अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध

बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाक़े में दो लोगों की मौत, बांग्लादेश ने म्यांमार के राजदूत को तलब किया

बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाक़े में दो लोगों की मौत, बांग्लादेश ने म्यांमार के राजदूत को तलब किया

मंगलवार, 6 फरवरी 2024

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने सीमा पार से दागे गए मार्टार की वजह से हुई दो मौतों को लेकर म्यांमार के राजदूत को तलब किया है।

म्यांमार की सेना और विद्रोही गुटों के बीच बढ़े संघर्ष की वजह से बांग्लादेश के कुछ सीमावर्ती गाँवों में दहशत का माहौल बन गया है।

म्यांमार की सेना के कई और सैनिक भागकर बांग्लादेश चले गए हैं।  बांग्लादेश में म्यांमार से भागकर आए ऐसे नागरिकों और सैनिकों की संख्या बढ़कर 229 हो गई है।

अराकान विद्रोहियों ने कथित तौर पर सीमा पर कई ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया है।

मामला क्या है?

बांग्लादेश में सोमवार, 5 फरवरी 2024 की सुबह म्यांमार से दागी गई मोर्टार से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई थी।

बांग्लादेश से सटी 270 किलोमीटर लंबी म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों में नवंबर 2023 से ही हिंसक संघर्ष जारी है, जब विद्रोही अराकान आर्मी (एए) के लड़ाकों ने 2021 के तख्तापलट के बाद से चल रहे सीज़फायर को खत्म करने का ऐलान किया।

समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार म्यांमार की सीमा से सटे बांग्लादेश के गाँव में रहने वालों का कहना है कि वे इस संघर्ष की वजह से भय के माहौल में जी रहे हैं।

बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) ने मंगलवार, 6 फरवरी 2024 को कॉक्स बाज़ार ज़िले के उखिया में शरण मांगने वाले म्यांमार के बॉर्डर गार्ड पुलिस के सैनिक को हिरासत में लिया।

सहायता एजेंसी डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि उन्होंने रविवार, 4 फरवरी 2024 को हिंसक संघर्ष में घायल 17 लोगों का इलाज किया है।

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने सोमवार, 5 फरवरी 2024 को बताया कि सभी घायलों को गोली लगी थी। इनमें से दो की जान को ख़तरा था और पाँच गंभीर रूप से घायल थे।

स्थानीय पुलिस चीफ़ अब्दुल मन्नान ने कहा कि 48 वर्षीया बांग्लादेशी महिला, जिनका नाम हुस्ने आरा था, उनकी सोमवार, 5 फरवरी 2024 को मौत हो गई। उनके अलावा एक अज्ञात रोहिंग्या शख्स की भी सोमवार, 5 फरवरी 2024 की दोपहर को मौत हुई है।

हुस्ने आरा की बहू ने कहा, "वे लोग किचन में बैठे थे..जब अचानक मोर्टार आकर गिरा। वह उस रोहिंग्या शख्स को खाना परोस रही थीं। उस शख्स को हमने अपने खेत की देखरेख के लिए काम पर रखा था।''

अमेरिका ने भारत के साथ चार अरब डॉलर के ड्रोन समझौते को मंज़ूरी दी

अमेरिका ने भारत के साथ चार अरब डॉलर के ड्रोन समझौते को मंज़ूरी दी
 
शुक्रवार, 2 फरवरी 2024

भारत को 31 अत्याधुनिक हथियारबंद ड्रोन देने के चार अरब डॉलर के समझौते को अमेरिकी विदेश विभाग ने मंज़ूरी दे दी है।

जून 2023 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी यात्रा के दौरान एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन के समझौते की घोषणा हुई थी।

अमेरिका में एक भारतीय की हत्या की कथित साज़िश की जांच के कारण सीनेट कमेटी ने दिसम्बर 2023 में इस समझौते पर रोक लगा दी थी।

अब इस समझौते को अमेरिकी कांग्रेस ने मंज़ूरी दे दी है।

पेंटागन ने कहा कि इस समझौते में 31 हथियारबंद एमक्यू-9बी स्काईगार्डियन ड्रोन, 170 एजीएएम-114आर हेलफ़ायर मिसाइलें और 310 छोटे व्यास वाले बम, कम्युनिकेशन और सर्विलांस उपकरण और प्रिसीशन ग्लाइड बम की बिक्री शामिल है।

इस समझौते का प्रमुख कॉन्ट्रैक्टर जनरल एटोमिक्स एरोनॉटिक्स सिस्टम्स होगा।

समाचार एजंसी रॉयटर्स के अनुसार, सीनेटर बेन कार्डिन ने कहा कि अमेरिकी सरकार द्वारा गुरपतवंत सिंह पन्नू हत्या की साज़िश की पूरी जांच करने पर सहमति के बाद ही इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया।

