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क्या इसराइल में नेतन्याहू युग ख़त्म होने वाला है?

क्या इसराइल में नेतन्याहू युग ख़त्म होने वाला है? स्थानीय मीडिया में चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से प्रकाशित चुनाव परिणामों के मुताबिक़ नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को 120 सदस्यों वाली कनेसेट (इसराइली संसद) में महज़ 32 सीटें मिली हैं।

उनके मुख्य विपक्षी दल, ब्लू एंड वाइट पार्टी, को भी उतनी ही सीटें मिलती दिख रही है। ऐसे में कोई भी विजय का दावा नहीं कर सकता और दोनों नेता सम्पूर्ण परिणाम आने तक संभावित सहयोगी पार्टियों के नेताओं से विमर्श में लग गए हैं।

नेतन्याहू के नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी ब्लॉक को 56 सीटें मिलती दिख रही हैं। विपक्ष की सभी पार्टियों को मिलाकर 55 सीटें हो रही हैं जो कि 61 के जादुई संख्या से कम हैं। ऐसे में एक राष्ट्रीय एकता की सरकार बनने की संभावना सबसे प्रबल दिख रही है।

एविगडोर लीबरमैन, जो पहले नेतन्याहू के नेतृत्व वाली सरकार में विदेश और रक्षा मंत्री रह चुके हैं, उन्हें इन चुनाव के नतीजे के अनुसार किंगमेकर के रूप में देखा जा रहा है।

उनकी इसराइल बेतेनु पार्टी को 9 सीटें मिलती दिख रही हैं और इस अल्ट्रा-नेशनलिस्ट नेता ने स्पष्ट कर दिया है कि वो एक राष्ट्रीय एकता की सरकार बनता देखना चाहते हैं, भले ही दोनों पार्टियां उन्हें उसमें स्वीकार भी न करें।

मौजूदा हालत में उनकी पार्टी के समर्थन के बगैर दोनों ही खेमे सरकार का गठन नहीं कर सकते।

बुधवार को रात 10 बजे मतदान ख़त्म होने के बाद अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए लीबरमैन ने कहा कि देश में राजनैतिक और आर्थिक, दोनों ही पहलुओं से, आपातकालीन स्थिति बनी हुई है।

ऐसे में वो और उनकी पार्टी अपने विचार पर कायम हैं और सिर्फ़ एक राष्ट्रीय एकता की सरकार के गठन का समर्थन करेंगे।

अप्रैल 9 के चुनावों के बाद इसराइल बेतेनु पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नेतन्याहू के नाम की सिफ़ारिश राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन से की थी मगर सैन्य सेवा से अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स यहूदियों को छूट मिलने के सवाल पर उन्होंने नेतन्याहू के नेतृत्व में बन रही दक्षिणपंथी सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था।

इसराइल बेतेनु के समर्थन के बगैर नेतन्याहू 61 सदस्यों का समर्थन जुटाने में महज़ एक मत से चूक गए और उन्होंने संसद निरस्त करने की मांग करते हुए फिर से चुनाव करवाने को कहा।

इसराइल के इतिहास में पहली बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई जब 160 दिनों के अंतराल में दोबारा चुनाव करवाए गए।

क्या इसराइल में बिन्यामिन नेतन्याहू का दौर ख़त्म हो गया है? तकरीबन 92 फ़ीसदी वोटों की गिनती के बाद सामने आ रहे नतीजों पर गौर करें, तो इसराइल के इतिहास में सर्वाधिक समय तक प्रधानमंत्री पद पर सेवारत रहे नेतन्याहू रिकॉर्ड पाँचवे कार्यकाल की तलाश में विफल होते नज़र आ रहे हैं।

तो क्या ये माना जाए कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर इसराइल की पहचान बन गए नेतन्याहू अब उसके राजनैतिक पटल से लुप्त हो जाएंगे या फिर उनका दौर ख़त्म हो गया है?

इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को अपने पद पर बने रहने के लिए कम से कम एक और पार्टी का समर्थन हासिल करना होगा जो उनके दक्षिणपंथी ब्लॉक में शामिल नहीं है। फ़िलहाल ऐसी सभी पार्टियों ने इस गुंजाइश से इनकार किया है मगर राजनीति में इस समय किसी भी सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

दूसरी तरफ़ अगर राष्ट्रीय एकता की सरकार बनती है तो उसका नेतन्याहू के राजनैतिक भविष्य पर क्या असर पड़ेगा।

ऐसी परिस्थिति में आम तौर पर दोनों बड़ी पार्टियों के नेता दो-दो सालों के लिए प्रधानमंत्री का पद हासिल करते हैं।

इसराइल में ऐसा सफल प्रयास पहले हो चुका है। मगर ऐसी स्थिति में नेतन्याहू के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी अपनी पार्टी के सांसदों को अपने साथ रख पाना।

नेतन्याहू के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के कई मामलों में गंभीर आरोप हैं और ब्लू एंड वाइट पार्टी के नेता, बेनी गैन्ट्ज़, कह चुके हैं कि वो उनके नेतृत्व में सरकार में शामिल नहीं होंगे। अगर वो इस पर कायम रहते हैं और राष्ट्रीय एकता की सरकार के अलावा और कोई विकल्प सामने नहीं आता तो लिकुड पार्टी पर अपने नेता को बदलने का दबाव पड़ सकता है।

सवाल उठता है कि क्या नेतन्याहू की पार्टी के सांसद ऐसे हालात में भी उनका साथ देंगे?

जहां बड़ी पार्टियां उभरते हालात से सुलझने के प्रयास में लगी है वही इन चुनावों से एक बात साफ़ तौर पर नज़र आ रही है। दोबारा चुनावों के सबसे बड़े विजेता अरब आबादी द्वारा समर्थित जॉइंट यूनिटी लिस्ट है जिसके अगले पार्लियामेंट में 12 सांसद शामिल होंगे।  

चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि जहां अप्रैल 9 के चुनाव में 50 फ़ीसदी से भी कम अरब मतदाताओं ने वोट दिया था वहीं इस बार उसमें तकरीबन 13 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है।

आम तौर पर अरब पार्टियां किसी भी सरकार में शामिल नहीं होतीं मगर गन्त्ज़ ने जॉइंट यूनिटी लिस्ट के नेता अयमान ओदेह से संपर्क किया है।  अरब नेता ने भी अपने पत्ते दबा कर रखे हैं और अपना स्टैंड साफ़ नहीं किया है।

स्पष्ट विजेता की ग़ैर-मौजूदगी में सभी की नज़रें राष्ट्रपति रुबेन रिवलिन की और हैं। उन्होंने कहा है कि वो तीसरे चुनाव को असफल करने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे और नई सरकार के गठन के लिए हर सम्भावना पर नज़र डालेंगे।

राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार, जोनाथन कम्मिंग्स, ने कहा कि वो चुनाव आयोग के साथ निरंतर समन्वय बनाए हुए हैं और चुनावी नतीजे सामने आते ही सभी दल के नेताओं से विमर्श करेंगे। राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार ने भी दोहराया कि रिवलिन का पूरा प्रयास रहेगा कि लोगों के मत को ध्यान देते हुए सही फ़ैसला किया जाए, मगर एक और चुनाव होने से रोकने के लिए भी हर संभव प्रयास किए जाएं।

भारत की तुलना बर्बाद हो रहे अर्जेंटीना से क्यों की जा रही है?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने जब एक लाख 76 हज़ार करोड़ रुपए भारत सरकार को देने का फ़ैसला किया तो विपक्षी कांग्रेस ने चेताते हुए कहा कि भारत को अर्जेंटीना से सबक़ लेना चाहिए।

दरअसल, अर्जेंटीना की सरकार ने अपने सेंट्रल बैंक को फंड देने के लिए मजबूर किया था।

ये साल 2010 की बात है। अर्जेंटीना की सरकार ने सेंट्रल बैंक के तत्कालीन चीफ़ को बाहर कर बैंक के रिज़र्व फंड का इस्तेमाल अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए किया था।

अब भारत सरकार के रिज़र्व बैंक से फ़ंड लेने की तुलना अर्जेंटीना के अपने सेंट्रल बैंक से फंड लेने से की जा रही है।

