भारत में पिछले हफ़्ते बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया गया। इस बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की प्रासंगिकता को लेकर भारत में काफ़ी बहस हो रही है।
क्या भारत में बुलेट ट्रेन कामयाब होगी?
इससे पहले ताइवान में जापानी बुलेट ट्रेन नाकाम रही थी। सवाल उठता है कि जब भारत ने जापान से इस समझौते पर आख़िरी मुहर लगाई तो क्या ताइवान की नाकामी उसके जेहन में रही होगी?
ताइवान ने 90 के दशक में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया था। पहली बार पांच जनवरी 2007 को यहां बुलेट ट्रेन दौड़ी।
हालांकि सात साल बाद ही इस प्रोजेक्ट को ज़मीन पर उतारने वाली कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई।
ताइवान में बुलेट ट्रेन की नाकामी को लेकर निक्केई एशियन रिव्यू ने पांच नवंबर 2015 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
एशियाई देशों में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के कॉन्ट्रैक्ट को हासिल करने के लिए चीन और जापान में होड़ जैसी स्थिति रहती है। भारत में भी जब बुलेट ट्रेन की बात चली तो जापान के साथ चीन ने भी दिलचस्पी दिखाई थी।
निक्केई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''ताइवान ने जापानी बुलेट ट्रेन सिस्टम के आधार हाई स्पीड रेल को शुरू किया था। दुख की बात यह है कि इसे भारी नुक़सान उठाना पड़ा। ताइवानी हाई स्पीड रेल ऑपरेटर ने हाल ही में वहां की सरकार से बेलआउट पैकेज लेने का फ़ैसला किया है ताकि इसे संकट से निकाला जा सके।''
जब 2007 में ताइवान में बुलेट ट्रेन शुरू हुई तो उत्तर में शहर ताइपेई को दक्षिणी शहर काओसिउंग से जोड़ा गया था। यह डेढ़ घंटे से भी कम की यात्रा थी।
ताइवान में बुलेट ट्रेन को लाने में सात जापानी कंपनियों के समूह ने मदद की थी। इसमें ट्रेडिंग हाउस मित्सुई ऐंड को., मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज दोनों ने साथ मिलकर काम किया था।
ताइवान में जब यह रेल आई तो इसे लेकर वहां काफ़ी गर्व था, लेकिन कुछ ही सालों में यह वित्तीय संकट में फंस गई। ताइवान में बुलेट ट्रेन को उतारने में 14.6 अरब डॉलर की लागत लगी थी।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि कंपनी शुरू से ही नुक़सान में रही। दूसरी तरफ़ निक्केई एशियन रिव्यू से जापानी कंपनी के एक प्रतिनिधि ने कहा कि इस परियोजना से जल्द फ़ायदा आसान नहीं था।
आख़िर ताइवान में बुलेट ट्रेन नाकाम होने की वजह क्या रही? इस बुलेट ट्रेन से सफ़र करने वाले पैसेंजरों की संख्या काफ़ी कम रही। कंपनी की बैलेंस शीट पर सबसे ज़्यादा असर इसी से पड़ा।
कंस्लटेंसी सर्वे के नतीजों और दूसरे आंकड़ों के मुताबिक, कंपनी को 2008 में एक दिन में दो लाख 40 हज़ार पैसेंजर की उम्मीद थी। 2014 में हर दिन एक लाख तीस हज़ार पैसेंजर ही आए जो को अनुमान से काफ़ी कम है।
कंपनी को बुलेट ट्रेन में लागत के बदले भारी ब्याज चुकाना पड़ा जिसे मुनाफ़े से संतुलित नहीं किया जा सका।
भारत के बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में जापान क़रीब 80 फ़ीसदी मदद कर रहा है। इस रकम पर भारत को 0.1 फ़ीसदी का ब्याज देना है। हालांकि भारत और ताइवान के प्रोजेक्ट की तुलना नहीं की जा सकती।
