विज्ञान और टेक्नोलॉजी

रूस की कोरोना वैक्सीन पर वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने सतर्क किया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंगलवार को रूस की वैक्सीन को लेकर संदेह जताया है। रूस अक्टूबर महीने से कोरोना वायरस की वैक्सीन का उत्पादन शुरू करने जा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि वैक्सीन उत्पादन के लिए कई गाइडलाइन्स बनाई गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर से यूएन प्रेस ब्रीफिंग के दौरान पूछा गया कि अगर किसी वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल किए बगैर ही उसके उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी कर दिया जाता है तो क्या संगठन इसे ख़तरनाक मानेगा?

रूस के स्वास्थ्य मंत्री ने शनिवार को कहा था कि उनका देश अक्टूबर महीने से कोविड-19 के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर वैक्सीन कैंपेन शुरू करने की तैयारी कर रहा है।

रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिख़ाइल मुराश्को ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा था कि वैक्सीन की कोई फीस नहीं ली जाएगी और सबसे पहले इसे डॉक्टर्स और अध्यापकों को दिया जाएगा।

रूसी स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि उत्पादन के साथ-साथ वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल भी जारी रहेगा और इसे बेहतर बनाने की कोशिश की जाएगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने कहा, ''जब भी ऐसी ख़बरें आएं या ऐसे क़दम उठाए जाएं तो हमें सावधान रहना होगा। ऐसी ख़बरों के तथ्यों की जांच सतर्कता के साथ की जानी चाहिए।''

क्रिस्टियन लिंडमियर ने कहा, ''कई बार ऐसा होता है कि कुछ शोधकर्ता दावा करते हैं कि उन्होंने कोई खोज कर ली है जो कि वाक़ई बहुत अच्छी ख़बर होती है। लेकिन कुछ खोजने या वैक्सीन के असरदार होने के संकेत मिलने और क्लीनिकल ट्रायल के सभी चरणों से गुजरने में बहुत बड़ा फ़र्क़ होता है। हमने आधिकारिक तौर पर ऐसा कुछ नहीं देखा है। अगर आधिकारिक तौर पर कुछ होता तो यूरोप के हमारे दफ़्तर के सहयोगी ज़रूर इस पर ध्यान देते।''

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता ने कहा, ''एक सुरक्षित वैक्सीन बनाने को लेकर कई नियम बनाए गए हैं और इसे लेकर गाइडलाइन्स भी हैं। इनका पालन किया जाना ज़रूरी है ताकि हम जान सकें कि वैक्सीन या कोई भी इलाज किस पर असरदार है और किस बीमारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद कर सकती है।''

उन्होंने कहा, ''गाइडलाइन का पालन करने से हमें ये भी पता चलता है कि क्या किसी इलाज या वैक्सीन के साइड इफेक्ट हैं या फिर कहीं इससे फायदे के बजाय नुकसान तो ज्यादा नहीं हो रहा है।''

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर क्लीनिकल ट्रायल से गुजर रहीं 25 वैक्सीन को सूचीबद्ध किया है जबकि 139 वैक्सीन अभी प्री-क्लीनिकल स्टेज में हैं।

कोरोना वायरस: डब्ल्यूएचओ ने कहा, हो सकता है दवाई कभी ना मिले

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रमुख डॉ टेड्रोस एडोनोम गेब्रिएसस ने कहा कि उम्मीद है कि कोविड-19 की वैक्सीन मिल जाए, लेकिन अभी इसकी कोई अचूक दवाई नहीं है और संभव है कि शायद कभी ना हो।

टेड्रोस इससे पहले भी कई बार कह चुके हैं कि शायद कोरोना कभी ख़त्म ही ना हो और इसी के साथ जीना पड़े। इससे पहले टेड्रोस ने कहा था कि कोरोना दूसरे वायरस से बिल्कुल अलग है क्योंकि वह ख़ुद को बदलता रहता है। डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा था कि मौसम बदलने से कोरोना पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि कोरोना मौसमी नहीं है।

डॉ टेड्रोस ने कहा कि दुनिया भर के लोग कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ का अच्छे से धोना और मास्क पहनने को नियम की तरह ले रहे हैं और इसे आगे भी जारी रखने की ज़रूरत है।

दुनिया भर में अब तक एक करोड़, 81 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। मरने वालों की तादाद भी छह लाख, 89 हज़ार पहुंच गई है।

