वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के अलावा इंसानों के रहने के लिए एक अलग दुनिया को खोज में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसा ग्रह ढूंढा है जो धरती के काफी करीब है, जहां इंसानी जीवन संभव हो सकता है।
ऐस्ट्रोनॉमी से संबंधित एक पत्रिका के अनुसार, पृथ्वी के आकार का 'रॉस 128' ग्रह छोटा और हल्के लाल रंग का है। यह पृथ्वी से 11 हजार प्रकाश वर्ष दूर है। हालांकि यह ग्रह पृथ्वी की तुलना में थोड़ा भारी है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे सोलर सिस्टम से दूर इस ग्रह पर मानव जीवन संभव है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस ग्रह का भार पृथ्वी से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है। यह ग्रह प्रॉक्सिमा सेंचुरी के बाद हमारी पृथ्वी से दूसरा निकटतम ग्रह है, जहां जीवन की संभावना हो सकती है।
महाराष्ट्र में 2,400 पोस्टमैन की नियुक्ति के घोटाले का खुलासा हुआ है। ये खुलासा विजिलेंस विभाग ने किया है।
भारतीय डाक विभाग में पोस्टमैन घोटाला गोवा में भी हुआ है। इसके साक्ष्य विजिलेंस विभाग को मिल गए हैं।
घोटाले की शिकायत मुंबई पुलिस से की गई है, जिसके बाद पुलिस ने मनिपाल टेक्नोलॉजी लिमिटेड (MTL)के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
दरअसल इस कंपनी को 2015 में डाक विभाग में पोस्टमैन की निुयुक्ति कराने को लेकर टेंडर दिया गया था। इस टेंडर में उन्हें पोस्टमैन के साथ ही मेल गार्ड की नियुक्ति का भी जिम्मा दिया गया था। पुलिस ने यह एफआईआर मुंबई असिस्टेंट पोस्ट मास्टर जनरल की शिकायत पर दर्ज की है।
इस घोटाले में पी वी माल्या का नाम सामने आ रहा है। मुंबई उच्च न्यायाल में इस घोटाले को लेकर सुनवाई शुरू हो रही है। इसमें जस्टिस ए एम बदर ने आरोपी माल्या को गिरफ्तारी पूर्व जमानत देने से इंकार कर दिया है। यह फैसला न्यायालय ने 3 नवंबर को सुनाया था।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र और गोवा में बीजेपी सरकार है।
मशहूर भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने एक बार फिर मानव जाति को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि मानव जाति को अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए जल्द ही दूसरी धरती या फिर प्लानेट खोज लेना चाहिए।
वायर मैगज़ीन को दिए अपने इंटरव्यू में स्टीफन हॉकिंग ने कहा कि विश्व अत्यधिक पर्यावरणीय एवं प्रौद्योगिकीय चुनौतियों का सामना कर रहा है और मानवता की रक्षा के लिए एकजुट होने तथा साथ काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हमारे पास अब अपने ग्रह को नष्ट करने की टेक्नोलॉजी है, लेकिन इससे बच निकलने की क्षमता अब तक विकसित नहीं की है। शायद कुछ सौ साल में हम तारों के बीच मानव बस्तियां बसा लेंगे, लेकिन फिलहाल हमारे पास सिर्फ एक ग्रह है और इसे बचाने के लिए हमें साथ मिल कर काम करने की जरूरत है।
मशहूर वैज्ञानिक हॉकिंग ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता धरती पर मानव के विनाश का कारण बनेगा। उन्होंने कहा कि मुझे डर है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य को धरती से दूसरे ग्रह पर पलायन करने के लिए मजबूर कर देगा। ऐसे में लोगों को वक्त रहते दूसरे ग्रहों पर जल्द ही अपना नया ठिकाना ढूढ़ लेना चाहिए।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बुधवार को दो नए आणविक संपादन उपकरण का निर्माण किया है। इससे म्यूटेशनों को ठीक करने में मदद मिलेगी। म्यूटेशन बहुत से बीमारियों का कारण बनता है, जिनमें से कुछ का कोई उपचार नहीं है।
