अर्थव्यवस्था

भारत में खुदरा के बाद अब थोक महंगाई दर में भी बढ़ोत्तरी, अक्टूबर में रही 3.59 फीसदी

भारत में खुदरा महंगाई दर में बढ़ोत्तरी के बाद अब थोक महंगाई दर में भी बढ़ोत्तरी की खबर आ रही है।

अक्टूबर में थोक महंगाई दर सितंबर के 2.60 फीसदी के मुकाबले बढ़कर 3.59 फीसदी पर रही। अक्टूबर में प्राइमरी ऑर्टिकल्स की महंगाई दर 0.15 फीसदी से बढ़कर 3.33 फीसदी हो गई है। महीने दर महीने आधार पर अक्टूबर में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर 1.99 फीसदी से बढ़कर 3.23 फीसदी हो गई है।

बताया जा रहा है कि फल, सब्जी, चिकेन, अंडा, मसाले, क्रूड पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के दामों में बढ़ोत्तरी के चलते मंहगाई दर में ये बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि चना, अरहर, मसूर, उरद और मूंग के दामों में गिरावट आई है।

नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण दीपावली बिक्री में 40 प्रतिशत की गिरावट, दस सालों की सबसे सुस्त दीपावली

भारत में दीपावली का त्यौहार आमतौर पर कारोबार और व्यापार जगत के लिए उत्साहवर्धक रहता आया है, लेकिन असंगठित क्षेत्र के व्यापारियों के एक प्रमुख का कहना है कि इस साल नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण यह तस्वीर बदली हुई थी।

संगठन का दावा है कि इस दीपावली बिक्री में पिछले साल की तुलना में 40 प्रतिशत की गिरावट आई और यह पिछले दस सालों की सबसे सुस्त दीपावली मानी जा रही है।

खुदरा कारोबारियों के संगठन कंफेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि कि भारत में सालाना करीब 40 लाख करोड़ रुपए का खुदरा कारोबार होता है। इसमें संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी महज पांच प्रतिशत है, जबकि शेष 95 प्रतिशत योगदान असंगठित क्षेत्र का है।

दीपावली के दस दिन पहले से शुरू होने वाली त्यौहारी बिक्री पिछले सालों में करीब 50 हजार करोड़ रुपए की रही है। इस साल यह 40 प्रतिशत नीचे गिर गई और इस दृष्टि से यह पिछले दस सालों की सबसे खराब दीपावली रही है।

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि बाजारों में उपभोक्ताओं की कम उपस्थिति, सीमित खर्च आदि इस दीपावली कारोबार के कम रहने के मुख्य कारण हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी के बाद अस्थिर बाजार तथा जीएसटी व्यवस्था की दिक्कतों ने बाजार में संशय का माहौल तैयार किया जिसने उपभोक्ताओं और कारोबारियों दोनों की धारणा प्रभावित की। रेडीमेड कपड़े, उपहार के सामान, रसोई के सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स, टिकाऊ उपभोक्ता उत्पाद, एफ एम सी जी वस्तुएं, घड़ियां, बैग-ट्रॉली, घर की साज-सज्जा, सुखे मेवे, मिठाइयां, नमकीन, फर्निचर, लाइट-बल्ब आदि चीजें दीपावली के दौरान मुख्य तौर पर खरीदी जाती हैं।

कैट ने कहा कि व्यापारियों की उम्मीदें अब विवाह के सीजन पर लगी हुई हैं।

उल्लेखनीय है कि दिवाली में जब सिर्फ दो दिन बचे थे, उस समय भी इस बार देशभर के बाजारों में सन्नाटा छाया हुआ था और त्यौहारी माहौल बना ही नहीं। हर वर्ष इस समय खरीदारी अपनी उच्च सीमा पर होती थी। बाजारों में ग्राहकों की आवक बेहद कम रही जिसके चलते गत वर्ष के मुकाबले लगभग बिक्री में 40 फीसद की गिरावट है।