अर्जेंटीना लातिन अमरीका की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। लेकिन आज अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था बेहद ख़राब दौर में है।

विश्लेषक मानते हैं कि अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने की शुरुआत तब ही हो गई थी जब सेंट्रल बैंक से ज़बर्दस्ती पैसा लिया गया था।

भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने 2018 में दिए अपने भाषण में अर्जेंटीना के उस प्रकरण का ज़िक्र किया था।

विरल आचार्य ने जब अर्जेंटीना का ज़िक्र किया तब भी ये कयास लगाए गए थे कि केंद्र सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक पर दबाव बना रही है।

जनवरी 2010 में अर्जेंटीना की सेंट्रल बैंक के प्रमुख मार्टिन रेड्राडो ने नाटकीय अंदाज़ में इस्तीफ़ा दे दिया था। इससे कुछ दिन पहले ही सरकार ने उन्हें पद से हटाने की कोशिश भी की थी।

इस्तीफ़ा देते हुए उन्होंने कहा था, "सेंट्रल बैंक में मेरा समय समाप्त हो गया है इसलिए मैंने इस पद को हमेशा के लिए छोड़ने का फ़ैसला लिया है। मुझे अपना काम पूरा करने पर संतोष है।''

उन्होंने कहा, "हम इस स्थिति में सरकार की संस्थानों में लगातार दख़ल की वजह से पहुंचे हैं। मूल रूप से मैं दो सिद्धांतों का बचाव कर रहा हूं - सेंट्रल बैंक की निर्णय लेने में स्वतंत्रता और रिज़र्व फंड का इस्तेमाल सिर्फ़ वित्तीय और मौद्रिक स्थिरता के लिए ही किया जाना चाहिए।''

राष्ट्रपति क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ की तत्कालीन सरकार ने दिसंबर 2009 में एक आदेश पारित किया था जिसके तहत सरकार को सेंट्रल बैंक के 6.6 अरब डॉलर मिल जाते। सरकार का दावा था कि सेंट्रल बैंक के पास 18 अरब डॉलर का अतिरिक्त फंड है।

रोड्राडो ने ये फंड सरकार को ट्रांसफर करने से इनकार किया था। इसका ख़ामियाजा उन्हें अपना पद गंवाकर चुकाना पड़ा।

अर्जेंटीना की सरकार ने जनवरी 2010 में भी उन पर दुर्व्यवहार और कर्तव्यों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की कोशिश की थी लेकिन ये प्रयास नाकाम रहा क्योंकि ये असंवैधानिक था।

रेड्राडो के पद से हटने के बाद सरकार ने उनके डिप्टी मिगेल एंजेल पेसके को प्रमुख बना दिया था। उन्होंने वही किया जो सरकार चाहती थी।

रेड्राडो के पद छोड़ने के बाद अर्जेंटीना की सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता भी सवालों के घेरे में आ गई थी।

न्यूयॉर्क के एक जज थॉमस ग्रीसा ने न्यू यॉर्क के फ़ेडरल रिज़र्व बैंक में रखे अर्जेंटीना के सेंट्रल बैंक के 1.7 अरब डॉलर को फ़्रीज करने का आदेश ये तर्क देते हुए पारित कर दिया था कि अर्जेंटीना का सेंट्रल बैंक स्वायत्त एजेंसी नहीं रह गया है और देश की सरकार के इशारे पर काम कर रहा है।

गोल्डमैन सैक्स बैंक में अर्जेंटीना के विश्लेषक अल्बर्टो रामोस ने फ़रवरी 2010 में कहा था, "सेंट्रल बैंक के रिज़र्व फंड से सरकारी ख़र्चों की पूर्ति करना सकारात्मक क़दम नहीं है। अतिरिक्त रिज़र्व के कांसेप्ट पर निश्चित तौर पर बहस हो सकती है।''

इन्हीं का उल्लेख करते हुए विरल आचार्य ने कहा था कि एक अच्छी तरह से काम कर रही अर्थव्यवस्था के लिए एक स्वतंत्र सेंट्रल बैंक ज़रूरी है। यानी ऐसा सेंट्रल बैंक जो सरकार के दबाव से मुक्त हो।