हॉवर्ड विश्वविद्यालय के डेविड लियू और ब्रॉड इंस्टीट्यूट ऑफ एम आई टी और हार्वर्ड जीन में गलतियों को ठीक करने का एक अत्यंत ही सटीक तरीका प्रदान करता है, जो डीओक्सीरिबो न्यूक्लिक एसिड या डीएनए के बने होते हैं।
ब्रॉड इंस्टीट्यूट के आण्विक जीवविज्ञानी फेंग झांग द्वारा एक दूसरी खोज, जो राइबोन्यूक्लिक एसिड या आरएनए को संपादित करने पर ध्यान केंद्रित करता है। ये डीएनए को बदले बिना प्रोटीन बनाने के लिए आनुवंशिक निर्देश करता है।
भारत के डॉक्टर या प्राइमरी केयर कंसल्टेंट, मरीजों को सिर्फ दो मिनट का वक्त देते हैं। इसका खुलासा एक रिसर्च से हुआ है। मेडिकल कंसल्टेशन पर हुए सबसे बड़े इंटरनेशनल शोध में यह बात सामने आई है।
पड़ोसी देशों बंग्लादेश और पाकिस्तान में स्थिति और भी बदतर है, यहां कंसल्टिंग टाइम औसतन 48 सेकंड से 1.3 मिनट ही है।
यह शोध गुरुवार को मेडिकल जर्नल बी एम जे ओपन में प्रकाशित हुआ है। इसके विपरीत स्वीडन, अमेरिका और नॉर्वे जैसे देशों में कंसल्टेशन का औसत समय 20 मिनट होता है।
यह शोध यूनाइटेड किंगडम के कई अस्पतालों के शोधकर्ताओं ने किया था।
जर्नल में कहा गया है, ''यह चिंता की बात है कि 18 ऐसे देश, जहां की दुनिया की 50 फीसदी आबादी रहती है। यहां का औसत कंसल्टेशन टाइम 5 या इससे कम मिनट है।
स्टडी के मुताबिक, मरीज ज्यादा वक्त फार्मेसी में या ऐंटीबायॉटिक दवाएं खाकर बिता रहे हैं और उनके डॉक्टरों से रिश्ते उतने अच्छे नहीं है।
कंसल्टेशन का वक्त कम होने का मतलब है कि हेल्थकेयर सिस्टम में ज्यादा बड़ी समस्या है। भारत के परिपेक्ष्य में लोकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये अस्पतालों में भीड़ और प्राइमरी केयर फिजिशन की कमी को दर्शाता है। प्राइमरी केयर डॉक्टर कंसल्टेंट्स से अलग होते हैं जो कि मेडिसिन की खास ब्रांच में ट्रेनिंग पाए होते हैं।
भारत में कंसल्टेशन को दो मिनट का वक्त मिलने वाली बात से किसी को भी हैरानी नहीं हुई। हेल्थ कंमेंटेटर रवि दुग्गल का कहना है, ''यह बात सभी को पता है कि अस्पतालों में भीड़भाड़ के चलते डॉक्टर मरीजों को कम वक्त दे पाते हैं।''
डॉ दुग्गल के मुताबिक, ''कोई नई बात नहीं है कि डॉक्टर मरीजों के लक्षणों में भ्रमित हो जाएं।''
वहीं प्राइवेट क्लीनिक और अस्पतालों में भी भीड़ का यही हाल है। यहां डॉक्टर सिर्फ लक्षण पूछते हैं और बहुत कम ही शारीरिक परीक्षण कर पाते हैं।
वेस्टर्न और इंडियन कंसल्टेशन में बीमारियों में फर्क होता है। महाराष्ट्र के डॉक्टर सुहास बताते हैं, ''स्वीडन में मरीज को वायरल फीवर के बजाय साइकोसोशल समस्या होती है। वही भारत में अगर डॉक्टर को हवा में मौजूद किसी खास तरह के वायरस के बारे में जानकारी है तो वह कई लोगों का आसानी से इलाज कर सकता है।'' बी एम जे ओपन स्टडी में कई देशों की स्वास्थ्य सेवाओं की ख़राब हालत को देखा गया।
भारत के दिल्ली में मंगलवार को वायु प्रदूषण बेहद गंभीर स्तर पर पहुंच गया। प्रदूषण परमीसिबल स्टैंडर्ड (सहन करने लायक स्तर) से कई गुना अधिक होने के कारण पूरी दिल्ली धुंध की मोटी चादर में लिपट गई।
बीती शाम से वायु की गुणवत्ता और दृश्यता में तेजी से गिरावट आ रही है तथा नमी और प्रदूषकों के मेल के कारण शहर में घनी धुंध छा गई है।
मंगलवार सुबह दस बजे तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हवा की गुणवत्ता को बेहद गंभीर स्थिति में बताया जिसका मतलब यह है कि प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
वर्तमान हालात के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण (ई पी सी) द्वारा ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जी आर ए पी) के तहत तय उपाय इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं जिसमें पार्किंग शुल्क को चार गुना बढ़ाया जाना शामिल है।
