विज्ञान और टेक्नोलॉजी

जीसैट 9 लॉन्च: साउथ एशिया सैटेलाइट का प्रक्षेपण सफल

भारत ने साउथ एशिया सैटेलाइट (GSAT-9) का सफल प्रक्षेपण किया। शुक्रवार (5 मई) को यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा से किया गया। इसको जियोसिक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (जीएसएलवी) से लॉन्च किया गया।

इस मिशन में पाकिस्तान शामिल नहीं था। सार्क के बाकी छह देशों को इससे फायदा होगा। इसको बनाने में भारत को कुल तीन साल लगे। इसे बनाने में कुल 235 करोड़ रुपए खर्च हुए। भारत के अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका जीसैट-9 का लाभ ले सकेंगे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए ट्वीट किए। इसके साथ ही उन्होंने सभी सहयोगी देशों के लोगों को संबोधित भी किया। उस वक्त सार्क देशों के सभी बड़े नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक-दूसरे से जुड़े थे।

भारत द्वारा लॉन्च यह अबतक का सबसे भारी अंतरिक्ष रॉकेट था। संचार उपग्रह जीसैट-9 भारत समेत सात दक्षिण एशियाई देशों को संचार सुविधाएं उपलब्ध कराएगा।

इनमें से हरेक देश को इस उपग्रह के कम से कम एक 12 केयू-बैंड के ट्रांसपोंडर्स के प्रयोग की सुविधा मिलेगी जिससे उनका संचार तंत्र मजबूत होगा। प्राकृतिक आपदा और आपातकालीन स्थिति में इस संचार तंत्र से सभी देशों को हॉटलाइन से जुड़ने की सुविधा भी मिलेगी।

दिल के दौरे में ब्लड ग्रुप का भी हाथ है

एक शोध के मुताबिक, नॉन-ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों में दिल का दौरा पड़ने की संभावना ज़्यादा होती है।

शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि ब्लड ग्रुप ए, बी और एबी में ख़ून जमाने वाले प्रोटीन का स्तर ज़्यादा होता है।

उनका कहना है कि इन नतीजों से ये समझने में मदद मिलेगी कि किस पर दिल के दौरे का ख़तरा अधिक है।

यूरोपियन सोसाइटी ऑफ़ कार्डियोलॉजी कांग्रेस में पेश की गई इस रिपोर्ट में क़रीब 13 लाख लोगों पर अध्ययन किया गया है।

इससे पहले हुई रिसर्च में पता चला था कि दुर्लभ ब्लड ग्रुप एबी वाले लोगों पर दिल के दौरे का सबसे ज़्यादा ख़तरा रहता है।

असल में ब्रिटेन में ओ ब्लड ग्रुप सबसे आम है। ऐसे लोगों की संख्या 48 प्रतिशत है।

नीदरलैंड्स के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ग्रोनिनजेन की शोधकर्ता टेस्सा कोले ने बताया कि हर ब्लड ग्रुप से जुड़े ख़तरों पर अध्ययन होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ''आने वाले समय में, दिल के दौरे से बचने के लिए की जाने वाली जांच में ब्लड ग्रुप की जानकारी को भी शामिल किया जाना चाहिए।''

जलवायु परिवर्तन से बिगड़ रही दिमागी सेहत

जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ पर्यावरण पर ही नहीं पड़ रहा बल्कि यह इंसान के सेहत पर भी विपरीत असर डाल रही है, खासकर दिमागी सेहत पर।

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसियशन और ईको अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया कि ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न हुई स्थितियों से इंसानों में अवसाद, चिंता और अनिद्रा बढ़ रही है और वह लगातार हिंसक होता जा रहा है। इससे मस्तिष्काघात का खतरा भी बढ़ गया है और लोग 'पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर' (पीटीएसडी) का शिकार हो रहे हैं।

क्या है पीटीएसडी
पीटीएसडी कई मानसिक विकारों जैसे गंभीर अवसाद, गुस्सा, अनिद्रा से जुड़ा रोग है। इससे व्यक्ति अधिक चिड़चिड़ा हो जाता है, चीजें भूलने लगता है। काम में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अति सतर्कता, अचानक तेज गुस्सा आना और कभी-कभी व्यक्ति बीमारी में हिंसक हो जाता है। सोते समय अचानक डर से दिल का दौरा पड़ने की समस्या हो सकती है।