डॉ टेड्रोस ने कहा, ''कई वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में हैं और हम सबको उम्मीद है कि कोई एक वैक्सीन लोगों को संक्रमण से बचाने में कारगर साबित होगी। हालांकि अभी इसकी कोई अचूक दवाई नहीं है और संभव है कि शायद यह कभी नहीं मिले। ऐसे में हम कोरोना को टेस्ट, आइसोलेशन और मास्क के ज़रिए रोकने का काम जारी रखें।''

डॉ टेड्रोस ने ये भी कहा कि जो माताएं कोरोना संदिग्ध हैं या कोरोना से संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है उन्हें स्तनपान कराना नहीं रोकना चाहिए।

डॉक्टर टेड्रोस ने इससे पहले जून महीने में भी कहा था, ''हम ये जानते हैं कि बड़ों के मुक़ाबले बच्चों में कोविड-19 का जोखिम कम होता है, लेकिन दूसरी ऐसी कई बीमारियां हैं जिससे बच्चों को अधिक ख़तरा हो सकता है और स्तनपान से ऐसी बीमारियों को रोका जा सकता है। मौजूदा प्रमाण के आधार पर संगठन ये सलाह देता है कि वायरस संक्रमण के जोखिम से स्तनपान के फ़ायदे अधिक हैं।''

उन्होंने कहा था, ''जिन माँओं के कोरोना संक्रमित होने का शक है या फिर जिनके संक्रमित होने की पुष्टि हो गई है उन्हें बच्चे को दूध पिलाने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए। अगर मां की तबीयत वाक़ई में बहुत ख़राब नहीं है तो नवजात को मां से दूर नहीं किया जाना चाहिए।''

अक्तूबर में नागरिकों को कोरोना का टीका देने की योजना बना रहा है रूस

रूसी स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने कहा है कि सरकार अक्तूबर के महीने में नागरिकों को कोरोना की वैक्सीन देने की योजना बना रही है और इसके लिए विस्तृत टीकाकरण अभियान चलाने की तैयारी की जा रही है।

रूसी मीडिया के अनुसार मिख़ाइल मुराश्को ने कहा कि सबसे पहले डॉक्टरों और शिक्षकों को कोरोना की वैक्सीन दी जाएगी।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अनाम सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि रूस की संभावित कोरोना वैक्सीन को इस महीने नियामकों की मंज़ूरी मिल जाएगी।

हालांकि तेज़ी से कोरोना वैक्सीन बनाने की रूस की कोशिश को लेकर कई विशेषज्ञ चिंता भी जताते हैं।

शुक्रवार को अमरीका के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथोनी फाउची ने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि रूस और चीन लोगों को कोरोना वैक्सीन देने से पहले वाकई में ''इससे जुड़े सभी टेस्ट कर रहे है।''

डॉक्टर फाउची ने कहा कि इस साल के आख़िर तक अमरीका के पास ''सुरक्षित और कारगर'' कोरोना वैक्सीन होगी।

उन्होंने कहा, ''मैं नहीं मानता कि कोरोना वैक्सीन के मामले में आधुनिक वैक्सीन के लिए हमें किसी दूसरे देश पर निर्भर रहना पड़ेगा।''

कई देशों में चल रहा है वैक्सीन बनाने का काम

फिलहाल दुनिया भर में कई देशों में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है और क़रीब 20 वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल भी शुरू हो चुका है।

इंटरफैक्स न्यूज़ एजेंसी के अनुसार रूसी स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि मॉस्को में मौजूद गामालेया इंस्टीट्यूट ने कोरोना वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल का काम पूरा कर लिया है और अब वो इसे रजिस्टर कराने के लिए पेपरवर्क में व्यस्त है।

स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार, ''हम अक्तूबर में टीकाकरण अभियान की योजना बना रहे हैं।''

बीते महीने रूसी वैज्ञानिकों ने कहा था कि गामालेया इंस्टीट्यूट ने एड्रेनोवायरस बेस्ड कोरोना वैक्सीन का शुरूआती ट्रायल पूरा कर लिया है और इसके नतीजे सकारात्मक रहे हैं।

बीते महीने ही ब्रिटेन, अमरीका और कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों ने रूस के एक हैकिंग समूह पर कोरोना वैक्सीन के काम में जुटी संस्थाओं पर साइबर हमले का और जानकारी चुराने का आरोप लगाया था।

