भारत के प्रान्त उत्तर प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालात में सूबा के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सीएम पद के लिए पहली पसंद बने हुए हैं। एबीपी न्यूज चैनल-लोकनीति-सीएसडीएस के ताजा सर्वे में 28 फीसदी लोगों ने उनका समर्थन किया। इस सर्वे में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है, लेकिन समाजवादी पार्टी में टूट हुई तो बीजेपी के फायदे में रहने का अनुमान है।
किसे कितनी सीटें मिलने का अनुमान
सपा 141- 151
भाजपा 129- 139
बसपा 93-103
कांग्रेस 13-19
मुलायम-अखिलेश अलग लड़े तो
अखिलेश गुट 82-92 सीटें
मुलायम गुट 9-15 सीटें
बसपा 110-120 सीटें
भाजपा गठबंधन 158-168 सीटें
कांग्रेस 14-20 सीटें
अखिलेश-कांग्रेस साथ लड़े तो
अखिलेश-कांग्रेस 133-143 सीटें
भाजपा गठबंधन 138-148 सीटें
बसपा 105-115
मुलायम गुट 2-8 सीटें
सीएम के लिए कौन पसंद
अखिलेश 28 फीसदी
माया 21 फीसदी
आदित्यनाथ 4 फीसदी
मुलायम 3 फीसदी
अखिलेश का ग्राफ
दिसंबर 2016- 41 फीसदी
अगस्त 2016- 31 फीसदी
जुलाई 2013- 26 फीसदी
किसके काम से ज्यादा संतुष्ट
अखिलेश 34
मोदी 32
सपा वोटर किसे सीएम चाहते हैं
अखिलेश 83 फीसदी
मुलायम 06 फीसदी
रामगोपाल 02 फीसदी
सपा में झगड़े के लिए कौन जिम्मेदार
अखिलेश 6 फीसदी
शिवपाल 25 फीसदी
किस पार्टी को किसके वोट मिलेंगे
54 फीसदी मुस्लिम वोटर सपा के साथ
75 फीसदी यादव वोटर सपा के साथ
55 फीसदी सवर्ण वोटर बीजेपी के साथ
74 फीसदी जाटव वोटर बीएसपी के साथ
56 फीसदी दलित वोटर बीएसपी के साथ
पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसे कितनी सीटें
सपा 35
भाजपा 30
बसपा 18
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में
भाजपा 37
सपा 16
बसपा 12
रूहेलखंड
सपा 47
बसपा 33
भाजपा 16
अवध
बसपा 33
भाजपा 26
सपा 25
बुंदेलखंड
सपा 25
भाजपा 23
बसपा 21
किस क्षेत्र में कितना वोट
पूर्वी उत्तर प्रदेश
सपा 35 फीसदी
भाजपा 30 फीसदी
बसपा 18 फीसदी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
भाजपा 3 फीसदी
सपा 16 फीसदी
बसपा 12 फीसदी
(एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीएस ने 5 दिसंबर से 17 दिसंबर के बीच उत्तर प्रदेश के 65 विधानसभा क्षेत्रों के 5 हजार 932 लोगों से बात की।)
ये सर्वे एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीएस का है। इसमें दिए गए तथ्य, डाटा और विचार एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीएस के हैं। इसकी आईबीटीएन खबर (आईबीटीएन डिजिटल मीडिया नेटवर्क की कंपनी) पुष्टि नहीं करती है।
न तो बीजेपी ने और न तो खांडू ने जनादेश का सम्मान किया और न ही अलायन्स के धर्म का। अरुणाचल प्रदेश में चुनाव में जनादेश कांग्रेस को मिली थी, ऐसे में खांडू और बीजेपी को सत्ता का लोभ छोड़कर नए चुनाव का सामना करना चाहिए। मुख्यमंत्री पेमा खाडू को सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी से प्यार है और इसके लिए खांडू कुछ भी कर सकते हैं। बीजेपी को खुश होने की जरूरत नहीं है। बीजेपी खांडू से सतर्क रहे, इसी में बीजेपी की भलाई है।
अरूणाचल प्रदेश में तेजी से घटे अलोकतांत्रिक घटनाक्रम में मुख्यमंत्री पेमा खाडू के नेतृत्व में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरूणाचल (पीपीए) के 43 में से 33 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी ने शनिवार को अरूणाचल प्रदेश में अपनी सरकार का गठन किया।
खांडू ने विधानसभा अध्यक्ष तेंजिंग नोरबू थोंगदोक के सामने विधायकों की परेड कराई। विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों के बीजेपी में शामिल होने को मंजूरी दे दी। पूरा अलोकतांत्रिक घटनाक्रम गुरुवार को शुरू हुआ, जब पीपीए के अध्यक्ष काहफा बेंगिया ने कथित पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए खांडू, उपमुख्यमंत्री चौवना मेन और पांच विधायकों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
अरुणाचल प्रदेश में नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) सरकार की गठबंधन सहयोगी पीपीए ने शुक्रवार को टकाम पेरियो को राज्य का नया मुख्यमंत्री चुना था। हालांकि राजनीतिक समीकरण तब बदल गए, जब शुरुआत में पेरियो को समर्थन देने वाले पीपीए के अधिकतर विधायक बाद में खांडू के खेमे में चले गए। पीपीए ने शनिवार को चार और पार्टी विधायकों - होनचुन न्गानदम, बमांग फेलिक्स, पुंजी मारा और पानी टराम को भी निलंबित कर दिया।
खांडू ने विधानसभा परिसर में संवाददाताओं से कहा, अरूणाचल प्रदेश में आखिरकार कमल खिल गया। राज्य में लोग नयी सरकार के नेतत्व में नये साल में विकास की नयी सुबह देखेंगे। भाजपा में विलय के फैसले पर प्रकाश डालते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि परिस्थितियों ने विधायकों को लोगों एवं राज्य के हित में यह फैसला लेने के लिए मजबूर कर दिया।
गौरतलब है कि 29 दिसंबर को अरुणाटल प्रदेश में एक बार फिर संवैधानिक संकट पैदा हो गया, जब सत्ताधारी पार्टी पीपीए के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री पेमा खाण्डू और उप मुख्यमंत्री चाउना मे सहित पांच अन्य विधायकों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है।
पार्टी अध्यक्ष काहफा बेंगिया ने कहा है कि मुख्यमंत्री पेमा खाण्डू और उनके कुछ सहयोगी पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थे।
बेंगिया ने विधानसभा अध्यक्ष टी नोर्बू थोंगदोक से कहा है कि पार्टी से निलंबित विधायकों को सदन में अलग बैठने की व्यवस्था करें और पार्टी के इस निर्णय से राज्यपाल को भी अवगत करा दें।
न तो बीजेपी ने और न तो खांडू ने जनादेश का सम्मान किया और न ही अलायन्स के धर्म का। पिछले साल खांडू ने कांग्रेस छोड़ कर किसी और को मुख्यमंत्री बनाया, फिर कांग्रेस में वापस आकर खुद मुख्यमंत्री बन गए, इससे बाद जिसे मुख्यमंत्री बनाया थे, उसने ख़ुदकुशी कर ली, खांडू ने फिर कांग्रेस छोड़ी और पीपीए नाम की पार्टी बनाकर बीजेपी के नेतृत्ववाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस में शामिल हो गए। फिर देखिये, खांडू ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी से निकाले जाने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में देख पीपीए को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।
मतलब साफ है खंडू को सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी से प्यार है और इसके लिए खांडू कुछ भी कर सकते हैं। बीजेपी को खुश होने की जरूरत नहीं है। बीजेपी खांडू से सतर्क रहे, इसी में बीजेपी की भलाई है।
अरुणाचल प्रदेश में चुनाव में जनादेश कांग्रेस को मिली थी, ऐसे में खांडू और बीजेपी को सत्ता का लोभ छोड़कर नए चुनाव का सामना करना चाहिए, नहीं तो इसे खांडू और बीजेपी की बेशर्मी मानी जाएगी। बीजेपी चुनाव हराने के बाद भी पिछले दरवाजे से अरुणाचल में सत्ता पर काबिज हो गई। ये तो जनादेश का सरासर अपमान है। सलीके से मोदी सरकार को अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाकर नए चुनाव की घोषणा करनी चाहिए।
ज़ाकिर नाइक की कमाई फाउंडेशन के ज़रिए बिकने वाली इस्लाम पर लिखी उनकी किताबें और उनके भाषणों की डीवीडी और सीडी से होती है

कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा के वहाबी कहलाने वाले मुसलमानों का यक़ीन है कि इस्लाम का सबसे सुनहरा दौर पैग़म्बर मोहम्मद और उनके बाद के चार शासकों का था.
ज़ाकिर नाइक- डोंगरी से दुबई तक
वो उसी दौर में वापस जाने की मांग करते हैं. इस विचारधारा का ये भी मानना है कि एक सच्चा मुसलमान वही है जो इस्लाम की सर्वोच्चता को माने और इसका प्रचार करे.
उन पर इल्ज़ाम है कि इस्लाम की अपनी समझ को वो सर्वश्रेष्ठ मानते हैं.

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने आईआरएफ पर पाबंदी लगा दी. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने फाउंडेशन और नाइक से जुड़े दूसरे दफ्तरों में छापे माकर उन्हें सील कर दिया.
नाइक ने आईआरएफ़ पर लगी पाबंदी को अदालत में चुनौती देने का फ़ैसला किया है.
आइए जानते हैं कि कितना बड़ा है ज़ाकिर नाइक का साम्राज्य?

मुंबई के मज़गांवन इलाक़े में ऊंची दीवारों और बड़े दरवाज़े से घिरे इस्लामिक इंटरनेशनल स्कूल को चलाने वाली संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन एजुकेशनल ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं ज़ाकिर नाइक.
वो आईआरएफ़ के भी अध्यक्ष हैं. इस पर सरकार ने पाबंदी लगा दी है. स्कूल पर कोई पाबंदी नहीं है. लेकिन स्कूल के बैंक खातों को फ्रीज़ कर दिया गया है.
ज़ाकिर नाइक पर चरमपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने और विभिन्न समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने का इल्ज़ाम है.

इस्लामिक इंटरनेशनल स्कूल के बच्चे कहते हैं कि लोगों को उनके स्कूल के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है.
स्कूल में कैम्ब्रिज इंटरनेशनल बोर्ड - IGCSE पाठ्यक्रम चलता है, जहाँ पढ़ाई अंग्रेजी में होती है. इस स्कूल में इस्लाम की तालीम भी दी जाती है. स्कूल के बच्चे अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं

इस स्कूल की शाखाएं चेन्नई और दुबई में भी हैं. इसे ज़ाकिर नाइक ने अपनी इमेज में ढालने की कोशिश की है.
वो ख़ुद अक्सर अंग्रेजी में भाषण देते हैं और टाई सूट के साथ टोपी लगाते हैं और दाढ़ी रखते हैं. उन्होंने अपनी छवि ऐसी बनाई है कि पारंपरिक और आधुनिक मुसलमानों में उनकी स्वीकृति हो.