अहमदाबाद और मुंबई का रूट इंडस्ट्री से भरा और व्यावसायिक इलाक़ा है। जापान को ब्याज 15 साल बाद चुकाना है और दर काफ़ी कम भी है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध देश को समर्पित कर दिया, लेकिन अभी तक यह योजना पूरी ही नहीं हुई है।
नहर का इंफ्रास्ट्रकचर मुश्किल से 30 प्रतिशत कमांड एरिया के लिए ही बना है और रिजॉरवायर (जलाशय) भी नहीं भरा है।
इस परियोजना में अभी तक जितनी लागत लग चुकी है, उतनी ही अभी और लगने की संभावना है।
समस्या यह है कि इस परियोजना की कुल लागत का हमें पता ही नहीं है। मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि इस परियोजना से नुकसान ही ज़्यादा हुआ है जबकि लाभ बहुत कम है।
यह योजना कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के लिए बनी थी। ये गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़े हैं। यहां पानी देने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में यह योजना बनी थी, लेकिन आज तक इन इलाक़ों में पानी नहीं पहुंचा है।
ज्यादातर पानी मध्य गुजरात जैसे अहमदाबाद, बड़ौदा, खेड़ा, बरूच जैसे जिलो में जा रहा है। अहमदाबाद में जो साबरमती नदी बह रही है, उसमें भी नर्मदा का ही पानी है।
इसलिए अभी तक इस योजना का फायदा नज़र नहीं आ रहा क्योंकि जिन इलाक़ों को पानी की ज़रूरत थी। वहां तो पानी नहीं पहुंचा और जहां पहुंचा है वहां पहले से ही पर्याप्त मात्रा में पानी था।
इस योजना की वजह से कम से कम 50 हज़ार परिवार विस्थापित हुए हैं। नर्मदा नदी ख़त्म हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने आज जो उत्सव मनाया, वह एक तरह से नर्मदा नदी की मौत का उत्सव था।
क्योंकि बांध के नीचे जो 150 किमी तक नदी थी, वह बहना बंद हो गई है। वहीं बांध के ऊपर जो 200 किमी से लंबा रिजॉरवायर एरिया बना है वहां भी नदी नहीं बह रही है।
नदी के निचले इलाक़ों में जो 10 हजार परिवार रह रहे थे, वे मछली पालन पर निर्भर थे। उनकी आजीविका पूरी तरह खत्म हो गई है।
सवाल उठता है कि इस योजना को किस उद्देश्य के साथ शुरू किया गया? वास्तव में इससे कितना फ़ायदा होगा? इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्या यह योजना सबसे बेहतर विकल्प थी?
जब हम इन तीन सवालों के जवाब खोजते हैं तो पाते हैं कि यह योजना गुजरात, वहां के सूखा पीड़ित इलाक़ों और भारत के लिए सबसे बेहतर विकल्प नहीं थी।
कुछ दिन पहले मोदी के साथ बुलेट ट्रेन की शुरुआत करने वाला जापान ने ही सबसे पहले इस योजना से अपने हाथ खींचे थे। उन्हें जब पता चला कि इस योजना के कारण कई हज़ार लोगों का विस्थापन हो रहा है तो वह पीछे हट गए।
साल 1992 में विश्व बैंक ने अपनी स्वतंत्र जांच बैठाई थी और उसमें पाया था कि इस परियोजना से बहुत ज़्यादा नुकसान होगा, इसलिए विश्व बैंक ने भी इस योजना पर पैसे लगाने से इंकार कर दिया था।
साल 1993-94 में जब भारत सरकार ने अपनी एक स्वतंत्र जांच बैठाई थी, उसमें भी इस योजना को असफल बताया गया था।
भारत में सरकार तो सिर्फ अपने नेता की बात के आगे ठप्पा लगाने का काम करती है। देश का दुर्भाग्य है कि यहां के नौकरशाह स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते।
सरदार सरोवर बांध के पांच बड़े नुकसान:
- कच्छ, सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात को फ़ायदा नहीं होगा