कैटरीना तूफान प्रभावित क्षेत्रों पर शोध
शोधकर्ताओं ने 2005 में आए तूफान कैटरीना से प्रभावित हुए क्षेत्र के हजारों लोगों पर शोध किया और पाया कि तूफान के बाद उनमें आत्महत्या का ख्याल अधिक बढ़ गया था।

49 फीसदी अवसाद के शिकार
इलाके के 49 फीसदी लोगों में पीटीएसडी और अवसाद का खतरा पाया गया। साथ ही वह समाजिक स्तर पर अलगाव महसूस करने लगे।

प्रतिरोधक क्षमता पर असर
जलवायु परिवर्तन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर करता है। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

भारत में ईवीएम से हो सकती है वोटों की हेराफेरी

उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड के विधान सभा चुनावों के नतीजे आने के बाद मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल पर बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सवाल उठाने लगे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो अप्रैल में होने वाले दिल्ली महानगरपालिका के चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग कर दी है।

ऐसा नहीं है कि ईवीएम पर पहली बार सवाल खड़े हुए हैं। जब 2009 के लोक सभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को कांग्रेस गठबंधन से हार मिली थी तब पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। भाजपा नेता और सैफोलॉजिस्ट जीवीएल नरसिम्हा ने तो ईवीएम के त्रुटियों पर पूरी किताब ही लिख दी जिसकी भूमिका खुद आडवाणी ने लिखी थी।

ईवीएम मशीन कैसे काम करती है? मतदान के लिए प्रयोग की जाने वाली ईवीएम मशीन में दो इकाइयां होती हैं- कंट्रोल यूनिट और बैलटिंग यूनिट। ये दोनों इकाइयां आपस में पांच मीटर के तार से जुड़ी होती हैं। कंट्रोल यूनिट चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त पोलिंग अफसर के पास होती है। बैलटिंग यूनिट मतदान कक्ष में होती है जिसमें मतदाता अपने वोट देते हैं।  मतदाता पूरी गोपनीयता के साथ अपने पसंदीदा उम्मीदवार और उसके चुनाव चिह्न को वोट देते हैं।

कंट्रोल यूनिट ईवीएम का दिमाग होती है। बैलटिंग यूनिट तभी चालू होती है जब पोलिंग अफसर उसमें लगा बैलट बटन दबाता है। ईवीएम छह वोल्ट के सिंगल अल्काइन बैटरी से चलती है जो कंट्रोल यूनिट में लगी होती है। जिन इलाकों में बिजली न हो वहाँ भी इसका सुविधापूर्वक इस्तेमाल हो सकता है।

चुनाव आयोग ने पहली बार 1977 में इलेक्ट्रानिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईएल) से ईवीएम का प्रोटोटाइप (नमूना) बनाने के लिए संपर्क किया। छह अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को ईवीएम का प्रोटोटाइप दिखाया। उस समय ज्यादातर पार्टियों का रुख इसे लेकर सकारात्मक था। उसके बाद चुनाव आयोग ने भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) को ईवीएम बनाने का जिम्मा दिया।

चुनाव आयोग ने 1982 में केरल विधान सभा चुनाव के दौरान पहली बार ईवीएम का व्यावहारिक परीक्षण किया। जनप्रतिनिधत्व  कानून (आरपी एक्ट) 1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर और बैलट बॉक्स का इस्तेमाल हो सकता था इसलिए आयोग ने सरकार से इस कानून में संशोधन करने की मांग की।

हालांकि आयोग ने संविधान संशोधन का इंतजार किए बगैर आर्टिकल 324 के तहत मिली आपातकालीन अधिकार का इस्तेमाल करके केरल की पारावुर विधान सभा के कुल 84 पोलिंग स्टेशन में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल किया। इस सीट से कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवान पिल्लई के बीच मुकाबला था।