विरल आचार्य ने कहा था कि सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता को कम करने के ख़तरनाक नतीजे हो सकते हैं। उन्होंने कहा था कि ये सेल्फ़ गोल साबित हो सकता है क्योंकि ये उन पूंजी बाज़ारों में विश्वास का संकट पैदा कर सकता है जिनका इस्तेमाल सरकारें अपने खर्चे पूरा करने के लिए कर रही हों।

उन्होंने कहा था, "जो सरकारें सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करेंगी उन्हें आज नहीं तो कल वित्तीय बाज़ारों का क्रोध झेलना होगा। उस दिन को कोसना होगा जिस दिन उन्होंने इस अहम नियामक संस्था की स्वतंत्रता से खिलवाड़ किया।''

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने दिसंबर 2018 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने कहा था कि वो निजी कारणों से इस्तीफ़ा दे रहे हैं लेकिन माना गया था कि उन पर सरकार के इशारों पर चलने का दबाव था।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक टिप्पणी में कहा था, "सरकार को समझना चाहिए कि उर्जित पटेल ने इस्तीफ़ा क्यों दिया।''

उर्जित पटेल के बाद शक्तिकांत दास को आरबीआई का गवर्नर बनाया गया। आरबीआई गवर्नर का पद संभालने से पहले वो 2015 से 2017 तक आर्थिक मामलों के सचिव भी रह चुके थे।

आईएएस शक्तिकांत दास नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले से सहमत थे।  

वरिष्ठ पत्रकार प्रंजॉय गुहा ठाकुरता के मुताबिक, "जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ़ हो गया था कि सरकार जो चाहेगी उसे आरबीआई को करना होगा।''

अब शक्तिकांत दास ने विमल जालान समिति की सिफ़ारिश पर सरकार को रिज़र्व बैंक का वो पैसा दे दिया है जिसे सरकार हासिल करना चाहती थी।

भारत और अर्जेंटीना के घटनाक्रम में फ़र्क ये है कि अर्जेंटीना की सरकार ने आदेश पारित कर सेंट्रल बैंक से पैसा लिया जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने विमल जालान समिति की सिफ़ारिश पर सरकार को पैसा दिया।

रेड्राडो ने अपना इस्तीफ़ा देते वक़्त सरकार को आड़े हाथों लिया था लेकिन उर्जित पटेल निजी कारण बताकर किनारे हो गए। लेकिन दोनों के ही बाद पद संभालने वाले प्रमुखों ने वही किया जो सरकार चाहती थी।

2003 से 2007 तक राष्ट्रपति रहे नेस्टर कीर्चनर के शासनकाल में अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था कुछ स्थिर हुई। 2007 में अर्जेंटीना ने आईएमएफ़ से लिया पूरा क़र्ज़ चुका दिया था।

लेकिन कीर्चनर के बाद उनकी पत्नी क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ राष्ट्रपति बनीं। क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ के काल में अर्थव्यवस्था फिर अस्थिर हो गई। क्रिस्टीना ने ही आदेश पारित कर देश की सेंट्रल बैंक का पैसा ले लिया था।

क्रिस्टीना फ़र्नांडेज़ के बाद अक्तूबर 2015 में अर्जेंटीना के लोगों ने मॉरीसियो मैकरी को नया राष्ट्रपति चुना था। उम्मीद थी कि वो इस दक्षिण अमरीकी देश की अर्थव्यवस्था को एक स्थिर रास्ते पर ले आएंगे।

उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करके ग़रीबी को पूरी तरह ख़त्म करने का वादा किया था। लेकिन 2018 आते-आते हालात ये हो गए कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से क़र्ज मांगना पड़ा।  

अर्जेंटीना की मुद्रा दिन प्रतिदिन गिरती रही और महंगाई बढ़ती गई। रोज़मर्रा का जीवनयापन महंगा होता गया। 2015 में एक डॉलर के बदले 10 पेसो मिलते थे अब एक डॉलर के बदले 60 पेसो मिलते हैं।

तमाम कोशिशों के बावजूद मैकरी सरकार महंगाई कम नहीं कर सकी है। ख़र्च कम करने और क़र्ज़ कम लेने के जिन आर्थिक सुधारों का वादा किया गया था वो लागू नहीं हो सके।