कैट के अध्यक्ष बीसी भरतिया और महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि उपभोक्ताओं की जेब में नकद की तंगी है, इस कारण से बाजारों में मंदी का माहौल है।

रिचर्ड थेलर को अर्थशास्‍त्र का नोबेल पुरस्कार मिला

साल 2017 में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है।

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के लिए रिटर्ड एच थेलर को चुना गया है। इससे पहले आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी नोबेल पुरस्कार पाने वाले संभावित लोगों की लिस्ट में शामिल थे।

गौरतलब है कि क्लैरिवेट ऐनालिटिक्स अकैडमिक और साइंटिफिक रिसर्च अपने रिसर्च के आधार पर नोबेल पुरस्कार के संभावित विजेताओं की लिस्ट भी तैयार करती है।

राजन भी उन छह अर्थशास्त्रियों में से एक थे जिन्हें क्लैरिवेट ऐनालिटिक्स ने इस साल अपनी लिस्ट में शामिल किया था।

कॉर्पोरेट फाइनेंस के क्षेत्र में किए गए काम के लिए राजन का नाम लिस्ट में आया था। राजन अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की दुनिया में बड़े नाम हैं। सबसे कम उम्र (40) में पहले गैर पश्चिमी IMF चीफ बनने वाले राजन ने साल 2005 में एक पेपर प्रेजेंटेशन के बाद बड़ी प्रसिद्धि हासिल की।

अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने की आज (10 अक्टूबर) घोषणा कर दी गई। उन्हें यह पुरस्कार अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान के अंतर को पाटने पर किए गए उनके काम के लिए दिया गया है।

1945 में अमेरिका के ईस्ट ऑरेंज में उनका जन्म हुआ था।

नोबेल पुरस्कार के निर्णायक मंडल ने एक बयान में कहा कि थेलर का अध्ययन बताता है कि किस प्रकार सीमित तर्कसंगता, सामाजिक वरीयता और स्व-नियंत्रण की कमी जैसे मानवीय लक्षण किसी व्यक्ति के निर्णय को प्रक्रियागत तौर पर प्रभावित करते हैं और इससे बाजार के लक्षण पर भी प्रभाव पड़ता है।

व्यवहारिक अर्थशास्त्र मनोविज्ञान का अध्ययन है। यह व्यक्ति और संस्थानों की आर्थिक निर्णय प्रक्रिया से जुड़ा है।

स्वीडन की विज्ञान अकादमी के सचिव गोएरन हैंसन ने कहा कि थेलर को उनकी 'अर्थशास्त्र के मनोविज्ञान की समझ' पर अध्ययन के लिए 90 लाख क्रोनोर (11 लाख डॉलर) की राशि पुरस्कार स्वरुप दी जाएगी।

नोबल समिति ने कहा, थेलर का काम दिखाता है कि कैसे मानवीय लक्षण बाजार के परिणामों और व्यक्तिगत निर्णयों को प्रभावित करते हैं।

अकादमी ने थेलर का परिचय देने वाले अपने प्रपत्र में कहा है कि 72 वर्षीय थेलर व्यवहारिक अर्थशास्त्र का अध्ययन करने वाले अग्रणी अर्थशास्त्री हैं। यह शोध का एक ऐसा क्षेत्र है, जहां आर्थिक निर्णय निर्माण की प्रक्रिया के दौरान मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों का अनुपालन करने का अध्ययन किया जाता है। इससे व्यक्तियों के आर्थिक निर्णय लेते समय सोच और व्यवहार का अधिक वास्तविक आकलन करने में मदद मिलती है।

जनादेश अर्थव्यवस्था सुधारने को मिला था, यूपीए पर आरोप मढ़ने नहीं: यशवंत सिन्हा

भारत की अर्थव्यवस्था पर पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

यशवंत सिन्हा ने कहा कि आपको गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जनादेश मिला था, ना कि पिछली सरकारों पर आरोप मढ़ने के लिए।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में आपको लोग आपके प्रदर्शन और आपके द्वारा किए गए वादों से जज करेंगे।

यशवंत सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि हम लोग निराशा फैला रहे हैं तो उन्होंने सुधारात्मक कदम उठाने का फैसला क्यों किया?

