मैगजीन

चीन और ईरान के बीच आर्थिक सहयोग योजना वैश्विक आर्थिक प्रणाली में 'गेम चेंजर' साबित होगा

चीन और ईरान के बीच 25 साल के लिए 400 अरब डॉलर की व्यापक आर्थिक सहयोग योजना पर अमरीका की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह क़दम सिर्फ़ क्षेत्र के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण 'गेम चेंजर' साबित होगा।

पाकिस्तान में इस बात को लेकर बेचैनी है कि अब चीन ईरान का रुख़ कर रहा है। लेकिन इस मुद्दे पर गहरी नज़र रखने वाले पाकिस्तान के राजनयिकों और विश्लेषकों ने स्पष्ट रूप से इस संदेह को ख़ारिज कर दिया है।

उनका कहना है कि हालिया चीन और ईरान का आर्थिक सहयोग समझौता, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का विकल्प नहीं बनेगा, बल्कि इसे मज़बूत करेगा।

ईरान की मजबूरी और चीन की ज़रूरत

विशेषज्ञों के अनुसार, तेहरान ने चीन के साथ दीर्घकालिक आर्थिक, इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और सुरक्षा के मुद्दों पर सहयोग करके ख़ुद को नई वैश्विक स्थिति के लिए एक शक्तिशाली देश बनाने की कोशिश की है।

लेकिन ऐसा करने पर, जहां एक तरफ़ ईरान को अमरीका के नए प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है, वहीं दूसरी तरफ़ यह समझौता उसे अमरीका के निरंतर प्रतिबंधों से बचा भी सकता है।

ईरान पर लंबे समय से चल रहे अमरीकी प्रतिबंधों ने ही उसे चीन के इतने क़रीब पहुंचा दिया है। यही वजह है कि ईरान वैश्विक दरों के मुक़ाबले कम क़ीमत पर चीन को तेल बेचने के लिए तैयार हो गया है। ताकि उसके तेल की बिक्री बिना किसी रुकावट के जारी रह सके और राष्ट्रीय ख़ज़ाने को एक विश्वसनीय आय का स्रोत मिल सके।

विशेषज्ञों का कहना है कि समझौते के दस्तावेज़ तो अभी सामने नहीं आये हैं। लेकिन जो सूचनाएं मिली हैं, उनसे पता चलता है कि ईरान की नाज़ुक अर्थव्यवस्था में अगले 25 वर्षों में 400 अरब डॉलर की परियोजनाएँ आर्थिक स्थिरता लाने में मदद कर सकती हैं।

इसके बदले में, चीन रियायती दरों पर ईरान से तेल, गैस और पेट्रो-कैमिकल उत्पाद ख़रीद सकेगा। इसके अलावा, चीन, ईरान के वित्तीय, परिवहन और दूरसंचार क्षेत्रों में भी निवेश करेगा।

इस समझौते के तहत, ईरान के इतिहास में पहली बार, दोनों देश संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास, हथियारों का आधुनिकीकरण और संयुक्त इंटेलिजेंस से राज्य, सुरक्षा और सैन्य मामलों में सहयोग करेंगे।

दोनों देशों के बीच हुए समझौते के अनुसार, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पाँच हज़ार सैनिकों को भी ईरान में तैनात किया जाएगा। लेकिन ध्यान रहे कि ईरान में इसे लेकर विरोध भी हो रहा है, जिसमें ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद सबसे आगे हैं।

यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद ईरान, चीन की नई डिजिटल मुद्रा, ई-आरएमबी को अपनाने के लिए आदर्श उम्मीदवार साबित हो सकता है, जिसने डॉलर को नज़रअंदाज़ करने और इसे मंज़ूरी देने वाली ताक़त को कमज़ोर किया है।

याद रहे कि ईरान वर्तमान में वैश्विक वित्तीय और बैंकिंग प्रणाली स्विफ्ट (SWIFT) से नहीं जुड़ा है और ईरान के साथ कोई लेनदेन नहीं कर रहा है।

सीपीईसी - प्लस

पाकिस्तान-चीन संस्थान के अध्यक्ष सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद के अनुसार, ईरान-चीन रणनीतिक समझौता क्षेत्र के लिए एक अच्छा क़दम है और पाकिस्तान के हितों के लिए सकारात्मक भी है, क्योंकि यह पाकिस्तान पर केंद्रित, क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को मजबूत करेगा।

मुशाहिद हुसैन ने उम्मीद जताई है कि बलूचिस्तान में स्थिरता लाने और चीन, अफगानिस्तान, ईरान तथा मध्य एशियाई देशों के साथ क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में, ग्वादर पोर्ट की भूमिका को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

उन्होंने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि अमरीकी दबाव के कारण (जब 25 जनवरी, 2006 को डेविड मलफोर्ड भारत में अमेरिकी राजदूत थे) भारत ने आईपीआई (ईरान-पाकिस्तान-इंडिया पाइपलाइन) का नवीनीकरण नहीं किया। इसके बजाय अमरीका के साथ परमाणु समझौते का चुनाव किया। भारत ने तत्कालीन मंत्री मणिशंकर अय्यर को हटा दिया था जो आईपीआई के समर्थक थे।

पाकिस्तान में सीपीईसी के बारे में बेचैनी को खारिज करते हुए, मुशाहिद हुसैन ने कहा कि ईरान-चीन समझौता सीपीईसी को और अधिक सार्थक बना देगा। क्योंकि ये दोनों समझौते प्रतिस्पर्धा या प्रतिद्वंद्विता के लिए नहीं हैं, बल्कि दोनों का मक़सद चीन के साथ रणनीतिक सहयोग है।

'विश्व शक्ति से मुक़ाबला करने की तैयारी'

भारत के मशहूर रक्षा विश्लेषक प्रवीण साहनी कहते हैं, ''मुझे लगता है कि इस समझौते को फारस की खाड़ी में क्षेत्रीय तनाव के संदर्भ में देखना गलत होगा। चीन ने हमेशा ईरान-सऊदी प्रतिद्वंद्विता में किसी का भी समर्थन या विरोध करने से परहेज किया है। फारस की खाड़ी में चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुख्य कारण उसके आर्थिक मामले हैं।''

वह कहते हैं कि चीन और सऊदी अरब ने भी एक साल पहले बड़े आर्थिक सौदों पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन ईरान के साथ चीन के इस नए समझौते से एक और महत्वपूर्ण बात पता चलती है। वो यह है कि अमरीकी प्रतिबंधों ने तेहरान को अकेला करने के बजाय, इसे चीन के कैम्प में और भी मज़बूती से आगे बढ़ाया है। इसलिए इस समझौते का महत्व न केवल क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह विश्व शक्ति से मुक़ाबले की भी तैयारी दिखाई देती है।

प्रवीण साहनी कहते हैं, ''समझौते का ज़्यादा विवरण फिलहाल उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इसकी तुलना सीपीईसी से नहीं की जा सकती है। फिर भी, बड़ा अंतर यह है कि इसमें दोनों पक्षों के बुनियादी हित जुड़े हुए हैं। चीन को तेल की ज़रूरत है, जो उसे ईरान से सस्ती दरों पर मिलेगा।''

प्रवीण साहनी कहते हैं, ''बदले में, ईरान अपने आर्थिक, तेल के उत्पादन, बुनियादी ढांचे और व्यापार में निवेश कराना चाहता है, जो चीन मुहैया करेगा। चीन-ईरान संबंधों में आर्थिक सहयोग है, जो चीन और पाकिस्तान के मामले में नहीं है। यह फ़र्क़ किस तरह की भूमिका निभाएगा, फिलहाल इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।''

उनके अनुसार, ''ईरान के पास ऐसे संसाधन हैं जिनकी चीन को सख्त जरूरत है, यानी हाइड्रोकार्बन। पाकिस्तान के पास ऐसी कोई दौलत नहीं है। इसलिए, आर्थिक मामलों के लिहाज़ से, पाकिस्तान और चीन के संबंध चीन और ईरान के संबंधों से बहुत अलग हैं।''

प्रवीण साहनी के मुताबिक, हालांकि इस बात पर बहुत चर्चा हुई है कि पाकिस्तान, ईरान, मध्य एशिया पर आधारित गलियारे से क्षेत्र में आर्थिक विकास और सुधार होगा या नही।

प्रवीण साहनी कहते हैं, ''यह एक दीर्घकालिक योजना तो हो सकती है, लेकिन छोटी अवधि में इसके फायदे की कोई संभावना नहीं है। ईरान और पाकिस्तान उन औद्योगिक उत्पादों का निर्माण नहीं करते हैं, जिन्हे मध्य एशियाई देश आयात करते हैं और न ही पाकिस्तान और ईरान मध्य एशियाई निर्यात के लिए प्रमुख बाजार हैं।''

उन्होंने कहा कि चीन से लेकर मध्य एशिया के साथ-साथ यूरोप तक ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर है जिसकी वजह से वहां सड़कों और रेलवे का नेटवर्क बिछा हुआ है। वो कहते हैं कि ''यह देखना मुश्किल है कि चीन के नए रास्ते पाकिस्तान और ईरान, इन पुराने रास्तों का विकल्प कैसे बन सकेंगे।''

प्रवीण ने आगे कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह के निर्माण की परियोजना भारत ने शुरू की थी क्योंकि भारत को अफ़ग़ानिस्तान के खनिज संसाधनों का उपयोग करना था और उन्हें ईरान की औद्योगिक क्षमता के उपयोग से अधिक बेहतर बनाना था।

जाहिर है यह सब अफ़ग़ानिस्तान में ज़मीनी हालात को देखते हुए, 'दूर के ढोल सुहावने' की तरह था। अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी नहीं है कि भारत, ईरान के माध्यम से भारत-अफ़ग़ानिस्तान व्यापार गलियारे के लिए एक बड़ी सड़क या रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करे।

उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान ने फारस की खाड़ी में ईरान-सऊदी टकराव से दूर रहने की भरसक कोशिश की है और ऐसा ही भारत ने भी किया है।

प्रवीण कहते हैं, ''इस टकराव में दोनों पक्षों के आर्थिक हित हैं, लेकिन साथ ही, इस टकराव से संबंधित आंतरिक मुद्दे भी हैं। इसलिए समय के साथ-साथ सभी पक्षों के बीच संतुलन बनाए रखना अधिक कठिन होता जा रहा है। खासतौर पर तब, जब अमरीका अगले कुछ वर्षों में यह तय करेगा कि उसे ईरान पर और दबाव बढ़ाने की जरूरत है। मुझे नहीं लगता कि यथार्थवादी संतुलन बनाए रखने के अलावा कोई और विकल्प है।''

'अमरीका ने पाकिस्तान और ईरान को चीन की तरफ़ धकेल दिया'

पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर इक़बाल अहमद ख़ान का कहना है, कि ईरान के साथ चीन की निवेश योजना उसकी आठ खरब डॉलर की बीआरआई परियोजनाओं का हिस्सा है, जिनमें से एक सीपीईसी भी है।

पूर्व राजदूत इक़बाल अहमद ख़ान के अनुसार, ईरान में चीन के निवेश की, सीपीईसी से तुलना करना सही नहीं है। क्योंकि ये दोनों चीन के ही निवेश हैं और दोनों एक-दूसरे के लिए सहायक होंगे और इसका फायदा तीनों देशों को होगा।

वो कहते हैं, ''चीन और ईरान दोनों पाकिस्तान के दोस्त हैं, इसलिए पाकिस्तान चाहता है कि परियोजना सफल हो।''

इक़बाल अहमद ख़ान ने आगे कहा कि ईरान में चीन का निवेश पाकिस्तान की कीमत पर नहीं है, इसलिए इसे ''शून्य-सम गेम'' नहीं समझना चाहिए।

इस सवाल पर कि क्या पाकिस्तान और चीन, ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों का बोझ उठा पाएंगे। इक़बाल अहमद ख़ान ने कहा कि वास्तव में पाकिस्तान और ईरान में चीन के निवेश का मुख्य कारण, अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध या इन देशों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिशें हैं।

