विज्ञान और टेक्नोलॉजी

चंद्रयान-2 असफल क्यों हुआ?

इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (इसरो) का चंद्रयान-2 असफल क्यों हुआ? इसकी मुख्य वजह क्या थी? यह जानना बेहद जरूरी है। चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग चाँद पर करने में इसरो क्यों असफल हुआ? इसरो का कहना है कि उसे चांद की सतह पर विक्रम लैंडर से जुड़ी तस्वीरें मिली हैं।  

इसरो के प्रमुख के सिवन ने कहा कि, "इसरो को चांद की सतह पर लैंडर की तस्वीर मिली है। चांद का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर की थर्मल इमेज ली है।''

इसरो प्रमुख ने यह भी कहा है कि चंद्रयान-2 में लगे कैमरों ने लैंडर के भीतर प्रज्ञान रोवर के होने की पुष्टि की है।

इन सभी बातों के बाद अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि क्या भारत का सपना, जो शुक्रवार की रात अधूरा रह गया था वो पूरा हो पाएगा।

शुक्रवार की रात विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर पहुंचने से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही था जब उसका संपर्क ग्राउंड स्टेशन से टूट गया।

के सिवन ने कहा है कि इसरो लगातार विक्रम लैंडर से संपर्क बनाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि वैज्ञानिक इसकी बहुत कम उम्मीद जता रहे हैं।

उनका कहना है कि अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह एक अद्भुत बात होगी।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने बीबीसी से कहा, "यह बहुत मुश्किल है। संपर्क दोबारा साधने के लिए लैंडर का चांद की सतह पर सही सलामत उतरना ज़रूरी है, इतना ही नहीं वो इस तरह से उतरे कि उसके पांव सतह पर ही हों और उसके वो हिस्से काम कर रहे हों, जिससे हमारा संपर्क टूट गया था।''

"दूसरी ज़रूरी बात यह है कि लैंडर इस स्थिति में हो कि वो 50 वॉट पावर जेनरेट कर सके और उसके सोलर पैनल को सूरज की रोशनी मिल रही हो।''

गौहर रज़ा बहुत उम्मीद नहीं रखते हैं कि लैंडर का संपर्क ऑर्बिटर से दोबारा हो सकेगा। उनके मुताबिक अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह अद्भुत बात होगी।

हालांकि इसरो इसमें कितना कामयाब होगा, आने वाले दिनों में इसका पता चलेगा।

के सिवन ने लैंडर की 'थर्मल' इमेज लेने की बात कही है। ऑर्बिटर में जो कैमरे लगे हुए हैं वो 'थर्मल' तस्वीरें लेता है।

हर चीज, जो शून्य डिग्री तापमान में नहीं होती हैं, उससे रेडिएशन होता रहता है। ये रेडिएशन तब तक आंख से नहीं दिखाई देते हैं, जब तक वो चीज़ इतनी गर्म न हो जाए, जिससे आँखों से दिखाई देने वाली रोशनी न निकलने लगे।

जैसे लोहा गर्म करते हैं तो एक सीमा के बाद इससे रोशनी निकलने लगती है, लेकिन इससे साधारण तापमान में रेडिएशन होता रहता है।

इस थर्मल रेडिएशन को ऑर्बिटर में लगे हुए कैमरे कैप्चर करते हैं और एक तस्वीर बनाते हैं और इसी तस्वीर को थर्मल इमेज कहते हैं। ये तस्वीर थोड़ी धुंधली होती हैं, जिनकी व्याख्या करनी पड़ती है। ये वैसी तस्वीर नहीं होती हैं, जैसी हम आम कैमरे से लेते हैं।

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया है या फिर सही सलामत स्थिति में है।

वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं, "रविवार तक प्राप्त सूचना के हिसाब से लैंडर पूरी तरह टूटा नहीं है। अगर टूट के बिखर जाता तो हम नहीं कह पातें कि लैंडर की तस्वीरें ली गई हैं।''

हार्ड लैंडिंग में लैंडर को कितना नुकसान पहुंचा है, इस बारे में के सिवन ने साफ़ तौर पर कुछ नहीं बताया है।

वैज्ञानिक इसका मतलब यह निकाल रहे हैं कि उसकी स्पीड में इतनी कमी तो आ ही गई थी कि सतह से टकरा कर लैंडर पूरी तरह बर्बाद नहीं हुआ है।

गौहर रज़ा कहते हैं, "इसका यह भी मतलब है कि उसकी स्पीड तब तक कम होती रही, जब तक वो चांद की सतह पर उतर नहीं गया।''

ऑर्बिटर के द्वारा ली गई तस्वीरों के विश्लेषण के बाद ही पता चल पाएगा कि लैंडर को कितना नुकसान पहुंचा है।

इस सवाल के जवाब में गौहर रज़ा कहते हैं कि 2.1 किलोमीटर पर जब हमारा संपर्क लैंडर से टूट गया था, उस दूरी से चंद्रमा की सतह पहुंचने तक की सही सूचना हमें नहीं मिल पाई थी।

"अब लैंडर की तस्वीरें हमें मिल गई हैं, ऐसे में अब इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतिम क्षणों में क्या हुआ होगा।''

अभी तक वैज्ञानिक यह कयास लगा रहे हैं कि अंतिम वक़्त में लैंडर की स्पीड कंट्रोल नहीं हो पाई थी। यह एक बड़ी चुनौती होती है कि एक लैंडर को तय स्पीड पर सतह पर उतारा जाए ताकि उसे कोई क्षति न हो और उसके पैर जमीन पर ही पड़ें।

सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड को 21 हज़ार किलोमीटर से 7 किलोमीटर प्रति घंटा करना था। यह कहा जा रहा है कि इसरो से स्पीड कंट्रोलिंग में ही चूक हुई और उसकी सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई।

