इन वकीलों के हाथ में जो तख्तियां थी उन पर "सीएए नहीं चाहिए" और "हम सीएए का विरोध करते हैं" जैसे नारे लिखे हुए थे।
इस बीच ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेताओं ने मंगलवार, 12 मार्च 2024 को सीएए के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया है। सीएए के ख़िलाफ़ मंगलवार, 12 मार्च 2024 की सुबह से ही सड़कों पर उतरे आंदोलनकारियों को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन ने कई जगह बैरिकेडिंग की थी।
असम के शिवसागर जिले में कृषक मुक्ति संग्राम समिति के सदस्यों ने सीएए की प्रतिलिपि जलाई और सरकार के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाजी की। इसके बाद स्थानीय पुलिस ने सभी कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया।
ऊपरी असम के कई ज़िलों में पुलिस ने आंदोलन करने सड़कों पर उतरे कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया है। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए शहर और आसपास के इलाकों में जवानों को तैनात किया गया है और स्थानीय थानों में अस्थाई जेल बनाई गई है।
असम की प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी मंगलवार, 12 मार्च 2024 को गुवाहाटी के राजीव भवन के सामने धरना-प्रदर्शन किया। इस दौरान कांग्रेस नेताओं ने सीएए की प्रतिलिपि जलाई और बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाजी की। कांग्रेस पार्टी की ज़िला इकाइयों ने भी असम के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया।
सीएए क़ानून का मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है: ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष
मंगलवार, 12 मार्च 2024
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने का स्वागत किया है।
शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, "मैं इस क़ानून के लागू किए जाने पर इसका स्वागत करता हूं। ये बहुत पहले लागू किया जाना चाहिए था, ख़ैर देर आए-दुरुस्त आए।''
शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने कहा कि इस क़ानून को लेकर मुसलमानों के बीच बहुत सी गलतफ़हमियां हैं, जिसे दूर किया जाना चाहिए।
शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने कहा, "इस क़ानून का मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। सीएए क़ानून से सिर्फ़ अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से जो गै़र-मुस्लिम भारत आए हैं और सालों से यहां रह रहे हैं, जिन्हें नागरिकता नहीं मिली है, उन्हें नागरिकता दिए जाने के लिए कोई क़ानून नहीं था। इसलिए भारत सरकार ने ऐसा क़ानून बनाया, जिसके तहत 2014 तक यहां (भारत) पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान से आए ग़ैर-मुस्लिम रह रहे हैं। जिनके साथ उस मुल्क़ में ज़्यादतियां हुई थीं, उनको यहां पर भारत सरकार नागरिकता देगी।''
शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने कहा कि इस क़ानून से भारत के करोड़ों मुसलमानों का कोई लेना-देना नहीं है और न ही इस क़ानून के ज़रिए किसी भी मुसलमान की नागरिकता जाएगी।
शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी का कहना है कि कुछ पॉलिटिकल लोगों ने मुसलमानों के बीच गलतफ़हमी पैदा की थी। जगह-जगह हुए धरने और प्रदर्शन इसी गलतफ़हमी की बुनियाद पर थे। लेकिन अब बहुत हद तक ये गलतफ़हमियां दूर हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि वो चाहते हैं भारत का हर मुसलमान इस क़ानून का स्वागत करे।
केंद्र सरकार ने सोमवार, 11 मार्च 2024 की देर शाम नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर अधिसूचना जारी की, जिसके बाद ये भारत में लागू हो गया।
इस क़ानून के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यक अपने माता-पिता, दादा-दादी या उनसे पीछे की पीढ़ी की राष्ट्रीयता के दस्तावेज़ दिखाकर भारत की नागरिकता हासिल कर सकते हैं।
सीएए पर भ्रम फैलाया जा रहा है, मुस्लिम और हिंदू नागरिकों के अधिकार समान: केंद्र सरकार
मंगलवार, 12 मार्च 2024
भारत के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि सीएए को लेकर कुछ भ्रम फैलाए जा रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि सीएए का भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है, ''एक भारतीय मुस्लिम नागरिक के भी उतने ही अधिकार हैं जितने एक भारतीय हिंदू नागरिक के।''
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि सीएए से भारतीय मुस्लिमों को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सीएए में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे उनकी नागरिकता पर कोई फर्क पड़ेगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है, "सीएए के तहत अवैध प्रवासियों को भी वापस भेजने का कोई प्रावधान नहीं है। कहा जा रहा है कि इसके प्रावधान भारतीय मुस्लिमों के ख़िलाफ़ है। किसी भी भारतीय नागरिक को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए कोई दस्तावेज़ पेश नहीं करना होगा।''
सोमवार, 11 मार्च 2024 को केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून से जुड़े नियमों की अधिसूचना जारी कर दी थी।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि नागरिकता लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए जल्द ही एक वेब पोर्टल लांच किया जाएगा।
भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जानकारी देते हुए एक्स पर लिखा, ''मोदी सरकार ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 की अधिसूचना जारी कर दी है इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए अल्पसंख्यकों को यहां की नागरिकता मिल जाएगी।''
"इस अधिसूचना के ज़रिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और प्रतिबद्धता पूरी की है। इन देशों में रहने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को संविधान निर्माताओं की ओर से किए गए वादे को पूरा किया है।''
नागरिकता संशोधन क़ानून की अधिसूचना जारी होने पर शरद पवार ने क्या कहा?