ब्रितानी नेशनल लाइबर सिक्योरिटी सेन्टर ने कहा था कि उसे 95 फीसदी यकीन है कि साइबर हमले के लिए APT29 नाम का एक समूह ज़िम्मेदार है जो रूसी ख़ुफ़िया ऐजेंसी से जुड़ा है। सेंटर के अनुसार इस समूह को ड्यूक्स ऑर कोज़ी बीयर के नाम से भी जाना जाता है।

हालांकि इन आरोपों से रूस ने सिरे से खारिज कर दिया था। ब्रिटेन में रूसी राजदूत आंद्रे केलिन ने कहा था कि ''इन दावों में कोई हकीकत नहीं है।''

इधर ब्रिटेन में एस्ट्राज़ेनिका नाम की कंपनी ऑक्सफ़र्ड यूनिर्सिटी की बनाई कोरोना वैक्सीन को लेकर काम कर रही है। अब तक हुए ट्रायल में इसके सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं और पता चला है कि वैक्सीन इम्यून रिस्पॉन्स शुरू करने में सक्षम है।

वैक्सीन पाने के लिए अमरीका और ब्रिटेन समेत यूरोपीय देशों के इन्क्लूसिव वैक्सीन अलायंस ने एस्ट्राज़ेनिका के साथ पहले की करार कर लिया है।

दशकों से चमगादड़ के शरीर में मौजूद था कोरोना वायरस

ऐसी संभावना है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चमगादड़ों के शरीर में दशकों से मौजूद रहा हो, लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका हो।

हाल में हुए एक शोध से पता चला है कि कोविड-19 बीमारी के लिए ज़िम्मेदार कोरोना वायरस, करीबी ज्ञात वायरस से 40 और 70 साल पहले चमगादड़ में पाया गया था। वैज्ञानिक मानते है कि हो सकता है कि यही वायरस अब इंसानों तक पहुंच गया हो।

उन्होंने ये ही कहा है कि इसके साथ ही इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर चल रही ये कॉन्सिपीरेसी थ्योरी भी शक के घेरे में आ गई है कि इस वायरस को लैब में तैयार किया गया था या फिर वहीं से फैलना शुरू हुआ था।

नेचर माइक्रोबायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुए एक शोध पर काम करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्लासगो के प्रोफ़ेसर डेविड रॉबर्टसन कहते हैं कि महामारी के लिए ज़िम्मेदार Sars-CoV2 वायरस आनुवंशिक तौर पर चमगादड़ों में पाए जाने वाले वायरस के नज़दीक है लेकिन दोनों में कई दशकों के वक्त का फर्क है।

वो कहते हैं, ''इसका मतलब है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला वायरस कुछ वक्त से मौजूद था। लेकिन हमें अब तक नहीं पता कि ये कब और कैसे इंसानों में आया? अगर हम ये मानते हैं कि ये चमगादड़ों में पाया जाने वाला आम वायरस है तो इस मामले में हमें और पैनी नज़र की ज़रूरत है, हमें इसकी और निगरानी करनी होगी।''

प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं कि भविष्य में और महामारी न फैले इसके लिए हमें न केवल इंसानों में होने वाले संक्रमण का सर्विलांस करना होगा बल्कि जंगली चमगादड़ों का भी सेम्पलिंग करना होगा। वो कहते हैं अगर ये वायरस दशकों से मौजूद थे तो उन्हें अपने पैर फैलाने के लिए यानी संक्रमित करने के लिए दूसरे जानवर भी मिले होंगे।

इस शोध के लिए शोधकर्ताओं ने कोविड-19 बीमारी पैदा करने वाले Sars-CoV2 वायरस के जेनेटिक कोड का मिलान इसी से मिलते-जुलते चमगादड़ों में पाए जाने वाले RaTG13 से किया था।

शोधकर्ताओं ने पाया कि इन दोनों के पूर्वज एक ही हैं लेकिन इवोल्यूशन की प्रक्रिया में दशकों पहले दोनों एक-दूसरे से अलग होते गए थे।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के प्रोफ़ेसर मार्क पेजल इस शोध का हिस्सा नहीं हैं। वो कहते हैं कि इस शोध का इशारा इस तरफ है कि इंसानों को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस चमगादड़ों में 40 से 70 साल पहले से ही मौजूद था लेकिन इसका पता नहीं लगाया जा सका था।

