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एयरटेल, वोडाफोन, आईडिया, रिलायंस और एयरसेल ने सरकार के 7,697.6 करोड़ रुपये चोरी किए

एयरटेल, वोडाफोन, आईडिया, रिलायंस और एयरसेल सहित निजी क्षेत्र की छह दूरसंचार कंपनियों ने 2010-11 से 2014-15 के दौरान अपने राजस्व को 61,064.5 करोड़ रुपये कम कर दिखाया। इससे सरकार को 7,697.6 करोड़ रुपये का कम भुगतान किया गया। यानी कि इन कंपनियों की वजह से भारत सरकार को लगभग 7 हजार 697 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में आज 21 जुलाई को पेश ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि छह आपरेटरों ने कुल 61,064.5 करोड़ रुपये का समायोजित सकल राजस्व (ए जी आर) कम करके दिखाया।

कैग ने पांच आपरेटरों भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया, आइडिया सेल्युलर, रिलायंस कम्युनिकेशंस और एयरसेल के लिए 2010-11 से 2014-15 तक इनके खातों का ऑडिट किया। वहीं सिस्तेमा श्याम के लिए समय सीमा 2006-07 से 2014-15 तक रही। कैग ने कहा कि राजस्व को कम कर दिखाने की वजह से सरकार को 7,697.62 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस कम भुगतान पर मार्च, 2016 तक ब्याज 4,531.62 करोड़ रुपये बैठता है।

कैग के अनुसार, एयरटेल पर 2010-11 से 2014-15 के दौरान सरकार के लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम प्रयोग शुल्क (एस यू सी) के मद का बकाया 2,602.24 करोड़ रुपये और उस पर ब्याज का 1,245.91 करोड़ रुपये बनता है। वोडाफोन पर कुल बकाया 3,331.79 करोड़ रुपये बनता है, जिसमें ब्याज का 1,178.84 करोड़ रुपये है। इसी तरह आइडिया पर कुल बकाया 1,136.29 करोड़ रुपये का है। इसमें ब्याज 657.88 करोड़ रुपये बैठता है। अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 1,911.17 करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें 839.09 करोड़ रुपये ब्याज के बैठते हैं। एयरसेल पर बकाया 1,226.65 करोड़ रुपये और सिस्तेमा श्याम पर 116.71 करोड़ रुपये का है।

नयी दूरसंचार नीति के तहत लाइसेंसधारकों को अपने समायोजित सकल राजस्व (ए जी आर) का एक निश्चत हिस्सा सरकार को सालाना लाइसेंस शुल्क के रूप में देना होता है। इसके अलावा मोबाइल आपरेटरों को स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एस यू सी) भी देना होता है।

कैग की यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जबकि बड़ी दूरसंचार कंपनियों को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रिलायंस जियो के आने के बाद स्थापित आपरेटरों की आमदनी और मुनाफे पर काफी दबाव है। दूरसंचार उद्योग पर विभिन्न वित्तीय संस्थानों और बैंकों का 6.10 लाख करोड़ रुपये का बकाया है।

बता दें कि निजी क्षेत्र की ये दूरसंचार कंपनियां भारत के अलग-अलग हिस्सों में उपभोक्ताओं को मोबाइस सेवा मुहैया कराती है। लेकिन ये कंपनियां सरकार की दूरसंचार नीति और केन्द्र सरकार के कायदे-कानूनों को मानने के लिए बाध्य होती हैं। पहले भी निजी दूरसंचार कंपनियों पर अनियमितताओं में शामिल होने का आरोप लगा है।

सीएजी का खुलासा: भारतीय रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भारतीय रेलवे द्वारा परोसे जाने वाले खाने को लेकर संसद में जो रिपोर्ट पेश की है। उसके बारे में जानकर होश उड़ जायेंगे। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि भारतीय रेलवे का खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है।

शुक्रवार (21 जुलाई) को सीएजी ने यह रिपोर्ट संसद में पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है कि दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाना और डब्बा बंद व बोतलबंद सामान का इस्तेमाल एक्सपाइरी डेट के बाद भी किया जाता है।