- नर्मदा नदी ख़त्म हो गई
- कम से कम 50 हज़ार परिवार विस्थापित हुए, 10 हजार मछुवारे परिवार की आजीविका समाप्त हो गई
- इस योजना में 50 हज़ार करोड़ खर्च हो चुके हैं और इतना ही औऱ खर्च आएगा
- यह योजना प्रशासन की असफलता है, जिन लोगों का पुनर्वास नहीं हुआ है, उनका न्यायपालिका से भरोसा कम हो गया है।
भारत के थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू पी आई) पर आधारित महंगाई दर अगस्त महीने में लगभग दोगुनी होकर 3.24 फीसदी रही है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई में थोक महंगाई दर 1.88 फीसदी रही थी, जबकि अगस्त 2016 में यह दर 1.09 फीसदी थी।
मंत्रालय के मुताबिक, ''अगस्त 2017 की थोक महंगाई दर 3.24 फीसदी रही है, जबकि जुलाई में यह 1.88 फीसदी थी और अगस्त 2016 में 1.09 फीसदी थी। इस वित्त वर्ष की बिल्ट इन महंगाई दर 1.41 फीसदी रही है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 3.25 फीसदी थी।''
खाद्य महंगाई दर बढ़कर 5.75 फीसदी रही, जबकि जुलाई 2017 में यह 2.15 फीसदी थी।
वार्षिक आधार पर प्याज की कीमतें बढ़कर 88.46 फीसदी रही, जबकि आलू की कीमत नकारात्मक 43.82 फीसदी रही है।
अगस्त में सब्जियों की कीमतें बढ़कर 44.91 फीसदी रही है, जबकि अगस्त 2016 में यह नकारात्मक 7.75 फीसदी थी।
वार्षिक आधार पर गेंहू सस्ता हो गया है। इसकी दर नकारात्मक 1.44 फीसदी रही है, जबकि प्रोटीन आधारित खाद्य सामग्रियां अंडे, मांस और मछली मंहगी हो गई हैं। यह बढ़कर 3.93 फीसदी हो गई हैं।
ईंधन और बिजली की कीमत भी बढ़कर 9.99 हो गई है।
हाल ही में आंकड़े आए थे कि खुदरा मुद्रास्फीति की दर अगस्त महीने में बढ़कर पांच महीने के उच्च स्तर 3.36 फीसदी पर पहुंच गई है।
पिछले महीने का खुदरा मुद्रास्फीति का आंकड़ा मार्च, 2017 के बाद सबसे ऊंचा है। उस समय यह 3.89 फीसदी पर थी।
भारत में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, माह के दौरान रोजाना उपभोग वाले फल और सब्जियों की महंगाई दर बढ़कर क्रमश: 5.29 फीसदी और 6.16 फीसदी हो गई। यह जुलाई में क्रमश: 2.83 फीसदी और शून्य से 3.57 फीसदी नीचे थी।
इसी तरह तैयार भोजन, जलपान और मिठाई की श्रेणी में मुद्रास्फीति अगस्त में बढ़कर 1.96 फीसदी हो गई जो जुलाई में 0.43 फीसदी थी।
परिवहन और संचार क्षेत्रों में भी महंगाई दर बढ़कर 3.71 फीसदी हो गई जो जुलाई में 1.76 फीसदी थी।
हालांकि कुछ मोटे अनाजों, मीट-मछली, तेल व वसा की महंगाई दर कुछ कम होने का दावा किया गया है।
भारत में पिछले कुछ दिनों से पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार आलोचनाओं से घिरी हुई है। पेट्रोल-डीजल की कीमतो की दैनिक समीक्षा की मौजूदा नीति भी आलोचनाओं के घेरे में है।
भारत में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार (13 सितंबर) को मीडिया के इस बाबत पूछे गये सवाल के जवाब में कहा कि दैनिक समीक्षा की नीति जारी रहेगी।
पिछले एक महीने में पेट्रोल की कीमत में सात रुपये से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। मोदी सरकार ने 16 जून से पेट्रोल की कीमतों की दैनिक समीक्षा नीति लागू की है। उससे पहले तक पेट्रोल की कीमतों की पाक्षिक समीझा होती थी। आइए समझते हैं कि आखिर पेट्रोल की कीमतों को लेकर विवाद क्यों है?