लैंडर में चारों तरफ़ चार रॉकेट या फिर कहे तो इंजन लगे थे, जिन्हें स्पीड कम करने के लिए फायर किया जाना था। जब ये ऊपर से नीचे आ रहा होता है, तब ये रॉकेट नीचे से ऊपर की तरफ फायर किए जाते हैं ताकि स्पीड कंट्रोल किया जा सके।

अंत में पांचवा रॉकेट लैंडर के बीच में लगा था, जिसका काम 400 मीटर ऊपर तक लैंडर को जीरो स्पीड में लाना था, ताकि वो आराम से लैंड कर सके, पर ऐसा नहीं हो सका। परेशानी करीब दो किलोमीटर ऊपर से ही शुरू हो गई थी।

इसरो प्रमुख के सिवन ने शनिवार को डीडी न्यूज को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सात सालों तक काम कर सकेगा, हालांकि लक्ष्य एक साल का ही है।

आख़िर यह कैसे होगा, इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं कि ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के काम करने के लिए दो तरह की ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

एक तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल उपकरणों को चलाने में किया जाता है।  ये ऊर्जा, इलेक्ट्रिकल ऊर्जा होती है। इसके लिए उपकरणों पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं ताकि सूरज की किरणों से यह ऊर्जा मिल सके।

दूसरी तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर की दिशा बदलने के लिए किया जाता है। यह ज़रूरत बिना ईंधन से पूरी नहीं की जा सकती है।

हमारे ऑर्बिटर में ईंधन अभी बचा हुआ है और यह सात सालों तक काम कर सकेगा।

ऑर्बिटर तो काम कर रहा है। चाँद पर पानी की खोज भारत का मुख्य लक्ष्य था और वो काम ऑर्बिटर कर रहा है। भविष्य में इसका डेटा ज़रूर आएगा।

लैंडर विक्रम मुख्य रूप से चाँद की सतह पर जाकर वहाँ का विश्लेषण करने वाला था। वो अब नहीं हो पाएगा। वहाँ की चट्टान का विश्लेषण करना था वो अब नहीं हो पाएगा। विक्रम और प्रज्ञान से चाँद की सतह की सेल्फी आती और दुनिया देखती, अब वो संभव नहीं है। विक्रम और प्रज्ञान एक दूसरे की सेल्फी भेजते, अब वो नहीं हो पाएगा।  

यह एक साइंटिफिक मिशन था और इसे बनने में 11 साल लगे थे। इसका ऑर्बिटर सफल रहा और लैंडर, रोवर असफल रहे। इस असफलता से इसरो पीछे नहीं जाएगा। इसरो पहले समझने की कोशिश करेगा कि क्या हुआ है, उसके बाद अगले क़दम पर फ़ैसला करेगा।

अमरीका, रूस और चीन को चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग में सफलता मिली है। भारत शुक्रवार की रात इससे चूक गया। सॉफ्ट लैन्डिंग का मतलब होता है कि आप किसी भी सैटलाइट को किसी लैंडर से सुरक्षित लैंड करवाए और वो अपना काम सुचारू रूप से कर सके। चंद्रयान-2 को भी इसी तरह चन्द्रमा की सतह पर उतारना था लेकिन आख़िरी क्षणों में संभव नहीं हो पाया।

इसरो का चंद्रयान-2 से संपर्क टूटा

47 दिनों की यात्रा के बाद चंद्रयान-2 का चन्द्रमा की सतह से महज दो किलोमीटर दूर इसरो से संपर्क टूट गया।

चन्द्रयान-2 का लैंडर विक्रम आख़िरी दो किलोमीटर में ख़ामोश हो गया।  इसी लैंडर के ज़रिए चन्द्रयान-2 को चन्द्रमा की सतह तक पहुंचना था।

इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहा कि शुरुआत में सब कुछ सामान्य था लेकिन चन्द्रमा की सतह से आख़िरी के 2.1 किलोमीटर पहले संपर्क टूट गया।

इसरो प्रमुख ने कहा कि इससे जुड़े डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है।  अब तक अमरीका, रूस और चीन ही चन्द्रमा पर अपने अंतरिक्षयान की सॉफ़्ट लैन्डिंग करवा पाए हैं और भारत ये उपलब्धि हासिल करने से दो क़दम पीछे रह गया।  

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए शुक्रवार की रात बेंगलुरु स्थित इसरो केंद्र में थे।

संपर्क टूटने के बाद मोदी ने वैज्ञानिकों ढाढस बंधवाया और कहा कि किसी भी बड़े मिशन में उतार-चढ़ाव लगा रहता है। इससे पहले सिवन ने कहा था कि आख़िर के 15 मिनट सबसे अहम हैं और इस 15 मिनट में संपर्क टूटा।

भारत में इसकी सफलता को लेकर काफ़ी उत्साह का माहौल था और लोगों की नज़रें देर रात भी इसरो के मिशन पर थी।

जब इसरो से संपर्क टूटने की बात सामने आई तो लोगों को निराशा हुई लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों का सबने हौसला बढ़ाया। दूसरी तरफ़ पड़ोसी देश पाकिस्तान से इस पर तंज और व्यंग्य भरी प्रतिक्रिया आई।

पाकिस्तान के विज्ञान और तकनीक मंत्री फ़वाद हुसैन चौधरी ने चंद्रयान-2 से संपर्क टूटने पर पीएम मोदी की प्रतिक्रिया के वीडियो को रीट्वीट करते कहा, ''मोदी जी सैटेलाइट कम्युनिकेशन पर भाषण दे रहे हैं। दरअसल, ये नेता नहीं बल्कि एक अंतरिक्षयात्री हैं। लोकसभा को मोदी से एक ग़रीब मुल्क के 900 करोड़ रुपए बर्बाद करने के लिए सवाल पूछने चाहिए।''