सीएजी ने यह खुलासा भी किया है कि कैसे खाना बनाने में साफ-सफाई पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता।

74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के निरीक्षण में सीएजी ने पाया कि खाना तैयार करने के दौरान सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। खाना या फिर ड्रिंक्स तैयार करने के लिए सीधे नल से अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जाता है। निरीक्षण के दौरान कूड़ेदानों के ढक्कन गायब पाए गए और यह भी पता चला कि उनकी धुलाई का काम भी नियमित रूप से नहीं किया जाता। मक्खियां-कीड़ों से खाद्य पदार्थों के बचाव के लिए कोई कवर इस्तेमाल नहीं किया जाता। वहीं कुछ ट्रेनों में कॉकरोच और चूहे भी मिले।

सीएजी ने ऑडिट में पाया है कि रेलवे की फूड पॉलिसी में लगातार बदलाव होने से यात्रियों को बहुत ज्यादा परेशानियां होती हैं।

इसके अलावा कई नियमों का उल्लंघन भी किए जाने का खुलासा भी इस रिपोर्ट के जरिए हुआ है। खाना या अन्य सामान लेने के बाद कस्टमर को बिल नहीं दिया जाता। खाना तय मात्रा से कम में भी यात्रियों को परोस दिया जाता है।

साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अनुमोदित सामान जैसे पीने का पानी भी ट्रेनों में बेचा जाता है। वहीं काफी सामान, बाजार कीमत से ऊंचे दामों पर बिकता हुआ भी पाया गया।

मनमोहन सिंह ने शुरू किया था कोच्चि मेट्रो प्रोजेक्ट

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (17 जून) को कोच्चि मेट्रो का उद्घाटन किया। इस मौके पर केरल के सीएम पिनराई विजयन, केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू और मेट्रोमैन ई श्रीधरन मौजूद थे।

उद्धाटन के बाद पीएम मोदी ने कोच्चि मेट्रो की सवारी भी की। वहीं इस उद्घाटन के मौके पर कांग्रेस ने एक बार फिर से बीजेपी पर निशाना साधा है।

दरअसल ट्विटर पर वायरल हुई एक तस्वीर को लेकर यह बवाल मचा है। एक फोटो में यह दावा किया गया कि नरेंद्र मोदी के कड़े प्रयासों के बाद कोच्चि मेट्रो का काम पूरा हो सका। बीजेपी के इस दावे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए उसे झूठा बताया।

कांग्रेस के रचित सेठ ने ट्विटर के जरिए कहा, ''तो यह है बीजेपी का आज का झूठ। केरल बीजेपी कह रही है कोच्चि मेट्रो उन्होंने बनवाई,  लेकिन सच यह है कि मेट्रो का काम मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान शुरू  हुआ था #LiarBJP''

पीटीआई के मुताबिक, कोच्चि मेट्रो को कैबिनेट की मंजूरी जुलाई 2012 में मिली थी।

रचित ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एक तस्वीर भी ट्वीट की जिसमें वह कोच्चि मेट्रो की नींव डालते हुए नजर आ रहे हैं। तस्वीर सितंबर 2012 की बताई जा रही है।

वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से पीएम मोदी पर निशाना साधा। अपने ट्वीट में कांग्रेस ने लिखा, ''श्री मोदी मनमोहन सरकार के कामों का श्रेय लेने की कोशिश करते हुए अपनी पुरानी आदतों से मजबूर।''

कांग्रेस ने इस ट्वीट के साथ उन प्रॉजेक्ट्स की तस्वीरें ट्वीट की जिनका काम मनमोहन सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था।

वहीं कांग्रेस के बीजेपी पर निशाना साधने के बाद कई ट्विटर यूजर्स ने भी बीजेपी को आड़े हाथों लिया। लोगों ने बीजेपी को झूठे दावे करने को लेकर ट्रोल किया।

मोदी सरकार के अच्छे दिन: मोदी सरकार रेलवे में 11000 लोगों की नौकरियां खत्म करेगी

भारत में केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार रेलवे के सभी जोन से करीब 11000 लोगों की नौकरियां खत्म करेगी। इसे खर्च में कटौती के तौर पर देखा जा रहा है।