गुरुवार (14 सितंबर) को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 70.39 रुपये प्रति लीटर, कोलकाता में 73.13 रुपये प्रति लीटर, मुंबई में 79.5 रुपये प्रति लीटर और चेन्नई में 72.97 लीटर रही।
पेट्रोल की ये कीमत अगस्त 2014 के बाद सर्वाधिक है।
भारत में पेट्रोल तब भी महँगा है, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पिछले कुछ सालों में काफी कम हुई हैं। लेकिन भारतीय ग्राहकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम होने का लाभ नहीं मिल रहा है।
नरेंद्र मोदी सरकार का कहना है कि भारत को आधारभूत ढांचे के विकास के लिए पैसा चाहिए इसलिए वो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें कम होने का लाभ ले रही है। मोदी सरकार ने तेल पर अतिरिक्त टैक्स लगाया है जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत कम होने के बावजूद भारत में कीमत कम नहीं हो रही है।
जब अगस्त 2014 में पेट्रोल की कीमत 70 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा थी तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 103.86 डॉलर (करीब 6300 रुपये) प्रति बैरल थी। गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 54.16 डॉलर (3470 रुपये) प्रति बैरल है। यानी तीन साल पहले की तुलना में करीब आधी।
कैच न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय तेल कंपनियों (इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम) को एक लीटर कच्चा तेल (पिछले साल सितंबर तक) 21.50 रुपये का पड़ता था। सितंबर 2016 में भी अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमत करीब 54 डॉलर प्रति बैरल थी।
रिपोर्ट के अनुसार, इस्तेमाल लायक बनाने में लगे खर्च और टैक्स इत्यादि जोड़कर एक लीटर कच्चे तेल पर करीब 9.34 रुपये खर्च होते हैं। यानी एक लीटर कच्चा तेल इस खर्च के बाद कंपनी को करीब 31 रुपये का पड़ता है। यानी हर लीटर पेट्रोल पर आम जनता कम से कम 40 रुपये अधिक चुका रही है।
पेट्रोल की कीमत पर राज्य सरकारों द्वारा लगाया गये टैक्स के कारण हर राज्य में उसकी दर कम-ज्यादा होती है। पेट्रोल-डीजल को केंद्र सरकार अभी वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी) के तहत नहीं लाई है।
आखिर 31 रुपये का पेट्रोल आम जनता को करीब 70 से 79 रुपये प्रति लीटर क्यों बेचा रहा है? इसका सीधा जवाब है- मोदी सरकार द्वारा लगाए गए टैक्सों के कारण।
मोदी सरकार नवंबर 2014 से अब तक पेट्रोल के उत्पाद शुल्क में 126 प्रतिशत और डीजल के उत्पाद शुल्क में 374 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर चुकी है।
भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बयानों से जाहिर है कि मोदी सरकार हाल-फिलहाल अपनी मौजूदा नीति में बदलाव नहीं करने जा रही। संभव है 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले इस पर विचार करे।
भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने मंगलवार (25 जुलाई) को लोक सभा में जानकारी दी कि पिछले तीन सालों में सांप्रदायिक, जातीय और नस्ली हिंसा को बढ़ावा देने वाली घटनाओं में 41 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
भारत के गृह राज्य मंत्री गंगाराम अहिरवार द्वारा सदन में पेश की गई राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन सी आर बी) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2014 में धर्म, नस्ल या जन्मस्थान को लेकर हुए विभिन्न समुदायों में हुई हिंसा की 336 घटनाएं हुई थीं। साल 2016 में ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़कर 475 हो गई।