बढ़ती महंगाई और सर्वजनिक ख़र्च में कटौती की वजह से आमदनी क़ीमतों की तुलना में नहीं बढ़ी जिसकी वजह से अधिकतर लोग ग़रीब हो गए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ देश की एक तिहाई आबादी अब ग़रीबी में रह रही है।

अब अर्जेंटीना लगातार जटिल हो रहे आर्थिक संकट में फंस गया है जिससे बाहर निकलने का रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने देश के दीवालिया होने का अंदेशा ज़ाहिर कर दिया है।

भारतीय रुपया डॉलर के मुक़ाबले लगातार टूट रहा है। बेरोज़गारी दर बीते 45 सालों में सर्वोच्च स्तर पर है। जीडीपी की दर सात सालों में सबसे कम होकर सिर्फ़ पांच प्रतिशत रह गई है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत स्पष्ट नज़र आ रहे हैं।

बावजूद इसके मोदी सरकार कह रही है देश में सब ठीक है। अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा छूने की ओर अग्रसर है। ये अलग बात है कि सरकार के सहयोगी ही इन दावों पर सवाल उठा रहे हैं।

हाल ही में किए एक ट्वीट में भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है, "अगर नई आर्थिक नीति नहीं आ रही है तो 5 ट्रिलियन को गुडबॉय कहने के लिए तैयार रहें। सिर्फ़ बहादुरी या सिर्फ़ ज्ञान अर्थव्यवस्था को बर्बाद होने से नहीं रोक सकते। अर्थव्यवस्था को दोनों की ज़रूरत होती है।  आज हमारे पास दोनों में से कोई नहीं है।''

क्या नया तलाक कानून भारतीय मुस्लिम महिलाओं की रक्षा कर सकता है?

एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को तलाक देने के लिए तथाकथित 'ट्रिपल तलाक़' का उपयोग अब भारत में गैरकानूनी है

भारत में एक मुस्लिम व्यक्ति अब अपनी पत्नी को केवल तीन बार "तलाक" - अरबी शब्द का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे सकता है।

यदि पति ऐसा करने की कोशिश करता है - तो उसे अब तीन साल तक की जेल हो सकती है।

भारत की संसद द्वारा तात्कालिक तलाक की तथाकथित 'ट्रिपल तलाक़' विधि का अपराधीकरण किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रथा को असंवैधानिक घोषित किए जाने के दो साल बाद मंगलवार को उच्च सदन ने विधेयक पारित किया।

लेकिन यह तेजी से कानून बनाने वालों और प्रचारकों में विभाजित है। उन लोगों का कहना है कि नया उपाय मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा करता है।
विरोधियों का कहना है कि तलाक को आपराधिक बनाना असामान्य है, और सजा कठोर है।

अन्य लोगों का तर्क है कि शादी की समस्याओं की समीक्षा समुदाय के नेताओं द्वारा की जानी चाहिए, न कि सरकार द्वारा।

तो, क्या यह राजनीति से प्रेरित है?

नाइजीरिया ने मुख्य शिया मुस्लिम समूह पर प्रतिबंध क्यों लगाया है?

सरकार ने नाइजीरिया के इस्लामी आंदोलन को एक 'आतंकवादी संगठन' करार दिया।

नाइजीरिया के मुख्य शिया मुस्लिम समूह में कुछ दिनों से तल्खी है।

नाइजीरिया के इस्लामी आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और एक आतंकवादी संगठन को चिह्नित किया गया है।

इसके नेता, इब्राहिम ज़कज़की, जैसे कि 2015 से जेल में थे, जब उनके 350 अनुयायी सुरक्षा बलों के साथ टकराव में मारे गए थे।

उनकी रिहाई की मांग को लेकर पिछले सप्ताह विरोध प्रदर्शन में अधिक समर्थक मारे गए थे।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार बोको हरम के समान समूह को संभाल रही है, जो एक दशक पहले हिंसक हो गया था जब उसके नेता की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी।

क्या इस नवीनतम दरार से एक नया संघर्ष भड़क सकता है?