अपने दूसरे ट्वीट में फ़वाद चौधरी ने लिखा है, ''मैं हैरान हूं कि भारतीय ट्रोल्स मुझे गालियां दे रहे हैं, मानो उनके मून मिशन को मैंने नाकाम किया हो। भाई हमने कहा था कि 900 करोड़ लगाओ इन नालायक़ों पर? अब सब्र करो और सोने की कोशिश करो।

पाकिस्तान के एक ट्विटर यज़र ने लिखा कि आपने पीएम मोदी को कंट्रोल रूम से जाते हुए देखा? इस पर फ़वाद चौधरी ने लिखा, ''उफ़ मैं अहम पल को नहीं देख सका।''  

अभय कश्यप नाम के एक भारतीय ने फ़वाद चौधरी से नाराज़गी जताई तो इस पर उन्होंने प्रतिक्रिया में कहा, ''सो जा भाई, मून के बदले मुंबई में उतर गया खिलौना। जो काम आता नहीं पंगा नहीं लेते ना।

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ़ ग़फ़ूर ने ट्वीट कर कहा है, ''बहुत बढ़िया इसरो। किसकी ग़लती है? पहला- बेगुनाह कश्मीरियों जिन्हें क़ैद कर रखा गया है? दूसरा- मुस्लिम और अल्पसंख्यक की? तीसरा- भारत के भीतर हिन्दुत्व विरोधी आवाज़? चौथा- आईएसआई? आपको हिन्दुत्व कहीं नहीं ले जाएगा।''

पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर भारत के इस मिशन का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। कई लोग तो इसे विंग कमांडर अभिनंदन से जोड़ रहे हैं।

चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की पहली तस्वीर भेजी

चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की सतह की पहली तस्वीर भेजी है। भारत के इसरो ने ये तस्वीर जारी करते हुए बताया कि चंद्रमा के सतह से 2,650 किलोमीटर की दूरी से ये तस्वीर ली गई है।

इसरो ने अपने ट्वीट में जारी की गई तस्वीर में चंद्रमा के दो जगहों को चिह्नित किया हैज मेयर ओरियेंटेल बेसिन और अपोलो क्रेटर।

निगरानी के युग में वीपीएन के साथ गुप्त

वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क पहली बार 1996 में प्रयोग में आया और दुनिया भर में वृद्धि के साथ लोकप्रियता के साथ ऑनलाइन ब्राउज़िंग में सबसे स्थायी नवाचारों में से एक है।

वीपीएन मूल रूप से विभिन्न देशों में अपने कार्यालयों को जोड़ने के लिए निगमों और सरकारों के लिए उपकरण के रूप में विकसित किए गए थे, ताकि लोगों को एक साथ काम करना आसान हो सके।

लेकिन जैसे-जैसे वेब की निगरानी और नियंत्रण बढ़ा है, एक बाजार उभरा है और विस्तारित हुआ है - लोगों के लिए इंटरनेट ब्लॉक के आसपास काम करने और अपने स्थान को ऑनलाइन छिपाने के लिए।

अधिनायकवादी प्रवृत्ति वाले देशों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं, जैसे कि ईरान, चीन और तुर्की, वीपीएन अब श्रीलंका, खाड़ी के पार और साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका, जैसे डेटा चोरी, ऑनलाइन ट्रैकिंग और वेब ब्लॉकिंग में तेजी से बढ़ रहे हैं सामान्य रूप से।

अल जज़ीरा के मुताबिक, "सूडान में विरोध प्रदर्शन के दौरान, अधिकारियों ने एक इंटरनेट शटडाउन जारी किया और बहुत से लोग इस सेंसरशिप को दरकिनार करने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल कर रहे थे।" "इसने हजारों और हजारों लोगों को सोशल मीडिया तक पहुंच बनाने के लिए चित्रों, वीडियो को एक दूसरे के बीच संवाद करने के लिए, लेकिन दुनिया के साथ देश में क्या चल रहा है, इसके लिए सक्षम किया।"

कार्यकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा वीपीएन के उपयोग से परे एक देश के बाहर सूचना फैलाने के लिए उत्सुक, नेटवर्क भी उपयोगकर्ताओं को हितों की एक विविध सरणी का पीछा करने और यहां तक ​​कि कानून की धज्जियां उड़ाने में सक्षम बनाता है।

"आपके पास और अधिक सामान्य उपयोगकर्ता होंगे जो केवल पोर्नोग्राफ़ी या खेल देखना चाहते हैं। और लोग हर समय ऐसा करते हैं," जोसेफ कॉक्स, वाइस के साथ साइबरसिटी पत्रकार बताते हैं। "मुझे नहीं पता कि यह वीपीएन के लिए एक वैध उपयोग है - जाहिर है कि कुछ कानूनी वैधता होगी - लेकिन लोग सभी प्रकार के कारणों के लिए वीपीएन का उपयोग करते हैं।"

पिछले कुछ वर्षों में, वीपीएन सेवाओं की संख्या में उछाल आया है। नॉर्ड वीपीएन, हॉटस्पॉट शील्ड, एक्सप्रेसवीपीएन, टनल बियर और साइबरगॉस्ट बाजार में सबसे लोकप्रिय नामों में से कुछ हैं।

एक्सप्रेस वीपीएन के उपाध्यक्ष हेरोल्ड ली के अनुसार, वीपीएन स्थापित करने के लिए चुनौतीपूर्ण हुआ करते थे लेकिन अब यह केवल एक ऐप डाउनलोड करने की बात है। उनका तर्क है कि गोपनीयता और सुरक्षा अब विलासिता नहीं हैं, इसलिए "वीपीएन आपके दरवाजे पर लॉक होने से ज्यादा लक्जरी नहीं हैं"।

इंडोनेशिया और तुर्की जैसे देशों ने सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर डाउनलोड की संख्या बढ़ाई है। लेकिन वीपीएन के उपयोग में उछाल अधिकारियों द्वारा किसी का ध्यान नहीं गया है। उदाहरण के लिए, बेलारूस, ईरान, ओमान और रूस जैसे देशों में, वीपीएन भारी प्रतिबंधों के अधीन हैं और उन्हें प्रतिबंधित करने के स्थान पर कुछ कानून भी हैं।