मंगलवार, 12 मार्च 2024
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) के अध्यक्ष शरद पवार ने नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) की अधिसूचना जारी किए जाने को भारत में संसदीय लोकतंत्र पर हमला बताया है।
साल 2019 में केंद्र सरकार के संशोधित नागरिकता क़ानून यानी सीएए को संसद में पारित किया गया था। चार साल बाद केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है।
इस क़ानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी। लेकिन इस कानून में मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता नहीं देने का प्रावधान है।
शरद पवार ने पत्रकारों से बात करते हुए इस पर कहा, "भारतीय चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की घोषणा करने वाला है और इससे कुछ दिन पहले इस तरह का फ़ैसला संसदीय लोकतंत्र पर हमला है। हम इसकी निंदा करते हैं।''
सीएए जब 2019 में लाया गया था तो इसे लेकर देश (भारत) के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किए गए। समाजिक कार्यकर्ता, नेता और समाज के एक तबके का कहना था कि ये क़ानून 'खुले तौर पर मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है जो संविधान की आत्मा के विपरीत है'।
एनसीपी ने अपने बयान में कहा है कि सीएए की अधिसूचना जारी करने का फ़ैसला इलेक्टोरल बॉन्ड से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश है।
ये फ़ैसला उसी दिन किया गया है कि जिस दिन इलेक्टोरल बॉन्ड पर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की याचिका को खारिज कर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला बरकरार रखा है।
सोमवार, 11 मार्च 2024 को भारत के सुप्रीम कोर्ट की एसबीआई की याचिका खारिज करने के बाद मंगलवार, 12 मार्च 2024 की शाम पांच बजे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी भारत के केंद्रीय चुनाव आयोग को दे दी है। 15 मार्च 2024 तक ये जानकारी चुनाव आयोग को अपनी वेबसाइट पर जारी करनी है।
इलेक्टोरल बॉन्ड वो तरीका है जिससे कोई शख़्स, बिजनेस घराने राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं। अब तक नियम था कि बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी गोपनीय रखी जाएगी। 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
अब एसबीआई को अप्रैल 2019 से खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करनी होगी।
नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ असम में कई संगठनों का विरोध-प्रदर्शन शुरू
मंगलवार, 12 मार्च 2024
सोमवार, 11 मार्च 2024 को केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून की अधिसूचना जारी कर दी। साल 2019 में पारित हुए इस कानून को लोकसभा के चुनाव की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले नोटिफाई किया गया है।
अधिसूचना जारी होने के बाद असम में सीएए कानून के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
सीएए क़ानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए प्रताड़ित शरणार्थियों (हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों और ईसाइयों) को नागरिकता दी जाएगी। लेकिन इस कानून में मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता नहीं देने का प्रावधान है।
समाजिक कार्यकर्ता, नेता और समाज के एक तबके का कहना था कि ये क़ानून 'खुले तौर पर मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है जो संविधान की आत्मा के विपरीत है'।
साल 1979 में अवैध अप्रवासियों की पहचान करने और उन्हें डिपोर्ट किए जाने की मांग लेकर छह साल तक आंदोलन चलाने वाले ऑल असम स्टूडेंट यूनियन यानी एएएसयू ने कहा कि वह 'अदालत के अंदर और बाहर इस कानून के ख़िलाफ़ लड़ेगा'।
एएएसयू और 30 ग़ैर-राजनीतिक जनजातीय दल ने सोमवार, 11 मार्च 2024 को इस क़ानून की कॉपियां जलायी और असम में कई जगह इसे लेकर प्रदर्शन किए गए।
16 पार्टियों के संगठन यूनाइटेड अपोज़िशन फोरम, असम यानी यूओएफ़ए ने भी मंगलवार, 12 मार्च 2024 को राज्यव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि अधिसूचना जारी होने के बाद से असम में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
असम के सभी पुलिस स्टेशनों को अलर्ट पर रखा गया है। शहरों के हर मेन रोड पर बैरिकेड लगाए गए हैं।
भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून की अधिसूचना जारी
सोमवार, 11 मार्च 2024