म्यांमार रोहिंग्या को घर वापस लाने के लिए क्या पेशकश कर रहा है?

सरकारी प्रतिनिधिमंडल ने रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस जाने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं।

यह 700,000 से अधिक रोहिंग्या के म्यांमार में एक सैन्य हमले के बाद भागने से लगभग दो साल बाद है।

संयुक्त राष्ट्र ने बलात्कार और हत्या और रोहिंग्या गांवों को जलाने के आरोपी सैनिकों के साथ इसे 'जातीय सफाई का एक पाठ्यपुस्तक उदाहरण' करार दिया।

उनके भागने के बाद से मुख्य रूप से मुस्लिम जातीय समूह को बांग्लादेश में दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर में बदल दिया गया है।

लेकिन म्यांमार की सरकार पर उन्हें वापस लेने का दबाव है। और एक प्रतिनिधिमंडल कॉक्स बाजार में है कि वे रोहिंग्या को मनाने की कोशिश कर रहे हैं जो उन्हें राखिने राज्य में वापस जाना चाहिए।

लेकिन अभी तक शरणार्थियों ने ना कहा है। वे अपनी सुरक्षा और उन्हें नागरिकता प्रदान करने के बारे में गारंटी चाहते हैं।

तो क्या वास्तव में म्यांमार सरकार की पेशकश है?

युद्धों में इतने बच्चे क्यों मारे जाते हैं?

बच्चों और सशस्त्र संघर्षों पर संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक रिपोर्ट में मौतों और घायलों की रिकॉर्ड संख्या का पता चलता है।

अल जज़ीरा ने इसके प्रकाशन से पहले संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त की।

इसमें पिछले साल 24,000 से अधिक बच्चों के मारे जाने, अपंग होने या बाल सैनिक बनने के लिए मजबूर होने के सबूत मिले।

और यह यमन जैसे युद्ध क्षेत्र में बढ़ती दुर्घटना दर पर प्रकाश डालता है जहां सऊदी-यूएई गठबंधन हौथी विद्रोहियों से लड़ रहा है।

लेकिन फिलिस्तीनी बच्चों की मौत के लिए इजरायल की निंदा करने के बावजूद, इजरायल अपराधियों की रिपोर्ट की काली सूची में नहीं है।

तो हमारे बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए क्या किया जाना चाहिए?

निगरानी के युग में वीपीएन के साथ गुप्त

वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क पहली बार 1996 में प्रयोग में आया और दुनिया भर में वृद्धि के साथ लोकप्रियता के साथ ऑनलाइन ब्राउज़िंग में सबसे स्थायी नवाचारों में से एक है।

वीपीएन मूल रूप से विभिन्न देशों में अपने कार्यालयों को जोड़ने के लिए निगमों और सरकारों के लिए उपकरण के रूप में विकसित किए गए थे, ताकि लोगों को एक साथ काम करना आसान हो सके।

लेकिन जैसे-जैसे वेब की निगरानी और नियंत्रण बढ़ा है, एक बाजार उभरा है और विस्तारित हुआ है - लोगों के लिए इंटरनेट ब्लॉक के आसपास काम करने और अपने स्थान को ऑनलाइन छिपाने के लिए।

अधिनायकवादी प्रवृत्ति वाले देशों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं, जैसे कि ईरान, चीन और तुर्की, वीपीएन अब श्रीलंका, खाड़ी के पार और साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका, जैसे डेटा चोरी, ऑनलाइन ट्रैकिंग और वेब ब्लॉकिंग में तेजी से बढ़ रहे हैं सामान्य रूप से।

अल जज़ीरा के मुताबिक, "सूडान में विरोध प्रदर्शन के दौरान, अधिकारियों ने एक इंटरनेट शटडाउन जारी किया और बहुत से लोग इस सेंसरशिप को दरकिनार करने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल कर रहे थे।" "इसने हजारों और हजारों लोगों को सोशल मीडिया तक पहुंच बनाने के लिए चित्रों, वीडियो को एक दूसरे के बीच संवाद करने के लिए, लेकिन दुनिया के साथ देश में क्या चल रहा है, इसके लिए सक्षम किया।"