सीनेटर बेन कार्डिन ने बताया, "बाइडेन प्रशासन ने मांग की है कि अमेरिकी धरती पर साज़िश को लेकर जांच और जवाबदेही तय होनी चाहिए और इस तरह की गतिविधियों को लेकर भारत में भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।''

साल 2023 में अमेरिका ने भारत सरकार पर, खालिस्तान का समर्थन करने वाले एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की साज़िश रचने का आरोप लगाया था।

गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को पेंटागन ने कहा कि "अमेरिका-भारत रणनीतिक रिश्ते को मजबूत करने के लिए, भारत के साथ प्रस्तावित यह ड्रोन समझौता अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों में मदद करेगा।''

इसराइल की ग़ज़ा नीति के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के सैकड़ों ब्यूरोक्रेट्स

इसराइल की ग़ज़ा नीति के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के सैकड़ों ब्यूरोक्रेट्स

शुक्रवार, 2 फरवरी 2024

अमेरिका और यूरोप में काम कर रहे सैकड़ों अधिकारियों ने एक साझा बयान में अपनी-अपनी सरकारों को इसराइल की ग़ज़ा नीति को लेकर आगाह किया है।

उनका कहना है कि इसराइल की ग़ज़ा नीति से अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन हो सकता है। इस साझा बयान पर अमेरिका और यूरोप के 800 से अधिक सेवारत अधिकारियों ने अपने दस्तखत किए हैं।

बयान में कहा गया है कि "इस सदी की सबसे भीषण मानवीय तबाही में शामिल होने का जोख़िम उनकी सरकारों ने उठाया है और उनकी विशेषज्ञ सलाह को दरकिनार कर दिया गया।''

पश्चिम में इसराइल के कुछ प्रमुख सहयोगी देशों की सरकारों में उसे लेकर बड़े स्तर पर असंतोष के ये ताज़ा संकेत हैं। इस बयान पर दस्तख़त करने वाले एक व्यक्ति अमेरिकी सरकार में काम कर रहे हैं।

उनके पास राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने का 25 साल से अधिक समय का अनुभव रहा है। उन्होंने बीबीसी को बताया कि उनकी चिंताएं लगातार खारिज कर दी गईं।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर उन्होंने कहा, "जो लोग उस क्षेत्र को और उसकी स्थितियों को समझते हैं, उनकी आवाज़ों को अनसुना किया जा रहा है। जो हो रहा है, अगर हम उसे नहीं रोक पा रहे हैं तो हम कैसे अलग हैं।  हम इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। ये किसी अन्य हालात से पूरी तरह से अलग है।''

इस ट्रांसअटलांटिक स्टेटमेंट पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी समेत यूरोप के 11 देशों के नौकरशाहों ने दस्तखत किए हैं।

उनके साझा बयान में कहा गया है कि ग़ज़ा में अपने मिलिट्री ऑपरेशंस में इसराइल ने किसी मर्यादा का पालन नहीं किया है। इस वजह से वहां हज़ारों आम लोगों की मौत हुई है जिसे रोका जा सकता था। वो जानबूझकर ग़ज़ा में सहायता सामाग्री पहुंचने से रोक रहा है। इससे बड़े पैमाने पर लोगों के भुखमरी का शिकार होने का ख़तरा मंडराने लगा है।

क्या ग़ज़ा में जनसंहार मामले में आईसीजे का आदेश इसराइल मानेगा?

क्या ग़ज़ा में जनसंहार मामले में आईसीजे का आदेश इसराइल मानेगा?

शनिवार, 27 जनवरी 2024

दक्षिण अफ़्रीका की ओर से इसराइल पर जनसंहार के आरोप में किए गए मुक़दमे पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को तुरंत कुछ क़दम उठाने का आदेश दिया है।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल से कहा है कि वह ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों को हो रहे किसी भी तरह के नुक़सान को तुरंत रोके।

यह आदेश दक्षिण अफ़्रीका या फ़लस्तीनियों के लिए पूरी जीत नहीं माना जा सकता, क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को युद्धविराम करने या सैन्य अभियान रोकने का आदेश नहीं दिया है।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इस बात को स्वीकार किया कि ग़ज़ा में हालात 'विनाशकारी' हैं और ये 'और भयंकर रूप से बिगड़ सकते हैं'।

जनसंहार के जिन आरोपों पर यह मुक़दमा चल रहा है, उन पर अंतिम फ़ैसला सुनाए जाने की प्रक्रिया में कई साल लग सकते हैं।

इस वजह से, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को कुछ क़दम उठाने को कहा है। इनमें से ज़्यादातर क़दम दक्षिण अफ़्रीका की ओर से रखी गई नौ मांगों के अनुरूप हैं।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के 17 जजों की बेंच ने बहुमत से आदेश दिया कि इसराइल को फ़लस्तीनियों को मौत और गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइली राष्ट्रपति और इसराइली रक्षा मंत्री की बातों का उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि इसराइल को जनसंहार के लिए सार्वजनिक तौर पर "उकसावा देने से रोकने" और "ऐसा करने वालों" को सज़ा देने के लिए और प्रयास करने चाहिए।

