ज्ञानवापी मस्जिद केस: अदालत ने हिंदू पक्ष को तहखाने में पूजा का अधिकार दिया

ज्ञानवापी मस्जिद केस: अदालत ने हिंदू पक्ष को तहखाने में पूजा का अधिकार दिया

बुधवार, 31 जनवरी 2024

भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में हिंदू पक्ष के समर्थन में फ़ैसला सुनाया है। वाराणसी की अदालत ने हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया है।

अदालत की ओर से जारी आदेश में लिखा गया है - "जिला मजिस्ट्रेट, वाराणसी / रिसीवर को निर्देश दिया जाता है कि वह सेटेलमेण्ट प्लाट नं0-9130 थाना-चौक, जिला वाराणसी में स्थित भवन के दक्षिण की तरफ स्थित तहखाने जो कि वादग्रस्त सम्पत्ति है, वादी तथा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड के द्वारा नाम निर्दिष्ट पुजारी से पूजा, राग-भोग, तहखाने में स्थित मूर्तियों का कराये और इस उद्देश्य के लिए 7 दिन के भीतर लोहे की बाड़ आदि में उचित प्रबन्ध करें।''

हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "ज़िला प्रशासन को सात दिन के अंदर पूजा कराने के लिए इंतज़ाम कराने को कहा गया है। जैसे ही प्रशासन ये कर लेगा, वैसे ही पूजा शुरू हो जाएगी।''

मस्जिद परिसर में पूजा करने के विधि-विधान पर भी विष्णु शंकर जैन ने अपनी टिप्पणी की है।

विष्णु शंकर जैन ने कहा, "काशी विश्वनाथ ट्रस्ट ये तय करेगा कि पूजा कैसे होगी। उसे बेहतर पता है। हमारा क़ानूनी काम था जो कि हमने पूरा किया है। अब काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के ऊपर है कि पूजा शुरू हो जाए। भक्तों से लेकर पुजारी आदि सभी को जाने की इजाज़त होगी।''

"मैं ये कहना चाहता हूं कि जो जस्टिस केएम पांडेय ने एक फरवरी, 1986 को राम मंदिर में ताला खोलने का आदेश दिया था। मैं आज के इस ऑर्डर को उसी की तुलना में देखता हूं। ये इस केस का टर्निंग पॉइंट है। एक सरकार ने अपनी ताक़त का दुरुपयोग करते हुए हिंदू समाज की पूजा-पाठ रोकी थी। आज अदालत ने उसे अपनी कलम से ठीक किया है।''

भारत के सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और संविधान मामलों के जानकार डॉक्टर राजीव धवन को यहां तक लगता है कि धर्मनिरपेक्षता को बरकरार रखने के मामले में अदालतें कमज़ोर पड़ गई हैं। डॉक्टर राजीव धवन ने कहा, ''ज्ञानवापी मामले में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को पूरी तरह से भुला दिया गया।''

पूजा स्थल अधिनियम (प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट) क्या है?

इसे धार्मिक पूजा स्थलों की स्थिति को स्थिर करने के लिए अधिनियमित किया गया था क्योंकि वे 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में थे, और किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाते हैं और उनके धार्मिक चरित्र के रखरखाव को सुनिश्चित करते हैं।

पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 घोषित करती है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या संप्रदाय में परिवर्तित नहीं करेगा। धारा 4(1) में प्रावधान है कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वही रहेगा जो 15 अगस्त 1947 को था।

वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में हिंदू पक्ष के समर्थन में फ़ैसला सुनाया है। वाराणसी की अदालत ने हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया है। यहाँ सवाल उठता है कि क्या यह ज्ञानवापी मामले में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का वाराणसी की अदालत के द्वारा पूरी तरह से उल्लंघन नहीं है? क्या यह ज्ञानवापी मामले में ज्ञानवापी मस्जिद के चरित्र में बदलाव करने की कोशिश नहीं है?

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या संप्रदाय में परिवर्तित नहीं करेगा। धारा 4(1) में प्रावधान है कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वही रहेगा जो 15 अगस्त 1947 को था।

तो फिर वाराणसी की अदालत ने हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा का अधिकार क्यों दिया? यह बड़ा सवाल है जिसका जवाब दिया जाना जरूरी है।