वो कहते हैं, ''पाकिस्तान और ईरान दोनों को ही अमरीका ने दरकिनार कर दिया है, जिससे हमें दूसरा रास्ता देखना पड़ा। पाकिस्तान ने अपनी राजनीतिक और भौगोलिक स्थिति का अधिकतम लाभ उठाने का फैसला किया। एक तरफ चीन है और दूसरी तरफ ईरान है। हालांकि, अगर पाकिस्तान चीन का दोस्त है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान अमरीका का विरोधी है, बल्कि चीन तो पाकिस्तान से कई बार अमरीका और भारत दोनों से अपने संबंधों को सुधारने के लिए कह चुका है। हालांकि अमरीका को भी इसका एहसास होना चाहिए।''

इक़बाल अहमद ख़ान ने कहा कि पाकिस्तान ख़ुशी से ईरान के साथ सहयोग करेगा, बल्कि पाकिस्तान ईरान को भी उसकी तरह शंघाई सहयोग परिषद का सदस्य बनाने की कोशिश करेगा।

वो कहते हैं, ''ईरान के साथ चीन के सहयोग से पाकिस्तान को सीधे लाभ होगा। ईरान से तेल, जो वर्तमान में 13 हज़ार मील की दूरी तय करने के बाद चीन पहुंचता है। वह पाकिस्तान के रास्ते 15 सौ मील के सुरक्षित मार्ग से चीन पहुंचेगा।''

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, ईरान, तुर्की और अन्य एशियाई देशों में चीन के निवेश और आर्थिक व व्यापारिक इंफ्रास्ट्रक्चर में, इसके निवेश अटलांटिक महासागर से हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के क्षेत्रों में, दुनिया की शक्ति को स्थानांतरित करने के ठोस संकेत हैं।

वैश्विक परिवर्तन की इस प्रक्रिया में पाकिस्तान और ईरान की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। बदलाव की इस प्रक्रिया में अमरीकी प्रतिबंध की भी भूमिका है, जो इन देशों को दूसरी तरफ धकेल रही हैं।''

'ईरान समझौता और सीपीईसी स्वाभाविक साझेदार हैं'

इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ इस्लामाबाद में वैश्विक मामलों की विशेषज्ञ फातिमा रज़ा का कहना है, कि हालांकि दोनों परियोजनाओं में ऊर्जा और बुनियादी ढांचे की विशेषताएं समान हैं, लेकिन इसमें शामिल पक्षों के हित कई मायनों में अलग हैं।

हालांकि फातिमा रज़ा ने कहा कि चीन-ईरान समझौता दोनों देशों के बीच एक स्वाभाविक साझेदारी का समझौता है, जो सीपीईसी की संभावनाओं को भी आगे बढ़ा सकता है।

फातिमा रज़ा ने आगे कहा कि प्रत्येक पार्टी के लिए, दोनों की तुलना करना एक अलग तस्वीर प्रस्तुत करता है। ''ये दोनों परियोजनाएं पाकिस्तान को सफल होने के लिए असाधारण अवसर प्रदान करती हैं, क्योंकि यह ईरानी तेल को चीन पहुंचाने के लिए प्राकृतिक मार्ग बन जाता है।''

फातिमा रज़ा ने कहा, ''चीन के लिए, इसका मतलब सीपीईसी जैसी परियोजना है, जो क्षेत्र में अपने विस्तार के प्रभाव को मजबूत करना चाहता है, जो इस क्षेत्र में अमरीकी हितों के लिए परेशानी खड़ी करेगा।''

फातिमा रज़ा का कहना है कि यह समझौता ईरान को उसकी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगा, जिसकी उसे बहुत अधिक ज़रुरत है।

फातिमा रज़ा ने कहा, ''दोनों सौदे प्रतिस्पर्धी होने के बजाय अपनी प्रकृति में एक दूसरे को मजबूत करते हैं, लेकिन इसकी सफलता अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने वाले दलों पर निर्भर करती है।''

'खाड़ी और क्षेत्र के समग्र भौगोलिक-राजनीतिक संतुलन पर प्रभाव'

अरब न्यूज़ के एक विश्लेषक, ओसामा अल-शरीफ ने लिखा है, कि चीन और ईरान के बीच 25 साल के व्यापक रणनीतिक साझेदारी के समझौते का, खाड़ी और क्षेत्र के समग्र भोगौलिक-राजनीतिक संतुलन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।

इस समझौते पर ऐसे समय में हस्ताक्षर किए गए हैं, जब बीजिंग और वाशिंगटन के बीच संबंध बहुत तनावपूर्ण हैं।

इस समझौते ने ईरान के परमाणु समझौते पर पश्चिम की तरफ से, इस पर दोबारा बातचीत और इसके विस्तार के प्रयासों पर तेहरान को एक मजबूत स्थिति प्रदान की है।

ओसामा अल-शरीफ के अनुसार, ये समझौता चीन को ईरानी धरती पर 5 हज़ार सुरक्षा और सैन्य कर्मियों को तैनात करने का अवसर प्रदान करेगा, जो क्षेत्रीय गेम चेंजर साबित होगा।

चीन से पहले, तेहरान ने 2001 में मास्को के साथ विशेष रूप से परमाणु क्षेत्र में, 10 साल के सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो तब से दो बार बढ़ाया जा चुका है।

उन्होंने लिखा कि दो साल पहले ईरान, रूस और चीन के साथ नौसेना अभ्यास में शामिल हुआ था। इस नए समझौते से चीन को खाड़ी क्षेत्र में और साथ ही मध्य एशिया में भी अपने अड्डे स्थापित करने का मौक़ा मिलेगा।

बदले में, ईरान को चीन की टेक्नोलॉजी मिलेगी और उसके खराब बुनियादी ढांचे में निवेश होगा।

चीनी सरकार वर्षों से अन्य खाड़ी देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत कर रही है।

बीजिंग ने संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और उनके सऊदी अरब के साथ अच्छे संबंध हैं।

ओसामा अल-शरीफ ने लिखा, ''नए समझौते से खाड़ी के अरब देशों की राजधानियों में खतरे की भावना बढ़ जाएगी। क्योंकि ये देश ईरान को अस्थिरता के एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखते हैं और बीजिंग के साथ इसका गठबंधन तेहरान और क्यूम के बीच की रेखा को और मजबूत करेगा।''

ओसामा अल-शरीफ के अनुसार, इसके अलावा इस्राइल भी चीन के कदम को लेकर असहज महसूस करेगा। ईरान के परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले रूस और चीन दोनों ने, तेहरान के पक्ष को सपोर्ट किया और अमरीकी प्रतिबंधों का खुले तौर पर उल्लंघन किया है।

अमरीका और चीन के बीच तनाव बढ़ा

विश्व समाजवादी संगठन के एक विश्लेषक एलेक्स लांटियर लिखते हैं कि ईरान-चीन समझौते की शर्तों का खुलासा नहीं किया गया है। लेकिन ये हस्ताक्षर ऐसे समय में हुए, जब अमरीका ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को उठाने से इनकार कर दिया। साथ ही साथ चीन और अमरीका के अलास्का में होने वाले सम्मेलन में चीन और अमरीका के मतभेद खुलकर सामने आए।

इस शिखर सम्मेलन के शुरू होने से पहले प्रेस से बात करते हुए, अमरीकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने कहा कि चीन को वाशिंगटन के ''नियम पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय आदेश'' को स्वीकार करना चाहिए वरना उसे ''इससे कहीं अधिक कठोर और अस्थिर दुनिया का सामना करना पड़ेगा।''

तेहरान में, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि ''हमारे दोनों देशों के बीच संबंध अब रणनीतिक स्तर पर पहुंच गए हैं और चीन इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ व्यापक संबंधों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।''

दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग के लिए रोडमैप पर हस्ताक्षर से ज़ाहिर होता है कि बीजिंग संबंधों को उच्चतम स्तर तक बढ़ाएगा।

चीन का प्रतिरोध

चीन की सरकारी न्यूज़ एजेंसी ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, चीनी विदेश मंत्री ने ईरानी अधिकारियों से कहा कि ''चीन प्रभुत्व और गुंडागर्दी का विरोध, अंतरराष्ट्रीय न्याय की सुरक्षा के साथ-साथ ईरान और अन्य देशों के लोगों के साथ अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को भी मानेगा।''

इस समझौते पर पहली बार 2016 में ईरान के सुप्रीम लीडर सैयद अली खामेनी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच चर्चा हुई थी।

मध्य पूर्व के साथ आर्थिक संबंधों को गहरा करने के लिए, चीन ने ईरान को अपने बीआरआई कार्यक्रम के साथ विकास में सहयोग करने की भी पेशकश की थी।

तेहरान टाइम्स ने चीन में ईरान के राजदूत मोहम्मद केशवरज़ ज़ादेह के हवाले से बताया कि यह समझौता ''ईरान और चीन के बीच, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, उद्योग, परिवहन और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग की क्षमता को स्पष्ट करता है।'' चीनी फर्मों ने ईरान में मास ट्रांजिट सिस्टम, रेलवे और अन्य महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया है।

दिसंबर 2020 में, इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की अटकलों के बीच, अमरीकी विदेश विभाग के पॉलिसी प्लानिंग स्टाफ के डायरेक्टर, पीटर बर्कोवित्ज़ ने इसकी निंदा की।

उन्होंने समाचार पत्र अल अरेबिया को बताया था कि यदि ये समझौता होता है, तो यह ''स्वतंत्र दुनिया'' के लिए बुरी ख़बर होगी। ईरान पूरे क्षेत्र में आतंकवाद, मौत और विनाश के बीज बोता है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का इस देश को सशक्त बनाना ख़तरे को और बढ़ा देगा।

स्वेज़ नहर में फंसे जहाज़ को आख़िर कैसे निकाला गया?

मिस्र की स्वेज़ नहर में जाम खुल गया है। क़रीब एक हफ़्ते से वहां फंसे विशाल जहाज़ को बड़ी मशक्कत के बाद रास्ते से हटाया जा सका।

टग बोट्स और ड्रेजर की मदद से 400 मीटर (1,300 फीट) लंबे 'एवर गिवेन' जहाज़ को निकाला गया।

सैकड़ों जहाज़ भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ने वाली इस नहर से गुज़रने का इंतज़ार कर रहे हैं।

ये दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों में से एक है।

जहाज़ को हटाने में मदद करने वाली कंपनी, बोसकालिस के सीईओ पीटर बर्बर्सकी ने कहा, ''एवर गिवेन सोमवार, 29 मार्च 2021 को स्थानीय समयानुसार 15:05 बजे फिर तैरने लगा था। जिसके बाद स्वेज़ नहर का रास्ता फिर से खोलना संभव हुआ।''

मिस्र के अधिकारियों का कहना है कि जाम की वजह से फंसे सभी जहाज़ों को निकलने में क़रीब तीन दिन का वक़्त लग जाएगा, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक शिपिंग पर पड़े असर को जाने में हफ़्तों या यहां तक की महीनों लग सकते हैं।

जहाज़ को आख़िर कैसे निकाला गया?

मंगलवार, 23 मार्च 2021 की सुबह तेज़ हवाओं और रेत के तूफ़ान के बीच फंसे दो लाख टन वज़न वाले जहाज़ को निकालना बचाव टीमों के लिए मुश्किल चुनौती थी।

ऐसे जहाज़ों को निकालने में विशेषज्ञ टीम, एसएमआईटी ने 13 टग बोट का इंतज़ाम किया। टग बोट छोटी लेकिन शक्तिशाली नावें होती हैं जो बड़े जहाज़ों को खींच कर एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकती हैं।

ड्रेजर भी बुलाए गए। जिन्होंने जहाज़ के सिरों के नीचे से 30,000 क्यूबिक मीटर मिट्टी और रेत खोदकर निकाली।

जब बात नहीं बनी तो सप्ताहांत पर ये भी सोचा गया कि जहाज़ को हल्का करने के लिए कुछ माल को उतारना पड़ेगा। आशंका थी कि कुछ 18,000 कंटेनर निकालने पड़ सकते हैं।

लेकिन ऊंची लहरों ने टग बोट और ड्रेजर की उनके काम में मदद की और सोमवार, 29 मार्च 2021 की सुबह स्टर्न (जहाज़ का पिछला हिस्सा) को निकाला गया, फिर तिरछे होकर फंसे इस विशाल जहाज़ को काफी हद तक सीधा किया जा सका। इसके कुछ घंटों बाद बो (जहाज़ का आगे का हिस्सा) भी निकल गया और एवर गिवेन तैरने लायक स्थिति में आ गया यानी वो पूरी तरह से निकाल लिया गया।

फिर जहाज़ को खींचकर ग्रेट बिटर लेक ले जाया गया, जो जहाज़ के फंसने वाली जगह से उत्तर की तरफ नहर के दो हिस्सों के बीच स्थित है। यहां ले जाकर जहाज़ की सुरक्षा जांच की जाएगी।

इसके बाद क्या हुआ?