साथ ही, इसराइल को ग़ज़ा में मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए त्वरित और प्रभावी क़दम उठाने के लिए भी कहा गया है।

भले ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने युद्धविराम के लिए नहीं कहा, मगर उसने इसराइल के सामने जो मांगें रखी हैं, अगर उन पर अमल किया जाता है तो ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियान की प्रकृति में बड़े बदलाव आएंगे।

इसराइल खुद पर लगे जनसंहार के आरोपों को यह करते हुए खारिज करता है कि आम फ़लस्तीनियों को जो नुक़सान पहुंच रहा है, उसके लिए फ़लस्तीनी चरमपंथी समूह हमास ज़िम्मेदार है।

इसराइल कहता है कि हमास ग़ज़ा के घनी आबादी वाले कस्बों और शरणार्थी शिविरों के नीचे (सुरंगों से) से काम करता है, जिस वजह से इसराइल के लिए आम लोगों की मौत को रोक पाना लगभग असंभव है।

इसराइल का ये भी कहना है कि लोगों को ख़तरे से बचाने और उन्हें आगाह करने के लिए बहुत कुछ किया गया है। इसराइल के लगभग सभी यहूदी नागरिकों का मानना है कि इसराइली सेना दुनिया की सबसे नैतिक सेना है। जो सही नहीं है। इसराइली सेना को दुनिया की सबसे नैतिक सेना कहना गलत होगा।

सात अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक, इसराइल के हमले के कारण 23 लाख आबादी वाले ग़ज़ा की 85 फ़ीसदी आबादी विस्थापित हो चुकी है।

जंग से बचकर भाग रहे लोगों को पहले ही क्षमता से ज़्यादा भरे गए शिविरों में शरण लेनी पड़ रही है। ऊपर से वहां स्वास्थ्य सुविधाओं और ज़रूरी चीज़ों की भी गंभीर किल्लत पैदा हो गई है।

क्या इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का आदेश मानेगा?

सबसे बड़ा सवाल कि इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का आदेश मानेगा? इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि 'हमास के ख़ात्मे तक सैन्य कार्रवाई जारी रहेगी'।

जैसे ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की अमेरिकी अध्यक्ष और 17 जजों के बेंच का नेतृत्व कर रही जज जोन डॉनोह्यू ने बोलना शुरू किया, यह स्पष्ट हो गया कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का ध्यान ग़ज़ा के लोगों के कष्टों पर है और इसराइल इस केस को ख़त्म करने की कोशिश में नाकाम रहा है।

जज जोन डॉनोह्यू ने संक्षेप में बताया कि ग़ज़ा में रह रहे फ़लस्तीनी क्या अनुभव कर रहे हैं। जज जोन डॉनोह्यू ने वहां के बच्चों की पीड़ा बयां की और कहा कि ये 'दिल तोड़ने वाली' है।

हालांकि जनसंहार के आरोप को लेकर ये इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का अंतिम फ़ैसला नहीं है। हो सकता है इस बारे में फ़ैसला आने में कई साल का वक्त लग जाएं।

लेकिन जिन क़दमों को उठाने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने कहा है, वे ऐसे हैं जिनसे ग़ज़ा के फ़लस्तीनियों को कुछ सुरक्षा मिल सकती है।

अब इसराइल को तय करना है कि इस पर उसे क्या करना है? इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फ़ैसले बाध्यकारी तो होते हैं, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे उन्हें लागू करवाया जा सके।

ऐसे में, हो सकता है कि इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फ़ैसले को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दे।

राजयनिक स्तर पर पहले से ही दो महीने के युद्धविराम के लिए कोशिशें चल रही हैं और आने वाले समय में ग़ज़ा में मदद पहुंचाने के काम में भी तेज़ी आ सकती है।

ऐसे में इसराइल कह सकता है कि वह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की मांगों के आधार पर पहले से ही क़दम उठा रहा है।

अगर स्थिति सुधरी, जिसकी फ़िलहाल आसार नहीं दिख रहे, तो भी इसराइल पर जनसंहार का आरोप बना रहेगा, क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने पाया है कि यह मामला अहम है जिस पर सुनवाई होनी चाहिए।

इसराइल एक ऐसा देश है, जिसका जन्म जनसंहार के सबसे ख़राब उदाहरणों में से एक के कारण हुआ था।

जब तक इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस दक्षिण अफ़्रीका की ओर से दायर मुक़दमे में अंतिम फ़ैसला नहीं सुना देता, तब तक इसराइल को जनसंहार के आरोप के साये में ही रहना होगा।

ग़ज़ा में जारी इसराइली हमले पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल से क्या कहा?