अगर स्थिति और खराब होती है और कम से कम 48 घंटों तक बनी रहती है तो जी आर ए पी के तहत आने वाला कार्यबल स्कूलों को बंद कर सकता है और सम-विषम (आॅड-ईवन) योजना को फिर शुरू कर सकता है।
पिछली बार हवा की गुणवत्ता दीपावली के एक दिन बाद 20 अक्टूबर को बेहद गंभीर स्थिति में पहुंची थी। तब से प्रदूषण के स्तर पर लगातार निगरानी रखी जा रही है और हवा की गुणवत्ता काफी खराब स्तर पर बनी हुई है। यह अत्यंत गंभीर से बेहतर स्थिति है, लेकिन वैश्विक मानकों के मुताबिक यह भी खतरनाक है।
वायु गुणवत्ता बेहद खराब होने का मतलब है कि लंबे समय तक इसके संपर्क में आने पर लोगों को सॉंस संबंधी परेशानी हो सकती है, जबकि बेहद गंभीर स्तर पर होने का मतलब है कि यह सेहतमंद लोगों पर भी असर डाल सकती है और सॉंस तथा दिल के मरीजों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
सी पी सी बी के एयर लैब प्रमुख दीपांकर साहा ने बताया कि हवा बिलकुल भी नहीं चल रही जिस वजह से यह हालात बने हैं। वहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आई एम ए) ने दिल्ली में हवा के खराब गुणवत्ता को देखते हुए इसे पब्लिक हेल्थ के लिए बेहद हानिकारक बताया है। आई एम ए के प्रेसिडेंट डॉ. के के अग्रवाल ने स्कूल बंद करने और लोगों को घर से बाहर ना जाने की अपील की है।
मौसम में मौजूद नमी ने जमीन पर स्थित स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषकों को वहीं पर रोक दिया है। मौसम का हाल बताने वाली निजी एजेंसी स्कायमेट का कहना है कि पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जा रही है और वहां से हवा दोपहर के वक्त शहर में प्रवेश कर रही है। सी पी सी बी ने पड़ोसी शहर नोएडा और गाजियाबाद में भी हवा की गुणवत्ता बेहद गंभीर बताई है।
केरल की पी विजयन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि राज्य पुलिस ने एक हिंदू महिला के इस्लाम धर्म स्वीकार करने और फिर एक मुस्लिम व्यक्ति से उसकी शादी के मामले की गहन जांच की है और ऐसा कुछ नहीं पाया कि मामले की छानबीन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपी जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त को एनआईए को निर्देश दिया था कि वह इस बात की जांच करे कि इस मामले में कथित 'लव जिहाद' का कोई व्यापक पहलू तो शामिल नहीं है।
इस मामले में हिंदू महिला हादिया ने अपना धर्म परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार कर लिया था और बाद में केरल के एक मुस्लिम युवक शफीन जहां से शादी कर ली थी।
केरल सरकार ने कहा कि यूं तो उसने मामले की जांच एनआईए को सौंपने के अदालत के निर्देश का पालन किया, लेकिन पुलिस को अब तक किसी ऐसे अपराध का पता नहीं चला है जिससे वैधानिक तौर पर मामले को केंद्रीय एजेंसी के हवाले किया जा सके।
पिछले दिसंबर में महिला से शादी करने वाले और उच्च न्यायालय की ओर से अपनी शादी रद्द करने के फैसले को चुनौती देने वाले शफीन जहां ने हाल में एक अंतरिम याचिका दाखिल कर उस आदेश को वापस लेने की मांग की जिसमें मामले की जांच एनआईए को सौंपने की बात कही गई थी।
उसने दावा किया था कि महिला ने अपनी शादी से कई महीने पहले धर्मांतरण किया था और शादी एक वैवाहिक वेबसाइट के जरिए तय हुई थी।
अतिरिक्त हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि पुलिस जांच करने में सक्षम है और यदि कोई अनुसूचित अपराध सामने आया होता तो उसने केंद्र को इसकी जानकारी दी होती।
हलफनामे में कहा गया, ''केरल पुलिस की अपराध शाखा ने प्रभावी और ईमानदार तरीके से जांच की थी। केरल पुलिस की ओर से अब तक की गई जांच में किसी अनुसूचित अपराध के होने की घटना सामने नहीं आई है कि इसे एनआईए कानून 2008 की धारा छह के तहत केंद्र सरकार को सूचित किया जाए।''