वो कहते हैं, ''इस शोध से पता चलता है कि जानवरों से इंसानों को होने वाले संक्रमण का दायरा कितना बड़ा है। हो सकता है कि इंसानों में बीमारी पैदा करने वाले कई वायरस जानवर के शरीर में मौजूद हों लेकिन हमें उनका पता ही न हो।''

हो सकता है कि ये वायरस एक जानवर से दूसरे जानवरों में फैलते रहे हों और इनसे जंगली जनवरों के व्यवसाय से जुड़े लोग संक्रमित हुए हों।

इससे पहले हुए शोध में पता चला था कि Sars-CoV2 की उत्पत्ति में पैन्गोलिन की बड़ी भूमिका हो सकती है लेकिन ताज़ा शोध के अनुसार ऐसा नहीं है।

हो सकता है कि पैन्गोलिन को भी ये वायरस जंगली जनवरों के व्यवसाय के दौरान दूसरे जानवरों के संपर्क में आने से मिला हो।

अमरीकी कंपनी मॉडर्ना को बंदरों पर टीके के प्रयोग में कामयाबी मिली

अमरीकी बायोटेक कंपनी मॉडर्ना ने कहा है कि कोरोना वायरस के उनके एक टीके के बंदरों पर प्रयोग के दौरान मिले नतीजे अच्छे रहे हैं।

मॉडर्ना ने कहा कि ये टीका फेफड़ों और नाक के संक्रमण से बचाता है और फेफड़ों की बीमारी को रोकता है।

सोमवार को, इस कंपनी ने इंसानों पर भी टेस्ट शुरू किया जिसमें 30 हज़ार स्वयंसेवक शामिल हो रहे हैं।

कंपनी को अमरीका सरकार ने एक विशेष कार्यक्रम के तहत एक अरब डॉलर का फ़ंड दिया है।

ऑपरेशन वॉर्प स्पीड नाम के इस कार्यक्रम के तहत कोरोना वायरस का टीका बनाने के लिए किए जा रहे कई प्रयासों को पैसे दिए जा रहे हैं।

क्या अंतरिक्ष में हथियारों का परीक्षण स्पेस वॉर का पूर्व अभ्यास है?

अमरीका और ब्रिटेन ने रूस पर अंतरिक्ष में एक हथियार जैसे प्रोजेक्टाइल को टेस्ट करने का आरोप लगाया है। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने इसे 'इन ऑर्बिट एंटी सैटेलाइट वेपन' बताते हुए चिंताजनक बताया है।

इससे पहसे रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि रूस अंतरिक्ष में उपकरण की जांच के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। अब रूस ने अमरीका और ब्रिटेन पर सच को तोड़ मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह कोई हथियार नहीं है।

अमरीका पहले भी अंतरिक्ष में रूस के सैटेलाइट की गतिविधियों को लेकर सवाल उठा चुका है। हालांकि यह पहली बार है जब ब्रिटेन ने ऐसे आरोप लगाए हैं।

अमरीका के असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ़ इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड नॉन प्रॉलिफरेशन, क्रिस्टोफ़र फ़ोर्ड ने कहा, ''इस तरह के एक्शन अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा है और अंतरिक्ष में कचरा पैदा होने की संभावना को बढ़ाते हैं, जो कि सैटेलाइट और स्पेस सिस्टम के लिए, जिस पर दुनिया निर्भर है, बड़ा ख़तरा है।''

अमरीका के स्पेस कमांड के प्रमुख जनरल जे. रेमंड ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि रूस ने स्पेस में एंटी सैटेलाइट वेपन का टेस्ट किया है।

उन्होंने आगे कहा, ''स्पेस स्थित सिस्टम को विकसित करने और उसको टेस्ट करने की रूस की लगातार कोशिशों का ये एक और सुबूत है। और ये अंतरिक्ष में अमरीका और उसके सहयोगियों के सामनों को ख़तरे में डालने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के रूस के सार्वजनिक सैन्य डॉक्ट्रिन के अनुरूप है।''

ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख एयरवाइस मार्शल हार्वे स्मिथ ने बयान जारी कर कहा, ''इस तरह की हरकत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा पैदा करती है और इससे अंतरिक्ष में मलवा जमा होने का भी ख़तरा रहता है जो कि सैटेलाइट और पूरे अंतरिक्ष सिस्टम को नुक़सान पहुँचा सकता है जिस पर सारी दुनिया निर्भर करती है।''