भारत की केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी है।
भारत के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि नागरिकता लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए जल्द ही एक वेब पोर्टल लांच किया जाएगा।
भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जानकारी देते हुए एक्स पर लिखा, ''मोदी सरकार ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 की अधिसूचना जारी कर दी है इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए अल्पसंख्यकों को यहां की नागरिकता मिल जाएगी।''
"इस अधिसूचना के ज़रिये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और प्रतिबद्धता पूरी की है इन देशों में रहने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों और ईसाइयों को संविधान निर्माताओं की ओर से किए गए वादे को पूरा किया है।''
इससे पहले भारत के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक्स पर लिखा था, "गृह मंत्रालय आज नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के प्रावधानों को लेकर अधिसूचना जारी करेगा। इससे सीएए-2019 के तहत योग्य कोई भी व्यक्ति भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है।''
अधिसूचना जारी किए जाने के बाद भारत के कानून मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने एक्स पर लिखा, ''जो कहा सो किया... मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) की अधिसूचना जारी कर पूरी की अपनी गारंटी।''
नागरिकता संशोधन क़ानून क्या है?
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, 11 दिसंबर 2019 में भारत के संसद में पारित किया गया था।
इसका मक़सद पाकिस्तान,अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देना है। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया है।
इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया जाना विवाद की वजह है। विपक्ष का कहना है कि ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। एक तरफ़ ये कहा जा रहा है कि ये धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की कोशिश है। वहीं दूसरी ओर मुस्लिमों का आरोप है कि इसके ज़रिये उन्हें बेघर करने के क़दम उठाए जा रहे हैं।
इस क़ानून पर धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए हैं। भारतीय संविधान के अनुसार देश में किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। लेकिन इस क़ानून में मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है। इसी वजह से धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन के आरोप लगाए जा रहे हैं।
सीएए के नियमों को अधिसूचित किए जाने के बाद असम और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया गया है।
भारत के राज्य असम के गुवाहाटी में बीबीसी के सहयोगी संवाददाता दिलीप कुमार शर्मा ने बताया है कि सोमवार, 11 मार्च 2024 की शाम को जैसे ही सीएए की अधिसूचना जारी हुई। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक ज़िले में सीएए क़ानून की प्रतिलिपि को जलाकर अपना विरोध जताया।
छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने मंगलवार, 12 मार्च 2024 से राज्यभर में आंदोलन शुरू करने की हुंकार भरी है। इस बीच क्षेत्रीय दल असम जातीय परिषद ने मंगलवार, 12 मार्च 2024 को लोगों से इस कानून के खिलाफ हड़ताल करने का आह्वान किया है।
भारत के राज्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि अगर देश में सीएए लागू होगा तो वो इसका विरोध करेंगी।
ममता बनर्जी ने कहा कि देश में समूहों के बीच भेदभाव हुआ तो वो चुप नहीं रहेंगी। ममता ने कहा कि सीएए और एनआरसी पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्व के लिए संवेदनशील मसला है और वो नहीं चाहतीं कि लोकसभा चुनाव से पहले देश में अशांति फैल जाए।
कोलकाता में राज्य सचिवालय में औचक बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता बनर्जी ने कहा, ''ऐसी अटकलें हैं कि सीएए लागू करने के लिए अधिसूचना जारी होगी। लेकिन मैं ये साफ कर दूं कि लोगों के बीच भेदभाव करने वाले किसी भी फ़ैसले का विरोध किया जाएगा।''
बीबीसी के सहयोगी संवाददाता प्रभाकर मणि तिवारी के मुताबिक़ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ममता बनर्जी ने कहा, "हिम्मत होती तो और पहले लागू करते सीएए, चुनाव के मौके पर क्यों? मैं किसी की नागरिकता नहीं जाने दूंगी।''
सीएए नियम लागू होने की अधिसूचना पर ओवैसी ने क्या कहा?