राज्य ने अपने हलफनामे में कहा, ''केरल पुलिस ने प्रभावी तरीके से उपरोक्त अपराध की गहन जांच की है।''
शफीन जहां ने सुप्रीम कोर्ट का रुख तब किया, जब केरल उच्च न्यायालय ने उसकी शादी रद्द करते हुए कहा कि यह देश की महिलाओं की आजादी का अपमान है।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने तीन अक्तूबर को कहा कि वह इस सवाल पर गौर करेगा कि शफीन जहां और हिंदू महिला की शादी को निरस्त करने के लिए क्या उच्च न्यायालय रिट क्षेत्राधिकार के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है।
अमेरिका ने कहा है कि परमाणु नि:शस्त्रीकरण संधि से एक भी परमाणु हथियार का उन्मूलन नहीं होगा।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब परमाणु हथियारों को दुनिया से समाप्त कर, इसे इतिहास बनाने का प्रयास करने वाले संगठन आईकैन को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है।
इस साल नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले संस्थान द्वारा सर्मिथत परमाणु हथियार निषेध संधि पर अमेरिका का कहना है कि उसका इसपर हस्ताक्षर करने का कोई इरादा नहीं है।
हालांकि उसने परमाणु नि:शस्त्रीकरण के लिए वातावरण तैयार पर अपनी प्रतिबद्धता जताई।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एएफपी को बताया, ''आज की घोषणा से संधि पर अमेरिका के रुख में बदलाव नहीं आएगा।
अमेरिका इसका समर्थन नहीं करता है और वह परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।''
प्रवक्ता ने कहा, ''यह संधि दुनिया को ज्यादा शांतिपूर्ण नहीं बनाएगी, इससे एक भी परमाणु हथियार का उन्मूलन नहीं होगा और न ही इससे किसी देश की सुरक्षा बढ़ेगी।''
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विश्व में परमाणु हथियार से लैस देशों में से किसी ने भी इस संधि का अभी तक समर्थन नहीं किया है।
गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब परमाणु हथियारों को दुनिया से समाप्त कर, इसे इतिहास बनाने का प्रयास करने वाले इंटरनेशनल कैम्पेन टू एबोलिश न्यूक्लियर वेपंस (आईकैन) को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है।
बता दें कि इस साल जुलाई महीने में संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों द्वारा इस संधि को स्वीकार करने में इस संगठन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह संधि बड़े पैमाने पर प्रतीकात्मक ही थी क्योंकि परमाणु हथियार रखने वाले या संदिग्ध नौ देशों- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इस्राइल और उत्तर कोरिया ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।
इसके साथ ही उत्तर कोरिया और ईरान से जुड़ा परमाणु हथियार संकट गहरा रहा है, यह बेहद समीचीन है।
पुरस्कार का घोषणा करते हुए नोर्वेगिएन नोबेल कमेटी के अध्यक्ष बेरिट रिएस एंडर्सन ने कहा कि आई सी ए एन ग्रुप द्वारा परमाणु हथियारों को समाप्त करने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाया गया है। परमाणु हथियारों के कारण मानवतावादी परिणामों को खतरा पहुंच सकता है जिसे ध्यान में रखते हुए ऐसे हथियारों के लिए की जानी वाली संधि के विरुध आई सी ए एन लड़ता आया है। पिछले काफी समय से आई सी ए एन संस्था दुनिया को न्यूक्लियर मुक्त बनाने के लिए जी जान से लगी हुई है।
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के बाद से म्यांमार का रखाइन प्रांत पूरी दुनिया में सुर्खियों में बना हुआ है।
रोहिंग्या हिंसा पर पहली बार बोलते हुए म्यांमार की स्टेट कौंसिलर आंग सांग सू ची ने मंगलवार को कहा है कि वो रोहिंग्या मुसलमानों से बात करना चाहती हैं, ताकि जान सकें कि वे म्यांमार छोड़कर क्यों जा रहे हैं?
जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सेना के क्रूर रवैये को पलायन की वजह बताया है।
अब सवाल उठता है कि क्या वास्तव में आंग सांग सू ची को रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन की वजह मालूम नहीं है?
जब पूरी दुनिया को रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन की असली वजह मालूम है। सेना रोहिंग्या मुसलमानों की पूरी नस्ल के सफाये का अभियान चला रही है तो ये कैसे हो सकता है कि सेना के साथ सत्ता को शेयर करने वाली सू ची को असली वजह मालूम नहीं हो?
निश्चित तौर पर सू ची सत्ता में बने रहने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों पर झूठ बोल रही है। ऐसा करके सू ची सेना को बचा रही है। ताकि सत्ता में बनी रह सके।
म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय से जुड़ी यह कोई पहली हिंसा नहीं है।
रखाइन म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी छोर पर बांग्लादेश की सीमा पर बसा एक प्रांत है, जो 36 हजार 762 वर्ग किलोमीटर में फैला है। सितवे इसकी राजधानी है।
म्यांमार सरकार की 2014 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, रखाइन की कुल आबादी करीब 21 लाख है, जिसमें से 20 लाख बौद्ध हैं। यहां करीब 29 हजार मुसलमान रहते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य की करीब 10 लाख की आबादी को जनगणना में शामिल नहीं किया गया था।
रिपोर्ट में इस 10 लाख की आबादी को मूल रूप से इस्लाम धर्म को मानने वाला बताया गया है।
म्यांमार की जनगणना में शामिल नहीं की गई आबादी को रोहिंग्या मुसलमान माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।
म्यांमार सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि वे पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं।
रखाइन प्रांत में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं।
बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था।
25 अगस्त को रोहिंग्या चरमपंथियों ने म्यामांर के उत्तर रखाइन में पुलिस पोस्ट पर हमला कर 12 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था।
इस हमले के बाद सेना ने अपना क्रूर अभियान चलाया और तब से ही म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है।
आरोप है कि सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से खदेड़ने के मक़सद से उनके गांव जला दिए और नागरिकों पर हमले किए।
पिछले महीने शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक करीब 3,79,000 रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं।
म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों को चरमपंथ के ख़िलाफ़ कार्रवाई बताकर सेना का बचाव किया था। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आलोचना के डर से सू ची ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भी हिस्सा नहीं लिया।
एक सवाल जो सभी के सामने उठ रहा है, वह यह कि आंग सान सू ची अपने देश के अंदर कितनी ताकतवर हैं?
इस बीच आंग सांग सू ची पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान 'मानवीय आपदा' का सामना कर रहे हैं।
गुटेरेश ने कहा कि रोहिंग्या ग्रामीणों के घरों पर सुरक्षा बलों के कथित हमलों को किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने म्यांमार से सैन्य कार्रवाई रोकने की अपील की है।
म्यांमार की सेना ने आम लोगों को निशाना बनाने के आरोप से इनकार करते हुए कहा है कि वह चरमपंथियों से लड़ रही है।
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि बांग्लादेश में अस्थायी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को मिल रही मदद नाकाफी है।
एंटोनियो गुटेरेश ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील की है।
उन्होंने कहा, ''पिछले हफ़्ते बांग्लादेश भागकर आने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या एक लाख 25 हज़ार थी। अब यह संख्या तीन गुनी हो गई है।''