एक मरीन सोर्स ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को सोमवार, 29 मार्च 2021
शाम को बताया कि जहाज़ दक्षिण की ओर लाल सागर की तरफ जा रहे हैं, वहीं नहर में सेवाएं देने वाली लेथ एजेंसीज़ ने कहा कि जहाज़ ग्रेट बिटर लेक से निकलना शुरू हो गए हैं।

कुछ जहाज़ क्षेत्र से पहले ही निकल चुके हैं। उन्होंने अफ्रीका के दक्षिणी सिरे के आसपास का एक वैकल्पिक, लंबा रास्ता लेने का फैसला किया।

इन कार्गों को पहुंचने में निश्चित रूप से ज़्यादा वक़्त लगेगा। जब वो बंदरगाह पर पहुंचेंगे तो हो सकता है वहां भी उन्हें जाम मिले। अगले कुछ दिनों में आने वाले जहाज़ों के शिड्यूल में भी गड़बड़ी हो सकती है।

बीबीसी बिज़नेस संवाददाता थियो लेगट की रिपोर्ट के मुताबिक़, इसकी वजह से यूरोप में जहाज़ से माल भेजने की लागत बढ़ सकती है।

शिपिंग समूह मर्स्क ने कहा, ''साफ़ तौर पर इसकी जांच होगी, क्योंकि इससे बड़ा असर हुआ है और मुझे लगता है कि इस बात पर कुछ वक़्त तक बहस होगी कि वहां असल में हुआ क्या था।''

मर्स्क ने कहा, ''हम क्या कर सकते हैं ताकि फिर कभी ऐसा ना हो? ये मिस्र के प्रशासन को देखना होगा कि जहाज़ हमेशा बिना किसी दिक्कत के नहर से निकलते रहें, क्योंकि ये उन्हीं के हित में है।''

बड़ी कामयाबी

स्वेज़ के बंदरगाह पर मौजूद बीबीसी अरबी संवाददाता सैली नबील

एवर गिवेन जहाज़ को निकाल लेना एक बड़ी कामयाबी समझा जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों ने पहले चेताया था कि इस जहाज़ को निकालने में हफ़्तों लग सकते हैं। लेकिन ऊंची लहरों के साथ-साथ विशेषज्ञ उपकरणों ने बचाव अभियान में पूरी तरह मदद की।

अब प्रशासन को दूसरी चुनौती से निपटना होगा - जाम। स्वेज़ नहर प्राधिकरण के प्रमुख ने कहा कि जाम में फंसे सैकड़ों जहाज़ों में से पहले उन्हें निकलने दिया जाएगा जो पहले आएंगे। हालांकि जहाज़ों पर लदे माल को देखते हुए कुछ जहाज़ों को प्राथमिकता दी जा सकती है।

वैश्विक व्यापार पर जो असर पड़ा, उसने जाम को लेकर प्रशासन को बेहद दबाव में ला दिया। मिस्र के लिए ये नहर सिर्फ राष्ट्रीय गर्व का सवाल नहीं है, बल्कि इससे अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती मिलती है।

कुछ दिन पहले मैंने स्वेज़ नहर प्राधिकरण के प्रमुख ओसामा रबी से पूछा था कि क्या वो इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कुछ शिपिंग कंपनियां भविष्य में ऐसे बड़े जहाज़ों को इस नहर के रास्ते भेजने से बचेंगी। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि स्वेज़ नहर का कोई विकल्प नहीं हैं, उनके मुताबिक़ ये रास्ता जल्दी पहुंचाता है और सुरक्षित है। तो यहां बात सिर्फ वक़्त की नहीं, बल्कि सुरक्षा की भी है।

अब जहाज़ का क्या होगा?

शिप का तकनीकी रखरखाव करने वाली कंपनी के मैनेजर्स के मुताबिक़, ग्रेट बिटर लेक में अब जहाज़ की पूरी जांच होगी।

मैनेजर्स ने बताया कि प्रदूषण या कार्गो को नुक़सान होने का पता नहीं चला है और शुरुआती जांच में सामने आया है कि जहाज़ के फंसने के पीछे कोई मैकेनिकल या इंजन के फेल होने का कारण नहीं था।

बताया गया है कि जहाज़ पर सवार भारतीय क्रू के सभी 25 सदस्य सुरक्षित हैं। मैनेजर्स का कहना है, ''उनकी कड़ी मेहनत और अथक प्रोफेशनलिज़म की तारीफ़ हो रही है।''

जहाज़ में लदे सामान में कई तरह की चीज़ें हैं और माना जा रहा है कि इस सामान की क़ीमत अरबों डॉलर है।

इंडोनेशिया: जावा की एक रिफ़ाइनरी में भयंकर आग

इंडोनेशिया के सबसे बड़े तेल रिफ़ाइनरियों में से एक बालोनगन रिफ़ाइनरी में सोमवार, 29 मार्च 2021 को भयानक आग लग गई। आग पर क़ाबू पाने के लिए राहत और बचाव दल को कड़ी मशक्क़त करनी पड़ रही है। पश्चिमी जावा प्रांत में मौजूद यह रिफ़ाइनरी सरकारी तेल कंपनी पर्टेमिना की है।

स्थानीय समय के अनुसार यह आग आधी रात बाद 12:45 के आसपास भड़की। अभी आग लगने के कारणों का कोई पता नहीं चल सका है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस अग्निकांड में कम से कम पाँच लोग घायल हुए हैं। एहतियात बरतते हुए क़रीब 950 लोगों को उनके घरों से निकालकर सुरक्षित जगहों पर भेज दिया गया है। हालांकि कुछ लोग लापता बताए जा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर डाले गए टीवी के फुटेज और वीडियो में सोमवार, 29 मार्च 2021 की सुबह भी आग की लपटों और धुएं के गुबार को रिफ़ाइनरी के उपर उठता हुआ देखा गया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक स्थानीय मीडिया संगठन मेट्रो टीवी के हवाले से एक व्यक्ति का ज़िक्र किया है। इस शख़्स ने बताया, ''हमने सबसे पहले नाक फाड़ने जैसी तेल की तेज़ गंध महसूस की। इसके बाद हमें आग की लपटों की आवाज़ सुनाई पड़ी।''

क्षेत्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के अनुसार, पाँच लोगों को गंभीर रूप से घायल होने और 15 को हल्के जले होने के बाद इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया है।

विनाशकारी हादसा

बीबीसी न्यूज़ इंडोनेशिया के संवाददाता जेरोमी वीरावन ने बताया, ''बालोनगन रिफ़ाइनरी इंडोनेशिया की सबसे बड़ी रिफ़ाइनरियों में से एक है। इसका महत्व इसलिए है कि यह ग्रेटर जकार्ता क्षेत्र को ईंधन और पेट्रोकेमिकल की आपूर्ति करती है।''

उनके अनुसार, प्लास्टिक और केमिकल कारोबार के साथ कारख़ानों पर इस अग्निकांड का कितना असर होगा, यह सवाल उठ रहा है। हालांकि रिफ़ाइनरी की मालिक कंपनी पर्टेमिना ने लोगों से कहा है कि तेल की सप्लाई व्यवस्था अप्रभावित है और यह पहले की तरह जारी है।

उधर कई लोग पूछ रहे हैं कि आख़िर ऐसी विनाशकारी घटना एक सरकारी रिफ़ाइनरी में कैसे घट सकती है?

राजनेता और प्रतिनिधि सभा के ऊर्जा मामलों के आयोग के एक सदस्य कुर्तुबी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि 1994 से चल रही बालोनगन रिफ़ाइनरी पर्टेमिना की दूसरी रिफ़ाइनरियों की तुलना में अपेक्षाकृत नयी है। उन्होंने माँग की है कि देश की सभी तेल रिफ़ाइनरियों की आवासीय इलाक़ों से दूरी का पता लगाया जाए।

जेरोमी वीरावन के अनुसार, सोशल मीडिया पर इस घटना की गहन जाँच की माँग हो रही है। एक शख़्स ने पूछा है, ''क्या रिफ़ाइनरी में कोई छेड़छाड़ हुई थी या सही में यह एक दुर्घटना थी?'' दूसरे लोग पूछ रहे हैं कि रिफ़ाइनरी में क्या मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन हुआ था या नहीं। वहीं किसी ने लिखा, ''इस मामले में जिस शख़्स की भी भूमिका हो, उसे अदालत ले जाना चाहिए।''

बीबीसी संवाददाता ने बताया है कि कोरोना के दौर में सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए रिफ़ाइनरी के पास रह रहे लोगों को उनके घरों से निकालकर एहतियाती तौर पर अलग-अलग शिविरों में भेज दिया गया है।

वीरावन ने पर्टेमिना के हवाले से बताया है कि आग के कारणों का पता नहीं चला है लेकिन यह घटना भारी बारिश और बिजली गिरने के दौरान घटी है।

तेल सप्लाई पर कोई असर नहीं

सोमवार, 29 मार्च 2021 को एक संवाददाता सम्मेलन में कंपनी ने बताया कि इस आग ने रिफ़ाइनरी की प्रोसेसिंग क्षमताओं को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया है, लिहाज़ा अगले पाँच दिनों में परिचालन सामान्य हो सकता है।

पर्टेमिना के सीईओ निकी विद्यावती के हवाले से रॉयटर्स ने बताया है कि आग रिफ़ाइनरी टैंकों पर लगी है। इससे प्रोसेसिंग प्लांट को कोई नुक़सान नहीं पहुँचा है। कंपनी ने बताया कि वह अपनी यह रिफ़ाइनरी बंद कर रही है और यह आग आगे न फैले इसके लिए तेल के प्रवाह को नियंत्रित किया जा रहा है।

बालोनगन रिफ़ाइनरी इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से 225 किलोमीटर पूर्व में है। 340 हेक्टेयर में स्थित इस रिफ़ाइनरी की प्रोसेसिंग क्षमता 1,25,000 बैरल प्रतिदिन की है। 

स्वेज़ नहर: फंसे जहाज़ को किनारे से हटाया गया

अधिकारियों के मुताबिक़, स्वेज़ नहर में फंसे कंटेनर जहाज़ को किनारे से हटा दिया गया है। यह जहाज़ 23 मार्च 2021 से स्वेज़ नहर में फंसा हुआ था।

स्वेज़ नहर प्राधिकरण के मुताबिक़, 400 मीटर लंबे 'एवर गिवेन' जहाज़ की दिशा को 80% तक ठीक कर लिया गया है।

उसके मुताबिक़, नाव को हटाने के काम को सोमवार से फिर शुरू किया जाएगा।

'एवर गिवेन' ने दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों में से एक को बाधित कर दिया, जिसकी वजह से बाक़ी के जहाज़ को वापस लौटना पड़ा और लंबा ट्रैफिक लग गया।

फंसे जहाज़ को निकालने में मिली इस कामयाबी के बाद उम्मीद जगी है कि कुछ घंटों में नहर पर लगा जाम खुल सकता है। इस जलमार्ग से हर रोज़ क़रीब 9.6 अरब डॉलर का सामान निकलता है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, जहाज़ को निकालने के लिए टगबोट्स का इस्तेमाल किया गया है।

स्वेज़ नहर प्राधिकरण के मुताबिक़, जहाज़ का पिछला भाग, जो पहले तट से चार मीटर की दूरी पर था, अब 102 मीटर हो गया है। प्राधिकरण ने बताया कि अब जहाज़ को पूरी तरह तैरने लायक स्थिति में करने के लिए कोशिशें शुरू हो गई हैं।

अधिकारियों के मुताबिक़, लहरें उठने के बाद स्थानीय समयानुसार 11:30 पर जहाज़ को हटाने का काम शुरू किया जाएगा।