अहिरवार गौरक्षकों द्वारा की जा रही हिंसा और सरकार द्वारा उन पर रोक लगाने से जुड़े एक सवाल का जवाब दे रहे थे।
अहिरवार ने सदन में कहा कि सरकार के पास गौरक्षकों से जुड़ी हिंसा का आंकड़ा नहीं है, लेकिन सांप्रदायिक, जातीय या नस्ली विद्वेष को बढ़ाने वाली हिंसक घटनाओं का आंकड़ा मौजूद है।
अहिरवार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्यों में ऐसी घटनाओं में 49 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई। साल 2014 में राज्यों में 318 ऐसी घटनाएं हुई थीं जो साल 2016 में बढ़कर 474 हो गईं। वहीं दिल्ली समेत सभी केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसी घटनाओं में भारी कमी आई। राजधानी और केंद्र शासित प्रदेशों में साल 2014 में ऐसी हिंसा की 18 घटनाएं हुई थीं, लेकिन साल 2016 में ऐसी केवल एक घटना हुई।
उत्तर प्रदेश में सांप्रादायिक, जातीय और नस्ली विभेद को बढ़ावा देने वाली हिंसक घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। उत्तर प्रदेश में तीन सालों में ऐसी घटनाएं 346 प्रतिशत बढ़ीं। साल 2014 में उत्तर प्रदेश में ऐसी 26 घटनाएं हुई थीं तो साल 2016 में ऐसी 116 घटनाएं हुईं। उत्तराखंड में साल 2014 में ऐसी केवल चार घटनाएं हुई थीं, लेकिन साल 2016 में राज्य में ऐसी 22 घटनाएं हुईं। यानी उत्तराखंड में ऐसी घटनाओं में 450 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई।
पश्चिम बंगाल में साल 2014 में ऐसी हिंसा की 20 घटनाएं दर्ज हुई थीं, वहीं साल 2016 में 165 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के साथ ऐसी 53 घटनाएं दर्ज हुईं। मध्य प्रदेश में 2014 में पांच तो 2016 में 26 ऐसी घटनाएं हुई थीं। हरियाणा में 2014 में तीन और 2016 में 16 ऐसी घटनाएं हुई थीं। बिहार में साल 2014 में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी, लेकिन 2016 में ऐसी आठ घटनाएं हुईं।
अहिरवार ने संसद में बताया कि केंद्र सरकार मॉब लिंचिंग के खिलाफ कोई नया कड़ा कानून बनाने पर विचार नहीं कर रही है।
उत्तर प्रदेश में भारतीय रेलवे के एक एक्सप्रेस ट्रेन में कैंटीन से मिले खाने के अंदर छिपकली मिली है। यह मामला भारत के उत्तर प्रदेश के चंदौली का है।
जिस युवक के खाने में छिपकली मिली, वह पूर्वा एक्सप्रेस में यात्रा कर रहा था। उस शख्स ने भारत के रेल मंत्री सुरेश प्रभू को भी इस बारे में ट्वीट किया। इससे पहले कैग अपनी रिपोर्ट में 'रेलवे के खाना को इंसान के खाने लायक नहीं' कहकर साफ कर चुका है कि वहां मिलने वाला खाना खाने लायक नहीं है। कहा गया था कि खाना गंदे पानी से बनता है। सोशल मीडिया पर अब लोगों ने रेल मंत्री को घेर लिया है। लोग जवाब मांग रहे हैं।
बता दें संसद में 21 जुलाई को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने रेलवे द्वारा परोसे जाने वाले खाने को लेकर चौंका देने वाली रिपोर्ट पेश की थी। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया था कि रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक ही नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया था कि दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाना और डब्बा बंद व बोतलबंद सामान का इस्तेमाल एक्सपाइरी डेट के बाद भी किया जाता है। 74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के निरीक्षण में सीएजी ने पाया कि खाना तैयार करने के दौरान सफाई पर जरा भी ध्यान नहीं दिया जाता। सीएजी ने यह खुलासा भी किया है कि कैसे खाना बनाने में साफ-सफाई पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता। खाना या फिर ड्रिंक्स तैयार करने के लिए सीधे नल से अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जाता है।