इस्तांबुल बिल्गी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर यमन अकडनिज़ ने ध्यान दिया कि तुर्की में वीपीएन का उपयोग आपराधिक नहीं है, लेकिन हाल ही में देश ने अपने इंटरनेट कानून में संशोधन करते हुए अधिकारियों को अवरुद्ध वीपीएन सेवाओं का उपयोग करने का अनुरोध किया।

"इन प्रसिद्ध वीपीएन सेवाओं में से कई तुर्की से दुर्गम हैं और यदि आप उनकी वेबसाइटों तक पहुंचने का प्रबंधन करते हैं और उनके साथ एक खाता है, तो वे काम नहीं करते हैं," वे कहते हैं।

चीन में, प्राधिकरण केवल विदेशी वीपीएन सेवाओं को अवरुद्ध नहीं कर रहे हैं, वे राज्य द्वारा अनुमोदित और स्थानीय रूप से बनाए गए वीपीएन के उपयोग पर जोर दे रहे हैं जो न तो गोपनीयता और न ही गुमनामी की गारंटी देते हैं - जिससे कई लोग उजागर होते हैं।

"जब यह सरकार और राज्य ब्लॉकों की बात आती है, तो यह कुछ ऐसा है जो हम पिछले एक दशक से दुनिया भर में देख रहे हैं," ली कहते हैं। "और हम उम्मीद करते हैं कि केवल वृद्धि जारी रहेगी।"

चीन अपनी सेना में 'आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस' लाने को पूरी तरह तैयार

चीन अपनी सेना में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग में महारथ हासिल करने पर अपनी नज़रें टिकाई हैं। एशिया के इस विशाल देश का अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के मामले में आगे बढ़ने का यह प्रयास बेहद महत्वपूर्ण है।

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर चाइना एकेडमी ऑफ़ इनफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन के एक श्वेत पत्र में कहा गया है, ''आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए हथियारों के प्रयोग से दूर बैठे ही भविष्य में युद्ध को नियंत्रित किया जा सकता है, यह युद्ध की सटीकता को बनाने के साथ ही युद्धक्षेत्र को भी सीमित रख सकता है।

2017 में चीन की स्टेट काउंसिल ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दोहरे उपयोग वाले सिविल और मिलिट्री तकनीक के एकीकृत उपकरणों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने का विचार दिया गया और इसके लिए आधुनिक 'आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस' पर बल दिया गया था।

सिविल-मिलिट्री मेल का उद्देश्य निजी क्षेत्र सहित चीन की प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों को 'आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस' संबंधित सहयोग के जरिये सैन्य औद्योगिक उत्पादन के दायरे में लाना था।

2018 में चीन की दो मल्टीनेशनल टेकनोलॉजी कंपनियों ने बाइदु (2,368) और टेनसेंट (1,168) इसकी ज़िम्मेदारी ली और चीन के भीतर 'आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस' के अनुसंधान और विकास से जुड़े अधिकतम अमरीकी पेटेंट हासिल किये। लेकिन चीन इससे भी आगे बढ़ा और उसने अनुसंधान के ढांचे विकसित करने के लिए स्टार्ट अप्स में निवेश किये और उन्हें सरकारी योजनाओं के तहत अनुसंधानों से जोड़ने की रणनीति पर अपना ध्यान केंद्रित किया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन की सेना और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में लगी कंपनियों के बीच सहयोग है। यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि चाइना आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एसोसिएशन के प्रमुख चीन की सेना के मेजर जनरल ली डेई हैं।

चीन के राष्ट्रीय ख़ुफ़िया क़ानून के मुताबिक़, राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर कंपनियों को 'राष्ट्रीय ख़ुफ़िया कार्यों में सहयोग और सहायता' करना चाहिए।

इन प्रयासों से परिणाम भी मिलने लगे। मार्च 2019 में चीन ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की नई तकनीक को लेकर पेटेंट के मामले में अमरीका को पछाड़ दिया।

और अपनी उपलब्धियों को दिखाने के लिए, बीते चार वर्षों से वह एक सालाना सिविल-मिलिट्री इंटीग्रेशन एक्सपो का आयोजन कर रहा है। इस शो में बड़े पैमाने पर ड्रोन, कमांड-कंट्रोल सिस्टम, ट्रेनिंग सिमुलेशन उपकरण और मानव रहित युद्ध हार्डवेयर्स जैसी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले सैन्य उत्पादों को प्रदर्शित किया जाता है।

ड्रोन एक ऐसा क्षेत्र है, जहां आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से बहुत बड़े पैमाने पर सुधार लाया जा सकता है। अन्य चीज़ों के अलावा, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एक ड्रोन को युद्ध के मैदान में अपने बल पर मानव रहित विमानों को पहचानने और उन्हें मार गिराने की क्षमता प्रदान करेगा।

ज़ियान यूएवी और चेंग्दू एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री ग्रुप जैसी चीनी कंपनियां जे-10, जे-11 और जे-20 जैसे चीनी फ़ाइटर जेट बनाती हैं, जो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले ड्रोन बनाने में निवेश कर रही हैं।

ज़ियान यूएवी ने ब्लोफिश ए-2 विकसित किया है, जो ऐसा ही एक ड्रोन है।

कंपनी की वेबसाइट में कहा गया है कि ब्लोफिश ए-2 अपने बल पर मिड-पॉइंट या फिक्स्ड-पॉइंट डिटेक्शन, फिक्स्ड-रेंज जासूसी और टारगेट स्ट्राइक समेत कहीं अधिक जटिल लड़ाकू मिशन पूरा करता है।