जहाज़ को जब हटा दिया जाएगा तो वहां इंतज़ार कर रहे 367 जहाज़ों को रास्ता मिल जाएगा। स्वेज़ नहर प्राधिकरण (एससीए) के चेयरमैन ओसामा रबी ने मिस्र के एक्स्ट्रा न्यूज़ को रविवार, 28 मार्च 2021 को बताया कि इनमें कई मालवाहक जहाज़, तेल के टैंकर और एएनजी या एलपीजी गैस ले जा रहे जहाज़ हैं।  

400 मीटर लंबा एवर गिवेन जहाज़ मंगलवार, 23 मार्च 2021 को तेज़ हवाओं के बीच स्वेज़ नहर में तिरछा होकर फंस गया था। इसकी वजह से यूरोप और एशिया के बीच के इस सबसे छोटे जहाज़ मार्ग पर जहाज़ों के ट्रैफिक जाम की स्थिति बन गई थी।

जहाज़ को निकालने में कई दिनों तक नाकाम होने के बाद, रविवार, 28 मार्च 2021 को नहर प्रशासन ने वज़न कम करने के लिए जहाज़ से क़रीब 20,000 कंटेनरों को हटाने की तैयारी शुरू की थी।

स्वेज़ नहर में फंसे कंटेनर जहाज़ को निकाला गया: रिपोर्ट

ऐसी ख़बरें मिल रही हैं कि स्वेज़ नहर में फंसे मालवाहक जहाज़ को निकाल लिया गया है।

सोमवार, 29 मार्च 2021 को सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि एवर गिवेन जहाज़ के पिछले हिस्से के घूम जाने की वजह से नहर का रास्ता खुला है।

वहीं समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने लिखा है कि इंचकैप शिपिंग सर्विसेज़ के मुताबिक़, क़रीब एक हफ़्ते से स्वेज़ नहर में फंसा यह विशाल जहाज़ अब फिर से तैरने लगा है और उसे चलने लायक स्थिति में बनाने का काम जारी है।

वैश्विक समुद्री सेवाएं देने वाले इंचकैप ने ट्विटर पर बताया, स्थानीय समयानुसार सुबह 4.30 पर जहाज़ फिर से तैरने लगा और अब उसे पूरी तरह संचालन में लाने का काम जारी है।

जहाज़ को ट्रैक करने वाली सर्विस वेसलफ़ाइंडर ने अपनी वेबसाइट पर जहाज़ के स्टेटस को बदल दिया है और अब लिखा है कि जहाज़ रास्ते में है।

400 मीटर लंबा एवर गिवेन जहाज़ मंगलवार, 23 मार्च 2021 को तेज़ हवाओं के बीच स्वेज़ नहर में तिरछा होकर फंस गया था। इसकी वजह से यूरोप और एशिया के बीच के इस सबसे छोटे जहाज़ मार्ग पर जहाज़ों के ट्रैफिक जाम की स्थिति बन गई थी।

कम से कम 369 जहाज़ नहर का रास्ता खुलने का इंतज़ार कर रहे थे। स्वेज़ नहर प्राधिकरण (एससीए) के चेयरमैन ओसामा रबी ने मिस्र के एक्स्ट्रा न्यूज़ को रविवार, 28 मार्च 2021 को बताया कि इनमें कई मालवाहक जहाज़, तेल के टैंकर और एएनजी या एलपीजी गैस ले जा रहे जहाज़ थे।

स्वेज़ में ट्रांसिट सेवाएं देने वाली मिस्र की लेथ एजेंसीज़ ने ट्वीट किया कि जहाज़ आंशिक रूप से फिर तैरने लगा है, स्वेज़ नहर प्राधिकरण से आधिकारिक पुष्टि पेंडिंग है।

वहीं रॉयटर्स के मुताबिक़, जहाज़ के दोबारा तैरना शुरू करने की ख़बर आने के बाद कच्चे तेल के दाम में कमी आई है।

स्वेज़ नहर प्राधिकरण ने इससे पहले अपने एक बयान में कहा था कि जहाज़ को खींचकर बाहर निकालने का काम फिर से शुरू किया गया है।  रविवार, 28 मार्च 2021 को निकालने की कोशिशों में लगी टीमों ने अपना काम तेज़ कर दिया था।

टगबोट और ड्रेजर के ज़रिए की गई लंबी कोशिशों के बाद जहाज़ को निकालने में एक बड़ी कामयाबी मिल सकी है।

जहाज़ को निकालने में कई दिनों तक नाकाम होने के बाद, रविवार, 28 मार्च 2021 को नहर प्रशासन ने वज़न कम करने के लिए जहाज़ से क़रीब 20,000 कंटेनरों को हटाने की तैयारी शुरू की थी।

इससे पहले विशेषज्ञों ने बीबीसी से कहा था कि ऐसे अभियानों में विशेष उपकरणों का इस्तेमाल करना पड़ता है, जैसे एक क्रेन जिसे 60 मीटर (200 फीट) तक ऊपर पहुंचना होगा, जिसमें हफ़्तों लग सकते हैं।

स्वेज़ नहर के बंद होने से दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

विश्व व्यापार की रीढ़ के रूप में मशहूर स्वेज़ नहर दुनिया की मुख्य समुद्री क्रॉसिंग में से एक है। इससे दुनिया के कुल क़ारोबार का 12 फ़ीसदी माल गुज़रता है।

ऐसे में चीन से नीदरलैंड जा रहे मालवाहक जहाज़ के मंगलवार, 23 मार्च 2021 की सुबह फंस जाने के बाद अब तक उसके न निकलने से दुनिया के क़ारोबार पर गंभीर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

इस मालवाहक जहाज़ ने बाकी जहाजों के रास्ते को रोक दिया है।

डेनमार्क की कंसल्टेंसी फ़र्म सी-इंटेलिजेंस में प्रॉडक्ट्स और आपरेशंस के उपाध्यक्ष नील्स मैडसेन का अंदाज़ा है कि अगर यह जहाज़ और 48 घंटे तक फंसा रहा तो पहले से गंभीर दशा धीरे-धीरे ख़राब होती जाएगी।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स को उन्होंने बताया कि यदि ऐसा तीन से पांच दिनों तक हो गया तो विश्व व्यापार पर इसका बहुत बुरा असर पड़ना शुरू हो जाएगा। माल की आवाजाही के रूक जाने से महंगाई के बढ़ने की आशंका सबसे आम है।

स्वेज़ नहर इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?

1) पूरब और पश्चिम को एकजुट करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी

स्वेज़ नहर मिस्र में स्थित 193 किलोमीटर लंबी नहर है जो कि भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। यह एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा समुद्री लिंक है। यह जलमार्ग मिस्र में स्वेज़ इस्थमस (जलडमरूमध्य) को पार करती है। इस नहर में तीन प्राकृतिक झीलें शामिल हैं।

1869 से सक्रिय इस नहर का महत्व इसलिए है कि दुनिया के पूर्वी और पश्चिमी भाग को आने-जाने वाले जहाज़ इसके पहले अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर मौज़ूद केप ऑफ गुड होप होकर जाते थे। लेकिन इस जलमार्ग के बन जाने के बाद पश्चिमी एशिया के इस हिस्से से होकर यूरोप और एशिया को जहाज़ जाने लगे।

विश्व समुद्री परिवहन परिषद के अनुसार इस नहर के बनने के बाद एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले जहाज़ को नौ हजार किलोमीटर की दूरी कम तय करनी पड़ती है। यह कुल दूरी का 43 फ़ीसदी हिस्सा है।

2) 9.5 बिलियन का दैनिक मूल्य

कंसल्टेंसी फर्म लॉयड्स लिस्ट के अनुसार, बुधवार, 24 मार्च 2021 को 40 मालवाहक जहाज़ और 24 टैंकर नहर पार करने के इंतज़ार में फंसे थे।

इन जहाज़ों पर अनाज, सीमेंट जैसे ड्राई प्रॉडक्ट लदे हैं। वहीं टैंकरों में पेट्रोलियम उत्पाद भरे हैं।

समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग के अनुसार पशुधन और पानी के टैंकर ले जाने वाले आठ जहाज भी फंसे हुए हैं।

स्वेज़ नहर की स्थिति और इसके महत्व को देखते हुए इसे पृथ्वी के कुछ 'चोक पॉइंट' में से एक कहा जाता है। इसलिए अमेरिकी एनर्जी एजेंसी स्वेज़ नहर को वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और हर तरह के माल की आपूर्ति के लिए ज़रूरी मानता है।

एक अनुमान के अनुसार स्वेज़ नहर से क़रीब 19 हजार जहाज़ों से हर साल 120 करोड़ टन माल की ढुलाई होती है। लॉयड्स लिस्ट का मानना है कि इस नहर से हर दिन 9.5 अरब डॉलर मूल्य के मालवाहक जहाज़ गुजरते हैं। इनमें से लगभग पांच अरब डॉलर के जहाज़ पश्चिम को और 4.5 अरब डॉलर के जहाज़ पूरब को जाते हैं।

3) सप्लाई चेन के लिए काफ़ी अहम

जानकारों का कहना है कि यह चैनल दुनिया में माल की सप्लाई के लिए काफ़ी ज़रूरी है। इसलिए इसके अवरुद्ध होने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

सी इंटेलिजेंस के विश्लेषक लार्स जेन्सेन कहते हैं कि पहली समस्या पोर्ट कंजेशन में हो सकती है।

उन्होंने कहा, ''यदि हम यह मानकर चलें कि सभी जहाज़ भरे हुए हैं। तो 55 हजार टीईयू (कंटनेर की क्षमता मापने वाली इकाई) के लिहाज से दो दिन के अंदर कुल 110 हजार टीईयू माल जो एशिया से यूरोप जा रहा होगा, फंस जाएगा। और जाम खत्म होते ही ये सारे जहाज़ यूरोपीय बंदरगाहों पर एक साथ पहुंचेगे जिससे वहां का लोड भी पीक पर पहुंच जाएगा।''

जेन्सेन का अनुमान है कि एक हफ़्ते के भीतर हमें यूरोपीय बंदरगाहों पर भारी दबाव देखना पड़ेगा। उनकी राय में इस समस्या के चलते दुकानों में बिकने वाला हर माल की आपूर्ति और उसकी क़ीमत के प्रभावित होने की आशंका है।

4) महंगाई बढ़ने का ख़तरा

अमेरिका में नॉर्थ कैरोलिना के कैंपबेल यूनिवर्सिटी में समुद्री मामलों के जानकार और इतिहास के प्रोफेसर सल्वाटोर मर्कोग्लियानो का मानना है कि इस समस्या के विश्व व्यापार पर गंभीर असर हो सकते हैं।

बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, ''नहर के बंद होने से मालवाहक जहाज़ और तेल टैंकर यूरोप में भोजन, ईंधन और तैयार माल नहीं पहुंचा पा रहे हैं। इस चलते यूरोप से सुदूर पूर्व तक भी कोई माल नहीं भेजा जा रहा है।''

बीबीसी के आर्थिक संवाददाता थियो लेगट्ट ने कहा, "स्वेज़ नहर पेट्रोलियम और तरल प्राकृतिक गैस की ढुलाई के लिए काफी अहम है, क्योंकि मध्य पूर्व से ईंधन को यूरोप तक लाया जाता है।''

लॉयड्स लिस्ट इंटेलिजेंस ने बताया कि आंकड़ों के अनुसार पिछले साल इस नहर से 5,163 टैंकर गुज़रे थे। इससे हर दिन क़रीब बीस लाख बैरल तेल की ढुलाई हुई थी।

अमेरिका की ईआईए के अनुसार, स्वेज़ नहर और सुमेड पाइपलाइन (भूमध्यसागर के अलेक्जेंड्रिया से स्वेज़ खाड़ी तक) के ज़रिए समुद्र से होने वाले कुल तेल क़ारोबार के नौ फ़ीसदी और तरल प्राकृतिक गैस के आठ फ़ीसदी की ढुलाई होती है।

नहर के इसी महत्व और मौज़ूदा समस्या को देखते हुए बुधवार, 24 मार्च 2021 को तेल के दाम छह फ़ीसदी से ज़्यादा बढ़ गए। हालांकि गुरुवार, 25 मार्च 2021 को इसमें गिरावट आई।