एनडीटीवी डॉट कॉम से बातचीत में यशवंत सिन्हा ने कहा कि मेरी आलोचना के बाद सरकार हरकत में आई है।

उन्होंने कहा, ''अगर हम लोग केवल निराशा ही फैला रहे हैं तो सरकार ने तेल पर एक्साइज ड्यूटी क्यों घटाई और फिर जीएसटी परिषद की बैठक क्यों की जा रही है?''

इसके साथ ही यशवंत सिन्हा ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, ''देश की गिरती हुई अर्थव्यवस्था पर मनमर्जी करने और जब उसके बारे में पूछा जाए तो इसका आरोप पिछली सरकार पर लगाने के लिए आपको यह जनादेश नहीं मिला था। अगले चुनाव में आपको आपके प्रदर्शन और आपके द्वारा किए गए वादों के आधार पर लोग आपको जज करेंगे।''

यशवंत सिन्हा ने बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर भी निशाना साधा। उनका कहना है कि आर्थिक नीतियां तय करने में अमित शाह की अनावश्यक रूप से बड़ी भूमिका होती है।

उन्होंने कहा, ''जब राजनीतिक और आर्थिक मामलों पर कैबिनेट कमेटी है, जिसके कई अन्य मंत्री हिस्सा हैं, लेकिन उनमें से किसी को नहीं बुलाया गया। अब सवाल यह उठता है कि पार्टी अध्यक्ष कैसे सीधे तौर पर सरकार चलाने या अहम फैसले लेने में शामिल हो सकता है।''

यह बात उन्होंने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात के लिए केरल दौरा बीच में छोड़कर आने के फैसले के संदर्भ में कही।

बता दें, यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक लेख लिखकर नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि इस सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को बरबाद कर दिया है।

साथ ही नोटबंदी के फैसले पर भी यशवंत सिन्हा ने इस लेख के जरिए सवाल उठाए थे। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सरकार का बचाव करते हुए कहा था कि कुछ लोग केवल निराशा फैलाते हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है, और गिरेगी जीडीपी: क्रेडिट सुइस

भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय घने कोहरे के दौर से गुजर रही है। क्रेडिट सुइस ने यह बात कही है।

क्रेडिट सुइस इंडिया के इक्विटी रणनीतिकार नीलकंठ मिश्रा ने आज संवाददाताओं से कहा कि जीएसटी सहित विभिन्न संरचनात्मक सुधारों की वजह से निकट भविष्य में वृद्धि, वित्तीय सेहत, मुद्रास्फीति, मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली को लेकर गहन अनिश्चितता की स्थिति पैदा हुई है।

नीलकंठ मिश्रा ने कहा कि वृहद आर्थिक मोर्चे पर अनिश्चितता के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था घने कोहरे से होकर गुजर रही है। इससे निवेश प्रभावित होगा, जिससे वृद्धि नीचे आएगी, जीडीपी भी घटेगी तथा अगले वित्त वर्ष के लिए आय का अनुमान भी प्रभावित होगा।

मिश्रा ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कई संरचनात्मक बदलाव आए हैं, मसलन लाखों की संख्या में श्रमिक कृषि से हटे हैं, जीएसटी लागू किया गया है, रीयल एस्टेट नियमन एवं विकास कानून और दिवाला संहिता लागू की गई है। ये सब उस दुष्चक्र को तोड़ रहे हैं, जिसमें अर्थव्यवस्था जकड़ी हुई थी।

वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनी ने निष्कर्ष निकाला कि सरकारी खर्च वृद्धि तेजी से कम हो रही है, जबकि आधी आबादी की आय वृद्धि काफी कमजोर है।

उन्होंने कहा, ''अच्छा मानसून रहने और 2016-17 में कृषि क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ने के बावजूद खाद्यान्नों के दाम में नरमी से क्षेत्र के उत्पादन का सकल मूल्य कमजोर रहा है।''

रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती के बारे में पूछे जाने पर मिश्रा ने कहा कि अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के दौर में है और ऐसे में अगले तीन-चार माह तक ब्याज दरों में कटौती नहीं होगी। हम ब्याज दरों में अर्थपूर्ण कटौती अगले नौ से 12 माह में ही देखेंगे।

रामदेव को कोर्ट का झटका: टीवी पर नहीं द‍िखा सकेंगे पतंजल‍ि साबुन का ऐड

रामदेव को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी करारा झटका दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद को टीवी पर साबुन का विज्ञापन नहीं दिखाने का आदेश दिया है।

दिल्ली हाई कोर्ट का यह आदेश डिटॉल बनाने वाली कंपनी रेकिट बेनकीजर द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के बाद आया है। याचिका में कहा गया है कि रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद का विज्ञापन डिटॉल ब्रांड की छवि खराब कर रहा है।

यह दूसरी बार है जब हाईकोर्ट ने पतंजलि को साबुन का विज्ञापन दिखाने से रोका है। रेकिट बेनकीजर से पहले हिन्दुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड भी पतंजलि के इस विज्ञापन पर रोक लगवा चुका है। तब बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगाई थी।

रेकिट बेनकीजर ने याचिका में कहा है कि पतंजलि के विज्ञापन में जो साबुन दिखाया गया है वो शेप, साइज और कलर में डिटॉल साबुन जैसा है। इसके अलावा पतंजलि के एड में डिटॉल को ढिटॉल बताया गया है।

रेकिट बेनकीजर  के वकील के मुताबिक, हाईकोर्ट ने पतंजलि के साबुन पर अंतरिम रोक लगा दी है। बतौर वकील पतंजलि ने शुरू में इस विज्ञापन को यूट्यूब पर अपलोड किया गया था, बाद में इसका कॉमर्शियल एड टीवी पर आने लगा। उन्होंने बताया कि जब इस बावत हमने पतंजलि को ई-मेल भेजा तो कोई जवाब नहीं आया।

इस विवाद की शुरुआत पतंजलि के उन विज्ञापनों से हुई थी जिसमें हिन्दुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड के साबुन ब्रैंड्स लक्स, पियर्स, लाइफबॉय और डव का नाम प्रत्यक्ष रूप से नहीं लेकर इन डायरेक्ट तरीके से उपभोक्ताओं को कहा जा रहा था कि 'केमिकल बेस्ड साबुनों' का इस्तेमाल ना करें। और  उनकी जगह प्राकृतिक साबुन अपनाएं।

पतंजलि आयुर्वेद का यह विज्ञापन 2 सितंबर से टीवी पर प्रसारित हो रहा था। विज्ञापन में डिटॉल को ढिटॉल बताने के अलावा एच यू एल के पियर्स को टियर्स, लाइफबॉय को लाइफजॉय बताया जा रहा था। लक्स पर निशाना साधा गया था। HUL के ब्रैंड लक्स पर अप्रत्यक्ष हमला करते हुए पतंजलि के ऐड में लाइन थी, 'फिल्मस्टार्स के केमिकल भरे साबुन न लगाओ।'

इंफोसिस की मुश्किलें बढ़ीं, अब अमेरिका में जांच शुरू

अमेरिका की चार कानून कंपनियों ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनी इंफोसिस के खिलाफ जांच शुरू की है। उन्होंने इंफोसिस के निवेशकों की तरफ से इन संभावित दावों की जांच शुरू की है कि क्या कंपनी या उसके अधिकारियों एवं निदेशकों ने संघीय सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया है?