एक अन्य चीनी कंपनी, इहांग ने 184 एएवी नामक एक ड्रोन विकसित किया है, जो बिना किसी मानवीय सहायता के पहले से तय रास्ते पर 500 मीटर तक उड़ सकता है, यह अपने साथ एक पैसेंजर या सामान ले जाने में भी सक्षम है।

सिविल-मिलिट्री 'ड्रोन टैक्सी' के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है। यह सिविल-सैन्य एकीकरण की दिशा में उठाये गये चीन की एक बड़ी कोशिश का उदाहरण है।

सैन्य ड्रोन मानवरहित हवाई विमान (यूएवी) के रूप में युद्ध क्षेत्र में टोही विमान के रूप में काम करेगा और वहां से कमांड सेंटर में डेटा वापस भेज सकेगा।

एक बड़े क्षेत्र पर टोही विमान के रूप में काम करने की क्षमता यूएवी को एक ऐसी मशीन में बदल देंगे जो बिना मानवीय सहायता के निगरानी कर सकती हैं।

इसके अलावा, मशीन लर्निंग सिस्टम की क्षमता वाले ये ड्रोन युद्ध क्षेत्र में सही निर्णय लेने में सक्षम होंगे लिहाजा सैन्य जासूसी और भी अधिक सटीक तरीके से हो सकेगी।

इसके साथ ही 5G नेटवर्क तकनीक पर चीन की बढ़ती महारत से ड्रोन उस तेज़ी से डेटा भेज सकने में सक्षम हो सकेगा जो अब से पहले नहीं देखी गई है।

चीन दुनिया भर में यूएवी के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है। यूएई, पाकिस्तान, लीबिया और सऊदी अरब जैसे देश इस तकनीक के लिए चीन की ओर नज़र लगाए हुए हैं।

ज़ियान यूएवी ने ब्लोफिश ए-2 यूएई को बेच दिया है, पाकिस्तान और सऊदी अरब से साथ इसकी बिक्री पर चर्चा चल रही है।

हांगकांग स्थित न्यूज़पेपर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा कि चीन सऊदी अरब में ड्रोन उत्पादन के कारखाने भी लगा सकता है।

और मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि लीबिया और यमन में हाल के संघर्षों के दौरान कथित तौर पर चीन में बने ड्रोन का उपयोग किया गया था।

चीन ने ऐसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं जो ड्रोन और छोटी मिसाइलों के इसके निर्यात को नियंत्रित करते हों। उदाहरण के लिए, यह उन 35 देशों में नहीं है जो मिसाइल टेकनोलॉजी नियंत्रण योजना के पक्षकार हैं।

जापानी एसोसिएशन ऑफ डिफेंस इंडस्ट्री (JADI) की पत्रिका के एक लेख में कहा गया है कि यूएवी डेवलपमेंट के लिए चीन का बजट 2018 में 1.2 अरब डॉलर से बढ़कर 2019 में 1.4 अरब डॉलर हो गया।

रिपोर्ट के मुताबिक, इस आधार पर यूएवी को बनाने में चीनी निवेश 2025 तक 2.6 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।

जानकारों के मुताबिक़, 2016 में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने यूएवी के अनुसंधान और विकास को कम्युनिस्ट पार्टी के एक नए समूह- सेंट्रल मिलिट्री कमिशन सब्सिडियरी को सौंप दिया और चूंकि सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के प्रमुख राष्ट्रपति होते हैं लिहाजा यूएवी विकास कार्यक्रम अब शी जिनपिंग की सीधी निगरानी में आता है।

चीन चेहरे की पहचान (फेशियल रिकग्निशन) की निगरानी करने वाली तकनीक के आपूर्तिकर्ता के रूप में भी तेज़ी से उभरा है, इसकी मांग कई देशों में बढ़ रही है।

चीन की निगरानी करने वाली इस तकनीक के पास बहुत बड़ी संख्या में डेटाबेस हैं।

माना जाता है कि सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय फ़ेशियल रिकग्निशन का एक सबसे बड़ा डेटाबेस तैयार कर रहा है। यह अपना फोकस शिनजियांग प्रांत पर लगाये हुए है।

सेंस टाइम, चीन की एक स्टार्टअप है जिसने शिनजियांग में पुलिस को सर्विलांस तकनीक दी है। हालांकि इसके उपयोग को लेकर इसका विरोध भी किया जा रहा है। कंपनी ने हाल ही में अपने शेयर तांगली तकनीक को बेचे हैं।

युद्ध की योजना बनाने वाला सॉफ्टवेयर : आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, 2007 से चीन सेंट्रल एक्गोरिथ्म पर आधारित एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित कर रहा है जो युद्ध के मैदान में तेज़ गति और सटीकता के साथ फ़ैसले लेने में मददगार साबित होगा।

हालांकि, चीन इस पर कितना आगे बढ़ा है, यह पता लगाना मुश्किल है, लेकिन अमरीका और नाटो जिनके पास उन्नत तकनीक मौजूद है। उन्हें चुनौती देने के लिए नई तकनीक का विकास करने में इसकी बहुत बारीक जानकारी होना आवश्यक है।

बताया जाता है कि इस क्षेत्र में चीन की कोशिशें अमरीका की अफ़ग़ानिस्तान में गतिविधियों पर आधारित हैं।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन सरकार ने बेल्जियम की कंपनी लुसिएड से लुसीडलाइट्स्पीड सॉफ्टवेयर का अधिग्रहण किया है, जो भौगोलिक स्थिति के संदर्भ में स्पष्ट इमेजरी, जीपीएस, सैटेलाइट फ़ोटोग्राफ़ी के साथ ही डेटा भी देता है और इसका इस्तेमाल नाटो की सेना करती है।

2015 में, शिन्हुआ ने राष्ट्रीय रक्षा प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में चीफ़ इंजीनियर लियू झोंग का प्रोफ़ाइल किया, जो 'सूचना इंजीनियरिंग प्रणाली की मुख्य प्रयोगशाला' के प्रभारी थे।