आईएनजी बैंक का मानना है कि यदि यह रूकावट लंबे समय तक रही तो ज़्यादा संभावना है कि खरीदारों को कहीं और से तेल की आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए नक़दी बाज़ार की ओर रुख़ करना होगा।

कंटेनरों को यह भी तय करना होगा कि क्या उसे खाली करने के लिए इंतज़ार करना है या 'केप ऑफ गुड होप' होकर जाना है। आईएनजी बैंक के अनुसार दोनों विकल्पों में से किसी को भी चुनने पर माल ढुलाई में देरी होगी।

जानकारों की राय में मौज़ूदा समस्या का असल प्रभाव समय के साथ ही सामने आ पाएगा।

रिस्ताद कैबिनेट के ब्योनार टोनहुगेन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, ''इस समस्या का असर शायद कमजोर और कुछ समय के लिए होगा। लेकिन यदि यह रूकावट ज़्यादा समय तक चली तो इससे महंगाई बढ़ेगी ही। यह असर लंबे समय तक बना रहेगा।''

अन्य सामानों पर असर

लंदन की क्लाइड एंड को के समुद्री मामलों के वकील इयान वुड्स ने एनबीसी को बताया, ''अन्य जहाजों पर लाखों डॉलर के सामान हैं। यदि नहर को जल्दी सामान्य नहीं किया गया तो जहाज़ दूसरे रास्तों से जाएंगे। इसका अर्थ है ज़्यादा समय और अधिक लागत। और यह आख़िरकार उपभोक्ताओं से ही वसूला जाएगा।''

बीबीसी के एक विशेषज्ञ लेगेट ने कहा कि यह एक बुरा सपना है।

उन्होंने कहा, ''इससे पता चला है कि एवर गिवेन जैसे नई पीढ़ी के बड़े जहाज़ों के नहर की संकरी सीमा से गुजरने पर क्या ग़लत हो सकता है।''

हालांकि, नहर के कुछ हिस्सों को 2015 में आधुनिकीकरण की योजना के तहत चौड़ा किया गया था। फिर भी इसमें नेविगेट करना बहुत मुश्किल है। यही नहीं भविष्य में ऐसी और भी गंभीर दुर्घटनाएं होने की आशंका है।

सोशल मीडिया, ओटीटी, डिजिटल प्लेटफॉर्म के नियमन के लिए क़ानून बनेगा

भारत में केंद्र की मोदी सरकार अगले तीन महीने में सोशल मीडिया और डिजीटल कंटेन्ट को नियमित करने के लिए एक नया क़ानून लाएगी। भारत के क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और भारत के संचार मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया भारत में बिजनस कर रहे हैं, उन्होंने अच्छा बिज़नस किया है और भारतीय लोगों को मज़बूत किया है।  लेकिन इसके साथ ही पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया के गैर-ज़िम्मेदाराना इस्तेमाल की शिकायतें आ रही हैं।''

मोदी सरकार के मुताबिक़ पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर हिंसा को बढ़ावा देने, अश्लील सामग्री शेयर करने, दूसरे देश के पोस्ट का इस्तेमाल करने जैसी कई शिकायतें सामने आई हैं, जिससे निपटने के लिए सरकार नई गाइडलाइंस लेकर आई है और तीन महीने में इसे लेकर एक क़ानून बनाया जाएगा।

गाइडलाइंस क्या हैं?

गाइडलाइंस के बारे में बताते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''सोशल मीडिया को 2 श्रेणियों में बांटा गया है, एक इंटरमीडयरी और दूसरा सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडरी। हम जल्दी इसके लिए यूज़र संख्या का नोटिफिकेशन जारी करेंगे।''

''यूज़र्स की गरिमा को लेकर अगर कोई शिकायत की जाती है, ख़ासकर महिलाओं की गरिमा को लेकर तो शिकायत करने के 24 घंटे के अंदर उस कंटेन्ट को हटाना होगा।''

उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया के क़ानून को तीन महीने में लागू किया जाएगा।

इसके अलावा सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण व्यवस्था बनानी होगी और शिकायतों का निपटारा करने वाले ऑफ़िसर का नाम भी सार्वजनिक करना होगा। ये अधिकारी 24 घंटे में शिकायत का पंजीकरण करेगा और 15 दिनों में उसका निपटारा करेगा।

उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया को चीफ़ कंप्लाएंस ऑफिसर, नोडल कंटेन्ट पर्सन और एक रेज़ीडेट ग्रीवांस ऑफ़िसर नियुक्त करना होगा और ये सब भारत में ही होंगे। इसके अलावा शिकायतों के निपटारे से जुड़ी रिपोर्ट भी उन्हें हर महीने जारी करनी होगी।

अकाउंड वेरिफ़िकेशन होगा ज़रूरी

मोदी सरकार ने कहा, इसके अलावा ये सुनिश्चित करने के लिए कि सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट न बनाए जाए, कंपनियों से अपेक्षा होगी कि वो वेरिफिकेशन प्रक्रिया को अनिवार्य बनाएं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई पोस्ट किसने किया है, कोर्ट के आदेश या सरकार के पूछने पर ये जानकारी कंपनी को देनी होगी।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''किसी कोर्ट या सरकार के पूछने पर उन्हें बताना पड़ेगा कि कोई पोस्ट किसने शुरू किया। अगर भारत के बाहर से हुआ तो भारत में किसने शुरू किया। यह भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ संबंध, बलात्कार आदि के संबंध में होना चाहिए।''

हालांकि सोशल मीडिया कंपनियां अक्सर ये दलील देती आई हैं कि इस तरह की जानकारियां देने के लिए उन्हें एंड टू एंड एन्क्रिपशन को तोड़ना पड़ेगा और यूज़र का डेटा सेव करना पड़ेगा जो उनकी निजता का हनन होगा। एंड टू एंड एन्क्रिपशन का मतलब है कि दो लोगों के बीच हो रही बातचीत को कोई तीसरा (कंपनी भी) सुन या पढ़ नहीं सकता।

ये जानकारियां कंपनी कैसे मुहैय्या करा सकती है, इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में रविशंकर प्रसाद ने कहा, ''हम एन्क्रिपशन तोड़ने के लिए नहीं कह रहे, हम बस ये पूछ रहे हैं कि इसे शुरू किसने किया।''

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की कुछ गाइडलाइंस का हवाला देते हुए कहा कि अश्लील सामग्री, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार से जुड़े वीडियो को फैलने से रोकने के लिए ये क़दम बेहद ज़रूरी हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के बाहर से भी सोशल मीडिया पोस्ट्स करने की कई ख़बरें सामने आई हैं।

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इन सभी नियमों का मकसद लोगों के हाथ में अधिक शक्ति देना है। इस पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि, ''अगर कोई सिग्निफिकेंट पोस्ट हटाई जाती है, तो कंपनी को इसकी वजह देनी होगी।''

उन्होंने कहा कि इन सभी चीज़ों को लेकर प्लैटफ़ॉर्म्स से कहेंगे कि एक मैकेनिज़म बनाया जाए।

रविशंकर प्रसाद अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूज़र्स का डेटा भी दिया। उनके मुताबिक़ भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़, यूट्यूब के 44.8 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इस्टाग्राम के 21 करोड़, ट्विटर के 1.75 करोड़ यूज़र्स हैं।

ओटीटी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी नियम

मोदी सरकार ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म को रेगुलेट करने के लिए भी कानून लेकर आएगी।

भारत के केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ''ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए तीन स्तर का तंत्र होगा। OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया को अपने बारे में जानकारी देनी होगी, और उन्हें एक शिकायत निवारण तंत्र बनाना होगा।''

जावड़ेकर के मुताबिक़ सरकार ने पहले ओटीटी कंपनियों से मुलाकात की थी और एक सेल्फ़ रेगुलेशन बनाने के लिए कहा था लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए।

नए नियम के आने पर ओटीटी और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म को अपनी डिटेल बतानी पड़ेंगी जैसे कि वो कहां से काम करते हैं। इसके अलावा शिकायतों के निवारण के लिए एक पोर्टल बनाना होगा।  

जावड़ेकर ने कहा कि टीवी और प्रिंट की तरह डिजिटल के लिए भी एक नियामक संस्था बनाई जाएगी, जिसका अध्यक्ष कोई रिटायर्ट जज या प्रख्यात व्यक्ति हो सकता है।

उन्होंने कहा, ''जैसे ग़लती करने पर टीवी पर माफ़ी मांगी जाती है, वैसा ही डिजीटल के लिए भी करना होगा।''

इसके अलावा कंटेंट पर उम्र के मुताबिक़ क्लासिफ़िकेशन करना होगा और पेरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी।

उन्होंने कहा कि जहां तुरंत एक्शन की ज़रूरत हो, ऐसे मामलों के लिए सरकारी स्तर पर एक निगरानी तंत्र बनाया जाएगा।

यूएस कैपिटल पर हमला: क्या अमेरिकी संसद (कैपिटल बिल्डिंग) पर अचानक हमला हुआ?

अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में जिस तरह की घटनाएं पिछले दिनों देखने को मिली हैं उससे काफी लोग सकते में हैं। लेकिन अति दक्षिणपंथी समूह और षड्यंत्रकारियों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखने वाले लोगों को ऐसे संकट का अंदाज़ा पहले से था।

अमरीकी राष्ट्रपति पद के लिए जिस दिन वोट डाले गए, उसी रात डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम के स्टेज पर आकर जीत की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था, ''हम लोग ये चुनाव जीतने की तैयारी कर रहे हैं। साफ़ साफ़ कहूं तो हम यह चुनाव जीत चुके हैं।''

उनका यह संबोधन उनके अपने ही ट्वीट के एक घंटे बाद हुआ था। उन्होंने एक घंटे पहले ही ट्वीट किया था, ''वे लोग चुनाव नतीजे चुराने की कोशिश कर रहे हैं।''

हालांकि उन्होंने चुनाव जीता नहीं था। कोई जीत नहीं हुई थी जिसे कोई चुराने की कोशिश करता। लेकिन उनके अति उत्साही समर्थकों के लिए तथ्य कोई अहमियत नहीं रखते थे और आज भी नहीं रखते हैं।

65 दिनों के बाद 06 जनवरी 2021 को दंगाइयों के समूह ने अमरीका की कैपिटल बिल्डिंग को तहस नहस कर दिया। इन दंगाइयों में कई तरह के लोग शामिल थे, अतिवादी दक्षिण पंथी, ऑनलाइन ट्रोल्स करने वाले और डोनाल्ड ट्रंप समर्थक क्यूएनॉन लोगों का समूह जो मानता है कि दुनिया को पीडोफाइल लोगों का समूह चला रहा है और ट्रंप सबको सबक सिखाएंगे। इन लोगों में चुनाव में धांधली का आरोप लगाने वाले ट्रंप समर्थकों का समूह 'स्टॉप द स्टील' के सदस्य भी शामिल थे।

वाशिंगटन के कैपिटल हाउस में हुए दंगे के करीब 48 घंटों के बाद आठ जनवरी 2021 को ट्विटर ने ट्रंप समर्थक कुछ प्रभावशाली एकाउंट को बंद करना शुरू किया, ये वैसे एकाउंट थे जो लगातार षड्यंत्रों को बढ़ावा दे रहे थे और चुनावी नतीजों को पलटने के लिए सीधी कार्रवाई करने के लिए लोगों को उकसा रहे थे। इतना ही नहीं ट्विटर ने इसके बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एकाउंट पर भी पाबंदी लगा दी। 88 मिलियन से ज़्यादा फॉलोअर वाले ट्रंप के एकाउंट पर पाबंदी लगाने के पीछे की वजह यह बताई गई है कि उनके ट्वीट से और ज़्यादा हिंसा भड़कने का ख़तरा है।

वाशिंगटन में हुई हिंसा से दुनिया सदमे है और लग रहा था कि अमेरिका में पुलिस और अधिकारी कहीं मौजूद नहीं हैं। लेकिन जो लोग इस घटना की कड़ियों को ऑनलाइन और अमरीकी शहरों की गलियों में जुड़ते हुए देख रहे थे उनके लिए यह अचरज की बात नहीं है।