रेलवे बोर्ड ने खर्च कटौती की कवायद तेज करते हुए सभी 17 रेल मंडलों से 10 हजार 900 पदों को खत्म करने का पत्र जारी किया है। रेलवे बोर्ड के फैसले और सभी महाप्रबंधकों को लिखी चिट्ठी में लिखा गया है कि वर्ष 2017-18 के लिए सालाना पदों की कटौती के फैसले को लागू किया जाए।

फिलहाल भारतीय रेल में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 15 लाख के करीब है।

बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का ऐलान किया था, लेकिन तीन साल बाद भी ऐसा होता नहीं दिख रहा है। उल्टे सरकार कर्मचारियों की नौकरी ख़त्म कर रही है।

पत्र के मुताबिक, 25 मई को केंद्रीय रेलवे बोर्ड के निदेशक (ई एंड आर) अमित सरन ने इस आशय का आदेश पत्र सभी जोन मुख्यालयों को भेजा है। इससे रेल कर्मचारियों में हड़कंप है।

हालांकि रेलवे प्रशासन इसे सामान्य प्रक्रिया बता रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, रेलवे हर साल एक फीसदी पद समाप्त करता है। हालांकि, मौजूदा आदेश पर अधिकारी सफाई दे रहे हैं कि समीक्षा के बाद यह तय किया जाएगा कि कौन से अनुपयोगी पद समाप्त किए जाएंगे। अधिकारी का यह भी दावा है कि ऐसे पद समाप्त करने से रेलवे का कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

रेलवे बोर्ड के निदेशक (ई एंड आर) अमित सरन ने इस आशय का आदेश पत्र सभी जोन मुख्यालयों को भेजा है।

पत्र के मुताबिक, दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे जोन को 400 पद समाप्त करने के लिए कहा गया है जबकि सेंट्रल और ईस्टर्न रेलवे को 1-1 हजार पद, ईस्ट कोस्ट रेलवे को 700, नॉर्दन रेलवे को 1500, नॉर्थ सेंट्रल रेलवे को 150, नॉर्थ ईस्टर्न रेलवे को 700, नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे को 300, ईस्ट सेंट्रल रेलवे को 300, नॉर्थ ईस्टफ्रंटियर रेलवे को 550 पद खत्म करने को कहा गया है। इसी तरह सदर्न रेलवे को 1500, साउथ सेंट्रल रेलवे को 800, साउथ ईस्ट सेंट्रल और साउथ ईस्टर्न रेलवे को 400-400 पद, साउथ वेस्टर्न रेलवे को 200, वेस्टर्न रेलवे को 700 और वेस्ट सेंट्रल रेलवे को 300 पद खत्म करने को कहा गया है।

रेल मंत्रालय देशभर के 23 स्टेशनों को प्राइवेट कंपनियों के हाथों में सौंपने की योजना पर काम कर रही है। सरकार इन्हें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत निजी कंपनियों को देने जा रही है। इसके लिए 28 जून को ऑनलाइन नीलामी का आयोजन किया जाएगा। नीलामी में उत्तर प्रदेश का कानपुर जंक्शन और इलाहाबाद जंक्शन शामिल हैं, जबकि राजस्थान का उदयपुर रेलवे स्टेशन भी शामिल है। नीलामी के लिए कानपुर जंक्शन की शुरुआती कीमत 200 करोड़ रुपए जबकि इलाहाबाद जंक्शन के लिए 150 करोड़ रुपए रखी गई है। नीलामी के परिणाम का ऐलान 30 जून को किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने देश के कुल 23 रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला लिया है।

60 फीसदी तक कटी इंफोस‍िस सीईओ, व‍िप्रो चेयरमैन की सैलरी-पैकेज

भारत की दिग्गज आईटी कंपनियों में कर्मचारियों को निकालने और सैलरी में कटौती का सिलसिला लगातार जारी है। केवल जूनियर लेवल पर ही नहीं, कंपनियों के टॉप लेवल में भी सैलरी की कटौती की गई है। जिन बड़े लोगों को कम सैलरी-पैकेज मिला है, उनमें इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्का, विप्रो के अजीम प्रेमजी और आइडिया के कुमार मंगलम बिड़ला शामिल हैं।