निरीक्षण के दौरान कूड़ेदानों के ढक्कन गायब पाए गए और यह भी पता चला कि उनकी धुलाई का काम भी नियमित रूप से नहीं किया जाता। मक्खियां-कीड़ों से खाद्य पदार्थों के बचाव के लिए कोई कवर इस्तेमाल नहीं किया जाता। वहीं कुछ ट्रेनों में कॉकरोच और चूहे भी मिले। सीएजी ने ऑडिट में पाया है कि रेलवे की फूड पॉलिसी में लगातार बदलाव होने से यात्रियों को बहुत ज्यादा परेशानियां होती हैं।
इसके अलावा सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सुपरफास्ट ट्रेनों के लेट होने को लेकर भी एक रिपोर्ट पेश की थी। सीएजी ने रिपोर्ट में बताया है कि सुपरफास्ट सरचार्ज के नाम पर रेलवे ग्राहकों से करोड़ों रुपये वसूलती है, लेकिन कुछ सुपरफास्ट ट्रेन ऑपरेशन्स के दौरान 95% से ज्यादा बार लेट हुईं। नॉर्थ सेंट्रल रेलवे (NCR) और साउथ सेंट्र्ल रेलवे (SCR) ने सुपरफास्ट सरचार्ज के नाम पर यात्रियों से 11.17 करोड़ रुपये वसूले, लेकिन यह सुपरफास्ट ट्रेनें 95% से ज्यादा बार लेट हुईं।
एयरटेल, वोडाफोन, आईडिया, रिलायंस और एयरसेल सहित निजी क्षेत्र की छह दूरसंचार कंपनियों ने 2010-11 से 2014-15 के दौरान अपने राजस्व को 61,064.5 करोड़ रुपये कम कर दिखाया। इससे सरकार को 7,697.6 करोड़ रुपये का कम भुगतान किया गया। यानी कि इन कंपनियों की वजह से भारत सरकार को लगभग 7 हजार 697 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में आज 21 जुलाई को पेश ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि छह आपरेटरों ने कुल 61,064.5 करोड़ रुपये का समायोजित सकल राजस्व (ए जी आर) कम करके दिखाया।
कैग ने पांच आपरेटरों भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया, आइडिया सेल्युलर, रिलायंस कम्युनिकेशंस और एयरसेल के लिए 2010-11 से 2014-15 तक इनके खातों का ऑडिट किया। वहीं सिस्तेमा श्याम के लिए समय सीमा 2006-07 से 2014-15 तक रही। कैग ने कहा कि राजस्व को कम कर दिखाने की वजह से सरकार को 7,697.62 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस कम भुगतान पर मार्च, 2016 तक ब्याज 4,531.62 करोड़ रुपये बैठता है।
कैग के अनुसार, एयरटेल पर 2010-11 से 2014-15 के दौरान सरकार के लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम प्रयोग शुल्क (एस यू सी) के मद का बकाया 2,602.24 करोड़ रुपये और उस पर ब्याज का 1,245.91 करोड़ रुपये बनता है। वोडाफोन पर कुल बकाया 3,331.79 करोड़ रुपये बनता है, जिसमें ब्याज का 1,178.84 करोड़ रुपये है। इसी तरह आइडिया पर कुल बकाया 1,136.29 करोड़ रुपये का है। इसमें ब्याज 657.88 करोड़ रुपये बैठता है। अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 1,911.17 करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें 839.09 करोड़ रुपये ब्याज के बैठते हैं। एयरसेल पर बकाया 1,226.65 करोड़ रुपये और सिस्तेमा श्याम पर 116.71 करोड़ रुपये का है।
नयी दूरसंचार नीति के तहत लाइसेंसधारकों को अपने समायोजित सकल राजस्व (ए जी आर) का एक निश्चत हिस्सा सरकार को सालाना लाइसेंस शुल्क के रूप में देना होता है। इसके अलावा मोबाइल आपरेटरों को स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एस यू सी) भी देना होता है।
कैग की यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जबकि बड़ी दूरसंचार कंपनियों को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रिलायंस जियो के आने के बाद स्थापित आपरेटरों की आमदनी और मुनाफे पर काफी दबाव है। दूरसंचार उद्योग पर विभिन्न वित्तीय संस्थानों और बैंकों का 6.10 लाख करोड़ रुपये का बकाया है।