सीपीआई उम्मीदवार सिवान पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन दायर करके ईवीएम के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किए। जब चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट को मशीन दिखायी तो अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया। लेकिन जब पिल्लई 123 वोटों से चुनाव जीत गए तो कांग्रेसी एसी जोस हाई कोर्ट पहुंच गए। जोस का कहना था कि ईवीएम का इस्तेमाल करके आरपी एक्ट 1951 और चुनाव प्रक्रिया एक्ट 1961 का उल्लंघन हुआ है। हाई कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया।

एसी जोस ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। दोबार चुनाव हुए तो एसी जोस जीत गए।

सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। 1988 में आरपी एक्ट में संशोधन करके ईवीएम के इस्तेमाल को कानूनी बनाया गया। नवंबर 1998 में मध्य प्रदेश और राजस्थान की 16 विधान सभा सीटों (हरेक में पांच पोलिंग स्टेशन) पर प्रयोग के तौर पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। वहीं दिल्ली की छह विधान सभा सीटों पर इनका प्रयोगात्मक इस्तेमाल किया गया। साल 2004 के लोक सभा चुनाव में पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ।

ईवीएम के इस्तेमाल पर उठने वाले सवालों के जवाब में चुनाव आयोग का कहना है कि जिन देशों में ईवीएम विफल साबित हुए हैं उनसे भारतीय ईवीएम की तुलना 'गलत और भ्रामक' है। आयोग ने कहा, ''दूसरे देशों में पर्सनल कम्प्यूटर वाले ईवीएम का इस्तेमाल होता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम से चलती हैं इसलिए उन्हें हैक किया जा सकता है। जबकि भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले ईवीएम एक पूरी तरह स्वतंत्र मशीन होते हैं और वो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़े होते और न ही उसमें अलग से कोई इनपुट डाला जा सकता है।''

आयोग ने कहा, ''भारतीय ईवीएम मशीन के सॉफ्टवेयर चिप को केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है और इसे इस तरह बनाया जाता है कि मैनुफैक्चरर द्वारा बर्नट इन किए जाने के बाद इन पर कुछ भी राइट करना संभव नहीं।''

जर्मनी और नीदरलैंड ने पारदर्शिता के अभाव में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इटली को भी लगता है कि ईवीएम से नतीजे प्रभावित किए जा सकते हैं। आयरलैंड ने तीन सालों तक ईवीएम पर शोध में पांच करोड़ 10 लाख पाउंड खर्च करने के बाद इनके इस्तेमाल का ख्याल छोड़ दिया। अमेरिका समेत कई देशों में बिना पेपर ट्रेल वाले ईवीएम पर रोक है। हालांकि इन सभी देशों में मतदाताओं की संख्या भारत की तुलना में बहुत कम है। चुनाव में खर्च होने वाले धन, समय और ऊर्जा के मामले में भी यही हाल है।

ईवीएम से जुड़ा सबसे बड़ा विवाद साल 2010 में हुआ। तीन वैज्ञानिकों ने दावा किया है उन्होंने ईवीएम को हैक करने का तरीका पता कर लिया है। इन शोधकर्ताओं ने इंटरनेट पर एक वीडियो डाला जिसमें ईवीएम को हैक करते हुए दिखाए जाने का दावा किया गया। इस वीडियो में भारतीय चुनाव आयोग की वास्तविक ईवीएम मशीन में एक देसी उपकरण जोड़कर इसे हैक करने का दावा किया गया। इस रिसर्च टीम का नेतृत्व मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे एलेक्स हाल्डरमैन ने किया था। प्रोफेसर एलेक्स ने दावा किया कि वो एक मोबाइल फोन से मैसेज भेजकर ईवीएम को हैक कर सकते हैं।

इस वीडियो के सामने आने के बाद भारतीय चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को खारिज किया। बाद में इस रिसर्च टीम में शामिल भारतीय वैज्ञानिक हरि प्रसाद को मुंबई के कलेक्टर कार्यालय से ईवीएम मशीन चुराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

