क्या एनसीपी का बीजेपी को समर्थन देना सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल थी?

भारत के महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो गई हैं।

बीजेपी की तरफ़ से चुनाव प्रचार का आगाज़ करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दो दिन पहले नासिक पहुंचे थे तो उन्होंने कांग्रेस पर तो निशाना साधा ही था लेकिन एनसीपी और उसके वरिष्ठ नेता शरद पवार पर भी तल्ख़ टिप्पणियां की थीं। उन्होंने अनुच्छेद 370 पर विपक्ष को घेरते हुए कहा कि एक ओर जहां पूरा देश इसके समर्थन में है वहीं कांग्रेस और एनसीपी इसका विरोध कर रहे हैं।

और अब एनसीपी ने बीजेपी को निशाने पर लेते हुए कहा है कि बीजेपी को समर्थन देना उनकी सबसे बड़ी भूल थी।

एनसीपी के राष्ट्रीय महासचिव जितेंद्र आव्हाड ने बीबीसी मराठी के एक कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में बीजेपी को समर्थन देना उनकी पार्टी की सबसे बड़ी भूल थी।  

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र बीबीसी मराठी द्वारा पुणे में आयोजित कार्यक्रम राष्ट्र-महाराष्ट्र के एक सेशन में जितेंद्र आव्हाड ने कहा "पार्टी ने अलीबाग़ (महाराष्ट्र) में एक गोपनीय बैठक बुलायी थी। जहां पार्टी के 35-40 नेताओं को ही आमंत्रित किया गया था। मैं एनसीपी प्रमुख शरद पवार के ठीक बगल में ही खड़ा था और कहा कि अगर हमने अपने आदर्शों के साथ समझौता किया तो हम ख़त्म हो जाएंगे।''  

जितेंद्र आव्हाड का ये बयान इसलिए ख़ास है क्योंकि एनसीपी एक ऐसी पार्टी है जो किसी भी विवादास्पद निर्णय पर बात करने से बचती है।

साल 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों ने त्रिशंकु विधानसभा बना दी थी। बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उसे 122 सीटें मिली थीं लेकिन उसे बहुमत साबित करने के लिए 23 और सीटों की ज़रूरत थी।  145 सीटों पर बहुमत साबित होना था। शिव सेना, चुनाव से पहले ही बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़कर चुनाव में स्वतंत्र रूप से लड़ रही थी और वो किसी क़ीमत पर सरकार बनाने के लिए बीजेपी को समर्थन देने के लिए तैयार नहीं थी।  

यह शरद पवार की एनसीपी पार्टी ही थी जो 41 सीटें लेकर बीजेपी की नैया पार लगाने के लिए आगे आई थी। चुनाव के नतीजे आने के ठीक बाद एनसीपी ने बीजेपी को बाहर से समर्थन देने का प्रस्ताव दिया। शरद पवार ने कहा था, "एक स्थायी सरकार के निर्माण के लिए और महाराष्ट्र के भले के लिए, हमारे पास सिर्फ़ एक ही विकल्प बचता है कि हम बीजेपी को समर्थन दें ताकि वो सरकार बना सकें।''

एनसीपी के समर्थन ने बीजेपी के लिए ना सिर्फ़ देश के सबसे अमीर राज्य में सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया बल्कि इससे शिव सेना पर भी दबाव बढ़ा और उसे राज्य की राजनीति में अपना स्थान तय करने के लिए सोचना पड़ा।

विशेषज्ञों का मानना है कि पवार के इस क़दम ने शिवसेना की योजना को झटका दिया और वो बीजेपी से मोलभाव करने की स्थिति में नहीं रह गई क्योंकि बीजेपी के पास अब शिवसेना से इतर एनसीपी का समर्थन, प्लान बी के तौर पर मौजूद था।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत बहुत से नेताओं ने उस समय कहा था कि शिवसेना से हाथ मिलाना प्राथमिकता होनी चाहिए थी ना की एक हारी हुई और दागी पार्टी एनसीपी से। एक लंबी बहस चली उसके बाद काफी मोलभाव हुआ और उसके बाद शिव सेना के दस सदस्य फडणवीस सरकार में शामिल हो गए।  