यह जांच ऐसे समय में शुरू हुई है जब इंफोसिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विशाल सिक्का ने कंपनी संचालन में गड़बड़ी के आरोप लगाये जाने के कारण एक दिन पहले ही अपने पद से इस्तीफा दिया है।

जांच शुरू करने वाली कानून कंपनियां ब्रोंसटाइन, गेविर्ज एंड ग्रॉसमैन, रोसेन लॉ फर्म, पोमेरांत्ज लॉ फर्म और गोल्डबर्ग लॉ पीसी हैं।

रोसेन ने एक बयान में बताया कि वह इंफोसिस के शेयरधारकों की ओर से संभावित सुरक्षा दावों की जांच कर रही है। आरोप है कि इंफोसिस ने निवेशकों को गलत कारोबारी सूचनाएं दी थी।

बता दें कि वैश्विक सॉफ्टवेयर कंपनी इन्फोसिस ने शनिवार को 11.3 करोड़ शेयरों के बायबैक का ऐलान किया है जो 5 रुपये के फेस वैल्यू पर 1,150 रुपये प्रति शेयर के भाव पर किया जाएगा।

इन्फोसिस ने बंबई स्टॉक एक्सचेंज में दाखिल नियामकीय रिपोर्ट में कहा, ''निदेशक मंडल ने शेयरधारकों से 1,150 रुपये प्रतिशेयर के हिसाब से पांच रुपये के फेस वैल्यू के 11.3 करोड़ शेयर के बायबैक प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जो 13,000 करोड़ रुपये का होगा।''

यह ऑफर कुल प्रदत्त पूंजी और फ्री रिजर्व का 20.1 फीसदी है, जो 11.3 करोड़ शेयर या कुल शेयरों का 4.92 फीसदी है। इन्फोसिस ने अपने शेयरों का बायबैक कीमत 1,150 रुपये निश्चित किया है, जो शुक्रवार को सिक्का के इस्तीफा देने के बाद गिरकर 923.10 प्रति शेयर पर बंद हुआ था। सीईओ के इस्तीफा के बाद इंफोसिस के शेयर 9.6 फीसदी गिरे थे।

कंपनी ने 16 अगस्त को अपने शेयरों को कारोबार के लिए बंद कर दिया था, क्योंकि बोर्ड की बैठक में बायबैक पर फैसला किया जाना था। अब इन्फोसिस के शेयर 22 अगस्त को खुलेंगे।

बायबैक ऑफर में शेयर हस्तांतरण कर, जीएसटी, स्टैंप शुल्क, फाइलिंग शुल्क, एडवाइजर्स शुल्क, ब्रोकरेज, सार्वजनिक घोषणा का खर्च, प्रिटिंग और भेजने का खर्च समेत अन्य खर्च शामिल नहीं हैं। इस बायबैक प्राइस में पिछले तीन महीनों के औसत बाजार मूल्य के साथ 19 फीसदी प्रीमियम दिया गया है।

नियामकीय रिपोर्ट में कंपनी ने कहा, ''यह बायबैक शेयरधारकों की मंजूरी के अधीन है, जिस पर जल्द ही वोटिंग के माध्यम से फैसला किया जाएगा।''

बोर्ड ने एक बायबैक समिति का गठन किया है जिसमें सह-अध्यक्ष रवि वेंकटेशन, विशाल सिक्का, अंतरिम सीईओ यू बी प्रवीण राव, मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) एम. डी. रंगनाथ, उप सीएफओ जयेश संघराजका, परामर्शदाता इंद्रप्रीत साहनी और कंपनी सचिव ए जी एस मणिकांथा शामिल हैं।

पहली जीएसटी रिटर्न फाइल करने में ही वेबसाइट बंद, पांच दिन बढ़ी समय-सीमा

भारत के व्यापारियों को शनिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) फाइल करने वाली वेबसाइट ने जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के अंतिम दिन से एक दिन पहले काम करना बंद कर दिया।

एसोचैम के अध्यक्ष (स्पेशल टास्क फोर्स ऑन जीएसटी) प्रतीक जैन ने आई ए एन एस को बताया, ''दोपहर 12 बजे के बाद से ही जीएसटी की वेबसाइट रुक-रुक कर चल रही थी। इससे व्यापारियों के बीच काफी उलझन पैदा हो गई। हमारे कई ग्राहकों ने बताया कि इस गड़बड़ी के कारण वे रिटर्न दाखिल नहीं कर सके। अगर ऐसा आगे भी जारी रहता है तो सरकार को जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की तिथि अगले कुछ दिनों के लिए बढ़ा देनी चाहिए।''

