अर्थव्यवस्था

मोदी सरकार को राहत: खुदरा महंगाई दर फरवरी में घटकर 4.4 फीसदी हुई

भारत में खाने-पीने की चीजें तथा ईंधन की लागत में कमी आई है। इससे खुदरा मुद्रास्फीति फरवरी में घटकर चार महीने के न्यूनतम स्तर 4.44 प्रतिशत पर पहुंच गई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी में 5.07 प्रतिशत थी।

हालांकि पिछले साल फरवरी में यह 3.65 प्रतिशत थी। इससे पहले, नवंबर 2017 में 4.88 प्रतिशत थी।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सी एस ओ) द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, उपभोक्ता खाद्य खंड में महंगाई दर फरवरी में कम होकर 3.26 प्रतिशत रही जो इससे पिछले महीने में 4.7 प्रतिशत थी। सब्जियों में मुद्रास्फीति पिछले महीने कम होकर 17.57 प्रतिशत रही जो जनवरी में 26.97 प्रतिशत थी। वहीं फलों की महंगाई दर आलोच्य महीने में 4.80 प्रतिशत रही जो इससे पूर्व महीने में 6.24 प्रतिशत थी।

आलोच्य महीने में दूध और उसके उत्पाद भी सस्ते हुए। इस खंड में महंगाई दर 4.21 प्रतिशत थी। अनाज और उसके उत्पाद की महंगाई दर 2.10 प्रतिशत, मांस एवं मछली 3.31 प्रतिशत, जबकि अंडे में मुद्रास्फीति 8.51 प्रतिशत रही।

ईंधन एवं लाइट श्रेणी में महंगाई दर फरवरी में 6.80 प्रतिशत थी जो जनवरी में 7.73 प्रतिशत थी।

हालांकि परिवहन और संचार सेवाओं के लिए कीमत में वृद्धि 2.39 प्रतिशत रही जो जनवरी में 1.97 प्रतिशत थी।

दूसरी तरफ, विनिर्माण क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के साथ औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर इस साल जनवरी में 7.5 प्रतिशत रही जो एक साल पहले इसी महीने में 3.5 प्रतिशत थी। उपभोक्ता और पूंजीगत वस्तुओं की अच्छी मांग से भी औद्योगिक वृद्धि को गति मिली। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सी एस ओ) के आंकड़े के अनुसार, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आई आई पी) में वृद्धि दिसंबर 2017 में 7.1 प्रतिशत रही थी।

इस साल जनवरी में आई आई पी वृद्धि का प्रमुख कारण विनिर्माण क्षेत्र का बेहतर प्रदर्शन है। सूचकांक में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 77.63 प्रतिशत है। इसमें आलोच्य माह में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो जनवरी 2017 में 2.5 प्रतिशत थी। यह अर्थव्यवस्था में पुनरूद्धार का संकेत देता है। निवेश का आईना माने जाने वाले पूंजीगत सामान के उत्पादन में जनवरी 2018 में 14.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि एक साल पहले इसी महीने में 0.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। गैर- टिकाऊ उपभोक्ता सामान खंड में वृद्धि दर आलोच्य महीने में 10.5 प्रतिशत रही जो एक साल पहले जनवरी महीने में 9.6 प्रतिशत थी। इस खंड में रोजमर्रा के उपयोग के सामान शामिल हैं।

ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के साथ ज्वैलरी आउटलेट ने किया 390 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी

पंजाब नेशनल बैंक (पी एन बी) घोटाले की परतें अभी खुल ही रही हैं, इसी बीच सीबीआई ने एक और बैंक के साथ धोखाधड़ी किए जाने का मामला दर्ज किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, सीबीआई ने दिल्ली की ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओ बी सी) की एक शाखा के साथ 390 करोड़ की धोखाधड़ी किए जाने का मामला राजधानी के ही एक ज्वैलरी आउटलेट के खिलाफ गुरुवार (22 फरवरी) को दर्ज किया।