दुनिया के सिर्फ़ चार देश - रूस, अमरीका, चीन और भारत ने अब तक एंटी सैटेलाइट मिसाइल तकनीक क्षमता का प्रदर्शन किया है।

भारत ने पिछले ही साल अपने एक सैटेलाइट को मारकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था।

पिछले साल भारत ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर लो अर्थ ऑर्बिट (एलइओ) सैटेलाइट को मार गिराया। यह एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था और तीन मिनट के भीतर इसे हासिल किया गया था।

इसे 'शक्ति मिशन' का नाम दिया गया और जिसका संचालन डीआरडीओ ने किया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस उपलब्धि से भारत को प्रतिरोधक क्षमता मिल गई है। अगर भारत का सैटेलाइट कोई नष्ट करता है तो भारत भी ऐसा करने में सक्षम है।

भारत ने तुलनात्मक रूप से कम ऊंचाई पर उपग्रह को निशाने पर लिया था। यह ऊंचाई 300 किलोमीटर थी जबकि 2007 में चीन ने 800 किलोमीटर से ज़्यादा की ऊंचाई पर अपना एक सैटेलाइट नष्ट किया था। 300 किलोमीटर की ऊंचाई इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) से नीचे है।

हालांकि नासा प्रमुख का कहना था कि नष्ट किए गए भारतीय उपग्रह के कचरे के 24 टुकड़े आईएसएस के ऊपर चले गए हैं।

जिम ब्राइडेन्स्टाइन ने कहा, ''इससे ख़तरनाक कचरा पैदा हुआ है और ये आईएसएस के भी ऊपर चला गया है। इस तरह की गतिविधि भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्रतिकूल साबित होगी।''

विज्ञान मामलों के जानकार पल्लव बागला बताते हैं, ''देश सैटेलाइट पर निर्भर होने लगे हैं, देशों की इकोनॉमी कहीं न कहीं सैटेलाइट से जुड़ने लगी है। अगर कोई एक देश किसी दूसरे देश को नुक़सान पहुंचाना चाहता है तो सैटेलाइट को नुक़सान पहुंचा कर वह यह काम कर सकता है, इसकी चर्चा काफ़ी समय से होती आई है।''

बागला आगे बताते हैं, ''जब इतने सैटेलाइट हों और अर्थव्यवस्था उन पर निर्भर होने लगे, तो आपके पास क्या तरीक़ा है? या तो आप कुछ ऐसा बनाएं कि आपका सैटेलाइट कोई नष्ट नहीं कर सके, नहीं तो दूसरे को ये बता दें कि अगर आप हमारी सैटेलाइट पर हमला करेंगे, तो हम भी आपके सैटेलाइट पर हमला कर सकते हैं।''

रूस के उठाए मौजूदा क़दम पर बागला कहते हैं, ''अमरीका आगे बढ़ रहा है, उनके पास एक पूरा स्पेस कमांड है, वायुसेना, थलसेना और नौसेना के अलावा वह स्पेस में भी फ़ौज की तैयारी कर रहा है। लाज़मी है कि रूस भी कुछ न कुछ तो करेगा।''

बागला मानते हैं कि ये देशों के बीच की स्पर्धा है जो पहले से होती रही है और आगे भी जारी रहेगी।

जिन देशों के पास सैटेलाइट गिराने की क्षमता है उनमें से किसी ने भी अभी तक दुश्मन देश के सैटेलाइट पर हमला नहीं किया है। इनका इस्तेमाल अभी तक बस ताक़त के प्रदर्शन के लिए किया गया है।

लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इनका इस्तेमाल भविष्य में नहीं किया जाएगा।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा के मुताबिक़ कोई भी ऐसी टेक्नोलॉजी जो इस्तेमाल की जा सकती है, वो शांति और युद्ध दोनों में ही काम आएगी।

उनके मुताबिक़, ''अंतरिक्ष की भूमिका अहम होने जा रही है। वैसी ही जैसे हवाई जहाज़ के बनने के बाद उनकी भूमिका पहले और दूसरे विश्व युद्ध में थी।''

रज़ा आगे बताते हैं, ''अब जो युद्ध होंगे, उनमें स्पेस की भूमिका सिर्फ़ इसलिए बड़ी होगी क्योंकि इसकी मदद से दूसरे देश को अपाहिज किया जा सकता है।''