जीएसटीआर-3बी दाखिल करने की तिथि जुलाई से लेकर 20 अगस्त तक ही है, जिसमें माल की आवाजाही और उधार/भुगतान के आंकड़े दाखिल करना है।

जीएसटी की वेबसाइट पर लगी नोटिस में कहा गया, ''यह सेवा 19 अगस्त को दोपहर 2 बजे से 2.45 बजे तक उपलब्ध नहीं है। कृपया बाद में आएं।''

अगस्त महीने के रिटर्न का विवरण दाखिल करने की अंतिम तिथि 20 सितंबर है। शनिवार को देर शाम तक सरकार ने परेशानियों को देखते हुए जीएसटी रिटर्न भरने की आखिरी तारीख पांच दिन बढ़ाते हुए 25 अगस्त कर दी है।

पुणे के चाटर्ड एकाउंटेंट प्रीतम महूरे ने आई ए एन एस को बताया, ''इस स्थिति से करदाता तनाव में है। महज दो हफ्ते पहले ही जीएसटीआर-3बी फार्म फाइलिंग के लिए उपलब्ध कराया गया था। उम्मीद के मुताबिक यह करदाताओं द्वारा फाइल किया गया पहला जीएसटी होता और इसी हफ्ते से करदाताओं ने जीएसटीआर-3बी फाइल करना शुरू किया था।''

एस के पी बिजनेस कंसल्टिंग के भागीदार जिगर दोषी ने बताया, ''अगर समरी रिटर्न फाइल करने में सिस्टम बैठ गया है तो अगले कुछ महीनों में स्थिति काफी डरावनी प्रतीत हो रही है क्योंकि हमें अंदाजा नहीं है कि उस समय क्या होगा, जबकि करदाताओं द्वारा इनवाइस अपलोड करते हुए विस्तृत जीएसटी रिटर्न फाइल किया जाएगा।''

अगस्त महीने का समरी रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि 20 सितंबर निर्धारित है, जिसे सरकार ने शनिवार को अगले 5 दिनों के लिए बढ़ा दिया है।

जीएसटीआर 3बी के अलावा करदाताओं को तीन फार्म और फाइल करने हैं जिनमें जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-2 और जीएसटीआर-3 है। जुलाई माह के लिए ये तीनों फार्म क्रमश: 1 सितंबर से 5 सितंबर के बीच, 6 सितंबर से 19 सितंबर के बीच और 11 सितंबर से 15 सितंबर के बीच फाइल करने हैं।

नीति आयोग उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने इस्तीफा दिया

अर्थशास्त्री डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने मंगलवार (1 अगस्त) को नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे के बाद अरविंद केवल 31 अगस्त तक ही उपाध्यक्ष पद का कार्य भार सम्भालेंगे और फिर नीति आयोग को दूसरा उपाध्यक्ष नियुक्त करना होगा।

नीति आयोग के कार्यों से फ्री होने के बाद अरविंद अमेरिका चले जाएंगे, जहां पर वे कॉलम्बिया विश्वविद्यालय में छात्रों को इकॉनोमिक्स पढ़ाएंगे। अरविंद 5 सितंबर यानि की शिक्षक दिवस पर विश्वविद्यालय ज्वाइन करेंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अरविंद ने अपने इस्तीफे की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे दी है। फिलहाल अभी उनके इस्तीफा को स्वीकार नहीं गया है क्योंकि मोदी बाढ़ ग्रस्त इलाकों में दौरे पर गए हुए हैं और वहां से वापस आने के बाद ही अरविंद के इस्तीफे और नए उपाध्यक्ष नियुक्त करने को लेकर विचार-विमर्श किया जाएगा।