सीबीआई  हीरे, सोने और चांदी के जेवरात बनाने और उनका कारोबार करने वाले करोल बाग के द्वारका दास सेठ इंटरनेशनल की जांच कर रही है, जिसने 2007 से ग्रेटर कैलाश-2 की ओ बी सी की शाखा से फॉरेन लेटर ऑफ क्रेडिट, फॉरेन डॉक्युमेंट्री बिल परचेज और अन्य जरियों का इस्तेमाल करते हुए कई क्रेडिट सुविधाओं का लाभ उठाया। कंपनी को चार लोग चलाते हैं, इनमें पंजाबी बाग के सभ्य सेठ, रीता सेठ और सराय काले खां के कृष्ण कुमार सिंह और रवि कुमार सिंह शामिल हैं। इन चारों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की गई है।

बैंक ने अपनी पड़ताल के बाद दावा किया कि सभ्य सेठ और अन्य डायरेक्टर अपने परिवार वालों समेत पिछले 10 महीनों से अपने घरों में नहीं हैं। ऐसा संदेह है कि सभ्य सेठ ने भारत छोड़ दिया है। पब्लिक सेक्टर की बैंक ने 16 अगस्त 2017 को द्वारका दास सेठ इंटरनेशनल के खिलाफ सीबीआई का रुख किया था , लेकिन एफ आई आर गुरुवार को दर्ज की गई।

इस मामले में इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि सीबीआई ने मामला दर्ज करने में 6 महीने क्यों लगाए? बैंक ने अपनी शिकायत में दावा किया है कि द्वारका दास सेठ इंटरनेशनल ने लेटर ऑफ क्रेडिट के तहत फॉरेन बिल डिस्काउंटिंग के जरिये कई क्रेडिट सुविधाओं का लाभ लिया। उन्होंने 2007 में पहली बार इस सुविधाओं का लाभ लिया और आगे के बिलों में छूट देने से पहले सभी बिलों को नियमित तौर पर जारी किया गया।

ओ बी सी बैंक की तरफ से कहा गया कि सभ्य सेठ विदेश की फॉरेन बैंकों के द्वारा स्थापित किए गए लेटर ऑफ क्रेडिट के जरिये सुविधा का इस्तेमाल कर रहे थे। इनमें से कुछ बैंकों को खराब रेटिंग दी गई है। ओ बी सी के अनुसार, धोखाधड़ी के बाद सभ्य सेठ ने दुबई में फ्रेया ट्रेडिंग के नाम से कंपनी बनाई। उसने भारत से एक प्रतिनिधि को भी नौकरी पर रखा जिसका नाम अतुल कुमार गर्ग है। गर्ग ने टी ओ आई को बताया कि पिछले चार वर्षों से वह सभ्य सेठ के संपर्क में नहीं है। गर्ग ने कहा, ''मैंने वर्षों पहले उनके साथ कुछ व्यापार किया था, लेकिन मुझे नहीं पता कि वह अब कहां हैं? मेरा उनके साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है।'' सेठ और अन्य निदेशकों की लोकेशन का अभी पता नहीं चला है।

आरबीआई गर्वनर को इस्तीफा दे देना चाहिए: कर्मचारी यूनियन

बैकिंग कर्मचारियों की एक प्रमुख यूनियन के शीर्ष नेतृत्व ने मांग की है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आर बी आई) के गर्वनर उर्जित पटेल को हीरा कारोबारी नीरव मोदी द्वारा किए गए 1.8 अरब डॉलर के घोटाले/धोखाधड़ी के बाद नैतिक आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

ऑल इंडिया बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन (ए आई बी ई ए) के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने आई ए एन एस को बताया, ''इस घोटाले/धोखाधड़ी को लेकर आर बी आई गवर्नर की लगातार चुप्पी आश्चर्यजनक और विस्मयकारी है। यह आर बी आई की गहरी भागीदारी पी एन बी के नोस्ट्रो खातों की जांच में आर बी आई की कोताही को दिखाता है।''