ग़ज़ा में जारी इसराइली हमले पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल से क्या कहा?

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल के ख़िलाफ़ ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ नरसंहार करने के आरोपों पर शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 को आदेश जारी किया है।

दक्षिण अफ़्रीका ने पिछले साल 29 दिसंबर 2023 को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में इसराइल के ख़िलाफ़ अपील दायर की थी।

इस मामले पर पिछले कुछ दिनों से सुनवाई जारी थी।

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 को आईसीजे ने इस मामले में अपना आदेश जारी कर दिया।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि इसराइल इस संघर्ष में फ़लस्तीनियों को नुकसान से बचाने की दिशा में हर संभव प्रयास करे।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने कहा है कि इसराइल ये सुनिश्चित करे कि इसराइली सेना जेनोसाइड के तहत आने वाली गतिविधियों को अंजाम न दे।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने कहा है कि इसराइल ग़ज़ा में नरसंहार के लिए उकसाने की श्रेणी में आने वाले किसी भी सार्वजनिक बयान को रोके और उस पर सज़ा तय करे।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फैसले पर दक्षिण अफ़्रीका ने ख़ुशी जताई, इसराइल ने क्या कहा?

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की ओर से आए इस फ़ैसले पर दक्षिण अफ़्रीकी वकीलों ने ख़ुशी ज़ाहिर की है।

दक्षिण अफ़्रीका की विदेश मंत्री नालेदी पंडोर ने कहा है कि ''मैं चाहती थी कि इस आदेश में विराम शब्द शामिल हो। लेकिन जो दिशा निर्देश दिए गए हैं, उनसे संतुष्ट हूं।''

एक पत्रकार ने दक्षिण अफ़्रीका की नालेदी पंडोर से पूछा कि क्या उन्हें उम्मीद है कि इसराइल इस आदेश का पालन करेगा?

इस पर नालेदी पंडोर ने कहा कि उन्हें कभी इसकी उम्मीद नहीं थी कि ऐसा संभव होगा।

वहीं, इसराइली प्रधानमंत्री नेतान्याहू के शीर्ष सलाहकार मार्क रेगेव ने कहा है कि दक्षिण अफ़्रीका अपने उद्देश्य हासिल करने में सफल नहीं हुआ।

बीबीसी के इंटरनेशनल एडिटर जेरेमी वोबेन के मुताबिक़, जज ने जो कहा है वो दक्षिण अफ़्रीकी वकीलों के लिए जीत जैसा है और इसराइल के लिए हार जैसा है।

जेरेमी वोबेन ने लिखा है - 'जज ने ऐसा नहीं कहा कि आपको संघर्ष विराम करना होगा क्योंकि इंटरनेशनल ह्यमैनेटेरियन लॉ के तहत सही परिस्थितियों और सही लीगल फ्रेमवर्क में युद्ध को क़ानूनी स्वीकार्यता हासिल है. लेकिन जज ने जो कहा है, उसका मतलब ये है कि इन दिशानिर्देशों के तहत इसराइल को अपने युद्ध लड़ने के ढंग में बड़ा बदलाव करना होगा।'

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, वेस्ट बैंक पर शासन करने वाले फ़लस्तीनी प्राधिकरण के फ़लस्तीनी मंत्री रियाद अल-मलिकी ने इस फ़ैसले पर ख़ुशी जताई है।

रियाद अल-मलिकी ने कहा है कि आईसीजे के जजों ने क़ानून और तथ्यों की पड़ताल करते हुए अंतरराष्ट्रीय क़ानून और मानवता के पक्ष में फैसला सुनाया है।

दक्षिण अफ़्रीका ने इसराइल पर क्या आरोप लगाए थे?

दक्षिण अफ्रीका ने आईसीजे में दायर 84 पन्नों की अपनी अपील में कहा था कि इसराइल की कार्रवाई की प्रकृति जनसंहार की है क्योंकि उनकी मंशा ग़ज़ा में फ़लस्तीनी लोगों की अधिक से अधिक तबाही है।

इसमें कहा गया था कि जनसंहार की कार्रवाई में फ़लस्तीनी लोगों की हत्या, गंभीर मानसिक और शारीरिक क्षति पहुंचाना और ऐसे हालात पैदा करना शामिल है, जिसका उद्देश्य "सामूहिक रूप से उनकी तबाही है।

आईसीजे में दायर अपील के अनुसार, इसराइली अधिकारियों के बयानों में भी जनसंहार की मंशा झलकती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ ऑस्ट्रेलिया में क़ानून की लेक्चरर जूलियट एम के मुताबिक़, दक्षिण अफ़्रीका की याचिका 'बहुत व्यापक' और 'बहुत ध्यान से लिखी' गई थी।

नरसंहार क्या होता है?