चुनावी नतीजों को प्रभावित किया जा सकता है, ये बात वोट डाले जाने के महीनों पहले से डोनाल्ड ट्रंप अपने भाषणों और ट्वीट के ज़रिए कह रहे थे। चुनाव के दिन भी जब अमेरिकों ने मतदान करना शुरू किया था, तभी से अफ़वाहों का दौर शुरू हो गया था।

रिपब्लिकन पार्टी के पोलिंग एजेंट को फिलाडेल्फिया पोलिंग स्टेशन में प्रवेश की इजाज़त नहीं मिली। इस पोलिंग एजेंट के प्रवेश पर रोक वाला वीडियो वायरल हो गया। ऐसा नियमों को समझने में हुई ग़लती की वजह से हुआ था। बाद में इस शख़्स को पोलिंग स्टेशन में प्रवेश की इजाज़त मिल गई थी।

लेकिन यह उन शुरुआती वीडियो में शामिल था जो कई दिनों तक वायरल होते रहे। इसके साथ दूसरे वीडियो, तस्वीरों, ग्राफिक्स के ज़रिए एक नए हैशटैग '#स्टॉप द स्टील' के साथ आवाज़ बुलंद की जाने लगी कि मतदान में धांधली को रोकना है। इस हैशटैग का संदेश स्पष्ट था कि ट्रंप भारी मतों से जीत हासिल कर चुके हैं लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान में बैठी ताक़तें उनसे जीत को चुरा रही हैं।

चार नवंबर, 2020 को दिन के शुरुआती घंटों में जब मतों की गिनती का काम जारी था और टीवी नेटवर्कों पर जो बाइडन की जीत की घोषणा होने में तीन दिन बाक़ी थे, तब राष्ट्रपति ट्रंप ने जीत का दावा करते हुए आरोप लगाया था कि अमरीकी जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। हालांकि अपने दावे के पक्ष में उन्होंने कोई सबूत नहीं दिया था। हालांकि अमेरिका में पहले के चुनावों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वहां मतगणना में किसी तरह की गड़बड़ी एकदम असंभव बात है।

चार नवंबर, 2020 को दोपहर आते आते 'स्टॉप द स्टील' नाम से एक फेसबुक समूह बन चुका था जो फ़ेसबुक के इतिहास में सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाला समूह साबित हुआ। पाँच नवंबर, 2020 की सुबह तक इस समूह से तीन लाख से ज़्यादा लोग जुड़ चुके थे।

अधिकांश पोस्ट में बिना किसी सबूत के आरोप लगाए गए थे कि बड़े पैमाने पर मतगणना में धांधली की जा रही है, यह भी कहा गया कि हज़ारों ऐसे लोगों के मत डाले गए हैं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। यह आरोप भी लगाया गया कि वोट गिनने वाली मशीन को इस तरह से तैयार किया गया है कि वह ट्रंप के मतों को बाइडन के मतों में गिन रही है।

लेकिन कुछ पोस्ट वास्तव में कहीं ज़्यादा चिंतित करने वाले थे, इन पोस्टों में सिविल वॉर और क्रांति को ज़रूरी बताया जा रहा था। पाँच नवंबर, 2020 की दोपहर तक फ़ेसबक ने 'स्टॉप द स्टील' पेज को हटाया लेकिन तब तक इस पेज पर पांच लाख से ज़्यादा कमेंट, लाइक्स और रिएक्शन आ चुके थे। इस पेज को हटाए जाने तक दर्जनों ऐसे समूह तैयार हो चुके थे।

ट्रंप के मतों को चुराए जाने की बात ऑनलाइन पर फैलती जा रही थी। जल्दी ही, मतों की सुरक्षा के नाम पर 'स्टॉप द स्टील' के नाम से समर्पित वेबसाइट लाँच की गई। शनिवार यानी सात नवंबर 2020 को, प्रमुख समाचार नेटवर्कों ने जो बाइडन को चुनाव का विजेता घोषित कर दिया। डेमोक्रेट्स के गढ़ में लोग जश्न मनाने के लिए सड़कों पर निकले। लेकिन ट्रंप के अति उत्साही समर्थकों की आनलाइन प्रतिक्रियाएं नाराजगी भरी और नतीजे को चुनौती देने वाली थी।

इन लोगों ने शनिवार यानी सात नवंबर 2020 को वाशिंगटन डीसी में मिलियन मेक अमेरिका ग्रेट अगेन मार्च के नाम से रैली प्रस्तावित की। ट्रंप ने इसको लेकर भी ट्वीट किया कि वे प्रदर्शन के ज़रिए रोकने की कोशिश कर सकते हैं। इससे पहले वाशिंगटन में ट्रंप समर्थक रैलियों में बहुत ज़्यादा लोग नहीं जुटे थे लेकिन शनिवार (सात नवंबर 2020) की सुबह फ्रीडम प्लाज़ा में हज़ारों लोग एकत्रित हुए थे।

एक अतिवादी शोधकर्ता ने इस रैली की भीड़ को ट्रंप समर्थकों के विद्रोह की शुरुआत कहा। जब ट्रंप की गाड़ियों का काफिला शहर से गुजरा तो समर्थकों में उनकी एक झलक पाने के लिए होड़ मच गई। समर्थकों के सामने 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' की टोपी पहने ट्रंप नज़र आए।

इस रैली में अति दक्षिणपंथी समूह, प्रवासियों का विरोध करने वाले और पुरुषों के समूह प्राउड ब्यॉज़ के सदस्य शामिल थे जो गलियों में हिंसा कर रहे थे और बाद में अमरीकी कैपटिल बिल्डिंग में घुसकर हिंसा की। इसमें सेना, दक्षिणपंथी मीडिया और षड्यंत्र के सिद्धांतों की वकालत करने वाले तमाम लोग शामिल हुए थे।

रात आते आते ट्रंप समर्थकों और उनके विरोधियों में हिंसक झड़प की ख़बरें आने लगी थीं, इसमें एक घटना तो व्हाइट हाउस से पांच ब्लॉक की दूरी पर घटित हुआ। हालांकि इन हिंसाओं में पुलिस भी लिप्त थी, लेकिन इससे आने वाले दिनों का अंदाज़ा लगाया जा सकता था।

अब तक राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी कानूनी टीम ने अपनी उम्मीदें को दर्जनों कानूनी मामलों पर टिका चुकी थीं हालांकि कई अदालतों ने चुनाव में धांधली के आरोपों को खारिज कर दिया था, लेकिन ट्रंप के समर्थकों की ऑनलाइन दुनिया ट्रंप के नजदीकी दो वकीलों सिडनी पॉवेल और एल लिन वुड की उम्मीदों से जुड़ी चुकी थी।

सिडनी पॉवेल और लिन वुड ने भरोसा दिलाया था कि वे चुनाव में धांधली के मामले को इतने विस्तृत ढंग से तैयार करेंगे कि मामला सामने आते ही बाइडन के चुनावी जीत की घोषणाओं की हवा निकल जाएगी।

पॉवेल एक कंजरवेटिव एक्टिविस्ट हैं और पूर्व सरकारी वकील रह चुकी हैं। पॉवेल ने फॉक्स न्यूज़ से कहा कि क्रैकन को रिलीज करने की कोशिश हो रही है। क्रैकन का जिक्र स्कैंडेवियन लोककथाओं में आता है जो विशालकाय समुद्री राक्षस है जो अपने दुश्मनों को खाने के लिए बाहर निकलता है।

उनके इस बयान के बाद क्रैकन को लेकर इंटरनेट पर तमाम तरह के मीम्स नजर आने लगे, इन सबके जरिए चुनावी में धांधली की बातों को बिना किसी सबूत के दोहराया जा रहा था। ट्रंप समर्थकों और क्यूएनऑन कांस्पिरेसी थ्योरी के समर्थकों के बीच पॉवेल और वुड किसी हीरो की तरह उभर कर सामने आए।

क्यूएनऑन कांस्पिरेसी थ्योरी में यक़ीन करने वालों का मानना है कि ट्रंप और उनकी गुप्त सेना डेमोक्रेटिक पार्टी, मीडिया, बिजेनस हाउसेज और हॉलीवुड में मौजूद पीडोफाइल लोगों के ख़िलाफ़ लड़ रही है। दोनों वकील राष्ट्रपति और उनके षडयंत्रकारी समर्थकों के बीच एक तरह से सेतु बन गए थे। इनमें से अधिकांश समर्थक छह जनवरी 2021 को कैपिटल बिल्डिंग में हुई हिंसा में शामिल थे।

पॉवेल और वुड ट्रम्प समर्थकों के आक्रोश को ऑनलाइन भुनाने में कामयाब रहे लेकिन क़ानूनी तौर पर दोनों कुछ ख़ास नहीं कर पाए। इन दोनों ने नवंबर 2020 के आख़िर तक 200 पन्नों का आरोप पत्र जरूर तैयार किया लेकिन उनमें अधिकांश बातें कांस्पीरेसी थ्योरी पर आधारित थे और इससे वे आरोप अपने आप खारिज हो गए थे जिन्हें दर्जनों बार अदालत में खारिज किया जा चुका था। इतना ही नहीं इस दस्तावेज़ में कानून की ग़लतियों के साथ साथ स्पेलिंग की ग़लतियां और टाइपिंग की ग़लतियां भी देखने को मिलीं।

लेकिन ऑनलाइन की दुनिया में इसकी चर्चा जारी रही। कैपिटल बिल्डिंग में हुई हिंसा से पहले 'क्रैकन' और 'रिलीज द क्रैकन' का इस्तेमाल केवल ट्विटर पर ही दस लाख से ज़्यादा बार किया जा चुका था।

जब अदालत ने ट्रंप के कानूनी अपील को खारिज कर दिया तब अतिवादी दक्षिणपंथियों ने चुनाव कर्मियों और अधिकारियों को निशाना बनाना शुरू किया। जॉर्जिया के एक चुनावकर्मी को जान से मारने की धमकी दी जाने लगे। इस प्रांत के रिपब्लिकन अधिकारी, जिसमें गवर्नर ब्रायन कैंप, प्रांत-मंत्री (सीक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) ब्रैड राफेनस्पर्जर और प्रांत के चुनावी व्यवस्था के प्रभारी गैबरियल स्टर्लिंग को ऑनलाइन गद्दार कहा जाने लगा।

स्टर्लिंग ने एक दिसंबर 2020 को भावनात्मक और भविष्य की आशंका को लेकर एक चेतावनी जारी की। उन्होंने कहा, ''किसी को चोट लगने वाली है, किसी को गोली लगने वाली है, किसी की मौत होने वाली है और यह सही नहीं है।''

दिसंबर 2020 के शुरुआती दिनों में मिशिगन के प्रांत-मंत्री (सीक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) जैकलीन बेंसन डेट्रायट स्थित अपने घर में चार साल के बेटे के साथ क्रिसमस ट्री को संवार रही थीं तभी उन्हें बाहर हंगामा सुनाई दिया। करीब 30 प्रदर्शनकारी उनके घर के बाहर बैनर पोस्टर के साथ मेगाफोन पर 'स्टॉप द स्टील' चिल्ला रहे थे। एक प्रदर्शनकारी ने चिल्ला कर कहा, ''बेंसन तुम खलनायिका हो।'' एक दूसरे ने कहा, ''तुम लोकतंत्र के लिए ख़तरा हो।'' एक प्रदर्शनकारी इस मौके पर फेसबुक लाइव कर रहा था और कह रहा था कि उसका समूह यहां से नहीं हटने वाला है।

यह उदाहरण बताता है कि प्रदर्शनकारी वोटिंग की प्रक्रिया से जुड़े लोगों के साथ किस तरह से पेश आ रहे थे। जॉर्जिया में ट्रंप समर्थक लगातार राफेनस्पर्जर के घर बाहर हॉर्न के साथ गाड़ियां चलाते रहे। उनकी पत्नी को यौन हिंसा की धमकियां मिलीं।

आरिज़ोना में प्रदर्शनकारी डेमोक्रेट प्रांत मंत्री (सीक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) कैटी होब्स के घर के बाहर जमा हो गए। ये प्रदर्शनकारी लगातार यही कह रहे थे, ''हमलोग तुम पर नजर रख रहे हैं।''

11 दिसंबर 2020 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने टैक्सास प्रांत के चुनाव नतीजों को खारिज करने की कोशिश को निरस्त कर दिया।