उनके मुताबिक, घोटाले का शिकार बनी पी एन बी की मुंबई स्थित ब्रैडी शाखा एक श्रेणी की विदेशी मुद्रा बैंक शाखा है और भारतीय रिजर्व बैंक इस पर निगरानी रखने में विफल रहा है जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर घोटाले/धोखाधड़ी हुई है।

वेंकटचलम ने कहा, ''भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को पूर्ण विफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए। उनके अनुसार, पी एन बी के निदेशक मंडल में भारतीय रिजर्व बैंक के उम्मीदवार भी हैं। इसके अलावा आर बी आई सभी बैंक शाखाओं में निरीक्षण करती है और इसलिए केंद्रीय बैंक जिम्मेदारी से नहीं बच सकती है। वेंकटचलम ने भारतीय रिजर्व बैंक के पुनर्गठन की भी मांग की, और कहा कि केंद्रीय बैंक पर शीघ्र सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

चिदंबरम ने मोदी सरकार से पूछा- क्या हुआ नौकरी का वादा, 'जुमलों की सुनामी' है बजट

भारत में कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राज्यसभा में आज (08 फरवरी) को बजट को 'जुमलों की सुनामी' करार दिया और कहा कि बजट में की गयी घोषणाएं और अर्थव्यवस्था के बारे में किये गये दावे हकीकत से कोसों दूर हैं।

वित्त वर्ष 2018-19 के आम बजट पर चर्चा की शुरूआत करते हुए चिदंबरम ने मोदी सरकार के चौथे बजट को 'जुमलों की सुनामी' करार दिया और मोदी सरकार से 12 सवाल पूछे। चिदंबरम ने पूछा कि आपने हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था, उसका क्या हुआ? उन्होंने सरकार से रोजगार की उसकी अपनी परिभाषा बताने और पिछले चार सालों में सृजित रोजगारों की संख्या का खुलासा करने की मांग करते हुये पूछा कि क्या सरकार आईएलओ को पकौड़ा बेचने को भी रोजगार की परिभाषा में शामिल करने का सुझाव देगी?

सत्ता पक्ष के सदस्यों के भारी शोर शराबे के बीच चिदंबरम ने सरकार पर बीते चार सालों से सिर्फ जुमलों की बारिश करने का आरोप लगाया। उन्होंने बजट की घोषणाओं और अर्थव्यवस्था के बारे में किये गये दावों को हकीकत से दूर बताते हुये कहा कि सरकार के आधारहीन दावों के कारण ही राजकोषीय घाटा अब शीर्ष स्तर पर और विकास दर न्यूनतम स्तर पर आ गयी है।

उन्होंने सरकार पर आंकड़ों को छुपाने का आरोप लगाते  हुए कहा कि पिछले चार सालों में आर्थिक वित्तीय घाटा बढ़ने की दर 3.2 से 3.5 प्रतिशत होने के बाद सरकार की देनदारियां बढ़कर 85 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गयी।

चिदंबरम ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से इन सवालों के जवाब देने की अपेक्षा व्यक्त करते हुए सरकार के तीन जुमलों का जिक्र किया। उन्होंने किसानों को उपज का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य मुहैया कराने के सरकार के दावे को पहला जुमला बताते हुए कहा कि सरकार ने पिछले दो सालों में समर्थन मूल्य में सिर्फ पांच रुपये की बढ़ोत्तरी की। इसे किसानों के साथ धोखा बताते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के दस साल के कार्यकाल में समर्थन मूल्य में 100 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। रोजगार सृजन के आंकड़ों को बजट में छुपाने का आरोप लगाते हुए  चिदंबरम ने कहा कि पिछले चार साल में सरकारी आंकड़ों में लगातार रोज़गार के अवसर बढ़ने का दावा किया गया है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगातार घट रहा है। इसे दूसरा जुमला बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र देश बन गया है जिसमें जीडीपी घटे और रोजगार बढ़ें।

