दिल्ली / एन सी आर

कांग्रेस मुख्यालय में डीयूएसयू परिणामों पर अजय माकन द्वारा एआईसीसी प्रेस ब्रीफिंग

कांग्रेस मुख्यालय में डीयूएसयू परिणामों पर अजय माकन द्वारा एआईसीसी प्रेस ब्रीफिंग

कांग्रेस का आरोप : ईवीएम में गड़बड़ियां हुई हैं, मतपत्रों से दोबारा हो डूसू चुनाव

कांग्रेस ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से हुए मतदान में धांधली का आरोप लगाते हुए मतपत्रों के जरिये दोबारा मतदान कराने की मांग की है और कहा है कि इस मामले में न्यायालय का विकल्प भी खुला है।

कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता तथा दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि डूसू चुनाव में महत्वपूर्ण पदों पर पहले कांग्रेस समर्थित छात्र संगठन एनएसयूआई के उम्मीदवार आगे चल रहे थे। करीब एक घंटे तक मतगणना रोकी गई और उसके बाद जब दोबारा मतगणना शुरू हुई तो स्थिति बदलने लगी।

न्यूज एजेंसी वार्ता के अनुसार, डूसू के चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए उन्होंने दोबारा और ईवीएम की बजाय मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग की और कहा कि वोटों की गिनती सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि ईवीएम में गड़बड़ियां हुई हैं, जिसके कारण एनएसयूआई के उम्मीदवार पिछड़ गए। माकन ने कहा कि जब डूसू छात्र संघ चुनाव में ईवीएम विश्वसनीय नहीं हैं और इसके जरिये गड़बड़ी हो सकती है तो विधानसभाओं तथा लोकसभा के चुनाव में क्या हाल होते होंगे, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि डूसू चुनाव में जिन वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल हुआ है उनकी आपूर्ति इलेक्ट्रोनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा की जाती है। ईवीएम के इस्तेमाल का प्रशिक्षण भी ईसीआईएल के कर्मचारियों द्वारा ही दिया जाता है और यही कंपनी चुनाव आयोग को भी ईवीएम की आपूर्ति करती है।

माकन ने कहा कि छात्र संघ चुनाव में जब इन मशीनों के इस्तेमाल से गड़बड़ी की जा सकती है तो बड़े चुनाव में सत्ता हथियाने के लिए निश्चित रूप से इनके जरिये धांधली की जाती होगी।

'जेएनयू में नहीं चलेंगे छोटे कपड़े और मीट'

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में आरएसएस से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा कथित रूप से लगाए गए पोस्टरों में महिलाओं के छोटे कपड़े पहनने पर प्रतिबंध, विश्वविद्यालय को राष्ट्र विरोधी कामरेडों से बचाने और मांसाहार परोसने वाले भोजनालयों को बंद कराने का वादा किया गया है। हालांकि छात्र संगठन ने इस तरह के पोस्टर जारी करने से साफ इनकार किया है।

एबीवीपी के सौरभ शर्मा ने कहा, ''हमने इस तरह का कोई पोस्टर जारी नहीं किया है।''

न्यूज एजेंसी भाषा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, ''ये पोस्टर सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहे हैं। एबीवीपी के ये कथित पोस्टर उसी दिन सामने आये हैं, जब राजनीतिक रूप से सक्रिय परिसर में जेएनयू छात्र संघ के अहम पदों के लिये मतदान चल रहा है।''

पोस्टर में लिखा है, ''रात में लड़कियों के लिये केन्द्रीय पुस्तकालय की समयसीमा में कमी, लड़कियों के लिए सिर्फ भारतीय परिधान और अतिरिक्त छोटे कपड़ों की मनाही, लड़कों के छात्रावास में लड़कियों के प्रवेश पर रोक और जन्मदिन का कोई जश्न नहीं। यौन उत्पीड़न एवं छेड़छाड़ के मामलों को रोकने के लिये हमलोग इन सभी उपायों को सुनिश्चित करेंगे।''

पोस्टर में जो अन्य चुनावी वादे किये गये हैं, वे हैं, ''जेएनयू को 'आतंकवादियों और राष्ट्र विरोधी कामरेडों' से बचाना, जेएनयू परिसर में मांसाहार परोसने पर प्रतिबंध और गंगा ढाबा (परिसर में मौजूद भोजनालय) की समयसीमा को नियंत्रित करना। घोषणापत्र में गंगा ढाबा को 'वामपंथियों एवं छेड़छाड़ करने वालों का अड्डा' बताया गया है।''

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी चार अहम पदों पर संयुक्त वाम मोर्चा के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है। संयुक्त वाम मोर्चा परिसर में सभी वाम दलों (एआईएसए, एआईएसएफ, डीएसएफ और एसएफआई) का गठबंधन है। मतों की गणना शुक्रवार रात को शुरू होगी और रविवार सुबह नतीजे घोषित होने की संभावना है।