इस शब्द को साल 1943 में यहूदी पोलिश (पोलैंड से जुड़े) वकील राफ़ेल लेमकिन ने इज़ाद किया था। उन्होंने ग्रीक शब्द जेनोस, जिसका अर्थ नस्ल या कबीले से होता है, को लैटिन शब्द साइड (हत्या) से जोड़ा था।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों के सामूहिक नरसंहार की बर्बरता देखकर डॉ लेमकिन ने अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत जेनोसाइड को अपराध ठहराने के लिए अभियान चलाया।

होलोकॉस्ट में डॉ लेमकिन के भाई को छोड़कर उनके परिवार के हर सदस्य की मौत हो गयी थी।

डॉ लेमकिन के प्रयासों के चलते दिसंबर 1948 में यूनाइटेड नेशंस जेनोसाइड कन्वेंशन को स्वीकार किया गया जो जनवरी 1951 से अमल में आया।

यूनाइटेड नेशंस जेनोसाइड कन्वेंशन के आर्टिकल - 2 में राष्ट्रीय, नस्लीय, सांस्कृतिक या धार्मिक समूह को आंशिक या पूरी तरह नष्ट करने के इरादे से किए गए इन कार्यों को जेनोसाइड के रूप में परिभाषित किया गया है -

- एक समूह के सदस्यों को मारना।
- एक समूह के सदस्यों को गंभीर शारीरिक और मानसिक नुकसान पहुंचाना।
- किसी समूह को जानबूझकर ऐसी स्थितियों में जीने के लिए मजबूर किया जाना जिससे उनका आंशिक या समूल शारीरिक नुकसान हो।
- ऐसे कदम उठाना जिनका मकसद किसी समूह में बच्चों को जन्म लेने से रोकना हो।
- किसी एक समूह के बच्चों को दूसरे समूह में जबरन भेजा जाना।                   
- कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले सभी सदस्य देशों की ये सामान्य ज़िम्मेदारी है कि वे जेनोसाइड को होने से रोकें और ऐसा करने वालों को सज़ा दें।

इसराइल पर ग़ज़ा में जनसंहार का मुकदमा, इंटरनेशनल कोर्ट ने क्या कहा?

इसराइल पर ग़ज़ा में जनसंहार का मुकदमा, इंटरनेशनल कोर्ट ने क्या कहा?

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 को नीदरलैंड्स के हेग में मौजूद इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में इसराइल के ख़िलाफ़ ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ नरसंहार करने के आरोपों की सुनवाई हुई ।

ये मुकदमा दक्षिण अफ़्रीका ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में दायर किया था।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने दक्षिण अफ़्रीका की तरफ़ से प्रस्तावित नौ आपात कदमों पर विचार किया। लेकिन वो दक्षिण अफ़्रीका के इसराइल पर जनसंहार के आरोपों पर विचार नहीं करेगी। इसराइल इन आरोपों से इनकार करता रहा है।

अदालत ने जिन प्रस्तावित कदमों पर विचार किया, उनमें इसराइल का ग़ज़ा में तत्काल सैन्य अभियान निलंबित किया जाना शामिल है।

जज जोआन डोनोगाउ ने कहा कि अदालत लोगों की मौतों और पीड़ा को लेकर 'गंभीर रूप से चिंतित' है।

जज जोआन डोनोगाउ ने कहा कि मौजूदा मामले का दायरा सीमित है।

जज ने सुनवाई के दौरान हमास के इसराइल पर सात अक्टूबर 2023 को हुए हमले का भी ज़िक्र किया। जज ने कहा कि इसराइल पर लगे कुछ आरोप जेनोसाइड कन्वेंशन के प्रावधानों के अंदर हैं।

जज ने कहा कि जेनोसाइड कन्वेंशन में शामिल कोई भी पार्टी दूसरे देश के ख़िलाफ़ मामला दायर कर सकता है इसलिए दक्षिण अफ्ऱीका के पास ये मुकदमा दायर करने का कानूनी आधार है।

सुनवाई के दौरान जज ने संयुक्त राष्ट्र आपत राहत कॉर्डिनेटर मार्टिन ग्रिफिथ्स का बयान भी कोट किया कि 'ग़ज़ा मौत और निराशा का प्रयाय बन चुका है।''

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के बाहर इसराइली और फ़लस्तीनी समर्थक भी जमा हुए हैं।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में 11 जनवरी 2024 से इसराइल के ख़िलाफ़ दर्ज मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई थी।

दक्षिण अफ़्रीका का इसराइल पर जनसंहार का आरोप

दक्षिण अफ्रीका ने 84 पृष्ठों की एक अपील इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि इसराइल की कार्रवाई की प्रकृति जनसंहार की है क्योंकि उनकी मंशा, ग़ज़ा में फ़लस्तीनी लोगों की अधिक से अधिक तबाही है।

इसमें कहा गया है कि जनसंहार की कार्रवाई में फ़लस्तीनी लोगों की हत्या, गंभीर मानसिक और शारीरिक क्षति पहुंचाना और ऐसे हालात पैदा करना शामिल है, जिसका उद्देश्य "सामूहिक रूप से उनकी तबाही है।''

आईसीजे में दायर अपील के अनुसार, इसराइली अधिकारियों के बयानों में भी जनसंहार की मंशा झलकती है।

इसराइल ने जनसंहार के आरोप पर क्या कहा था?