आपको बता दें कि अरविंद पनगढ़िया दुनिया के सबसे अनुभवी अर्थशास्त्रियों में से एक हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अरविंद पहले भी कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, चूंकि इस विश्वविद्यालय से किसी भी शिक्षक को रिटायर नहीं किया जाता है, इसलिए उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा दोबारा अपना पद सम्भालने के लिए नोटिस भेजा गया था। अरविंद से इस नोटिस में पूछा गया था कि क्या वे वापस आकर छात्रों को पढ़ाना चाहेंगे या नहीं क्योंकि उनकी गैर मौजूदगी में छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

सूत्रों का कहना है कि अरविंद की सबसे ज्यादा रुचि बच्चों को पढ़ाने में है और इस्तीफा देने के पीछे यही वजह है कि वे वापस विश्वविद्यालय जाकर छात्रों को इकॉनोमिक्स पढ़ाएंगे।

इससे पहले अरविंद पनगढ़िया एशियन डिवेलपमेंट बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री और मैरीलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और को-डायरेक्टर भी रह चुके हैं।

अरविंद ने प्रिंसटन विश्वविद्यालय से इकॉनोमिक्स में पीएचडी की थी। वे वर्ल्ड बैंक, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड, वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइज़ेशन और यूएनसीटीएडी में अलग-अलग पद पर काम कर चुके हैं। अरविंद करीब 10 किताब लिखा और ठीक कर चुके हैं। उन्होंने अपनी आखिरी किताब 'इंडिया: द इमरजिंग जियांट' लिखी थी जिसे 2008 में ऑक्सफॉर्ड विश्वविद्यालय में पब्लिश किया गया था।

नरेंद्र मोदी सरकार ने छोटे निवेशकों को दिया झटका

भारत में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने छोटे निवेशकों को झटका दिया है। सरकार ने स्मॉल सेविंग स्कीम के तहत आने वाले पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) अकाउंट, किसान विकास पत्र (केवीपी) और राष्ट्रीय बचत पत्र (एन एस सी) पर मिलने वाले ब्याज में कटौती की है। शुक्रवार (30 जून) को सरकार ने इन छोटे निवेशों पर 10 बेसिस प्वाइंट इन्टेरेस्ट रेट में कटौती की है।

अब पीपीएफ और एनएससी पर 7.8 फीसदी ब्याज मिलेगा, जबकि केवीपी पर 7.5 फीसदी ब्याज मिलेंगे। इनके अलावा वरिष्ठ नागरिकों की बचत योजनाओं और सुकन्या समृद्धि योजना की ब्याज दरें भी फिर से निर्धारित की गई हैं। इकॉनोमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, इसे 8.3 फीसदी रखा गया है। नई दरें एक जुलाई से लागू होगी।

इससे पहले एनएससी और पीपीएफ खातों पर 7.9 फीसदी और किसान विकास पत्र पर 7.6 फीसदी ब्याज दिया जा रहा था। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सुकन्या समृद्धि योजना पर इससे पहले 8.4 फीसदी ब्याज दिया जा रहा था। इससे पहले 31 मार्च को भी ब्याज दरों में कटौती की गई थी। उस समय भी ब्याज दरों में 0.1 फीसदी की कटौती की गई थी।

गौरतलब है कि पीपीएफ को टैक्‍स बचाने का सबसे सुरक्षित जरिया माना जाता है। इस योजना में ब्‍याज दर सरकार निर्धारित करती है जिसके चलते हर साल बदलाव आता है। वर्तमान में पीपीएफ पर 7.9 प्रतिशत सालाना की दर से ब्‍याज मिलता था। कोई भी व्‍यक्ति किसी भी राष्‍ट्रीय बैंक, प्राइवेट बैंक या पोस्‍ट ऑफिस में 15 साल के लिए पीपीएफ खाता खुलवा सकता है। इसमें न्‍यूनतम 500 से लेकर डेढ़ लाख रुपये सालाना तक जमा करा सकता है। तीसरे साल से इस राशि पर लोन लिया जा सकता है। पीपीएफ पर मिलने वाले ब्‍याज पर भी टैक्‍स नहीं लगता है। खाता खुलाने के छह साल बाद आप एक तय राशि निकाल सकते हैं।