बुराड़ी केस : सीएफएसएल रिपोर्ट में खुलासा - आत्महत्या नहीं, दुर्घटनावश हुई मौतें

उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में जुलाई महीने में एक परिवार के 11 सदस्यों के उनके घर में मृत मिलने के मामले में मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उन लोगों ने खुदकुशी नहीं की थी बल्कि एक अनुष्ठान के दौरान दुर्घटनावश वे सभी मारे गये। दिल्ली पुलिस ने जुलाई में सीबीआई को साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी करने को कहा था। उसे बुधवार शाम को यह रिपोर्ट मिली।

रिपोर्ट के अनुसार, मृतकों की मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी के अध्ययन के आधार पर घटना आत्महत्या की नहीं थी बल्कि दुर्घटना थी जो एक अनुष्ठान करते समय घट गयी। किसी भी सदस्य की अपनी जान लेने का इरादा नहीं था।

न्यूज एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी के दौरान सीबीआई की केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) ने घर में मिले रजिस्टरों में लिखी बातों का तथा पुलिस द्वारा दर्ज किये गये चूंडावत परिवार के सदस्यों और मित्रों के बयानों का विश्लेषण किया। सीएफएसएल ने परिवार के सबसे बड़े सदस्य दिनेश सिंह चूंडावत और उनकी बहन सुजाता नागपाल तथा अन्य परिजनों से भी पूछताछ की।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक, मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी में किसी व्यक्ति के मेडिकल रिकार्ड का विश्लेषण करके, मित्रों और परिवार के सदस्यों से पूछताछ करके तथा मृत्यु से पहले उसकी मानसिक दशा का अध्ययन करके उस शख्स की मानसिक स्थिति पता लगाने का प्रयास किया जाता है।

सूत्रों के अनुसार, पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि परिवार का सदस्य ललित चूंडावत अपने दिवंगत पिता की तरफ से निर्देश मिलने का दावा करता था और उसी हिसाब से परिवार के अन्य सदस्यों से कुछ गतिविधियां कराता था।

सूत्रों के अनुसार, उसने ही परिवार को ऐसा अनुष्ठान कराया जिसमें उन्होंने अपने हाथ-पैर बांधे तथा चेहरे को भी कपड़े से ढक लिया। चूंडावत परिवार के ये 11 सदस्य बुराड़ी स्थित घर में मृत मिले थे।

दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में धांधली का आरोप, फिर से चुनाव की मांग

दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव के पद पर जीत दर्ज की है। वहीं सचिव पद पर एनएसयूआई के आकाश चौधरी विजयी हुए हैं।

इससे पहले दोपहर के वक्त ईवीएम में खराबी और छात्रों के भारी हंगामे के चलते मतगणना का काम स्थगित कर दिया गया था। जब वोटों की गिनती स्थगित की गई, तब एनएसयूआई के सन्नी छिल्लर अध्यक्ष पद पर और एनएसयूआई के ही आकाश चौधरी सेक्रेटरी पद पर आगे चल रहे थे। एनएसयूआई के सदस्यों ने काउंटिंग सेंटर के बाहर हंगामा किया।

उन्होंने कहा कि एबीवीपी अध्यक्ष पर पीछे चल रही है इसलिए प्रशासन रिजल्ट में छेड़छाड़ की कोशिश कर रहा है। चुनाव आयुक्त प्रो वी के कौल ने कहा कि अभी मतगणना स्थगित की जा रही है। हमने सभी संगठनों का ज्ञापन लिया है। मतगणना अगले आदेश तक स्थगित रहेगी।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, एबीवीपी के शक्ति सिंह ने कहा कि सिर्फ एक ईवीएम में खराबी थी, इसे रिपेयर किया जा सकता था। हम चाहते है कि काउंटिंग फिर से शुरू हो। हम जैसे ही सभी सीटों पर आगे हुए, अन्य पार्टियां फिर से चुनाव कराए जाने की मांग करने लगी।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, एनएसयूआई के रॉकी तुसीद ने कहा कि ये चुनाव केंद्र सरकार की ओर से हो रहे हैं। ईवीएम के साथ छेड़खानी की गई है। हम फिर से चुनाव चाहते हैं।

प्रारम्भिक रुझान में एनएसयूआई और एबीवीपी में अध्यक्ष पद पर टक्कर दिख रही थी। हालांकि, एनएसयूआई अध्यक्ष और सचिव के पद पर आगे चल रही है। बुधवार को हुए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में तीन साल बाद मतदान का रिकॉर्ड टूटा। 43.8% छात्रों ने अपने वोट का इस्तेमाल किया। इससे पहले 2014 के डूसू चुनाव में 44.3 फीसदी मतदान हुआ था।

दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव की गिनती में हुई गड़बड़ी पर आम आदमी पार्टी के दिलीप पांडेय ने भारत में केंद्र की मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा, ''पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत करने वाली सरकार, एक छात्र संघ का चुनाव सही से नही करवा पा रही है। यह सब देश की जनता समझ रही है।''