वित्तीय वर्ष 2017 में उनके सैलरी में कटौती देखी गई है। कम सैलरी भुगतान के लिए आईटी क्षेत्र में उथल-पुथल और कंपनी के खराब प्रदर्शन को जिम्मेदार ठहराया गया है।

इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्का और विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी के कम्पन्सेशन में FY17 में 60 प्रतिशत से अधिक का कटौती हुई है। ऐसा आईटी सेक्टर में वैश्विक मंदी, कड़े आव्रजन निमय तथा ऑटोमेशन में बदलाव के कारण हुआ।

हाल ही में आई रिपोर्ट के मुताबिक, सिक्का की सैलरी 67 फीसदी तक कम हो गई है। ऐसा कम बोनस मिलने की वजह से हुआ है। इंफोसिस की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 में सिक्का की सैलरी का कैश कम्पोनेंट 16.01 करोड़ रुपए था, जो कि पिछले वित्त वर्ष (2015-16) में 48.73 करोड़ रुपए से कम है।

इसी तरह से, विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी की सैलरी में 63 फीसदी तक की कटौती हुई है। उनकी सैलरी कम्पन्सेशन में पिछले वित्त वर्ष 63 प्रतिशत की कटौती की गई है। यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन को कंपनी की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, प्रेमजी को वित्त विर्ष 2016-17 में कम्पन्सेशन के रूप में 108,026 डॉलर (करीब 71.4 लाख रुपए) मिले, जबकि इससे पिछले साल उन्हें $292,991 (1.93 करोड़ रुपए) मिले थे।

इसी तरह, आदित्य बिड़ला ग्रुप के स्वामित्व वाली आइडिया सेल्युलर के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला की सैलरी में कई गुना गिरावट आई है। टेलिकॉम ऑपरेटर आइडिया ने हाल ही में बताया था कि उसे मार्केट में लिस्टेड कंपनी बनने के बाद पहली बार घाटा उठाना पड़ा है। वित्त वर्ष 2016 में आइडिया के चेयरमैन बिड़ला की सैलरी 13.15 करोड़ रुपए थी, लेकिन अगले वित्त वर्ष में यह कई गुना गिरकर 3.30 लाख रुपए तक पहुंच गई। आदित्य बिड़ला ग्रुप ने अपने चेयरमैन और अन्य एग्जिक्युटिव्स को कोई कमिशन भी नहीं दिया है।

बता दें कि आईटी सेक्टर इस समय वैश्विक मंदी की दौर से गुजर रहा है। इसे देखते हुए काफी समय से छंटनी की भी खबरें आ रही हैं। कंपनियों का कहना है कि वो ऐसा अपनी लागत को कम करने के लिए कर रही हैं। भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी इंफोसिस ने भी अपने सीनियर और मिड लेवल के कर्मचारियों की छंटनी की थी।

वीरप्पा मोइली का दावा: 2019 के लोकसभा चुनाव में हार जाएंगें नरेंद्र मोदी

कांग्रेसी नेता वीरप्पा मोइली ने आज कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 'वाटरलू मूमेंट' यानी पूरी तरह पराजित करने वाले होंगे और प्रधानमंत्री को उनकी पार्टी या मंत्रिमंडल पर ही भरोसा नहीं है।

मोइली ने केंद्र में बीजेपी नीत सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर पार्टी के प्रचार-प्रसार में सरकारी धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा कि सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए नहीं, लेकिन प्रचार-प्रसार में निवेश करने को कहा गया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार ने एक साल में दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन अब तक के कार्यकाल में केवल 1.35 लाख नौकरियां दी गयी हैं।

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ''हमारे प्रधानमंत्री को अपनी ही पार्टी और अपने ही मंत्रिमंडल पर भरोसा नहीं है। लेकिन उन्हें खुद पर पूरा भरोसा है। यह शख्स इस देश की नियति तय कर रहा है।