चिदंबरम ने बजट में घोषित चिकित्सा बीमा योजना को अब तक का सबसे बड़ा जुमला बताते हुए कहा कि 10 करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपये के बीमा में शामिल करने पर 1.50 लाख करोड़ रुपये की प्रीमियम राशि का इंतजाम कहां से करेगी सरकार, इसका बजट में कोई उपाय नहीं बताया है।

सत्तापक्ष की नारेबाजी के बीच चिदंबरम ने लगभग 40 मिनट के अपने भाषण में सरकार की आर्थिक नीतियों को भारत की जनता के साथ धोखा बताते हुए भविष्य में इसके गंभीर प्रभावों की ओर आगाह किया।

सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बंद करने की अफवाहें खारिज की

भारत में सरकार ने अफवाहों को गलत बताते हुए कहा है कि किसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक को बंद करने का प्रश्न ही नहीं है।

भारत के वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवाएं विभाग के सचिव राजीव कुमार ने एक ट्वीट में कहा कि सरकार, इन बैंकों में दो लाख ग्यारह हज़ार करोड़ रुपये के पुनर्पूंजीकरण से इन्हें मज़बूत बना रही है।

उन्होंने लोगों से अफवाह फैलाने वालों पर विश्वास न करने की अपील की और कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सुधार योजना पटरी पर है।

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक ऑफ इंडिया समेत कुछ बैंकों के मामले में त्वरित सुधार कार्रवाई-पीसीए शुरू की है।

रिज़र्व बैंक ने अपनी ओर से यह स्पष्ट किया कि पीसीए व्यवस्था का उद्देश्य जनता के लिये बैंकों के सामान्य कामकाज में कठिनाई उत्पन्न करना नहीं है।

रिज़र्व बैंक ने कहा कि उसने सोशल मीडिया समेत मीडिया के कुछ वर्गों में दी जा रही गलत सूचना का संज्ञान लिया है। इसमें पीसीए के दायरे में आये कुछ बैंकों को बंद किये जाने की खबर दी जा रही है।

रिज़र्व बैंक के अनुसार, पीसीए व्यवस्था ऐसे निरीक्षण के तरीकों में से एक है, जिसमें प्रारम्भिक चेतावनी देने के लिये बैंकों के कुछ कामकाज के मानकों की निगरानी की जाती है। पूंजी, परिसम्पत्तियों की गुणवत्ता और अन्य मानकों में कमी पाये जाने पर कार्रवाई शुरु की जाती है।

अनिल अंबानी ने रिलायंस एनर्जी को 19000 करोड़ रुपये में अडानी को बेचा

अनिल अंबानी को कर्ज में डूबे रिलायंस एनर्जी को बेचना पड़ा है। अडानी ग्रुप ने रिलायंस एनर्जी के मुंबई बिजनेस को 18,800 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। रिलायंस इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के अंतर्गत आने वाली रिलायंस एनर्जी इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन क्षेत्र में सक्रिय है। अधिग्रहण के साथ ही अडानी ट्रांसमिशन अब इसका कामकाज देखेगी। अडानी ने कैश डील के तहत यह खरीद समझौता किया है।

रिलायंस एनर्जी का मुंबई में तकरीबन 30 लाख उपभोक्‍ता है, जिन्‍हें आने वाले समय में अडानी के नाम से बिल दिया जाएगा। हाल के दिनों में पावर सेक्‍टर में इसे सबसे बड़ा अधिग्रहण बताया जा रहा है।

टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस इंफ्रा और अडानी ट्रांसमिशन ने गुरुवार को एसपीए (शेयर परचेज एग्रीमेंट) पर हस्‍ताक्षर किया। वैधानिक मंजूरी मिलने के बाद इसे औपचारिक रूप दे दिया जाएगा। रिलायंस एनर्जी पूर्वी और पश्चिमी मुंबई में बिजली आपूर्ति का काम देखती है। खरीद समझौते के साथ ही सभी उपभोक्‍ता अब अडानी ट्रांसमिशन के हो जाएंगे।