सैटेलाइट टेस्ट कोई हथियार नहीं था: रूस

रूस ने कहा है कि उसने अंतरिक्ष में जो सैटेलाइट टेस्ट किया था, वो कोई हथियार नहीं था।

रूस के रक्षा मंत्रालय ने अमरीका और ब्रिटेन के आरोपों को ख़ारिज करते हुए उन पर तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाया।

रूस के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, ''15 जुलाई को जो टेस्ट किए गए थे उसने किसी दूसरे अंतरिक्षयाण के लिए कोई ख़तरा पैदा नहीं किया है। और इसने किसी भी अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं किया है।''

रूस ने कहा कि वो रूस के अंतरिक्ष उपकरणों की देख रेख और उनकी जाँच के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है।

इससे पहले ब्रिटेन और अमरीका ने कहा था कि वो रूस की इन गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं।

ब्रिटेन और अमरीका ने आरोप लगाया था कि रूस ने अंतरिक्ष में एक सैटेलाइट से हथियार जैसी कोई चीज़ लॉन्च की है।

ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख ने एक बयान जारी कर कहा, ''रूस ने हथियार जैसी कोई चीज़ को लॉन्च कर जिस तरह से अपने एक सैटेलाइट को टेस्ट किया है उसको लेकर हम लोग चिंतित हैं।''

बयान में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाई अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा है।

रूस के इस सैटेलाइट के बारे में अमरीका ने पहले भी चिंता जताई थी।

ब्रिटेन के अंतरिक्ष निदेशालय के प्रमुख एयरवाइस मार्शल हार्वे स्मिथ ने बयान जारी कर कहा, ''इस तरह की हरकत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए ख़तरा पैदा करती है और इससे अंतरिक्ष में मलवा जमा होने का भी ख़तरा रहता है जो कि सैटेलाइट और पूरे अंतरिक्ष सिस्टम को नुक़सान पहुँचा सकता है जिस पर सारी दुनिया निर्भर करती है।''

उन्होंने कहा, ''हम लोग रूस से आग्रह करते हैं कि वो आगे इस तरह के टेस्ट से परहेज़ करें। हम लोग रूस से ये भी आग्रह करते हैं कि अतंरिक्ष में ज़िम्मेदार रवैये को बढ़ावा देने के लिए वो ब्रिटेन और दूसरे सहयोगियों के साथ रचनात्मक तरीक़े से काम करता रहे।''

बीबीसी के रक्षा संवाददाता जोनाथन बेल के अनुसार ब्रिटेन ने पहली बार रूस पर अंतरिक्ष में सैटेलाइट टेस्ट करने का आरोप लगाया है और ये ठीक उसके कुछ दिनों के बाद हुआ है जब ब्रिटेन में इंटेलिजेन्स और सुरक्षा कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ब्रिटेन की सरकार रूस से ख़तरे को भाँपने में बुरी तरह नाकाम रही थी।

स्पेस वॉर की आशंका?

इस घटना के बाद अंतरिक्ष में हथियारों की नई तरह की दौड़ शुरू होने की चिंता को जन्म दे सकती है और कई दूसरे देश भी उन तकनीक की जाँच कर रहे हैं जिसका अतंरिक्ष में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

अमरीका ने कहा है कि रूस का ये वही सैटेलाइट सिस्टम है जिसके बारे में उसने साल 2018 में भी चिंता ज़ाहिर की थी और इस साल भी सवाल उठाया था जब अमरीका ने रूस पर आरोप लगाया था कि उसका एक सैटेलाइट अमरीका के एक सैटेलाइट के क़रीब जा रहा था।

इस ताज़ा घटनाक्रम के बारे में अमरीकी स्पेस कमांड के प्रमुख जनरल जे रेमंड ने कहा है कि इस बात के सुबूत हैं कि रूस ने अंतरिक्ष में स्थित एक सैटेलाइट विरोधी हथियार का टेस्ट किया है।

जनरल रेमंड ने कहा कि रूस ने सैटेलाइट के ज़रिए ऑर्बिट में एक नई चीज़ को लॉन्च किया है।

उनका कहना था, ''स्पेस स्थित सिस्टम को विकसित करने और उसको टेस्ट करने की रूस की लगातार कोशिशों का ये एक और सुबूत है। और ये अंतरिक्ष में अमरीका और उसके सहयोगियों के सामनों को ख़तरे में डालने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के रूस के सार्वजनिक सैन्य डॉक्ट्रिन के अनुरूप है।''