कार्यकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा वीपीएन के उपयोग से परे एक देश के बाहर सूचना फैलाने के लिए उत्सुक, नेटवर्क भी उपयोगकर्ताओं को हितों की एक विविध सरणी का पीछा करने और यहां तक ​​कि कानून की धज्जियां उड़ाने में सक्षम बनाता है।

"आपके पास और अधिक सामान्य उपयोगकर्ता होंगे जो केवल पोर्नोग्राफ़ी या खेल देखना चाहते हैं। और लोग हर समय ऐसा करते हैं," जोसेफ कॉक्स, वाइस के साथ साइबरसिटी पत्रकार बताते हैं। "मुझे नहीं पता कि यह वीपीएन के लिए एक वैध उपयोग है - जाहिर है कि कुछ कानूनी वैधता होगी - लेकिन लोग सभी प्रकार के कारणों के लिए वीपीएन का उपयोग करते हैं।"

पिछले कुछ वर्षों में, वीपीएन सेवाओं की संख्या में उछाल आया है। नॉर्ड वीपीएन, हॉटस्पॉट शील्ड, एक्सप्रेसवीपीएन, टनल बियर और साइबरगॉस्ट बाजार में सबसे लोकप्रिय नामों में से कुछ हैं।

एक्सप्रेस वीपीएन के उपाध्यक्ष हेरोल्ड ली के अनुसार, वीपीएन स्थापित करने के लिए चुनौतीपूर्ण हुआ करते थे लेकिन अब यह केवल एक ऐप डाउनलोड करने की बात है। उनका तर्क है कि गोपनीयता और सुरक्षा अब विलासिता नहीं हैं, इसलिए "वीपीएन आपके दरवाजे पर लॉक होने से ज्यादा लक्जरी नहीं हैं"।

इंडोनेशिया और तुर्की जैसे देशों ने सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर डाउनलोड की संख्या बढ़ाई है। लेकिन वीपीएन के उपयोग में उछाल अधिकारियों द्वारा किसी का ध्यान नहीं गया है। उदाहरण के लिए, बेलारूस, ईरान, ओमान और रूस जैसे देशों में, वीपीएन भारी प्रतिबंधों के अधीन हैं और उन्हें प्रतिबंधित करने के स्थान पर कुछ कानून भी हैं।

इस्तांबुल बिल्गी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर यमन अकडनिज़ ने ध्यान दिया कि तुर्की में वीपीएन का उपयोग आपराधिक नहीं है, लेकिन हाल ही में देश ने अपने इंटरनेट कानून में संशोधन करते हुए अधिकारियों को अवरुद्ध वीपीएन सेवाओं का उपयोग करने का अनुरोध किया।

"इन प्रसिद्ध वीपीएन सेवाओं में से कई तुर्की से दुर्गम हैं और यदि आप उनकी वेबसाइटों तक पहुंचने का प्रबंधन करते हैं और उनके साथ एक खाता है, तो वे काम नहीं करते हैं," वे कहते हैं।

चीन में, प्राधिकरण केवल विदेशी वीपीएन सेवाओं को अवरुद्ध नहीं कर रहे हैं, वे राज्य द्वारा अनुमोदित और स्थानीय रूप से बनाए गए वीपीएन के उपयोग पर जोर दे रहे हैं जो न तो गोपनीयता और न ही गुमनामी की गारंटी देते हैं - जिससे कई लोग उजागर होते हैं।

"जब यह सरकार और राज्य ब्लॉकों की बात आती है, तो यह कुछ ऐसा है जो हम पिछले एक दशक से दुनिया भर में देख रहे हैं," ली कहते हैं। "और हम उम्मीद करते हैं कि केवल वृद्धि जारी रहेगी।"

क्या यूरोप में हीटवेव के लिए जलवायु परिवर्तन दोषी है?

पुराने महाद्वीप में कई देशों में तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है।
 
एक हीटवेव ने इस हफ्ते पश्चिमी यूरोप को पछाड़ दिया है, जिसमें फ्रांस से लेकर नीदरलैंड तक रिकॉर्ड तोड़ तापमान देख रहे हैं।

जर्मनी में, एक नए उच्च ने पानी के बहुत गर्म हो जाने के बाद परमाणु रिएक्टर को बंद करने के लिए मजबूर किया।

और यूके में तापमान पिछले स्तरों से बढ़ रहा है, इसका मेट ऑफिस हीटवेव की चेतावनी दे रहा है जैसे दो दशकों में सामान्य हो सकता है।

तो अगर यह सही है, तो उन्हें रोकने के लिए पर्याप्त किया जा रहा है?