रिलायंस इंफ्रा के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी अनिल जालान ने इसकी पुष्टि की है। उन्‍होंने बताया कि 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने के बाद तीन हजार करोड़ रुपया बचेगा। उन्‍होंने बताया कि रिलायंस इंफ्रा अब कंस्‍ट्रक्‍शन, इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रोजेक्‍ट और डिफेंस सेक्‍टर में अपना ध्‍यान केंद्रित कर सकेगी।

अनिल जालान ने कहा कि कर्ज न होने से बाजार से फंड उठाना ज्‍यादा आसान होगा। उनके अनुसार, रिलायंस इंफ्रा के पास 10,000 करोड़ रुपये मूल्‍य का प्रोजेक्‍ट है। मालूम हो कि यह कंपनी भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंस्‍ट्रक्‍शन कंपनी है।

रिलायंस एनर्जी को खरीदने के साथ ही अडानी ग्रुप इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन-ट्रांसमिशन के बाद अब डिस्‍ट्रब्‍यूशन क्षेत्र में भी अपने पैर जमा सकेगा। कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा, ''भारत में चौबीसों घंटे बिजली मुहैया कराने की योजना है, ऐसे में बिजली वितरण अगला सनराइज सेक्‍टर है।''

भविष्‍य में संभावनाओं वाले क्षेत्र को सनराइज सेक्‍टर कहा जाता है। रिलायंस एनर्जी के मुंबई बिजनेस को बेचने से रिलायंस इंफ्रा को सीधे तौर पर 13,251 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके साथ ही कंपनी का मालिकाना हक ट्रांसफर होने पर 550 करोड़ रुपये और मिलेंगे।

RBI ने जारी ही नहीं किए ढाई लाख करोड़ रुपये मूल्‍य के बड़े नोट: रिपोर्ट

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आठ दिसंबर तक उच्च मूल्य के कुल 15,78,700 करोड़ रुपये की नकदी छापी थी, लेकिन उसमें से 2,46,300 करोड़ रुपये की नकदी बाजार में जारी ही नहीं की गई।

सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने बुधवार को यह जानकारी दी। सरकार और आरबीआई के आंकड़ों के आधार पर एसबीआई ने अपने शोध पत्र 'क्या 2,000 रुपये के उच्च मूल्य के नोट को वापस रखा गया?' में कहा कि पिछले साल की गई नोटबंदी के बाद इस साल आठ दिसंबर तक 2,46,300 करोड़ रुपये मूल्य के उच्च मूल्य वाले नोटों को प्रचलन में भेजा ही नहीं गया।

एसबीआई की मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) सौम्य कांति घोष ने एसबीआई इकोफ्लैश रिपोर्ट में कहा, ''वित्त मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, आरबीआई ने आठ दिसंबर तक 500 रुपये के कुल 1695.7 करोड़ नोट और 2,000 रुपये के कुल 365.4 करोड़ नोट छापे थे। इन नोटों का कुल मूल्य 15,787 अरब है।''

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 के मार्च तक छोटे मूल्य के कुल 3,50,100 करोड़ नोट प्रचलन में थे। एसबीआई ने कहा, ''इसका तात्पर्य यह है कि आठ दिसंबर तक उच्च मूल्य के सभी नोटों का मूल्य 13,324 अरब था। इसका मतलब यह है कि आरबीआई ने 2,463 अरब के उच्च मूल्य के नोट को बाजार में भेजे ही नहीं।''

रिपोर्ट में कहा गया, ''इसका तार्किक कारण यह है कि नोटबंदी के बाद लोगों को उच्च मूल्य वाले नोट को भंजाने में परेशानी हो रही थी, इसलिए हो सकता है कि आरबीआई ने जानबूझकर 2,000 रुपये के नोट की छपाई बंद कर छोटे नोटों की शुरू कर दी और प्रचलन में उच्च मूल्य के नोटों को नहीं भेजा।''