विडियो कॉलिंग के लिए भारत में लॉन्च हुआ स्काइप लाइट एप

भारत में भले ही 3जी 4जी जैसी फास्ट इंटरनेट सर्विस दस्तक दे चुकी हों लेकिन इंटरनेट की धीमी रफ्तार आज भी युवाओं की परेशान की सबसे बड़ी वजह बनी हुई है। शायद इसी वजह से भारत में विडियो कॉलिंग का चलन उतनी तेजी से प्रगति नहीं कर पाया जितने की उम्मीद की जाती है।

भारत में विडियो कॉलिंग के ग्राफ को उठाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने अपने एप स्काइप का लाइट वर्जन पेश किया है। आइए जानते हैं इसके बारे में।

माइक्रोसॉफ्ट की सीईओ सत्या नडेला ने 'फ्यूचर डिकोडिड' कॉन्फ्रेंस में स्काइप लाइट पेश करने का ऐलान किया है। माइक्रोसॉफ्ट ने भारत की धीमी इंटरनेट रफ्तार को ध्यान में रखते हुए नए स्काइप लाइट एप को डिजाइन किया है। इससे पहले स्काइप पर विडियो कॉल करने के लिए तेज मोबाइल इंटरनेट की जरूरत पड़ती थी जिसके लिए यूजर को ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते थे, लेकिन स्काइप के लाइट वर्जन पर यूजर कम खर्च में ज्यादा सेवा का लाभ उठा सकेंगे।

हैदराबाद सेंटर में डेवलप हुए स्काइप लाइट कम इंटरनेट स्पीड पर भी काम करने में सक्षम होगा। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला का कहना है कि 13 एमबी साइज का यह एप्लीकेशन न सिर्फ फोन की इंटरनल स्टोरेज में कम जगह लेता है बल्कि यह 'लो बैंडविड्थ' वाली 2जी और 3जी सर्विस पर भी आसानी से विडियो कॉल करने की सुविधा देता है। इसकी सेटिंग्स में एक नया विकल्प होगा जिसके जरिए यूजर ये जान सकेंगे कि एप ने कितना मोबाइल या वाई-फाई डाटा खर्च किया है। धीमी इंटरनेट गति की वजह से स्काइप पर विडियो क्वालिटी का स्तर थोड़ा कम हो सकता है।

इसके अलावा स्काइप लाइट में चैटबोट भी शामिल किया जाएगा। चैटबोट के जरिए यूजर टेक्स्ट मैसेज का ऑटो रिप्लाई कर सकेंगे। ऑटो रिप्लाई करने के लिए जवाब को मैनुअली सेट करने की सुविधा दी जाएगी।

स्काइप के सामान्य एप की तरह स्काइप लाइट पर भी यूजर कई प्रकार के इमोजी और स्टीकर का इस्तेमाल समान रूप से कर पाएंगे। स्काइप पर अगर आप किसी को इमेज भेजते हैं तो यह उसका साइज कम्प्रेस करके कम डाटा खर्च करने में मददगार होगा।

स्काइप के नए लाइट वर्जन को आधार कार्ड से भी जोड़ा गया है। इसमें चैट के दौरान ई-केवाईसी के जरिए यूजर का वेरिफिकेशन किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर यदि यूजर किसी अजनबी से स्काइप लाइट पर बात कर रहा है तो वह उसके आधार की यूनिक आईडी, जन्म और असली नाम जान सकेंगे। सिक्योरिटी और प्राइवेसी के लिहाज से इसे बेहद खास माना जा रहा है। हालांकि चैट के बाद आधार की डिटेल खुद-ब-खुद डिलीट हो जाएगी। नौकरी के लिए ऑनलाइन इंटरव्यू में भी यह खासा मददगार साबित होगा।

मैसेज सेक्शन में यूजर को स्काइप मैसेज, एसएमएस और प्रमोशनल मैसेज के तीन नए कॉलम दिखाई देंगे यानी इसमें आपके एसएमएस भी इंटीग्रेट होंगे।

स्काइप को 14 साल पहले कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के रूप में डिजाइन किया गया था, लेकिन मौजूदा समय में भारत के स्मार्टफोन यूजर की संख्या डेस्कटॉप यूजर से कहीं ज्यादा अधिक है। इसलिए कंपनी ने स्काइप का लेटेस्ट लाइट वर्जन इंटरनेट स्पीड को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है।