मोइली ने कहा कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस अपने प्रदर्शन को सुधारेगी और इस दिशा में तैयारियां चल रही हैं। उन्होंने कहा कि एआईसीसी में नयी ऊर्जा फूंकने की प्रक्रिया चल रही है।

उन्होंने कहा, कांग्रेस बढ़ रही है। राहुल गांधी फैसले ले रहे हैं ..... पार्टी में पुनर्गठन कर रहे हैं और हम आगे बढ़ रहे हैं। 2019 का चुनाव मोदी को पराजय दिखाएगा।

मोइली ने कहा कि गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अग्रणी थी, लेकिन भाजपा ने अतिक्रमण कर लिया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भी कांग्रेस के लिए पराजय वाले या प्रतिकूल परिणाम नहीं दिखाते।

कर्नाटक से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस नेता ने अपने गृह राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी की सफलता को लेकर विश्वास जताया।

इकोनॉमी पर नोटबंदी इंपैक्ट: 2016-17 में जीडीपी में गिरावट

भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 2016-17 में घटकर 7.1 प्रतिशत पर आ गई है। 2015-16 में ये आंकड़ा 7.9 फीसदी था।

चिंता की बात ये है कि कृषि क्षेत्र के काफी अच्छे प्रदर्शन के बावजूद वृद्धि दर नीचे आई है।

मोदी सरकार ने 500 और 1,000 के नोटों को आठ नवंबर को बंद करने की घोषणा की थी। इस नोट को बदलने के काम में 87 प्रतिशत नकद नोट चलन से बाहर हो गए थे।

नोटबंदी के तत्काल बाद की तिमाही जनवरी-मार्च में वृद्धि दर घटकर 6.1 प्रतिशत रही है। नोटबंदी 9 नवंबर, 2016 को की गई थी।

आधार वर्ष 2011-12 के आधार पर नई श्रृंखला के हिसाब से 2015-16 में जीडीपी की वृद्धि दर 8 प्रतिशत रही है।

पुरानी श्रृंखला के हिसाब से यह 7.9 प्रतिशत रही थी।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों के अनुसार, 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) घटकर 6.6 प्रतिशत पर आ गया जो कि 2015-16 में 7.9 प्रतिशत रहा था।

नोटबंदी से 2016-17 की तीसरी और चौथी तिमाही में जीवीए प्रभावित हुआ है। इन तिमाहियों के दौरान यह घटकर क्रमश: 6.7 प्रतिशत और 5.6 प्रतिशत पर आ गया जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाहियों में 7.3 और 8.7 प्रतिशत रहा था।

नोटबंदी के बाद कृषि को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में गिरावट आई।

विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर चौथी तिमाही में घटकर 5.3 प्रतिशत रह गई जो एक साल पहले समान तिमाही में 12.7 प्रतिशत रही थी।

निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर नकारात्मक रही।

बेहतर मानसून की वजह से कृषि क्षेत्र को फायदा हुआ।

2016-17 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.9 प्रतिशत रही जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 0.7 प्रतिशत रही थी। चौथी तिमाही में कृषि क्षेत्र का जीवीए 5.2 प्रतिशत बढ़ा, जबकि 2015-16 की समान तिमाही में यह 1.5 प्रतिशत बढ़ा था।

आंकड़ों के अनुसार, 2016-17 में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 1,03,219 रुपये पर पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। यह 2015-16 में 94,130 रुपये रही थी।

अगर ऐसा होता है तो प्रति व्यक्ति आय में 9.7 प्रतिशत का इजाफा होगा। वर्ष 2015-16 में देश में प्रति व्यक्ति शुद्ध आय में 7.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी।  प्रति व्यक्ति आय देश में समृद्धि का संकेतक होती है।

प्रेस स्वतंत्रता एक मिथक और जनता के साथ एक क्रूर मज़ाक है

तीन मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इस मौक़ै पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर प्रेस की आज़ादी के महत्व को बताया है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ''विश्व प्रेस फ्रीडम डे पर हम स्वतंत्र और बहुमुखी पत्रकारिता का दृढ़ समर्थन करते हैं। यह लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है।''