लेकिन अगर किसी को यह लगता है कि बीजेपी और एनसीपी के बीच का प्यार शिवसेना के साल 2014 में सरकार में शामिल हो जाने से ख़त्म हो गया था तो ऐसा बिल्कुल नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2015 में शरद पवार के बारामती घर भी गए थे।

सुप्रिया ने कहा था कि यह मुलाक़ात विकास पर आधारित थी। वह बारामती से सांसद हैं और शरद पवार की बिटिया भी।

इसके बाद साल 2016 में, मोदी एक अन्य कार्यक्रम के सिलसिले में पुणे में थे। जहां उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पवार की तारीफ़ की थी। उन्होंने कहा था, "मुझे यह कहने में या स्वीकार करने में ज़रा भी हिचकिचाहट नहीं है कि गुजरात में मेरे राजनीतिक जीवन के शुरुआती चरण में पवार ने ही मेरा हाथ पकड़कर मुझे चलना सिखाया था।''

लेकिन इसके बाद साल 2017 में स्थानीय चुनावों में जब एनसीपी को बीजेपी से करारी मात मिली तो उसी के बाद से समीकरण बदल गए।

एनसीपी ने उन चुनावों के बाद बीजेपी के साथ बेहद कड़ा रुख अपनाना शुरू कर दिया। सांप्रदायिक बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ने से लेकर, स्थिरता के लिए बीजेपी को समर्थन देने और अब फासीवादी बीजेपी की ख़िलाफ़त तक...एनसीपी ने यू-टर्न तो ले लिया है लेकिन अब उसके लिए अपने ही लिए फ़ैसलों का बचाव करना मुश्किल हो रहा है।

यू-टर्न लेने वाली एक अन्य पार्टी है- स्वाभिमानी किसान पार्टी। इसके संस्थापक और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने लंबे समय तक शरद पवार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। फिर इसके बाद वो 2014 में एनडीए में शामिल हो गए लेकिन 2017 में ही इसे छोड़ दिया। अब उनकी पार्टी एनसीपी की सहयोगी है। इस पार्टी का दक्षिणी महाराष्ट्र में दबदबा भी है।

शेट्टी से जब उनके यू-टर्न के बारे में बीबीसी कार्यक्रम के दौरान सवाल किया गया तो उनका कहना था "हमने ये कभी नहीं कहा कि एनसीपी के नेता संत हैं। लेकिन बीजेपी के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हमें उनका समर्थन चाहिए। शिवाजी ने सिखाया है कि अगर आपको मुगलों से लड़ना है तो आदिल शाह और कुतुब शाह का सहयोगी बनना होगा।''

शेट्टी अब पवार के सहयोगी हैं। वो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, "हम इस बात की उम्मीद नहीं करते हैं कि अगर एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बन गई तो राम राज्य आ जाएगा लेकिन कम से कम हमें इस बात की आज़ादी तो मिल जाएगी कि हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाएं।''

पुणे से बीजेपी के सांसद और पूर्व कबीना मंत्री गिरीश बापट का कहना है कि शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन निश्चित तौर पर हो जाएगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि शिवसेना वाजिब सीटों की मांग करेगी।

सीटों के बंटवारे को लेकर 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले दोनों भगवा पार्टियों के बीच गठबंधन टूट गया था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।

भाजपा और शिवसेना के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर गहन बातचीत चल रही है। बीजेपी ने सार्वजनिक रूप से शिवसेना को कुल सीटों का आधा देने का आश्वासन दिया था, लेकिन बीजेपी लोकसभा चुनावों में भारी जीत के बाद इससे मुकर रही है।