जैसे जैसे ट्रंप के सामने कानूनी और राजनीतिक दरवाजे बंद हो रहे थे वैसे वैसे ट्रंप समर्थक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हिंसक हो रहे थे। 12 दिसंबर 2020 को वाशिंगटन डीसी में 'स्टॉप द स्टील' की दूसरी रैली का आयोजन किया गया। एक बार फिर इस रैली में हज़ारों समर्थक जुटे। इसमें अतिवादी दक्षिणपंथी लोगों से लेकर मेक अमेरिका ग्रेट अगेन और सैन्य आंदोलनों में शामिल रहे लोग भी शामिल हुए।

ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन ने इन प्रदर्शनकारियों की तुलना बाइबिल के सैनिकों और पुजारियों से की जिन्होंने जेरिको की दीवार को गिराया था। इस रैली में चुनावी नतीजे को बदलवाने के लिए 'जेरिको मार्च' के आयोजन का आह्वान किया गया। रिपब्लिकन पार्टी को मॉडरेट बताने वाली अतिवादी दक्षिणपंथी आंदोलन ग्रोय पर्स के नेता निक फ्यूनेट्स ने इन प्रदर्शनकारियों से कहा, ''हमलोग रिपब्लिकन पार्टी को नष्ट करने जा रहे हैं।''

इस रैली के दौरान भी हिंसा भड़क गई थी।

इसके दो दिन बाद (14 दिसंबर 2020 को) इलेक्ट्रोल कॉलेज ने बाइडन की जीत पर मुहर लगा दी। अमरीकी राष्ट्रपति के लिए कार्यभार संभालने के लिए जरूरी अहम पड़ावों में यह भी शामिल है।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ट्रंप समर्थकों को यह नजर आने लगा था कि सभी वैधानिक रास्ते बंद हो चुके हैं, ऐसे में उन लोगों को लगने लगा था कि ट्रंप को बचाने के लिए सीधी कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प है। चुनाव के बाद फ्लिन, पॉवेल और वुड के अलावा ट्रंप समर्थकों के बीच ऑनलाइन एक और व्यक्ति तेजी से जगह बनाने में कामयाब हुआ।

अमरीकी कारोबारी और इमेजबोर्ड 8 चैन और 8 कुन के प्रमोटर जिम वाटकिंस के बेटे रॉन वाटकिंस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ट्रंप के समर्थक के तौर पर सामने आए। 17 दिसंबर 2020 को वायरल हुए ट्वीट्स में रॉन वाटकिंस ने डोनाल्ड ट्रंप को सलाह देते हुए कहा कि उन्हें रोमन साम्राट जूलियस सीजर का रास्ता अपनाना चाहिए और लोकतंत्र की बहाली के लिए सेना की वफादारी का इस्तेमाल करना चाहिए।

रॉन वाटकिंस ने अपने आधा मिलियन से ज़्यादा फॉलोअर्स को क्रास द रोबिकन को ट्वीटर ट्रेंड बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। जूलियस सीजर ने 49 ईसापूर्व रोबीकन नदी को पार करके ही युद्ध की शुरुआत की थी। इस हैशटैग का मुख्यधारा के लोगों ने भी इस्तेमाल किया। इसमें अरिज़ोना में रिपब्लिकन पार्टी की नेता कैली वार्ड भी शामिल थीं। एक अन्य ट्वीट में रॉन वाटकिंस ने ट्रंप को सुझाव दिया कि उन्हें राजद्रोह के क़ानून का इस्तेमाल करना चाहिए जिसके तहत राष्ट्रपति के बाद सेना और दूसरे पुलिस बलों पर अधिकार हो जाता है।

18 दिसंबर 2020 को ट्रंप ने पॉवेल, फ्लिन और दूसरे लोगों के साथ व्हाइट हाउस में रणनीतिक बैठक की। न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक इस बैठक के दौरान फ्लिन ने ट्रंप को मार्शल लॉ लागू करके सेना के अधीन फिर से चुनाव कराने का सुझाव दिया था। इस बैठक के बाद ऑनलाइन दुनिया में दक्षिणपंथी समूहों के बीच एक बार फिर से युद्ध और क्रांति को लेकर बातचीत शुरू हो गई। कई लोग छह जनवरी 2021 को अमेरिकी कांग्रेस के ज्वाइंट सेशन को देखने आए थे, जो एक तरह से औपचारिकता भर होती है। लेकिन ट्रंप समर्थकों को उपराष्ट्रपति माइक पेंस से भी उम्मीद थी।

उपराष्ट्रपति माइक पेंस छह जनवरी 2021 के आयोजन की अध्यक्षता करने वाले थे, ट्रंप समर्थकों को उम्मीद थी कि माइक पेंस इलेक्ट्रोल कॉलेज वोट्स की उपेक्षा करेंगे। इन लोगों की आपसी चर्चा में कहा जा रहा था कि उसके बाद किसी तरह के विद्रोह से निपटने के लिए राष्ट्रपति सेना की तैनाती करेंगे और चुनावी धांधली करने वालों के बड़े पैमानी पर गिरफ्तारी का आदेश देंगे और उन सबको सेना की ग्वांतेनामो बे की जेल में भेजा जाएगा। लेकिन यह सब ऑनलाइन की दुनिया में ट्रंप समर्थकों के बीच हो रहा था, ज़मीन की सच्चाई पर इन सबका होना असंभव दिख रहा था। लेकिन ट्रंप समर्थकों ने इसे आंदोलन का रूप दे दिया और देश भर से आपसी सहयोग और एक साथ सफर करके हज़ारों लोग छह जनवरी 2021 को वाशिंगटन पहुंच गए।

ट्रंप के झंडे लगाए गाड़ियों का लंबा काफिला शहर में पहुंचने लगा था। लुइसविले, केंटुकी, अटलांटा, जॉर्जिया और सक्रेंटन जैसे शहरों से गाड़ियों का काफिला निकलने की तस्वीरें भी सोशल प्लेटफॉर्म्स पर दिखने लगी थीं। एक शख़्स ने करीब दो दर्जन समर्थकों के साथ तस्वीर पोस्ट करते हुए ट्वीट किया, ''हमलोग रास्ते में हैं।'' नार्थ कैरोलिना के आइकिया पार्किंग में एक व्यक्ति ने अपने ट्रक की तस्वीर के साथ लिखा, ''झंडा थोड़ा जीर्णशीर्ण है लेकिन हम इसे लड़ाई का झंड़ा कह रहे हैं।''

लेकिन यह स्पष्ट था कि पेंस और रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे अहम नेता क़ानून के मुताबिक ही काम करेंगे और बाइडन की जीत को कांग्रेस से अनुमोदित होने देंगे। ऐसे में इन लोगों के ख़िलाफ़ भी जहर उगला जाने लगा। वुड ने उनके लिए ट्वीट किया, ''पेंस राष्ट्रद्रोह के मुक़दमे का सामना करेंगे और जेल में होंगे। उन्हें फायरिंग दस्ते द्वारा फांसी दी जाएगी।'' ट्रंप समर्थकों के बीच ऑनलाइन चर्चाओं में आक्रोश बढ़ने लगा था। लोग बंदूकें, युद्ध और हिंसा की बात करने लगे थे।

ट्रंप समर्थकों के बीच लोकप्रिय गैब औऱ पार्लर जैसी सोशल प्लेटफॉर्म्स के अलावा दूसरों जगह पर भी ऐसी बातें मौजूद थीं। पहले प्राउड ब्यॉज के समूह में सदस्य पुलिस बल के खिलाफ और बाद में वे अधिकारियों के ख़िलाफ़ लिखने लगे थे क्योंकि उन्हें एहसास हो गया था कि अधिकारियों का समर्थन अब नहीं मिल रहा है।

वेबसाइट 'द डोनाल्ड' जो ट्रंप समर्थकों के बीच लोकप्रिय है। इस वेबसाइट पर ट्रंप समर्थक पुलिस बैरिकैड तोड़ने, बंदूकें और दूसरे हथियार रखने, बंदूक को लेकर वाशिंगटन के सख्त कानून के उल्लंघन को लेकर खुले तौर पर चर्चा कर रहे थे। इस वेबसाइट पर कैपिटल बिल्डिंग में हंगामा करने और कांग्रेस के 'देशद्रोही' सदस्यों को गिरफ्तार किए जाने तक की बकवास बातें हो रही थीं।

छह जनवरी 2021, यानी बुधवार को ट्रंप ने व्हाइट हाउस के दक्षिण में स्थित इलिप्स पार्क में हज़ारों की भीड़ को एक घंटे से ज़्यादा समय तक संबोधित किया था। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा कि शांतिपूर्ण और देशभक्ति से आप बात कहेंगे तो वह सुनी जाएगी। लेकिन अंत आते आते उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, ''हमें पूरे दमखम से लड़ना होगा, अगर हम पूरे दमखम से नहीं लड़े तो आप अपना देश खो देंगे। इसलिए हमलोग जा रहे हैं। हमलोग पेन्सेल्विनया एवेन्यू जा रहे हैं और हमलोग कैपिटल बिल्डिंग जा रहे हैं।''

कुछ विश्लेषकों के मुताबिक उन दिन हिंसा की आशंका एकदम स्पष्ट थी। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे माइकल चेरटॉफ़ उस दिन हुई हिंसा के लिए कैपिटल पुलिस को जिम्मेदार ठहराते हैं। कथित तौर पर कैपिटल पुलिस ने नेशनल गार्ड की मदद की पेशकश को भी ठुकरा दिया था।

माइकल इसे कैपिटल पुलिस की सबसे बड़ी नाकामी बताते हुए कहते हैं, ''मैं जहां तक सोच पा रहा हूं, इससे बड़ी नाकामी और क्या होगी। इस दौरान हिंसा होने की आशंका का पता पहले से लग रहा था। स्पष्टता से कहूं तो यह स्वभाविक भी था। अगर आप समाचार पत्र पढ़ते हैं, जागरूक हैं तो आपको अंदाजा होगा कि इस रैली में चुनाव में धांधली की बात पर भरोसा करने वाले लोग थे, कुछ इसमें चरमपंथी थे, कुछ हिंसक थे। लोगों ने खुले तौर पर बंदूकें लाने की अपील की हुई थीं।''

इन सबके बाद भी, वर्जीनिया के 68 साल के रिपब्लिकन समर्थक जेम्स क्लार्क जैसे अमेरिकी छह जनवरी 2021 की घटना पर चकित हैं। उन्होंने बीबीसी को बताया, ''यह काफी दुखद था। ऐसा कुछ होगा मैंने नहीं सोचा था।''

लेकिन ऐसी हिंसा की आशंका कई सप्ताह से बनी हुई थी। चरमपंथी और षड्यंत्रकारी समूहों को भरोसा था कि चुनावी नतीजे की चोरी हुई है। ऑनलाइन दुनिया में ये लोग लगातार साथ में हथियार रखने और हिंसा की बात कर रहे थे। हो सकता है कि पुलिस अधिकारियों ने इन लोगों की पोस्ट को गंभीरता से नहीं लिया हो या फिर उन्हें जांच के लिए उपयुक्त नहीं पाया हो। लेकिन अब जवाबदेय अधिकारियों को चुभते हुए सवालों का सामना करना होगा।

जो बाइडन 20 जनवरी 2021 को अमरीकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे। माइक चेरटॉफ़ उम्मीद कर रहे हैं कि सुरक्षा बल 06 जनवरी 2021 की तुलना में कहीं ज़्यादा मुस्तैदी से तैनात होगा। हालांकि अभी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा और बाधा पहुंचाने की बात कही जा रही है। इन सबके बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि इन लोगों ने कांस्पीरेसी थ्योरी को लाखों लोगों तक क्यों पहुंचने दिया?