इसराइली क़ानूनी सलाहकार ताल बेकर ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में कहा कि दक्षिण अफ़्रीका सच को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है, वो इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष के बारे में "सच से परे व्यापक विवरण पेश कर रहा है।''

12 जनवरी 2024 को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में अपनी दलील शुरू करते हुए ताल बेकर ने ये स्वीकार किया कि ग़ज़ा में आम नागरिक जो कष्ट झेल रहे हैं वो "त्रासदी'' है।

हालांकि ताल बेकर ने ये भी कहा कि फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास "इसराइल और फ़लस्तीनियों को हो रहे नुक़सान को बढ़ाना" चाहता है जबकि "इसराइल इसे कम करना चाहता है''।

ताल बेकर ने कहा, "ये दुख की बात है कि दक्षिण अफ़्रीका ने कोर्ट के सामने बेहद तोड़-मरोड़ कर तथ्यात्मक और क़ानूनी तस्वीर को पेश किया है। ये पूरा मामला मौजूदा संघर्ष की हकीकत के संदर्भ से हटकर और जोड़-तोड़ वाले विवरण के आधार पर जानबूझकर बनाया गया है।''

इसराइल पर जनसंहार का मुकदमा, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने फैसले में क्या कहा?

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

इसराइल के हमले झेल रहे ग़ज़ा में तत्काल संघर्ष विराम करने के दक्षिण अफ़्रीका के आग्रह पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी आईसीजे ने सहमति नहीं जताई है।

ये कुछ ऐसा है जिससे दक्षिण अफ़्रीका और फ़लस्तीनी लोगों को निराशा हो सकती है।

हालांकि, सुनवाई कर रहे 17 जजों में से ज़्यादातर ने ये कहा कि इसराइल को अपनी क्षमता के अनुसार हर वो चीज करनी चाहिए जिससे फ़लस्तीनी लोगों की मौतों, शारीरिक या मानसिक तौर पर क्षति पहुंचाने से बचाया जा सके।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने ये भी कहा कि इसराइल को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जो फ़लस्तीनी महिलाओं को बच्चों को जन्म देने में बाधा पहुंचाता हो।

जनसंहार पर अदालत का ये अंतिम फ़ैसला नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस बारे में निर्णय लेने में कई साल लगेंगे। इसराइल को अब इस पर निर्णय लेना है।

आईसीजे के फ़ैसले बाध्यकारी तो हैं लेकिन इसको लागू करने वाले के लिए कोई व्यवस्थित सिस्टम नहीं है। संघर्षविराम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक प्रयास जारी हैं।

ग़ज़ा में मानवीय सहायता पहुंचाने को और बेहतर करने के भी प्रयास हो रहे हैं तो ऐसे में इसराइल अदालत के सामने ये तर्क रख सकता है कि वो अदालत की मांगों पर तो पहले से ही कदम उठा रहा है।

पाकिस्तान के दो नागरिकों की हत्या करवाने के आरोपों पर भारत ने क्या कहा?

पाकिस्तान के दो नागरिकों की हत्या करवाने के आरोपों पर भारत ने क्या कहा?

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या करवाने के पाकिस्तान के आरोपों पर भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया दी है।

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "हमने पाकिस्तान के विदेश सचिव की ओर से दिए बयान पर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स देखी हैं। ये भारत विरोधी झूठा प्रोपेगेंडा चलाने का पाकिस्तान का नया प्रयास है।''

दरअसल, इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश सचिव मोहम्मद साइरस सज्जाद क़ाज़ी ने गुरुवार, 25 जनवरी 2024 को कहा कि सियालकोट और रावलकोट में दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या में भारतीय एजेंटों के शामिल होने के 'पुख़्ता सबूत' हैं।

इस पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "दुनिया जैसा कि जानती ही है कि पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद, संगठित अपराध और अवैध गतिविधियों का गढ़ रहा है।

बयान में कहा गया, "भारत और कई अन्य देशों ने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान को चेताया है कि इस आतंकवाद और हिंसा की अपनी प्रकृति का शिकार वह खुद होगा। पाकिस्तान वही काटेगा, जो उसने बोया है।  अपने गलत कामों के लिए दूसरों पर आरोप मढना न तो जायज़ है और न ही ये समाधान है।''

पाकिस्तान का दावा भारतीय एजेंटों ने की थी शाहिद लतीफ़ और मोहम्मद रियाज़ की हत्या

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

पाकिस्तान ने भारत पर पाकिस्तानी क्षेत्र में दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या करवाने का आरोप लगाया है।

इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश सचिव मोहम्मद साइरस सज्जाद क़ाज़ी ने गुरुवार, 25 जनवरी 2024 को कहा कि सियालकोट और रावलकोट में दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या में भारतीय एजेंटों के शामिल होने के 'पुख़्ता सबूत' हैं।

पाकिस्तान ने इन मामलों को सुपारी देकर हत्या करवाने का मामला बताया है।

पाकिस्तान के विदेश सचिव मोहम्मद साइरस सज्जाद क़ाज़ी ने आरोप लगाया, "11 अक्टूबर 2023 को शाहिद लतीफ़ नाम के व्यक्ति की हत्या सियालकोट में एक मस्जिद के बाहर कर दी गई। योगेश कुमार नाम के एक भारतीय एजेंट ने इस हत्या का षडयंत्र रचा, वो किसी तीसरे देश में रह रहा है। उसने मोहम्मद उमेर नाम के एक व्यक्ति को हायर किया।''

शाहिद लतीफ़ को भारत में पठानकोट हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है।

साल 2016 में पठानकोट में हुए आतंकवादी हमले में सात भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी। हमले में शामिल सभी आतंकवादी भी मारे गए थे।

पाकिस्तानी विदेश सचिव ने दावा किया कि मोहम्मद उमर ने पांच लोगों की टीम बनाई और पहली बार में वो फेल रहे लेकिन 11 अक्टूबर 2023 को उन्होंने लतीफ़ की हत्या कर दी।

क़ाज़ी ने बताया कि 12 अक्टूबर 2023 को मोहम्मद उमेर को गिरफ्त़ार कर लिया गया, वो पाकिस्तान से फरार होने की कोशिश में था।

पाकिस्तान के विदेश सचिव ने आरोप लगाया कि दूसरी हत्या मोहम्मद रियाज़ नाम के व्यक्ति की हुई।

मोहम्मद रियाज़ एक कश्मीरी आतंकवादी थे जिनकी पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के रावलकोट में 8 सितंबर 2023 को एक मस्जिद में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मोहम्मद रियाज़ को अबु कासिम कश्मीरी के नाम से भी जाना जाता था।

पाकिस्तान ने दावा किया है कि सुरक्षा अधिकारियों ने मोहम्मद अब्दुल्ला अली नाम के आरोपी को 15 सितंबर 2023 को गिरफ्तार कर लिया।

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि मोहम्मद अब्दुल्ला अली को भी जिन्ना अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से गिरफ़्तार किया गया और पूछताछ के दौरान पता चला कि भारतीय एजेंट अशोक कुमार आनंद और योगेश कुमार इसमें शामिल था।

पाकिस्तान ने कहा है कि इस तरह के और भी मामले हैं, जिनकी जांच जारी है।

मालदीव और चीन ने पर्यटन सहयोग सहित 20 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए

मालदीव और चीन ने पर्यटन सहयोग सहित 20 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए

बुधवार, 10 जनवरी 2024

भारत और मालदीव के बीच चल रहे राजनयिक तनाव के बीच बुधवार, 10 जनवरी 2024 को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू के साथ बैठक की और इसके बाद दोनों देशों ने पर्यटन सहयोग सहित 20 "प्रमुख" समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।

दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को और व्यापक करने की घोषणा की।

इस बैठक को लेकर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने कहा कि वह चीन में अपने पहले आधिकारिक दौरे को लेकर सम्मानित महसूस कर रहे हैं और उन्हें खुशी है कि वो चीन के लिए इस साल के पहले विदेशी राजनीतिक मेहमान हैं।

मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय ने एक्स पर लिखा, "आज मालदीव सरकार और चीन सरकार के बीच 20 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और ये दोनों राष्ट्रपतियों की मौजूदगी में हुआ।''

जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए है उसमें टूरिज़्म कोऑपरेशन, ब्लू इकॉनमी, आपदा प्रबंधन, डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश को मजबूत करना शामिल है। इसके साथ ही चीन मालदीव को अनुदान सहायता भी देगा, लेकिन वो रकम कितनी होगी इसकी जानकारी नहीं दी गयी है।

इसके अलावा समझौतों में चीन के बेल्ट एंड रोड पहल के ज़रिए निर्माण के कामों में तेज़ी लाना, फुशीदिग्गारु फाल्हू पर आवास परियोजना, फिशरी के उत्पादों के कारखाने बनाना, माले और विलीमाले में सड़क विकास परियोजनाओं का पुन: विकास करना भी शामिल है।

चीन की सिन्हुआ न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक़, शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया कि चीन मालदीव का सम्मान और समर्थन करता है और वो मालदीव के राष्ट्रीय हित में किए जा रहे विकास के एजेंडे में उनकी मदद करेगा। साथ ही चीन राष्ट्रीय संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा करने में मालदीव के साथ दृढ़ता से खड़ा है।