सोमवार, 11 मार्च 2024
भारत में सीएए कानून से जुड़े नियमों की अधिसूचना जारी होने के बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन औवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।
असदुद्दीन औवैसी ने एक्स पर लिखा है, ''आप क्रोनोलॉजी समझिए। पहले इलेक्शन सीज़न आएगा, फिर सीएए रूल्स आएंगे। सीएए के ख़िलाफ़ हमारा विरोध बरक़रार है। ये विभाजनकारी क़ानून है और गोडसे के विचारों पर बना है। वो विचार जो भारत के मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना चाहते हैं।''
असदुद्दीन औवैसी ने लिखा है, ''धर्म के नाम पर जिसका भी उत्पीड़न हो रहा है उसे राजनीतिक शरण दीजिये, लेकिन नागरिकता का आधार धर्म या राष्ट्रीयता नहीं होनी चाहिए।''
"सरकार बताए कि उसने इस नियम को पांच साल तक टाले क्यों रखा और अब इसे क्यों लागू कर रही है। एनपीआर-एनआरसी के साथ ही सीएए का मक़सद मुस्लिमों का टारगेट करना है। इसका और कोई दूसरा मक़सद नहीं है।''
ओवैसी ने लिखा है कि जो लोग सीएए, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे थे उनके लिए अब एक और बार इसके ख़िलाफ़ उतरने के अलावा और कोई चारा नहीं है।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं, कल तक जानकारी देनी होगी
सोमवार, 11 मार्च 2024
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी साझा करने की समय सीमा 30 जून 2024 तक बढ़ाने की एसबीआई की मांग ख़ारिज कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से कहा है कि वह मंगलवार, 12 मार्च 2024 तक इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दे।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वे सारी सूचनाएं इकट्ठा करके चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर 15 मार्च 2024 की शाम पांच बज़े तक सार्वजनिक करें।
एसबीआई ने 5 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने के लिए उसे 30 जून 2024 तक का समय दिया जाए।
इस पर चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पाँच सदस्यों वाली पीठ ने सोमवार, 11 मार्च 2024 को ये फ़ैसला दिया है।
बेंच की अगुवाई चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं। उनके साथ इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फ़रवरी 2024 को हुई सुनवाई के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड्स को असंवैधानिक करार देते हुए एसबीआई को इससे जुड़ी सभी जानकारियां छह मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को देने के लिए कहा था।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई की अर्ज़ी ठुकराई, प्रशांत भूषण ने क्या कहा?
सोमवार, 11 मार्च 2024
इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी साझा करने की समय सीमा 30 जून 2024 तक बढ़ाने की एसबीआई की मांग ख़ारिज होने के बाद जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने इस फ़ैसले का स्वागत किया है।
प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले पर अदालत के पहले के फ़ैसले की तरह यह बढ़िया और ठोस फ़ैसला है।
प्रशांत भूषण ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की ओर से एसबीआई पर अदालत की अवमानना का मामला दायर किया था।
समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में प्रशांत भूषण ने कहा, "चुनावी बॉन्ड ख़रीदकर दान देने वालों और इन बॉन्ड को भुनाने वालों से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने की समय सीमा 30 जून 2024 तक बढ़ाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख़ अपनाया है।''
प्रशांत भूषण ने कहा, "अदालत ने एसबीआई की याचिका ख़ारिज कर दी और ज़िक्र किया कि अदालत ने जो आंकड़ें उनसे मांगे थे, वो एसबीआई के पास पहले से उपलब्ध हैं।''
इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट से एसबीआई को और समय न मिलने पर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने क्या कहा?