भीमा-कोरेगांव केस: सुप्रीम कोर्ट का पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र पुलिस की ओर से भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में हिरासत में लिए गए सभी पांच मानवाधिकार कार्यकताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। लेकिन महाराष्ट्र पुलिस को उन्हें अपने घरों में अगली सुनवाई यानी 6 सितंबर तक नजरबंद रखने की अनुमति दे दी। साथ ही भारत की केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से मामले में 5 सितंबर तक जवाब देने को कहा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस याचिका का उल्लेख कर इस पर बुधवार को ही सुनवाई करने का अनुरोध किया था। इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविल्कर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने विशेष सुनवाई अदालत का समय पूरा हो जाने पर साढ़े चार बजे के बाद सुनवाई की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने आरोपियों को 6 सितंबर तक घर में ही नजरबंद करने का आदेश दिया।

सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेद सेफ्टी वाल्व की तरह होते हैं। अगर इन्हें रोका गया तो प्रेशर कुकर फट जाएगा। साथ ही महाराष्ट्र पुलिस की ओर से घटना के नौ महीने बाद गिरफ्तारी पर सवाल किए।

सुनवाई के दौरान आरोपियों की ओर से वरिष्ठ वकीलों ए एम सिंघवी, इंदिरा जयसिंह, राजीव धवन, दुष्यतं दवे, राजू रामचंद्रन, अमरेंद्र शरण और सी यू सिंह ने बहस की। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी असहमति को कुचलने का प्रयास है। ये लोग आदिवासियों के लिए काम कर रहे हैं। इनमें से एक वकील सुधा भारद्वाज ने अमेरिका की नागरिकता छोड़कर आदिवासियों के लिए काम करने का फैसला किया है। उन्हें भी गिरफ्तार करने पुलिस आ गई। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष दिसंबर में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा में यह लोग मौके पर भी नहीं थे। लेकिन फिर भी उन्हें अभियुक्त बनाया गया है।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से ए ए ए जी तुषार मेहता ने बहस की। उन्होंने कहा कि अजनबी लोग आरोपियों के लिए रिट याचिका देकर जमानत की मांग नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि कोई भी आरोपी सुप्रीम कोर्ट में नहीं आया है। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले को सुन ही रहा है।

आरोपियों की ओर से पेश सिंघवी ने कहा कि याचिका में व्यापक मुद्दा उठाया गया है। यह अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत अधिकारों का मामला है। वहीं इसमें से दो लोग गौतम नवलखा और सुधा भारद्वाज संबंधित हाईकोर्ट गए हैं। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने सख्ती से इस तर्क को ठुकरा दिया।

कार्यकताओं के लिए इतिहासकार रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, देवकी जैन, सतीष देशपांडे और माजु दारूवाला ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर की थी।

महाराष्ट्र पुलिस ने मंगलवार को अखिल भारतीय छापों में गौतम नवलखा को दिल्ली से, सुधा भारद्वाज को फरीदबाद से, वरवरा राव को आंध्रप्रदेश से और अरुण फरेरा व वर्नोन गोंजाल्विस को गिरफ्तार कर लिया था। नवलखा और भारद्वाज को हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को ले जाने से रोक दिया था और उन्हें नजरबंद रखने का आदेश दिया था।

याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार सभी पांच मानवाधिकार कार्यकताओं को जेल नहीं भेजा जाए, बल्कि अगली 6 सितंबर तक घर में नजरबंद रखा जाए। इसके साथ ही केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से 5 सितंबर तक मामले में अपना पक्ष रखने को कहा। पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस से भी घटना के नौ महीने बाद इन लोगों की गिरफ्तारी पर भी सवाल उठाया।

गौरतलब है कि पुणे के नजदीक एलगार परिषद ने 31 दिसंबर 2017 को एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसकी वजह से भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई। पुलिस ने इस हिंसा में कथित भूमिका के आरोप में ये गिरफ्तारियां की।

अब शिक्षा और चिकित्सा फायदे का कारोबार बन चुके हैं : दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में नर्सों की स्थिति को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आज कहा कि शिक्षा और चिकित्सा धन ऐंठने वाले धंधे बन गए हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।

जनहित याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नर्सों के अधिकारों की रक्षा को लेकर दिशा-निर्देश दिये जाने के बावजूद निजी चिकित्सा संस्थानों में नर्सों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

केंद्र की ओर से अधिवक्ता मानिक डोगरा ने अदालत को बताया कि नर्सों के वेतन और काम से जुड़ी स्थितियों के बारे में दिशा-निर्देश तय किये जा चुके हैं और उन्हें लागू करना हर राज्य की जिम्मेदारी है।

पीठ ने कहा कि याचिका से नर्सों के शोषण का पता चलता है। उसने कहा कि अब शिक्षा और चिकित्सा फायदे का कारोबार बन चुके हैं।

पीठ इसी तरह की एक याचिका के साथ इस पीआईएल पर भी आठ अक्तूबर को आगे की सुनवाई करेगी।अधिवक्ता रोमी चाको की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानों में नर्स मामूली वेतन पर काम कर रही हैं और अमानवीय परिस्थितियों में रह रही हैं।

दिल्ली में पुलिस कस्टडी में नाबालिग लड़की की मौत

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