स्काइप पर विडियो कॉल के लिए ज्यादा डाटा की खपत ही यूजर की सबसे बड़ी परेशानी है। शायद इसी वजह से यूजर स्काइप की बजाय व्हॉट्सएप या आईएमओ पर विडियो कॉल करना ज्यादा पसंद करते है।

व्हॉट्सएप पर यूजर जहां विडियो कॉल, वॉयस कॉल और टैक्स्ट चैटिंग का आनंद ले सकते हैं, वहीं आईएमओ धीमी गति की इंटरनेट पर विडियो कॉल करने के लिए काफी सुविधाजनक है।

आईएमओ पर 2जी नेटवर्क का इस्तेमाल करने वाले यूजर भी विडियो कॉल कर सकते हैं। गूगल प्लेस्टोर पर मुफ्त में उपलब्ध इस एप को 4.2 रेटिंग दी गई है और इसे अब तक करीब 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने डाउनलोड किया है।

बीएमडब्लू की उड़ने वाली होवर बाइक की शुरू हुई प्री-बुकिंग

उड़ने वाली कार की प्री बुकिंग शुरू हुए अभी कुछ ही दिन बीते थे कि आज जर्मन कंपनी बीएमडब्लू ने फ्लाइंग बाइक की प्री बुकिंग शुरू कर दी।

कंपनी बीएमडब्लू उड़ने वाली बाइक पर बड़ी तेजी से काम कर रही है। कंपनी बीएमडब्लू ने ऐसी बाइक का मॉडल तैयार कर लिया है जो उड़ने में सक्षम होगा।

बीएमडब्लू ने एक होवर बाइक का मॉडल तैयार किया है। होवर बाइक या होवर बोर्ड ऐसा उपकरण होता है जो जमीन से कुछ फीट की ऊंचाई पर चलता है। आसान भाषा में कहें तो ये उपकरण हवा में उड़ता है। बीएमडब्लू ने ऐसी ही एक बाइक का मॉडल तैयार कर लिया है।

कंपनी ने आर 1200 जीएस एडवेंचर मोटरसाइकिल के बेस पर इस मॉडल को तैयार किया है। दिखने में यह मॉडल एकदम किसी फ्यूचरिस्टिक बाइक की तरह ही लगता है। कुछ समय पहले टॉय मेकर कंपनी 'लेगो' ने बीएमडब्लू की एक बाइक का मॉडल तैयार किया था। यह कोई असली बाइक नहीं थी बल्कि उनके खिलौनों से तैयार की गई बाइक थी जिसे बनाने का काम 'लेगो' ने किया था।

प्लास्टिक से बनाई गई वह बाइक लोगों को काफी पंसद आई थी। उसी से प्रेरणा लेते हुए बीएमडब्लू ने खुद R 1200 GS बाइक का होवर मॉडल बनाया है। दिखने में यह मॉडल बेहद खूबसूरत है। इसे वाकई काफी अच्छी लुक्स दी गई हैं। बाइक की सीट, हैंडल, सस्पेंशन, इंजिन सब एकदम असली नजर आता है।

उड़ने वाली कार की बिक्री शुरू

रोड पर ट्रैफिक की बढ़ती समस्या से निजात दिलाने के लिए फ्लाइंग कार अब कांसेप्ट से जल्द ही रोड से दौड़ते हुए हवा में उड़ती नजर आएगी। डच कार कंपनी पैल-वी ने उड़ने वाली कार चलाने के सपने को हकीकत में बदल दिया है।

दुनिया की पहली कमर्शियल उड़ने वाली कार की बिक्री आम लोगों के लिए शुरू कर दी है। ग्राहक दो उड़ने वाली कारें, लिबर्टी स्पोर्ट और लिबर्टी पायनियर की प्री-बुकिंग शुरू कर सकते हैं।