उन्होंने कहा, ''उनमें से बहुत सारे अस्थायी शिविरों में या मदद कर रहे लोगों के साथ रह रहे हैं, लेकिन महिलाएं और बच्चे भूखे और कुपोषित हालत में पहुंच रहे हैं।''
इन दिनों भारत में पेट्रोल के दामों को लेकर हाहाकार मचा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें उफ़ान पर नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत में पेट्रोल महंगा होता जा रहा है, बीते कुछ वक्त से पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के चलते मोदी सरकार को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
मोदी सरकार में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पेट्रोल की बढ़ी कीमतों को लेकर सफ़ाई देने की कोशिश भी की थी, लेकिन विरोधी दलों के हमले और जनता की निराशा नहीं थमी।
भारत में विरोधी दलों का आरोप है कि वैश्विक स्तर पर क्रूड यानी कच्चे तेल के दाम काबू में हैं, ऐसे में मोदी सरकार टैक्स लगाकर पेट्रोल को महंगा बनाए हुए है।
15 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इंडियन बास्केट से जुड़े कच्चे तेल के दाम 54.58 डॉलर प्रति बैरल थे।
अब सवाल उठता है कि कच्चा तेल अगर सामान्य स्तर पर है तो फिर पेट्रोल इतना महंगा क्यों हो रहा है? इस सवाल का जवाब उलझा हुआ नहीं बल्कि बड़ा आसान है।
आपको जानकर ये हैरानी होगी कि जब पेट्रोल भारत पहुंचता है तो इतना महंगा नहीं होता।
अगर मंगलवार, 19 सितंबर 2017 की बात करें तो डेली प्राइसिंग मेथेडॉलोजी के आधार पर पेट्रोल की ट्रेड पैरिटी लैंडड कॉस्ट महज़ 27.74 रुपए थी।
इस कॉस्ट के मायने उस कीमत से हैं जिस पर उत्पाद आयात किया जाता है और इसमें अंतरराष्ट्रीय ट्रांसपोर्ट लागत और टैरिफ़ शामिल हैं।
इस दाम में अगर आप मार्केटिंग कॉस्ट, मार्जिन, फ़्रेट और दूसरे शुल्क जोड़ दें तो पेट्रोल की वो कीमत आ जाएगी, जिस पर डीलरों को ये मिलता है।
19 सितंबर को ये सब मिलाकर 2.74 रुपए था। यानी दोनों को मिला दिया जाए तो डीलरों को पेट्रोल 30.48 रुपए प्रति लीटर की दर पर मिला।
आपके मन में ख़्याल आ सकता है कि अगर डीलर को इतनी सस्ती दर पर पेट्रोल उपलब्ध है तो आम आदमी तक पहुंचता-पहुंचता इतना महंगा कैसे हो जाता है?
लेकिन असली खेल इसी के बाद शुरू होता है। 30.48 रुपए वाला दाम ग्राहक तक आते-आते 70 रुपए कैसे बन जाता है, इसके पीछे मोदी सरकार के टैक्स का खेल है।
असल में डीलरों को मिलने वाली दर और ग्राहक को बेची जाने वाली कीमत में गज़ब का फ़ासला एक्साइज़ ड्यूटी और वैट बनाते हैं।
दिल्ली में आम आदमी को 19 नवंबर को पेट्रोल 70.52 रुपए प्रति लीटर पर मिला।
30.48 रुपए में आप प्रति लीटर 21.48 रुपए एक्साइज़ ड्यूटी जोड़ लीजिए। फिर इसमें जोड़िए 3.57 रुपए प्रति लीटर का डीलर कमीशन और अंत में 14.99 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से वैट, जो दिल्ली में 27 फ़ीसदी है।
इस गणित से मोदी सरकार का ख़ज़ाना तो भर रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल वाजिब दरों पर होने के बावजूद आम लोगों को पेट्रोल काफ़ी महंगा मिल रहा है।
कुछ ऐसी ही कहानी डीज़ल के साथ है। डीज़ल की ट्रेड पैरिटी लैंडड कॉस्ट 27.98 रुपए प्रति लीटर है, जिसमें 2.35 रुपए के शुल्क जुड़ने के बाद डीलरों को मिलने वाला दाम 30.33 रुपए पर पहुंच जाता है। लेकिन ग्राहकों को डीज़ल 58.85 रुपए प्रति लीटर की दर से मिल रहा है।
ऐसा इसलिए कि इसमें 17.33 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज़ ड्यूटी, 2.50 रुपए का डीलर कमीशन, 16.75 फ़ीसदी की दर से वैट और 0.25 रुपए प्रति लीटर पॉल्यूशन सेस जुड़ता है जो कुल 8.69 रुपए जोड़े जाते हैं। कुल मिलाकर दाम पहुंच जाते हैं 58.85 रुपए।
इन दिनों पेट्रोल के दाम कंपनियां तय करती हैं और मोदी सरकार का दावा है कि वो इस मामले में दख़ल नहीं देती।
ऐसे में अगर जनता को राहत की उम्मीद करनी है तो वो सिर्फ़ टैक्स के मोर्चे पर बदलावों से ही मिल सकती है जो सिर्फ सरकार के हाथ में है।