शिन्हुआ ने कहा, ''प्रोफेसर झोंग को एक नई प्रौद्योगिकी को विकसित करने पर लगाया गया है जो आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के बल पर सेना की योजना बनाने की गति को तेज़ करता है।''

युद्ध क्षेत्र में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से फ़ैसले लेने के सॉफ्टवेयर के मामले में झोंग चीन के प्रमुख विशेषज्ञों में से एक हैं।

मिसाइल : चीन एआई-संचालित मिसाइलों को विकसित कर रहा है जो लक्ष्य का पता लगा कर बिना किसी मानवीय सहायता के उस पर हमला कर सकती है।

जेएडीआई की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने एआई को अपनी डोंगफेंग 21डी, एक मध्यम दूरी की मिसाइल के साथ जोड़ा है। चीनी सरकार के न्यूज़पेपर पीपुल्स डेली में कहा गया है कि डीएफ़-21डी 'एक (विमान) वाहक जहाज' को डुबो सकता है और रास्ते में इसे रोक पाना भी मुश्किल है।

पीपुल्स डेली ने यह भी बताया है कि डीएफ-21डी के पुराने संस्करण डीएफ-26, 'ज़मीन पर बड़े आकार के स्थिर लक्ष्य और यहां तक कि 4,000 किलोमीटर की दूरी पर पानी पर भी लक्ष्य को निशाना बना सकता है', हालांकि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि क्या यह मिसाइल आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से चलती है।

सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि बैलिस्टिक मिसाइल प्रणालियों के साथ काम करने के लिए एआई-संचालित ड्रोन विकसित किए जाएंगे ताकि उनकी मारक क्षमता में सुधार हो सके।

फ़िलीपींस में वैज्ञानिकों को मिली इंसान की एक और प्रजाति, नाम है - होमो लूज़ोनेसिस

मानव प्रजाति की सूची में एक और नया नाम जुड़ गया है जिसके अवशेष फ़िलीपीन्स की एक गुफ़ा में मिले हैं।

विलुप्त हो चुकी इस नई प्रजाति के अवशेष फिलीपीन्स के सबसे बड़े द्वीप लूज़ोन में पाए गए हैं जिसके बाद इस प्रजाति का नाम होमो लूज़ोनेसिस रखा गया है।

इस प्रजाति में पाए जाने वाली कुछ-कुछ भौतिक विशेषताएं प्राचीन मानव प्रजातियों और आज की मानव प्रजाति से मिलती-जुलती हैं।

अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि प्राचीन मानव के ये सम्बन्धी अफ़्रीका से जुड़े हो सकते हैं जो बाद में दक्षिण पूर्व एशिया में आकर बस गए होंगे। इन अवशेषों की खोज से पहले ऐसा होना लगभग असंभव माना जा रहा था। इस खोज के बाद अब ये माना जा रहा है कि फ़िलिपीन्स और इस प्रांत में मानव प्रजाति का विकास बेहद पेचीदा रहा हो सकता है क्योंकि यहां पहले से ही तीन या फिर उससे अधिक मानव प्रजातियां रह रही थीं।

इनमें से एक थे नाटे कद वाले 'हॉबिट' या होमो फ्लोरेसीन्सिस  जो इंडोनेशिया के फ्लोर्स नाम के द्वीप में करीब 50 हज़ार साल तक थे।

लंदन के नैचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के प्रोफ़ेसर क्रिस स्ट्रिंगर का कहना है, ''2004 में नाटे कद वाली मानव प्रजाति होमो फ्लोरेसीन्सिस के बारे में जानकारी प्रकाशित हुई थी। उस वक्त मैंने कहा था कि मानव प्रजाति खोजने का जो काम फ्लोर्स पर किया गया है उसे इलाके के और द्वीपों में भी क्या जाना चहिए।''

''मेरा अंदाज़ा सही था। उससे करीब 3 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर मौजूद लूज़ोन द्वीप पर कामयाबी मिली है।''

नेचर पत्रिका के अनुसार, होमो लूज़ोनेसिस के अवशेष लूज़ोन के उत्तर में मौजूद कैलाओ गुफा में मिले हैं। बताया जा रहा है कि ये 67 हज़ार से 50 हज़ार साल पुराने हैं।

गुफा में मिलने वाले अवशेषों में मानव शरीर के तीन हिस्से मिले हैं जिनमें दांत, हाथ और पैरों की हड्डियां शामिल हैं। ये अवशेष चार लोगों के हैं जिनमें एक युवा का अवशेष है। इन्हें 2007 में गुफा की खुदाई के वक्त निकाला गया था।

होमो लूज़ोनेसिस की कुछ विशेषताएं आज के दौर की मानव प्रजाति से मिलती हैं, जबकि कई विशेषताएं जैसे कि ऑस्ट्रलोपिथेसीन की तरह सीधे खड़े होकर चलना और अफ्रीका में पाई गई बंदर से मिलती-जुलती मानव प्रजाति जैसी हैं जो करीब 20 से 40 लाख साल पहले पाए जाते थे। इनकी कुछ विशेषताएं प्राचीन होमो जाति से भी मिलती हैं।

हाथों और पैरों की उंगलियां भीतर की तरफ मुड़ी हुई हैं जो इस बात की ओर इशारा करती हैं कि ये लोग पेड़ों पर चढ़ते होंगे।

अगर इस बात के पुख़्ता सबूत मिलें कि ऑस्ट्रलोपिथेसीन जैसी प्रजातियां दक्षिण पूर्व एशिया तक पहुंच पाई थीं तो इससे इस बात का अंदाज़ा लग सकता है कि मानव इतिहास के कौन से वंशज अफ्रीका से सबसे पहले बाहर निकले थे।

माना जाता है कि होमो इरेक्टस वो पहली प्रजाति थी जो 19 लाख साल पहले अफ्रीका छोड़ कर बाहर आए थे।