दक्षिण अफ्रीका: केप टाउन की सड़कों पर क्यों हैं सैनिक?

कई केप टाउन के निवासियों ने वर्षों से गिरोह से संबंधित हिंसा के प्रकोपों ​​का सामना किया है, और पुलिस द्वारा रक्तपात को समाप्त करने के अप्रभावी प्रयासों से निराश हैं। अब दक्षिण अफ्रीकी शहर के विशेष रूप से खतरनाक क्षेत्रों में सेना को तैनात किया गया है, एक सप्ताहांत के दौरान जिसके दौरान 43 लोगों की हत्या कर दी गई थी।

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय रक्षा बल (ANDF) की इकाइयों ने गुरुवार को केप फ्लैट्स में रोल करना शुरू कर दिया, जिसके एक हफ्ते बाद दक्षिण अफ्रीका के पुलिस मंत्री ने पहली बार घोषणा की कि ऑपरेशन प्रॉस्पर कहा जा रहा है। अगले तीन महीनों के लिए सेना हिंसा को कम करने और सामान्य कानून और व्यवस्था को बहाल करने और बकाया मामलों की जांच करने के लिए पुलिस को एक मौका देने के लिए पुलिस का समर्थन करेगी।

सैन्य तैनाती से आच्छादित दस पूर्वग्रहों में रहने वाले कई लोगों के लिए, सड़कों पर सैनिकों की उपस्थिति गिरोह के सदस्यों के खिलाफ बल की एक अत्यंत आवश्यक शो है, जिनमें से कई दवा बिक्री टर्फ के लिए लड़ाई के प्रतिद्वंद्वी हैं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि राज्य को जिद्दी अपराध के खिलाफ लड़ाई में मदद करने के लिए सेना का उपयोग नहीं करना चाहिए, यह बताते हुए कि सैनिकों का प्रशिक्षण पुलिस अधिकारियों को दिए गए प्रशिक्षण से अलग है सार्वजनिक जीवन का रेंगना सैन्यीकरण बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य और आपराधिक व्यवहार को बढ़ावा देने वाले अवसरों की कमी के प्रयासों को कम करता है।

गुरुवार को हम अपने पैनल से पूछेंगे कि क्या सेना की तैनाती केप टाउन की अमिट प्रतिष्ठा का जवाब है जो दुनिया के सबसे घातक शहरों में से एक है।

क्या सूडान में शक्ति साझा की जाएगी?

सूडान में एक शक्ति-साझाकरण समझौते पर सहमति है, लेकिन एक और तख्तापलट के प्रयास की बात है।
 
महीनों तक, लोगों ने सूडान में विरोध किया, नागरिक शासन का आह्वान किया। कई लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।

एक बार फिर, लोग सड़कों पर निकले हैं। लेकिन इस बार सूडानी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन ने अपने समर्थकों को यह दिखाने के लिए तैयार किया है कि वे एक नई शुरुआत के लिए प्रतिबद्ध हैं।

यह सब, इथियोपिया और अफ्रीकी संघ के बाद, उन सभी को बातचीत की मेज पर लाने के लिए काम किया।

सूडान के विपक्षी गठबंधन ने सत्तारूढ़ सैन्य परिषद के साथ एक संक्रमणकालीन सरकार के गठन पर मतभेदों को हल करने के लिए मुलाकात की है।

अब, वे 'राजनीतिक सौदा' कहते हैं। लेकिन सेना का कहना है कि उसने बुधवार को तख्तापलट की कोशिश को नाकाम कर दिया।

और सेना के चीफ ऑफ स्टाफ उच्च रैंकिंग वाले अधिकारियों में से थे जिन्हें हिरासत में लिया गया था।

तो अभी तक लागू होने वाले सौदे के साथ, इसका क्या मतलब है?

और उथल-पुथल निहित हो सकती है?