मात्र 6.60 से 16.70 लाख रुपए देकर लिबर्टी स्पोर्ट और लिबर्टी पायनियर को बुक कर सकते हैं। कंपनी ने लिबर्टी स्पोर्ट की कीमत 2 करोड़ 70 लाख रुपए और लिबर्टी पायनियर की कीमत 4 करोड़ 1 लाख रुपए रखी है। कार की डिलेवरी यूरोप में 2018 के अंत तक शुरू होने की उम्मीद है।

इस कार को कॉपटर बनने में 10 मिनट लगता है। जमीन पर ये कार 161 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है। हवा में 112 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकेंगी। एक लीटर इंधन में ये 11 किलोमीटर चलेंगी।

एक्स्ट्रा पैसे देने पर खरीदारों को ट्रेनिंग सेशन और सारे ही उपकरणों का डिस्प्ले देखने को मिलेगा। इन कारों में फोल्ड किए जा सकने वाले रोटर ब्लेड लगे हैं जो जमीन पर फोल्ड रहेंगे और उड़ने के लिए हेलीकॉप्टर की तरह घूमेंगे।

पैल-वी ने दो कार लिबर्टी स्पोर्ट और लिबर्टी पायनियर की बिक्री शुरू की है। लिबर्टी स्पोर्ट की कीमत 4 लाख डॉलर (2.70 करोड़ रुपए) और लिबर्टी पायनियर की कीमत 6 लाख डॉलर (4.1 करोड़ रुपए) तय की गई है। लिबर्टी स्पोर्ट को 6.60 लाख रुपए देकर बुक कर सकते हैं। लिबर्टी पायनियर को रिजर्व करने के लिए 16.70 लाख रुपए खर्च करने होंगे। बुकिंग के लिए दिए हुए पैसे नॉन रिफंडेबल है।

इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजकर इतिहास रचा

आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक और कामयाबी हासिल कर ली। इसरो ने पीएसएलवी-सी37 से एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर नया कीर्तिमान स्थापित किया।

इसरो का यह मिशन भारत की अंतरिक्ष में एक मजबूत मौजूदगी दर्ज करवाएगा। इसरो ने पीएसएलवी-सी 37 के जरिए सुबह 9 बजकर 28 मिनट पर 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया।

अब तक रूस के पास एक साथ सबसे अधिक उपग्रह छोड़ने का रिकॉर्ड है। उसने 37 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित कर यह मुकाम हासिल किया था। इसरो भी जून 2015 में एक साथ 23 उपग्रह प्रक्षेपित कर अपनी काबलियत साबित कर चुका है।

इस मिशन में मुख्य उपग्रह 714 किलोग्राम वजन वाला कार्टोसेट-2 सीरीज उपग्रह है जो इसी सीरीज के पहले प्रक्षेपित अन्य उपग्रहों के समान है।

इसके अलावा इसरो के दो तथा 101 विदेशी अति सूक्ष्म (नैनो) उपग्रहों का भी प्रक्षेपण किया गया है जिनका कुल वजन 664 किलोग्राम है।

विदेशी उपग्रहों में 96 अमेरिका के तथा इजरायल, कजाखस्तान, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात के एक-एक उपग्रह शामिल हैं।

इसरो के इस मिशन में सैन फ्रांसिस्को की एक कंपनी के 88 छोटे सैटेलाइट लॉन्च किए गए।

भारत द्वारा ही विकसित ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान इसरो का सबसे विश्वस्त रॉकेट है। पीएसएलवी-सी 37 इस श्रेणी के रॉकेट का 39वां मिशन है।

अब तक पीएसएलवी की मदद से 38 मिशन को अंजाम दिया जा चुका है।

कार्टोसेट-2 सीरीज का उपग्रह धरती की निगरानी के इस्तेमाल में आएगा। इसके अलावा दो नैनो उपग्रह आईएनएस-1ए और आईएनएस-1बी को भी कक्षा में स्थापित किया।

इसरो ने इस मिशन में सबसे भारी PSLV का इस्तेमाल किया है। PSLV-37 का वज़न 320 टन, ऊंचाई 44.4 मीटर है।

88 छोटे सैटेलाइटों का इस्तेमाल धरती की तस्वीरों के लिए किया जाएगा।

इसरो का यह रॉकेट 15 मंजिला इमारत जितना ऊंचा है।

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