लूज़ोन द्वीप चारों ओर से पानी से घिरा है और इस कारण नई खोज ने इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आख़िर वो इस द्वीप पर कैसे पहुंचे होंगे।

होमो लूज़ोनेसिस के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में डेनिसोवन्स नाम की एक मानव प्रजाति भी पाई जाती थी।  माना जाता है कि इस इलाके में आने के बाद ये प्रजाति होमो सेपियन्स से घुल-मिल गई थी।

यह डीएनए विश्लेषण के आधार माना जाता है, क्योंकि इस इलाके में डेनिसोवन्स के कोई जीवाश्म नहीं पाए गए हैं।

इंडोनिशिया का फ्लोर्स द्वीप होमो फ्लोरेसीन्सिस का घर माना जाता है जिन्हें उनके नाटे कद के कारण हॉबिट्स भी कहा जाता है।

माना जाता है कि वो करीब एक लाख साल पहले धरती पर रहते थे और 50 हज़ार साल पहले ख़त्म हो गए थे। और उनके जाने के साथ ही आधुनिक मानव के धरती पर आने का वक्त शुरु हुआ था।

वैज्ञानिकों का मानना है कि होमो फ्लोरेसीन्सिस में पाई जाने वाली कुछ विशेषताएं ऑस्ट्रलोपिथेसीन में भी देखी गई थीं। लेकिन कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि होमो फ्लोरेसीन्सिस,  होमो इरेक्टस की वंशावली में आते हैं।

अब गंजेपन की समस्या दूर हो जाएगी, सिर पर फिर से बाल उगाए जा सकते हैं

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे गंजेपन का इलाज ढूंढने के काफी करीब हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने ऐसा तरीका खोज निकाला है जिससे गंजेपन की समस्या को दूर कर फिर से सिर पर बाल उगाए जा सकते हैं।

न्यूयॉर्क स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के भीतर एक मार्ग सक्रिय कर दिया है जिसका नाम 'सोनिक हेजहॉग' है। शिशु जब गर्भ में होता है तो यह मार्ग काफी ज्यादा सक्रिय रहता है जिससे बालों के रोम तैयार होते हैं। मगर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है या त्वचा में जख्म बढ़ते हैं तो यह रास्ता अवरुद्ध हो जाता है।

आंकड़े बताते हैं कि एक चौथाई पुरुषों के बाल 25 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उड़ने लगते हैं। ब्रिटेन के राजकुमार विलियम्स के बाल तो 22 की उम्र में ही उड़ने लगे थे। ऐसा नहीं है कि यह समस्या पुरुषों में ही है।

अमेरिकन एकडेमी ऑफ डार्मेटोलॉजी के मुताबिक, 40 फीसदी महिलाओं में 40 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बाल झड़ने की समस्या देखने को मिलने लगती है। डॉक्टर मायूमी इटो के नेतृत्व वाली टीम ने जो मार्ग सक्रिय किया है, वह कोशिकाओं के बीच संचार तंत्र का भी काम करता है।

वैज्ञानिकों ने लैब में चूहों की क्षतिग्रस्त त्वचा पर यह अध्ययन किया, जिसमें मुख्य फोकस 'फाइब्रोब्लास्ट' नाम की कोशिकाओं पर था। इस कोशिका से कालाजेन नाम के प्रोटीन का स्राव होता है। यह प्रोटीन त्चचा व बालों की मजबूती और आकार को बनाए रखता है। शोधकर्ताओं ने इस वजह से भी 'फाइब्रोब्लास्ट' पर फोकस किया क्योंकि इसमें जख्म को अपने-आप ठीक करने जैसे कई जैविक गुण भी होते हैं।

'नेचर कम्युनिकेशन' में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, मस्तिष्क की कोशिकाओं में आपस में संचार स्थापित करने के चार हफ्तों के भीतर ही चूहों के बाल फिर से उगने शुरू हो गए। बालों की जड़ और सरंचनाएं नौ हफ्तों के भीतर फिर से दिखाई देने लगीं। अभी तक वैज्ञानिक यही मानते थे कि क्षतिग्रस्त त्वचा की वजह से बाल फिर से नहीं उग पाते हैं। मगर अब इस सबूत ने इस क्षेत्र में नई दिशा दिखा दी है।

डॉक्टर इटो का कहना है, ''अब हमें पता है कि भ्रूण में यह मार्ग काफी सक्रिय होता है, जबकि उम्र बढ़ने के साथ यह प्रक्रिया धीमी होने लगती है। हमारा शोध बताता है कि सोनिक हेजहॉग के जरिए 'फाइब्रोब्लास्ट' को सही किया जा सकता है। इससे बाल दोबारा उगाए जा सकते हैं।''

जिंदगी में आने वाले कई बदलावों की वजह से आपके बाल गिरते हैं। घर बदलना, शोक या गर्भधारण के दौरान भी बाल कमजोर होने लगते हैं। इसके अलावा तनाव, खराब खानपान, पानी में घुले केमिकल, खाने में मौजूद कीटनाशक, गर्भ निरोधक गोलियां भी बाल गिरने के बड़े कारण होते हैं।

टीवी चैनल पर दिखने वाला एंकर असली है या नकली, पता करना मुश्किल होगा

चीन में यह पता लगाना मुश्किल होगा कि समाचार टीवी चैनल पर दिखाई देने वाला व्यक्ति असली है या फिर मशीन है। दरअसल चीन की सरकारी समाचार एजेंसी 'शिन्हुआ' में अब आभासी एंकर खबर पढ़ते नजर आएंगे। कंपनी ने दर्शकों के सामने गुरुवार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित एक आभासी समाचार वाचक पेश किया।

