भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून की अधिसूचना जारी

भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून की अधिसूचना जारी

सोमवार, 11 मार्च 2024

भारत की केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी है।

भारत के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि नागरिकता लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके लिए जल्द ही एक वेब पोर्टल लांच किया जाएगा।

भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जानकारी देते हुए एक्स पर लिखा, ''मोदी सरकार ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 की अधिसूचना जारी कर दी है इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए अल्पसंख्यकों को यहां की नागरिकता मिल जाएगी।''

"इस अधिसूचना के ज़रिये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और प्रतिबद्धता पूरी की है इन देशों में रहने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों और ईसाइयों को संविधान निर्माताओं की ओर से किए गए वादे को पूरा किया है।''

इससे पहले भारत के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक्स पर लिखा था, "गृह मंत्रालय आज नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के प्रावधानों को लेकर अधिसूचना जारी करेगा। इससे सीएए-2019 के तहत योग्य कोई भी व्यक्ति भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है।''

अधिसूचना जारी किए जाने के बाद भारत के कानून मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने एक्स पर लिखा, ''जो कहा सो किया... मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) की अधिसूचना जारी कर पूरी की अपनी गारंटी।''
 
नागरिकता संशोधन क़ानून क्या है?

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, 11 दिसंबर 2019 में भारत के संसद में पारित किया गया था।

इसका मक़सद पाकिस्तान,अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देना है। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया है।

इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया जाना विवाद की वजह है। विपक्ष का कहना है कि ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। एक तरफ़ ये कहा जा रहा है कि ये धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की कोशिश है। वहीं दूसरी ओर मुस्लिमों का आरोप है कि इसके ज़रिये उन्हें बेघर करने के क़दम उठाए जा रहे हैं।

इस क़ानून पर धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए हैं।  भारतीय संविधान के अनुसार देश में किसी के साथ भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। लेकिन इस क़ानून में मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है। इसी वजह से धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन के आरोप लगाए जा रहे हैं।

सीएए के नियमों को अधिसूचित किए जाने के बाद असम और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया गया है।

भारत के राज्य असम के गुवाहाटी में बीबीसी के सहयोगी संवाददाता दिलीप कुमार शर्मा ने बताया है कि सोमवार, 11 मार्च 2024 की शाम को जैसे ही सीएए की अधिसूचना जारी हुई। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक ज़िले में सीएए क़ानून की प्रतिलिपि को जलाकर अपना विरोध जताया।

छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने मंगलवार, 12 मार्च 2024 से राज्यभर में आंदोलन शुरू करने की हुंकार भरी है। इस बीच क्षेत्रीय दल असम जातीय परिषद ने  मंगलवार, 12 मार्च 2024 को लोगों से इस कानून के खिलाफ हड़ताल करने का आह्वान किया है।

भारत के राज्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि अगर देश में सीएए लागू होगा तो वो इसका विरोध करेंगी।

ममता बनर्जी ने कहा कि देश में समूहों के बीच भेदभाव हुआ तो वो चुप नहीं रहेंगी। ममता ने कहा कि सीएए और एनआरसी पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्व के लिए संवेदनशील मसला है और वो नहीं चाहतीं कि लोकसभा चुनाव से पहले देश में अशांति फैल जाए।

कोलकाता में राज्य सचिवालय में औचक बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ममता बनर्जी ने कहा, ''ऐसी अटकलें हैं कि सीएए लागू करने के लिए अधिसूचना जारी होगी। लेकिन मैं ये साफ कर दूं कि लोगों के बीच भेदभाव करने वाले किसी भी फ़ैसले का विरोध किया जाएगा।''

बीबीसी के सहयोगी संवाददाता प्रभाकर मणि तिवारी के मुताबिक़ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ममता बनर्जी ने कहा, "हिम्मत होती तो और पहले लागू करते सीएए, चुनाव के मौके पर क्यों? मैं किसी की नागरिकता नहीं जाने दूंगी।''

सीएए नियम लागू होने की अधिसूचना पर ओवैसी ने क्या कहा?

सोमवार, 11 मार्च 2024

भारत में सीएए कानून से जुड़े नियमों की अधिसूचना जारी होने के बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन औवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।

असदुद्दीन औवैसी ने एक्स पर लिखा है, ''आप क्रोनोलॉजी समझिए। पहले इलेक्शन सीज़न आएगा, फिर सीएए रूल्स आएंगे। सीएए के ख़िलाफ़ हमारा विरोध बरक़रार है। ये विभाजनकारी क़ानून है और गोडसे के विचारों पर बना है। वो विचार जो भारत के मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना चाहते हैं।''

असदुद्दीन औवैसी ने लिखा है, ''धर्म के नाम पर जिसका भी उत्पीड़न हो रहा है उसे राजनीतिक शरण दीजिये, लेकिन नागरिकता का आधार धर्म या राष्ट्रीयता नहीं होनी चाहिए।''

"सरकार बताए कि उसने इस नियम को पांच साल तक टाले क्यों रखा और अब इसे क्यों लागू कर रही है। एनपीआर-एनआरसी के साथ ही सीएए का मक़सद मुस्लिमों का टारगेट करना है। इसका और कोई दूसरा मक़सद नहीं है।''

ओवैसी ने लिखा है कि जो लोग सीएए, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे थे उनके लिए अब एक और बार इसके ख़िलाफ़ उतरने के अलावा और कोई चारा नहीं है।