छह जनवरी 2021 की हिंसा के बाद 08 जनवरी 2021 को ट्विटर ने ट्रंप के पूर्व सलाहकार फ्लिन, क्रैकन थ्योरी देने वाले वकील पॉवेल एवं वुड और वाटकिंस के खाते डिलिट किए हैं। इसके बाद ट्रंप का एकाउंट भी बंद किया गया है।

कैपिटल बिल्डिंग में हिंसा करने वाले लोगों की गिरफ़्तारी जारी है। हालांकि अभी भी ज़्यादातर दंगाई अपनी सामानान्तर दुनिया में मौजूद हैं जहां वे अपनी सुविधा के मुताबिक तथ्य गढ़ रहे हैं। छह जनवरी 2021 को हुई हिंसा के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने वीडियो बयान जारी किया जिसमें उन्होंने पहली बार यह स्वीकार किया है कि नया प्रशासन 20 जनवरी 2021 को अपना कार्यभार संभालेगा।

ट्रंप समर्थक इस वीडियो को देखने के बाद भी नए तरह के स्पष्टीकरण दे रहे हैं। वे खुद को दिलासा दे रहे हैं कि ट्रंप को आसानी से हार नहीं माननी चाहिए, उन्हें संघर्ष करना चाहिए। इतना ही नहीं ट्रंप समर्थकों की एक थ्योरी यह भी चल रही है कि यह वीडियो ट्रंप का है ही नहीं, यह कंप्यूटर जेनरेटेड फेक वीडियो है। ट्रंप समर्थक ये आशंका भी जता रहे हैं कि ट्रंप को बंधक तो नहीं बना लिया गया है। हालांकि ट्रंप के ढेरों प्रशंसकों को अभी भी भरोसा है कि ट्रंप राष्ट्रपति बने रहेंगे।

इनमें से किसी भी बात के सबूत मौजूद नहीं हैं लेकिन इससे एक बात ज़रूर साबित होती है। डोनाल्ड ट्रंप का चाहे जो हो, अमेरिकी कैपिटल बिल्डिंग में हिंसा करने वाले लोग आने वाले दिनों में जल्दी शांत नहीं होने वाले हैं, यह तय है।

हाथरस गैंग रेप: सीबीआई ने दलित लड़की के गैंग रेप और हत्या की बात मानी, चार्जशीट दायर

भारत के प्रान्त उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के साथ हुए गैंग रेप और हत्या मामले में सीबीआई ने 18 दिसंबर 2020 को आरोपपत्र दायर कर दिया है।

19 साल की दलित लड़की के साथ हुए अपराध के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों संदीप, लवकुश, रवि और रामू पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं भी लगाई हैं।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अभियुक्तों के वकील ने बताया कि हाथरस की स्थानीय अदालत ने मामले का संज्ञान लिया है।

सीबीआई इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की जाँच कर रही थी और सीबीआई के अधिकारियों ने पूरे मामले में अभियुक्त संदीप, लवकुश, रवि और रामू की भूमिका की जाँच की।

चारों अभियुक्त फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि चारों का गुजरात के गांधीनगर स्थित फ़ॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में अलग-अलग टेस्ट भी कराया गया था।

इसके अलावा सीबीआई की जाँच टीम ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से भी बात की थी। ये वही अस्पताल है जहाँ मृतका का इलाज हुआ था।

हाथरस गैंग रेप मामला न सिर्फ़ अपराधियों की बर्बरता की वजह से चर्चा में आया था बल्कि इसमें उत्तर प्रदेश की पुलिस पर मृतका के परिजनों की अनुमति के बिना और उनकी ग़ैरहाज़िरी में लड़की का अंतिम संस्कार करने पर भी विवाद हुआ था।

इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की भी ख़ूब आलोचना हुई थी।

बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत से कहा था कि इलाके में न्याय-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के डर से आनन-फानन में लड़की का अंतिम संस्कार करा दिया गया।

19 साल की लड़की दलित परिवार से थी जबकि चारों अभियुक्त ऊंची जाति से सम्बन्ध रखते हैं।

इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश में व्याप्त जाति-व्यवस्था की उलझनें भी सामने आई थीं जब कुछ गाँवों में अभियुक्तों के पक्ष में महापंचायत बुलाई गई।

इतना ही नहीं, लड़की के गैंग रेप होने को लेकर भी सवाल उठाए गए। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ वक़्त के लिए पीड़िता के गाँव में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी।

इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़िता के परिजनों का नार्को टेस्ट कराने की बात कही थी जिसे लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था क्योंकि आम तौर पर नार्को टेस्ट अभियुक्त पक्ष का होता है।

उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन पर लचर रवैये के आरोपों के बाद आख़िकार एक विशेष जाँच समिति (एसआईटी) का गठन किया गया था। हालाँकि जाँच का ज़िम्मा बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया।

तुर्की-इसराइल सम्बन्ध: क्या तुर्की और इसराइल फिर एक दूसरे के क़रीब आ रहे हैं?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल पर कड़ी टिप्पणी करने वाले और फ़लस्तीनियों के अधिकारों की बात करने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रिचैप तैय्यप अर्दोआन की सरकार ने दो साल से लगभग समाप्त इसराइल के साथ राजनयिक संबंधों को अचानक बहाल करने की घोषणा की है।

तुर्की ने 15 दिसंबर 2020 को इसराइल के लिए अपना राजदूत नियुक्त किया है। 2018 में ग़ज़ा में फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ इसराइल की हिंसक कार्रवाइयों के विरोध में तुर्की ने अपना राजदूत तेल अवीव से वापस बुला लिया था।

ये प्रदर्शन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम भेजने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हो रहे थे।

तुर्की के नेता अर्दोआन इसराइल को 'दहशतगर्द और बच्चों का क़ातिल' कह चुके हैं, लेकिन अब वो अपने राजदूत को इसराइल भेज रहे हैं। इस फ़ैसले के अर्थ को समझने के लिए हालिया घटनाक्रमों और इसराइल-तुर्की के लंबे ऐतिहासिक संबंधों को समझना ज़रूरी है।

तुर्की की ओर से अपने राजदूत को तैनात करने का फ़ैसला 15 दिसंबर 2020 को आया है जब 14 दिसंबर 2020 को अमेरिका ने तुर्की पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं।

रूस से एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम ख़रीदने के बाद अमेरिका ने 2020 की शुरुआत में तुर्की को अपने एफ़-35 लड़ाकू विमान बेचने और तुर्की के एविएटर ट्रेनिंग प्रोग्राम समेत कई योजनाओं पर रोक लगा दी थी।

अमेरिकी दबाव के बावजूद तुर्की ने रूसी मिसाइल सिस्टम की ख़रीदारी से पीछे हटने से मना कर दिया था। अब जाते-जाते ट्रंप प्रशासन ने तुर्की पर नई पाबंदियां लागू कर दी हैं।

ग़ौरतलब है कि तुर्की अमेरिका और यूरोप के रक्षा गठबंधन नेटो का एक अहम सदस्य भी है।

मध्य पूर्व में नई गुटबाज़ियां और 'जियो स्ट्रेटेजिक' बदलाव ऐसे समय में हो रहे हैं जब पूरी दुनिया ऐतिहासिक रूप से कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है।

दुनियाभर के देशों की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ रही हैं और अरब देशों के लिए बड़ी मुश्किल का समय है क्योंकि पूरी दुनिया की तेल पर निर्भरता कम हुई है जिसके कारण उनका आर्थिक बोझ ज़्यादा बढ़ गया है।

अरब देश आर्थिक स्थिरता के कारण अपनी पारंपरिक नीतियों की समीक्षा करते हुए अपनी नई आर्थिक संभावनाओं को खोज रहे हैं।

वहीं अमेरिका में भी राजनीतिक बदलाव आ रहा है और नए राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन 20 जनवरी 2021 से पदभार संभालने जा रहा है।

तुर्की और इसराइल के संबंधों में उतार-चढ़ाव

तुर्की और इसराइल के बीच संबंधों में हमेशा फ़लस्तीन एक तरह केंद्र बिंदु बना रहा है। पहले भी तीन बार तुर्की इसराइल के साथ अपने राजनयिक संबंध निचले स्तर पर लाने या उन्हें ख़त्म करने की कोशिशें कर चुका है और हर बार इसके केंद्र में फ़लस्तीन ही रहा है।

सबसे पहले 1956 में जब स्वेज़ नहर के मुद्दे पर इसराइल ब्रिटेन और फ़्रांस के समर्थन के बाद सिनाई रेगिस्तान में हमलावर हुआ तो तुर्की ने उस पर विरोध जताते हुए अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया था।

इसके बाद 1958 में उस वक़्त के इसराइली प्रधानमंत्री डेविड बेन गोरियान और तुर्की के प्रमुख अदनान मेंदरेस के बीच एक ख़ुफ़िया मुलाक़ात हुई और दोनों देशों के बीच रक्षा और ख़ुफ़िया सहयोग स्थापित करने पर सहमति हुई।

1980 में इसराइल ने पूर्वी येरुशलम पर क़ब्ज़ा किया तो तुर्की ने दोबारा उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को घटा दिया। इस दौरान दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध ठंडे रहे लेकिन 90 के दशक में ओस्लो शांति समझौते के बाद दोनों देशों के बीच संबंध बहाल हो गए।

इस दौरान दोनों मुल्कों के संबंध जिसे 'ज़बरदस्ती की शादी' भी कहा जाता था वह बिना किसी उलझन के चलते रहे और इस दौरान पारस्परिक व्यापार और रक्षा क्षेत्र में सहयोग के कई समझौते भी हुए।

जनवरी 2000 में इसराइल ने तुर्की से पानी ख़रीदने का एक समझौता किया लेकिन यह समझौता ज़्यादा दिन नहीं चल सका। इसके बाद दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौते हुए जिनमें तुर्की को ड्रोन और निगरानी के उपकरण देना भी शामिल था।

रक्षा क्षेत्र में संबंधों के बनने की बड़ी वजह थी - तुर्की की रक्षा ज़रूरतें और इसराइल को अपना सामान बेचने के लिए ख़रीदार ढूंढना।

तुर्की में नवंबर 2002 में जब रिचैप तैय्यप अर्दोआन की दक्षिणपंथी जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) सत्ता में आई तो दोनों देशों के बीच संबंधों में नया मोड़ आना शुरू हुआ। 2005 में अर्दोआन ने इसराइल का दौरा भी किया और उस वक़्त के इसराइली प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्त को तुर्की के दौरे की दावत दी।

दिसंबर 2008 में हालात ने एक और करवट ली और इसराइली प्रधानमंत्री शिमॉन पेरेज़ के अंकारा दौरे के तीन दिन बाद ही इसराइल ने ग़ज़ा में 'ऑपरेशन कास्ट लेड' के नाम से चढ़ाई शुरू कर दी।

हमास से हमदर्दी रखने वाले अर्दोआन को इसराइल की इस कार्रवाई से ज़बर्दस्त धक्का लगा और उसको 'स्पष्ट रूप से धोखा' क़रार दिया।

2010 में इसराइली फ़ौज की ग़ज़ा में घेराबंदी के दौरान मावी मरमरा की घटना हुई। तुर्की के एक मानवाधिकार संगठन की ओर से मावी मरमरा जहाज़ मानवीय सहायता लेकर जा रहा था जिस पर इसराइली फ़ौज ने धावा बोल दिया। इस घटना में 10 तुर्क नागरिक मारे गए थे।

इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच संबंध ख़त्म हो गए।

अमेरिकी कोशिश

अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपने दो मित्र देशों के बीच में तनाव को कम करने और राजनयिक संबंधों को बहाल कराने के लिए कोशिशें जारी रखीं।

इसके लिए अर्दोआन ने तीन शर्तें सामने रखीं जिनमें मावी मरमरा पर हमले के लिए माफ़ी मांगने, मारे गए लोगों को मुआवज़ा देने और ग़ज़ा की घेराबंदी समाप्त करने जैसी शर्तें शामिल थीं।

इसराइल के लिए सबसे बड़ी शर्त माफ़ी मांगना था और इसराइल भी तुर्की को हमास के कुछ नेताओं को देश से बाहर करने की मांग कर रहा था।

अमेरिकी कोशिशों के तहत ही 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अर्दोआन और इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के बीच फ़ोन पर बातचीत कराई। टेलिफ़ोन पर हुई बातचीत के दौरान नेतन्याहू माफ़ी मांगने और मारे गए लोगों के लिए मुआवज़ा देने को तैयार हो गए।

इसके बावजूद इस क्षेत्र में लगातार होने वाली घटनाओं के कारण दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य होने में देरी होती रही और आख़िरकार सन 2016 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध बहाल हो सके।