रोचक बात यह है कि इसे देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह वास्तविक इंसान नहीं है। यह एंकर ठीक पेशेवर न्यूज एंकर की तरह खबरें पढ़ सकता है। माना जा रहा है कि हमारी जिंदगी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मौजूदगी का यह नया अध्याय है। अंग्रेजी बोलने वाला यह न्यूज रीडर अपनी पहली रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए बोलता है, 'हैलो, आप देख रहे हैं इंग्लिश न्यूज कार्यक्रम।'

सोगो ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
शिन्हुआ के लिए इस तकनीक को विकसित करने के लिए चीनी सर्च इंजन 'सोगो' ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आभासी समाचार वाचक अपने पहले वीडियो में कहता है, ''मैं आपको सूचनाएं देने के लिए लगातार काम करूंगा क्योंकि मेरे सामने लगातार शब्द टाइप होते रहेंगे। मैं आपके सामने सूचनाओं को एक नए ढंग से प्रस्तुत करने वाला अनुभव लेकर आऊंगा।''

3डी मॉडल पर आधारित
विशेषज्ञों ने असली इंसान के 3डी मॉडल का इस्तेमाल करते हुए आभासी एंकर तैयार किया और इसके बाद एआई तकनीक के माध्यम से आवाज और हावभाव को तैयार किया गया। दिखने में यह हूबहू इंसानों जैसा लगे, इसके लिए काफी मेहनत की गई है। कपड़ों से लेकर होंठों के हिलने जैसी छोटी-छोटी बातों पर भी काफी ध्यान दिया गया है।

24 घंटे काम करने में सक्षम
यह आभासी एंकर बिना थके 24 घंटे काम करने में समक्ष है। इसे तैयार करने के पीछे कंपनी की मंशा भी समाचार वाचकों को कम कर पैसा बचाना है। जिस ढंग से यह एंकर समाचार पढ़ता है, उसे देखकर इसे समाचार वाचकों की नौकरी पर खतरा माना जा सकता है।

अफवाह वाले संदेशों के स्रोत की जानकारी देने से व्हॉट्सएप का इंकार

सोशल नेटवर्किंग एप व्हॉट्सएप ने अपने प्लेटफॉर्म पर संदेश के मूल स्रोत का पता लगाने और इसकी जानकारी भारत को देने से इनकार कर दिया है। भारत सरकार ने व्हाट्सएप पर अफवाह फैलने से हिंसा की बढ़ती घटनाओं के बाद कंपनी से ऐसा तंत्र विकसित करने को कहा था, जिससे संदेश के मूल स्रोत का पता लगाया जा सके।

व्हाट्सएप के प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने से एक किनारे से दूसरे किनारे तक कूटभाषा प्रभावित होगी और व्हॉट्सएप की निजी प्रकृति पर भी असर पड़ेगा। साथ ही इसके दुरुपयोग की और ज्यादा संभावना पैदा होगी और हम निजता के संरक्षण को कमजोर करना नहीं चाहते हैं। लिहाजा कंपनी ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित नहीं कर सकती है। हमारा ध्यान भारत में दूसरों के साथ मिलकर काम करने और लोगों को गलत सूचना के बारे में शिक्षित करने पर है। इसके जरिये हम लोगों को सुरक्षित रखना चाहते हैं।

व्हाट्सएप के प्रमुख क्रिस डेनियल्स इसी सप्ताह भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद से मिले थे, जिसमें अफवाह वाले संदेशों को रोकने पर बातचीत हुई थी।

दुनियाभर में व्हाट्सएप के प्रयोगकर्ताओं की संख्या करीब डेढ़ अरब है। भारत कंपनी के लिए सबसे बड़ा बाजार है। भारत में इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है।

व्हाट्सएप की ओर से कहा गया कि संदेशों के मूल स्रोत का खुलासा होने से उपयोक्ताओं की निजता भंग हो जाएगी। लोग व्हॉट्सएप के जरिये सभी प्रकार की संवेदनशील सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए निर्भर हैं। चाहे वह उनके चिकित्सक हों, बैंक या परिवार के सदस्य हों। ऐसे में अगर इनके स्रोतों का खुलासा होगा तो निजी जानकारी लीक हो सकती है।

भारत सरकार की मंशा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मसलन फेसबुक, ट्विटर और व्हॉट्सएप से फर्जी खबरों के प्रसार को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की है। पिछले कुछ माह में व्हाट्सएप के मंच से कई फर्जी सूचनाओं का प्रसार हुआ जिससे भारत में भीड़ की हिंसा के मामले बढ़ गए।

वायु प्रदूषण की वजह से डेढ़ साल कम हो रही है भारतीयों की उम्र

वायु प्रदूषण से एक आम भारतीय की उम्र डेढ़ साल तक कम हो जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हवा की बेहतर गुणवत्ता से दुनियाभर में मनुष्य की उम्र बढ़ सकती है।

यह पहली बार है जब वायु प्रदूषण और जीवन अवधि पर डाटा का एक साथ अध्ययन किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इसमें वैश्विक अंतर कैसे समग्र जीवन प्रत्याशा पर असर डालता है।

अमेरिका के ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने वायुमंडल में पाए जाने वाले 2.5 माइक्रोन से छोटे कण (पी एम) से वायु प्रदूषण का अध्ययन किया। ये सूक्ष्म कण फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं और इससे दिल का दौरा पड़ने, स्ट्रोक्स, सांस संबंधी बीमारियां और कैंसर होने का खतरा होता है। पी एम 2.5 प्रदूषण बिजली संयंत्रों, कारों, ट्रकों, आग, खेती और औद्योगिक उत्सर्जन से होता है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि वायु प्रदूषण से बांग्लादेश में 1.87 वर्ष, मिस्र में 1.85, पाकिस्तान में 1.56, सऊदी अरब में 1.48, नाइजीरिया में 1.28 और चीन में 1.25 वर्ष तक लोगों की उम्र कम होती है। अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण से भारत में व्यक्ति की औसत आयु 1.53 वर्ष तक कम होती है।