जीएसटी के तहत पेट्रोलियम उत्पादों को लाने के पक्ष में केंद्र: अरुण जेटली

भारत सरकार सामान और सेवा कर (जीएसटी) के दायरे के तहत पेट्रोलियम उत्पादों को लाने के पक्ष में है और इस मुद्दे पर राज्यों के बीच सहमति की प्रतीक्षा कर रही है।

भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि केंद्र सरकार ने पहले ही पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क घटा दिया है।

उन्होंने कहा कि उसने इन उत्पादों पर राज्य के शुल्क को कम करने के लिए सभी राज्यों को लिखा है।

संसद ने कम्पनी संशोधन विधेयक-2017 पारित किया

भारतीय संसद ने कम्‍पनी संशोधन विधेयक-2017 पारित कर दिया है। राज्‍य सभा ने इसे मंजूरी दे दी। लोकसभा इसे मानसून सत्र में पारित कर चुकी है।

इस विधेयक में कार्पोरेट शासन मानकों को मजबूत करना और मानकों का उल्‍लंघन करने वाली कम्‍पनियों के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई करना तथा कारोबार के तौर-तरीकों को सरल बनाना जैसे प्रावधान शामिल हैं। इसमें कम्‍पनी अधिनियम 2013 में 40 से अधिक संशोधन का प्रावधान है। कम्‍पनी अधिनियम-2013 यूपीए सरकार के कार्यकाल में पारित किया गया था।

राज्‍यसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान सदस्‍यों द्वारा उठाये गए मुद्दों का जवाब देते हुए कार्पोरेट मामलों के राज्‍यमंत्री पी पी चौधरी ने कहा कि इन संशोधनों से कार्पोरेट जगत का कामकाज और बेहतर हो जाएगा तथा कारोबार करने में आसानी होगी।

इससे पहले, चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के नेता और पूर्व वित्‍तमंत्री पी चिदम्‍बरम ने सुझाव दिया कि लघु और मध्‍यम श्रेणी की कम्‍पनियों के हितों की सुरक्षा के लिए अलग से कानून बनना चाहिए।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में ब्याज दर को अपरिवर्तित रखने का फैसला किया

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इस साल की अपनी आखिरी मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया है। आरबीआई के इस फैसले के बाद सरकार की सस्ते कर्ज की उम्मीद को झटका लगा है।

मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे में बढ़ोत्तरी के जोखिम के मद्देनजर रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा में प्रमुख ब्याज दर को ज्यों का त्यों बरकार रखा।

केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष के अंत तक के लिए मुद्रास्फीति के अपने पिछले अनुमानों को बढ़ाकर 4.3-4.7 प्रतिशत के दायरे में कर दिया है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एम पी सी) ने चालू वित्त वर्ष की पांचवीं मौद्रिक नीति समीक्षा में मुख्य नीतिगत दर रेपो को 6 प्रतिशत पर यथावत रखा। रिवर्स रेपो दर भी 5.75 प्रतिशत पर ही रखी गई है।

रिजर्व बैंक ने कहा है कि उसने महंगाई दर पर अंकुश के अपने मध्यकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए नीतिगत ब्याज दर में बदलाव नहीं करने का निर्णय किया है। बैंक का लक्ष्य वृद्धि को समर्थन देते हुये खुदरा मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के स्तर पर बनाए रखना है।

केंद्रीय बैंक ने हालांकि, चालू वित्त वर्ष के अपने आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर पूर्ववत रखा है, लेकिन तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान मुद्रास्फीति के अनुमान को पहले के 4.2-4.6 से बढ़ाकर 4.3-4.7 प्रतिशत कर दिया।

रिजर्व बैंक ने इससे पहले अगस्त में मुख्य नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया था। रिवर्स रेपो दर भी तब इतनी ही घटकर 5.75 प्रतिशत कर दी गई थी।