सोमवार, 11 मार्च 2024
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट से एसबीआई को और समय न दिए जाने के फ़ैसले का कांग्रेस पार्टी ने स्वागत किया है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतंत्र में बराबरी के मौके़ की जीत है।
एसबीआई ने एक अर्ज़ी देकर सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दिए जाने की समय-सीमा बढ़ाकर 30 जून 2024 कर दी जाए।
सोमवार, 11 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने ये अर्ज़ी ख़ारिज करते हुए एसबीआई को कल यानी मंगलवार, 12 मार्च 2024 तक जानकारी देने का आदेश दिया है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये जानकारी 15 मार्च 2024 की शाम पाँच बजे तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड हो जानी चाहिए।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फ़ैसले पर कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड प्रकाशित करने के लिए एसबीआई द्वारा साढ़े चार महीने मांगने के बाद साफ़ हो गया था कि मोदी सरकार अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने की हरसंभव कोशिश कर रही है। आज के माननीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से देश को जल्द इलेक्टोरल बॉन्ड से भाजपा को चंदा देने वालों की लिस्ट पता चलेगी।''
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "मोदी सरकार के भ्रष्टाचार, घपलों और लेन-देन की कलई खुलने की ये पहली सीढ़ी है। अब भी देश को ये नहीं पता चलेगा कि भाजपा के चुनिंदा पूंजीपति चंदाधारक किस-किस ठेके के लिए मोदी सरकार को चंदा देते थे, उसके लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट को उचित निर्देश देने चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स से ये तो उजागर हुआ ही है कि भाजपा किस तरह ईडी-सीबीआई-आईटी रेड डलवाकर जबरन चंदा वसूलती थी। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतंत्र में बराबरी के मौके की जीत है।''
राहुल गांधी ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसबीआई की अर्ज़ी ठुकराए जाने पर क्या कहा?
सोमवार, 11 मार्च 2024
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट से मिले झटके के बाद कहा है कि 'नरेंद्र मोदी के चंदे के धंधे की पोल खुलने वाली है।'
राहुल ने एक्स पर लिखा, "100 दिन में स्विस बैंक से काला धन लाने का वायदा कर सत्ता में आई सरकार अपने ही बैंक का डेटा छिपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सिर के बल खड़ी हो गई।''
राहुल गांधी ने कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला साबित होने जा रहा है, जो भ्रष्ट उद्योगपतियों और सरकार के नेक्सस की पोल खोल कर नरेंद्र मोदी का असली चेहरा देश के सामने लेकर आएगा।''
"क्रोनोलॉजी स्पष्ट है- चंदा दो-धंधा लो, चंदा दो-प्रोटेक्शन लो। चंदा देने वालों पर कृपा की बौछार और आम जनता पर टैक्स की मार, यही है भाजपा की मोदी सरकार।''
सोमवार, 11 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 30 जून 2024 तक का समय मांगने वाली याचिका को ख़ारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को कहा है कि वह 12 मार्च 2024 तक इसकी जानकारी दे।
अनुच्छेद 370 के रद्द किए जाने की आलोचना करना कोई अपराध नहीं है: सुप्रीम कोर्ट
शुक्रवार, 8 मार्च 2024
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फ़ैसले में गुरुवार, 7 मार्च 2024 को कहा कि अनुच्छेद 370 के रद्द किए जाने की आलोचना करना कोई अपराध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के राज्य महाराष्ट्र के एक प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम पर दर्ज मुक़दमे को रद्द करते हुए यह बात कही।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस को भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर संवेदनशील होना चाहिए।
मामला क्या है?
प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस में अनुच्छेद 370 को रद्द करने की आलोचना करते हुए 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर के लिए 'काला दिन' बताया था।
प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर '5 अगस्त- ब्लैक डे जम्मू-कश्मीर' और '14 अगस्त- स्वतंत्रता दिवस पाकिस्तान' लिखा था।
प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम की इस टिप्पणी पर पुलिस ने प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था। महाराष्ट्र पुलिस ने प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार के खिलाफ हर आलोचना या विरोध को अगर धारा 153-ए के तहत अपराध मान लिया जाएगा, तो देश (भारत) में लोकतंत्र नहीं बचेगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि 5 अगस्त, 2019 को 'काला दिवस' बताना विरोध और पीड़ा की अभिव्यक्ति है।
इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि प्रोफेसर जावेद अहमद हजाम की टिप्पणी समाज के विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य और दुर्भावना को बढ़ावा दे सकती है।
भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त, 2019 को संसद में अनुच्छेद 370 को रद्द करने का ऐलान किया था।
भारत सरकार के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई थी।
अब से लगभग तीन महीने पहले 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाना ठीक था।
जीएन साईबाबा ने जेल से बाहर आने के बाद क्या कहा?