बांग्लादेश ने चीन की कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल की अनुमति दी

बांग्लादेश ने अपने नागरिकों पर चीन की सिनोवैक बायोटेक वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल की मंज़ूरी दे दी है। बांग्लादेश दक्षिण एशिया का सबसे ज़्यादा जन घनत्व वाला देश है और यहां कोरोना का संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहा है।

सिनोवैक चीन से बाहर के लोगों का खोज रहा था ताकि उन पर ट्रायल करके देखा जा सके। बांग्लादेश में सिनोवैक के तीसरे चरण के ट्रायल की पुष्टि कोविड 19 पर बनी एक कमिटी के सदस्य ने भी की है। द इंटरनेशनल सेंटर फोर डिज़ीज रिसर्च बांग्लादेश ने कहा है कि अगले महीने से इसका ट्रायल शुरू होगा।

बांग्लादेश मेडिकल रिसर्च काउंसिल के निदेशक महमूद जहान ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, ''हमने रिसर्च प्रोटोकॉल की समीक्षा के बाद चीन को सैद्धांतिक रूप से अनुमति दे दी है। 4,200 लोग ट्रायल में शामिल होने के लिए आवेदन करेंगे और इनमें से आधे को वैक्सीन दी जाएगी। यह ट्रायल ढाका में सात कोविड 19 अस्पतालों में किया जाएगा।''

बांग्लादेश में कोरोना के अभी 204,525 मामले हैं और तीन हज़ार के क़रीब लोगों की मौत हुई है।

सिनोवैक ब्राज़ील में भी इस हफ़्ते तीसरे चरण का ट्रायल करने जा रहा है।

कोरोना वैक्सीन को लेकर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को मिली बड़ी कामयाबी

कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी को बड़ी कामयाबी मिली है।

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने जिस वैक्सीन को तैयार किया है वह इंसानों पर सुरक्षित साबित हुई है और उससे इम्यून सिस्टम बेहतर होने के संकेत मिले हैं।

इस वैक्सीन का इस्तेमाल 1,077 लोगों पर किया गया। इन लोगों पर हुए प्रयोग में यह बात सामने आयी है कि वैक्सीन के इंजेक्शन से इन लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज़ का निर्माण हुआ है जो कोरोना वायरस से संघर्ष करती हैं।

इस प्रयोग को काफ़ी उम्मीदों से देखा जा रहा है लेकिन अभी इसके दूसरे सुरक्षात्मक उपाय और बड़े समूह पर ट्रायल जारी है।

हालांकि ब्रिटिश सरकार इस वैक्सीन के 10 करोड़ डोज़ का ऑर्डर दे चुकी है।

क्या कोरोना वायरस में आ रहा म्यूटेशन इसे ज्यादा ख़तरनाक बना रहा है?

वायरस में आ रहा म्यूटेशन क्या इसे और ख़तरनाक बना रहा है? दुनियाभर में जिस कोरोना वायरस ने इस वक्त तबाही मचा रखी है, लेकिन ये वो कोरानावायरस नहीं है जो पहली बार चीन से निकला था।

आधिकारिक तौर पर Sars-CoV-2 के नाम से जाना जाने वाला ये वायरस, जिससे दुनियाभर के लोग संक्रमित हो रहे हैं, म्यूटेट हो रहा है।

म्यूटेट होने का मतलब है वायरस के जेनेटिक मटेरियल में बदलाव होना। वैज्ञानिकों ने इस वायरस में हज़ारों म्यूटेशन देखे हैं। हालांकि सिर्फ एक म्यूटेशन ऐसा है जिससे इस वायरस के व्यवहार के बदलाव के संकेत मिले हैं।

तो क्या ये म्यूटेशन वायरस को और ज़्यादा ख़तरनाक और जानलेवा बना सकता है? क्या जिन वैक्सीन से हम उम्मीद लगाए बैठे हैं, उनकी सफलता को भी इससे ख़तरा है?

वैज्ञानिकों ने D614G नाम का म्यूटेशन देखा है जो वायरस की 'स्पाइक' में मौजूद होता है और जिसकी मदद से वायरस हमारी कोशिकाओं में घुस जाता हैं।

चीन के शहर वुहान में फैलने के बाद ये अनुमान है कि वायरस के इस म्यूटेशन को इटली में पाया गया था। यही म्यूटेशन अब दुनिया के 97 प्रतिशत सैंपल में पाया जा रहा है।