भारत-मालदीव विवाद

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू चीन का पांच दिवसीय दौरा ऐसे समय कर रहे हैं जब भारत और मालदीव के बीच राजनयिक विवाद पैदा हो गया है।

दरअसल बीते दिनों मालदीव के दो मंत्रियों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की। इसके बाद सोमवार, 8 जनवरी 2024 को राजनयिक स्तर पर दोनों देशों के अधिकारियों को तलब किया गया।

भारत में मालदीव के उच्चायुक्त इब्राहिम साहिब को तलब किया गया।  मालदीव में भारत के उच्चायुक्त मुनु महावर ने माले में एंबेसडर एट लार्ज नसीर मोहम्मद से मुलाक़ात की।

मुइज़्ज़ू सरकार ने तीन डिप्टी मंत्रियों को उनके सोशल मीडिया पर किए गए अपमानजनक पोस्ट के लिए सस्पेंड कर दिया है।

मंगलवार, 9 जनवरी 2024 को मुइज़्ज़ू ने चीन में कहा था कि चीन कोविड महामारी से पहले मालदीव के पर्यटन के मामले में सबसे बड़ा देश था और उसे वापस ये जगह लेने की 'कोशिशें तेज़ कर देनी चाहिए'।

इस समय पर्यटन के लिहाज से सबसे ज्यादा भारतीय पर्यटक मालदीव जाते हैं।

राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने शी जिनपिंग से मुलाक़ात के बाद क्या कहा?

राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने शी जिनपिंग से मुलाक़ात के बाद क्या कहा?

बुधवार, 10 जनवरी 2024

भारत के साथ राजनयिक विवाद के बीच मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की  मुलाकात और बातचीत हुई है।

राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू का रेड कारपेट पर स्वागत किया गया और 21 तोपों की सलामी दी गई।

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने दोनों नेताओं के बीच हुई बैठक के बारे में जानकारी देते हुए लिखा है, ''दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने की घोषणा की है।''

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, "नई परिस्थितियों में, चीन-मालदीव संबंधों को पिछली उपलब्धियों से और आगे बढ़ाने का ऐतिहासिक अवसर मिला है।''

वहीं मुइज़्ज़ू ने कहा कि वह कई महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्रियों के साथ चीन की अपनी पहली राजकीय यात्रा करने और इस वर्ष चीन की मेज़बानी करने वाले पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष बनने पर सम्मानित महसूस कर रहे हैं, जो पूरी तरह से दर्शाता है कि दोनों पक्ष द्विपक्षीय संबंधों के विकास को कितना महत्व देते हैं।

राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू चीन के पांच दिवसीय राजकीय दौरे पर हैं।

इसराइली सेना शरणार्थी शिविरों की ओर बढ़ी, 1.5 लाख फ़लस्तीनियों ने सेंट्रल ग़ज़ा छोड़ा

इसराइली सेना शरणार्थी शिविरों की ओर बढ़ी, 1.5 लाख फ़लस्तीनियों ने सेंट्रल ग़ज़ा छोड़ा

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि ग़ज़ा पट्टी में स्थित शरणार्थी शिविरों की ओर इसराइली सेना के बढ़ने के कारण क़रीब 1.5 लाख फ़लस्तीनियों को सेंट्रल ग़ज़ा छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ा है।

प्रत्यक्षदर्शियों और हमास के हथियारबंद धड़े ने बताया है कि इसराइली सेना के टैंक बुरेज शिविर की पूर्वी छोर पर पहुंच गए हैं।

इसराइली सेना ने हाल में बुरेज के साथ नुसीरत और मग़ाज़ी शिविरों को निशाना बनाते हुए आक्रामक अभियान की शुरुआत की।

हमास संचालित ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार, 28 दिसंबर 2023 को दावा किया कि इसराइल की गोलीबारी में कई दर्ज़न लोग मारे गए।

उधर मिस्र ने बताया है कि उसने युद्धविराम का लक्ष्य रखते हुए तीन चरणों वाला एक प्रस्ताव पेश किया है।

हमास का एक प्रतिनिधिमंडल इस प्रस्ताव का उत्तर देने के लिए मिस्र की राजधानी काहिरा पहुंच गया है।

इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने गुरुवार, 28 दिसंबर 2023 को जारी एक रिपोर्ट में इसराइल पर कई आरोप लगाए।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसराइली बस्तियों के हथियारबंद बाशिंदों की ओर से हो रहे हमलों में उछाल के कारण फ़लस्तीन के चरवाहा समुदाय का बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है। आवागमन को लेकर जारी भेदभावपूर्ण प्रतिबंध से लोगों की रोज़ाना की ज़िंदगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है।  

इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने इसराइल से वेस्ट बैंक में फ़लस्तीनी नागरिकों की 'ग़ैरक़ानूनी हत्याओं' को रोकने का आग्रह किया।