हालांकि दुनिया भर में पत्रकारिता के लिहाज़ से भारत में कई मुश्किलें हैं। 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने 180 देशों की सूची जारी की है जिसमें प्रेस स्वतंत्रता के हिसाब से भारत का स्थान 136वां है।

भारत ज़िम्बॉब्वे और म्यांमार जैसे देशों से भी पीछे है।

निर्भीक पत्रकारिता करने के मामले में नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड अव्वल हैं।

इस मामले में चीन 176वें और पाकिस्तान 139 नंबर पर है।

मई 2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने थे। तब भारत 140वें नबंर पर था। 2015 में भारत 136वें नंबर पर आया। 2016 में 133वें नबंर आया और 2017 में 136वें पायदान पर आ गया।

2010 में भारत इस सूची में 122वें नंबर पर था और तब यूपीए सरकार सत्ता में थी। इसके बाद भारत 2014 तक 140वें नबंर पर रहा।

'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ''भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को मोदी के राष्ट्रवाद से ख़तरा है और मीडिया डर की वजह से ख़बरें नहीं छाप रही है।''

रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारतीय मीडिया में सेल्फ़ सेंसरशिप बढ़ रही है और पत्रकार कट्टर राष्ट्रवादियों के ऑनलाइन बदनाम करने के अभियानों के निशाने पर हैं। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को रोकने के लिए मुक़दमे तक किए जा रहे हैं।''

जबकि मोदी ने अपने ट्वीट में कहा है, ''आज के दौर में सोशल मीडिया लोगों से जुड़ने के एक सक्रिय माध्यम के रूप में उभरा है और इसने स्वतंत्र प्रेस को और अधिक ताक़त दी है।''

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई इस पर लिखते हैं, ''आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। भारत 136वें और पाकिस्तान 139वें नंबर पर है। बहुत कुछ कहा जा चुका है। उन चुनिंदा लोगों को सलाम जो अब भी आवाज़ उठा रहे हैं।''

अपने अगले ट्वीट में राजदीप ने लिखा, ''सच ये है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की महान परंपरा रही है। बिज़नेस मॉडलों और निजी हितों की वजह से इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग हुआ है।''

वहीं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने फ़ेसबुक पर लिखा, ''विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस दुनिया का सबसे बड़ा छलावा है। प्रेस स्वतंत्रता एक मिथक और जनता के साथ एक क्रूर मज़ाक है।''

उन्होंने लिखा, ''दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं।''

काटजू ने लिखा, ''बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वो फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं।''

दिल के दौरे में ब्लड ग्रुप का भी हाथ है

एक शोध के मुताबिक, नॉन-ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों में दिल का दौरा पड़ने की संभावना ज़्यादा होती है।

शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि ब्लड ग्रुप ए, बी और एबी में ख़ून जमाने वाले प्रोटीन का स्तर ज़्यादा होता है।

उनका कहना है कि इन नतीजों से ये समझने में मदद मिलेगी कि किस पर दिल के दौरे का ख़तरा अधिक है।

यूरोपियन सोसाइटी ऑफ़ कार्डियोलॉजी कांग्रेस में पेश की गई इस रिपोर्ट में क़रीब 13 लाख लोगों पर अध्ययन किया गया है।

इससे पहले हुई रिसर्च में पता चला था कि दुर्लभ ब्लड ग्रुप एबी वाले लोगों पर दिल के दौरे का सबसे ज़्यादा ख़तरा रहता है।

असल में ब्रिटेन में ओ ब्लड ग्रुप सबसे आम है। ऐसे लोगों की संख्या 48 प्रतिशत है।

नीदरलैंड्स के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ग्रोनिनजेन की शोधकर्ता टेस्सा कोले ने बताया कि हर ब्लड ग्रुप से जुड़े ख़तरों पर अध्ययन होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ''आने वाले समय में, दिल के दौरे से बचने के लिए की जाने वाली जांच में ब्लड ग्रुप की जानकारी को भी शामिल किया जाना चाहिए।''

रडार के तकनीकी विकास - डाक्यूमेंट्री

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