गुरुवार, 7 मार्च 2024
भारत में स्थित दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफे़सर जीएन साईबाबा ने माओवादियों के साथ कथित संबंधों के मामले में जेल से रिहा होने के बाद मीडियाकर्मियों से बात की।
जीएन साईबाबा ने कहा, "अगर देश का संविधान 50 फ़ीसदी भी लागू हो तो निश्चित तौर पर बदलाव होगा। मुझे इसकी उम्मीद है।"
जीएन साईबाबा से एक रिपोर्टर ने जेल से बाहर निकलने की उम्मीद पर सवाल किया तो उन्होंने कहा, "देखिए उम्मीद ही ऐसी चीज थी जिसने मेरी मदद की और मैं इन सब चीज़ों से गुजर पाया। ये आश्चर्य है कि मैं जेल से जीवित बाहर निकल पाया।"
माओवादियों से कथित संबंध के मामले में बरी किए गए दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफे़सर जीएन साईबाबा नागपुर की सेंट्रल जेल से गुरुवार, 7 मार्च 2024 को बाहर आ गए।
पाँच मार्च 2024 को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने जीएन साईबाबा, हेम मिश्रा, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलीकर, प्रशांत राही और पांडु नरोट (निधन) को माओवादियों से कथित संबंध के मामले में बरी कर दिया था।
जीएन साईबाबा साल 2017 में भारत के राज्य महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की एक अदालत के फ़ैसले के बाद से जेल में थे।
इससे पहले वह साल 2014 से 2016 के बीच भी जेल में रहे लेकिन उस समय बेल पर बाहर आ गए थे।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जेल से बाहर आने पर जीएन साईबाबा ने मीडियाकर्मियों से कहा, "मेरा स्वास्थ्य बेहद खराब है। मैं बात नहीं कर सकता। पहले मुझे इलाज करवाना होगा, तभी मैं बोलने के लायक हो पाऊंगा।''
नागपुर बेंच ने मंगलवार, 5 मार्च 2024 को ही साईबाबा की उम्रकैद की सज़ा को ये कहते हुए पलट दिया था कि अभियोजन पक्ष उन पर लगे आरोपों को साबित नहीं कर सका।
54 साल के साईबाबा व्हीलचेयर से चलते हैं और 99 फ़ीसदी विकलांग हैं। वह पिछले 11 साल से नागपुर की सेंट्रल जेल में कैद थे।
एसबीआई के इलेक्टोरल बॉन्ड पर जानकारी देने के लिए समय मांगने को लेकर राहुल गाँधी ने क्या कहा?
सोमवार, 4 मार्च 2024
भारत में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एसबीआई की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने की तारीख बढ़ाने की अपील पर मोदी सरकार की आलोचना की है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 15 फ़रवरी 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए मिली धनराशि की जानकारी 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को देने के लिए भी कहा था।
हालांकि, एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से इस समयसीमा को बढ़ाकर 30 जून 2024 करने की अपील की है।
इस पर राहुल गांधी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा है, "नरेंद्र मोदी ने चंदे के धंधे को छिपाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का सच जानना देशवासियों का हक़ है, तब एसबीआई क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले ये जानकारी सार्वजनिक न हो पाए?"