बता दें कि निजी क्षेत्र की ये दूरसंचार कंपनियां भारत के अलग-अलग हिस्सों में उपभोक्ताओं को मोबाइस सेवा मुहैया कराती है। लेकिन ये कंपनियां सरकार की दूरसंचार नीति और केन्द्र सरकार के कायदे-कानूनों को मानने के लिए बाध्य होती हैं। पहले भी निजी दूरसंचार कंपनियों पर अनियमितताओं में शामिल होने का आरोप लगा है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भारतीय रेलवे द्वारा परोसे जाने वाले खाने को लेकर संसद में जो रिपोर्ट पेश की है। उसके बारे में जानकर होश उड़ जायेंगे। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि भारतीय रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है।
शुक्रवार (21 जुलाई) को सीएजी ने यह रिपोर्ट संसद में पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है कि दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाना और डब्बा बंद व बोतलबंद सामान का इस्तेमाल एक्सपाइरी डेट के बाद भी किया जाता है।
सीएजी ने यह खुलासा भी किया है कि कैसे खाना बनाने में साफ-सफाई पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता।
74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के निरीक्षण में सीएजी ने पाया कि खाना तैयार करने के दौरान सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। खाना या फिर ड्रिंक्स तैयार करने के लिए सीधे नल से अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जाता है। निरीक्षण के दौरान कूड़ेदानों के ढक्कन गायब पाए गए और यह भी पता चला कि उनकी धुलाई का काम भी नियमित रूप से नहीं किया जाता। मक्खियां-कीड़ों से खाद्य पदार्थों के बचाव के लिए कोई कवर इस्तेमाल नहीं किया जाता। वहीं कुछ ट्रेनों में कॉकरोच और चूहे भी मिले।
सीएजी ने ऑडिट में पाया है कि रेलवे की फूड पॉलिसी में लगातार बदलाव होने से यात्रियों को बहुत ज्यादा परेशानियां होती हैं।
इसके अलावा कई नियमों का उल्लंघन भी किए जाने का खुलासा भी इस रिपोर्ट के जरिए हुआ है। खाना या अन्य सामान लेने के बाद कस्टमर को बिल नहीं दिया जाता। खाना तय मात्रा से कम में भी यात्रियों को परोस दिया जाता है।
साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अनुमोदित सामान जैसे पीने का पानी भी ट्रेनों में बेचा जाता है। वहीं काफी सामान, बाजार कीमत से ऊंचे दामों पर बिकता हुआ भी पाया गया।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (17 जून) को कोच्चि मेट्रो का उद्घाटन किया। इस मौके पर केरल के सीएम पिनराई विजयन, केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू और मेट्रोमैन ई श्रीधरन मौजूद थे।
उद्धाटन के बाद पीएम मोदी ने कोच्चि मेट्रो की सवारी भी की। वहीं इस उद्घाटन के मौके पर कांग्रेस ने एक बार फिर से बीजेपी पर निशाना साधा है।
दरअसल ट्विटर पर वायरल हुई एक तस्वीर को लेकर यह बवाल मचा है। एक फोटो में यह दावा किया गया कि नरेंद्र मोदी के कड़े प्रयासों के बाद कोच्चि मेट्रो का काम पूरा हो सका। बीजेपी के इस दावे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए उसे झूठा बताया।
कांग्रेस के रचित सेठ ने ट्विटर के जरिए कहा, ''तो यह है बीजेपी का आज का झूठ। केरल बीजेपी कह रही है कोच्चि मेट्रो उन्होंने बनवाई, लेकिन सच यह है कि मेट्रो का काम मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान शुरू हुआ था #LiarBJP''
पीटीआई के मुताबिक, कोच्चि मेट्रो को कैबिनेट की मंजूरी जुलाई 2012 में मिली थी।
रचित ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एक तस्वीर भी ट्वीट की जिसमें वह कोच्चि मेट्रो की नींव डालते हुए नजर आ रहे हैं। तस्वीर सितंबर 2012 की बताई जा रही है।
वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से पीएम मोदी पर निशाना साधा। अपने ट्वीट में कांग्रेस ने लिखा, ''श्री मोदी मनमोहन सरकार के कामों का श्रेय लेने की कोशिश करते हुए अपनी पुरानी आदतों से मजबूर।''
कांग्रेस ने इस ट्वीट के साथ उन प्रॉजेक्ट्स की तस्वीरें ट्वीट की जिनका काम मनमोहन सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था।
वहीं कांग्रेस के बीजेपी पर निशाना साधने के बाद कई ट्विटर यूजर्स ने भी बीजेपी को आड़े हाथों लिया। लोगों ने बीजेपी को झूठे दावे करने को लेकर ट्रोल किया।
भारत में केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार रेलवे के सभी जोन से करीब 11000 लोगों की नौकरियां खत्म करेगी। इसे खर्च में कटौती के तौर पर देखा जा रहा है।
रेलवे बोर्ड ने खर्च कटौती की कवायद तेज करते हुए सभी 17 रेल मंडलों से 10 हजार 900 पदों को खत्म करने का पत्र जारी किया है। रेलवे बोर्ड के फैसले और सभी महाप्रबंधकों को लिखी चिट्ठी में लिखा गया है कि वर्ष 2017-18 के लिए सालाना पदों की कटौती के फैसले को लागू किया जाए।
फिलहाल भारतीय रेल में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 15 लाख के करीब है।
बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का ऐलान किया था, लेकिन तीन साल बाद भी ऐसा होता नहीं दिख रहा है। उल्टे सरकार कर्मचारियों की नौकरी ख़त्म कर रही है।
पत्र के मुताबिक, 25 मई को केंद्रीय रेलवे बोर्ड के निदेशक (ई एंड आर) अमित सरन ने इस आशय का आदेश पत्र सभी जोन मुख्यालयों को भेजा है। इससे रेल कर्मचारियों में हड़कंप है।
हालांकि रेलवे प्रशासन इसे सामान्य प्रक्रिया बता रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, रेलवे हर साल एक फीसदी पद समाप्त करता है। हालांकि, मौजूदा आदेश पर अधिकारी सफाई दे रहे हैं कि समीक्षा के बाद यह तय किया जाएगा कि कौन से अनुपयोगी पद समाप्त किए जाएंगे। अधिकारी का यह भी दावा है कि ऐसे पद समाप्त करने से रेलवे का कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
रेलवे बोर्ड के निदेशक (ई एंड आर) अमित सरन ने इस आशय का आदेश पत्र सभी जोन मुख्यालयों को भेजा है।
पत्र के मुताबिक, दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे जोन को 400 पद समाप्त करने के लिए कहा गया है जबकि सेंट्रल और ईस्टर्न रेलवे को 1-1 हजार पद, ईस्ट कोस्ट रेलवे को 700, नॉर्दन रेलवे को 1500, नॉर्थ सेंट्रल रेलवे को 150, नॉर्थ ईस्टर्न रेलवे को 700, नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे को 300, ईस्ट सेंट्रल रेलवे को 300, नॉर्थ ईस्टफ्रंटियर रेलवे को 550 पद खत्म करने को कहा गया है। इसी तरह सदर्न रेलवे को 1500, साउथ सेंट्रल रेलवे को 800, साउथ ईस्ट सेंट्रल और साउथ ईस्टर्न रेलवे को 400-400 पद, साउथ वेस्टर्न रेलवे को 200, वेस्टर्न रेलवे को 700 और वेस्ट सेंट्रल रेलवे को 300 पद खत्म करने को कहा गया है।
रेल मंत्रालय देशभर के 23 स्टेशनों को प्राइवेट कंपनियों के हाथों में सौंपने की योजना पर काम कर रही है। सरकार इन्हें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत निजी कंपनियों को देने जा रही है। इसके लिए 28 जून को ऑनलाइन नीलामी का आयोजन किया जाएगा। नीलामी में उत्तर प्रदेश का कानपुर जंक्शन और इलाहाबाद जंक्शन शामिल हैं, जबकि राजस्थान का उदयपुर रेलवे स्टेशन भी शामिल है। नीलामी के लिए कानपुर जंक्शन की शुरुआती कीमत 200 करोड़ रुपए जबकि इलाहाबाद जंक्शन के लिए 150 करोड़ रुपए रखी गई है। नीलामी के परिणाम का ऐलान 30 जून को किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने देश के कुल 23 रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला लिया है।