राहुल गांधी ने लिखा, "एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून 2024 तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है।''
"देश की हर स्वतंत्र संस्था 'मोडानी परिवार' बन कर उनके भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में लगी है. चुनाव से पहले मोदी के 'असली चेहरे' को छिपाने का यह अंतिम प्रयास है।''
घूस लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को छूट नहीं मिलेगी: सुप्रीम कोर्ट
सोमवार, 4 मार्च 2024
भारत के सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार से जुड़े केस में सोमवार, 4 मार्च 2024 को अहम फ़ैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिश्वत लेने के मामलों में सांसदों और विधायकों को विशेषाधिकार के तहत किसी तरह का कोई क़ानूनी सरंक्षण हासिल नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के अपने फ़ैसले को पलट दिया है।
तब पांच जजों की बेंच ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद वकील अश्विनी उपाध्याय ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ''सात जजों की बेंच ने एकमत से कहा कि पैसे लेकर सवाल पूछना या पैसे लेकर राज्यसभा चुनाव में वोट देना, ये पूरी तरह से संवैधानिक भावना के ख़िलाफ़ है। ये संविधान के ख़िलाफ़ है. इसलिए कोई भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होगा। सांसदों, विधायकों को संसद या विधानसभा में जो बोलने की आज़ादी है, वो ईमानदारी से काम करने की आज़ादी है। भ्रष्टाचार करने की आज़ादी नहीं है।''
कानूनी ख़बरों से जुड़ी वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक़, चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा, "विधायी विशेषाधिकारों का उद्देश्य सामूहिक रूप से सदन को विशेषाधिकार देना है। अनुच्छेद 105/194 सदस्यों के लिए एक भय मुक्त वातावरण बनाने के लिए है। भ्रष्टाचार और रिश्वत संसदीय लोकतंत्र को बर्बाद करने वाला है।''
सांसदों और विधायकों को घूस के मामलों में कोई क़ानूनी सरंक्षण ना दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत किया है।
नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा, ''स्वागतम। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बहुत महान फ़ैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और इससे व्यवस्था में लोगों का भरोसा बढ़ेगा।''
भारत म्यांमार से सटी 1643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़बंदी करवाएगी
मंगलवार, 6 फरवरी 2024
भारत की केंद्र सरकार ने म्यांमार से सटी 1643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़बंदी करवाने का निर्णय लिया है। भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर के इसकी जानकारी दी।
अमित शाह ने कहा कि इससे सीमा पर बेहतर सर्विलांस, पेट्रोलिंग और ट्रैकिंग की जा सकेगी। अमित शाह ने कहा कि भारत के राज्य मणिपुर के मोरेह में 10 किलोमीटर लंबी सीमा की बाड़बंदी की जा चुकी है।
अमित शाह ने बताया, "हाइब्रिड सर्विलांस सिस्टम (एचएसएस) के ज़रिए बाड़बंदी के दो पायलट प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। भारत के राज्यों अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में एक किलोमीटर लंबी सीमा को इसके तहत बाड़बंद किया जाएगा।''
अमित शाह ने कहा कि मणिपुर में करीब 20 किलोमीटर लंबी बाड़बंदी को मंज़ूरी मिल गई है और इस पर जल्द काम शुरू हो जाएगा।
बाड़बंदी की ये घोषणा ऐसे समय में हुई है जब पिछले कई महीनों से मणिपुर में हिंसा जारी है। मणिपुर राज्य की करीब 400 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगती है। हाल ही में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने पिछली केंद्र सरकारों पर पूर्वोत्तर के राज्यों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था।
भारत ने अपने नागरिकों से म्यांमार के रखाइन प्रांत की यात्रा न करने को कहा
मंगलवार, 6 फरवरी 2024
भारत ने अपने नागरिकों से म्यांमार के रखाइन प्रांत की यात्रा न करने को कहा है। इस संबंध में भारत के विदेश मंत्रालय ने एक एडवाइज़री जारी की है।
भारत के विदेश मंत्रालय की एडवाइज़री के अनुसार, "सुरक्षा स्थिति के बिगड़ने, लैंडलाइन सहित अन्य संचार सेवाओं के बाधित होने और बुनियादी सामान की भारी कमी के कारण सभी भारतीयों को ये सलाह दी जाती है कि वे म्यांमार के रखाइन प्रांत न जाएं।''
"जो भारतीय पहले से रखाइन प्रांत में मौजूद हैं, उन्हें फ़ौरन ये इलाक़ा खाली कर देना चाहिए।''
रखाइन प्रांत में साल 2016 से ही हिंसा जारी है। हालांकि, हालिया दिनों में रखाइन प्रांत में म्यांमार की सैन्य सत्ता और विद्रोही गुट अराकन आर्मी (एए) के बीच संघर्ष और तेज़ हुआ है।