विदेश

जी-20: जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों में गंभीर असहमति

जलवायु परिवर्तन के लिए होने वाले संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलनों के उलट जी-20 की बैठकों में इस समस्या को लेकर उठाए जाने वाले कदमों पर आमतौर पर विकसित और विकासशील देशों में ज्यादा गंभीर असहमतियां नहीं दिखती हैं।

लेकिन इस बार के जी-20 सम्मेलन में इसे लेकर तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। जी-20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम करने, रिन्युबल एनर्जी के लक्ष्यों को बढ़ाने और ग्रीन हाउस उत्सर्जन में कमी जैसे लक्ष्यों को हासिल कर कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है।

जबकि जी-20 के देश दुनिया के 75 ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं। जी-20 सम्मेलन में रूस, चीन, सऊदी अरब और भारत ने 2030 तक रिन्युबल एनर्जी की क्षमता तीन गुना बढ़ाने के विकसित देशों के लक्ष्य का विरोध किया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि 6 सितंबर 2023 को शेरपा स्तर की बैठक में ये देश 2035 तक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 60 फीसदी घटाने के विकसित देशों के लक्ष्य से असहमत दिखे।

चीन ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया है, जिनमें कहा गया था कि जुलाई 2023 में हुई जी-20 के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में उसने जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर बनने वाली सहमति में बाधा डाली थी।

चीन ने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन की समस्या को खत्म करने के लिए अपनी क्षमता, जिम्मेदारियों और कर्तव्य के मुताबिक काम करने की अपील की थी।

चीन और भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का कहना है कि विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

जबकि विकासशील देशों का कहना है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को साथ आए बगैर ये काम मुश्किल है। जी-20 में दोनों ओर के देश अड़े हुए हैं। इससे संकेत मिल रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर यूएन के वार्षिक सम्मेलन सीओपी 28 में क्या होने वाला है।

तिब्बती प्रदर्शनकारियों ने जी-20 के नेताओं से चीन से बात करने की अपील क्यों की?

तिब्बती आंदोलनकारियों ने भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज में एक विरोध जुलूस निकाल कर चीन पर कथित तौर पर तिब्बती संस्कृति को मिटाने का आरोप लगाया है।

शनिवार, 9 सितम्बर 2023 को एक प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारी जी-20 में आए दुनिया भर के नेताओं से चीन से बात करने की अपील की। उनका कहना था कि चीन तिब्बती संस्कृति को मिटाने की कोशिश कर रहा है।

लिहाजा जी-20 सम्मेलन में भारत आए दुनिया भर के नेता चीन से इसे रोकने की अपील करें। प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने कहा कि चीन की सरकार तिब्बत की शिक्षा व्यवस्था पर लगातार हमले कर रही है। चीन तिब्बत की संस्कृति और पहचान मिटा देना चाहता है।

प्रदर्शनकारियों ने जी-20 सम्मेलन में आए दुनिया के नेताओं से अपील करते हुए कहा कि वो चीन को इस तरह के कदम उठाने से रोके।

स्टुडेंट्स फॉर फ्री तिब्बत (इंडिया) के राष्ट्रीय निदेशक तेनज़िन पसांग ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि चीन तिब्बत में औपनिवेशक ढर्रे के बोर्डिंग स्कूल खोल रहा है।

यहां चार-चार साल के छोटे बच्चों को उनके परिवार से अलग कर रखा जा रहा है। उन्हें जबरदस्ती इन स्कूलों में भेजा जा रहा है। इस तरह परिवार से अलग करके रखे जाने पर उनकी भाषा और संस्कृति खत्म की जा रही है।

डब्ल्यूटीओ में भारत और अमेरिका ने पॉल्ट्री उत्पादों के मुद्दे पर आख़िरी विवाद सुलझाया

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत और अमेरिका ने पॉल्ट्री उत्पादों के मुद्दे पर अपना आख़िरी विवाद सुलझा लिया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, इसके साथ ही दोनों देशों ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन में लंबित सभी सातों व्यापार विवादों को आपसी सहमति से सुलझा लिया है।

दोनों देशों ने एक साझा बयान भी जारी किया है जिसमें कहा गया है, "विश्व व्यापार संगठन में भारत और अमेरिका के बीच लंबित सातवें और आख़िरी विवाद के निपटारे का दोनों देशों ने स्वागत किया है। जून, 2023 में छह द्विपक्षीय व्यापार विवादों के निपटारे के बाद ये हुआ है।''

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों की ओर से ये साझा बयान जारी किया गया है।

राष्ट्रपति जो बाइडन जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दो दिनों के लिए भारत दौरे पर आए हुए हैं।

अफ़्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्य के तौर पर जी-20 में शामिल किया गया

भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में अफ़्रीकन यूनियन यानी अफ़्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के तौर पर जी-20 में शामिल कर लिया गया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वागत भाषण में कहा, "आप सबकी सहमति से आगे की कार्यवाही शुरू करने से पहले मैं अफ़्रीकन यूनियन के अध्यक्ष को जी-20 के स्थायी सदस्य के रूप में अपना स्थान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करता हूं।''

जी20 ग्रुप में 19 देश शामिल हैं- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका।

जी20 ग्रुप का 20वां सदस्य यूरोपीय संघ है।

अफ़्रीकी यूनियन के जी20 ग्रुप में स्थायी सदस्य के रूप में शामिल होने के बाद अब 19 देश और दो संघ इसके सदस्य हो गए हैं।

भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य बनाने के लिए अमेरिका ने समर्थन दोहराया

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से उनकी मुलाक़ात बहुत उपयोगी रहीं। भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक और जनता के बीच संबंधों पर बातचीत हुई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती वैश्विक भलाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखेगी।

शुक्रवार, 8 सितम्बर, 2023 को राष्ट्रपति बाइडन के दिल्ली पहुंचने के कुछ ही देर बाद दोनों नेताओं में द्विपक्षीय वार्ता हुई।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के मुलाक़ात के बाद अमेरिका की ओर से साझा बयान जारी किया गया है जिसमें निम्न प्रमुख बातें कही गई हैं -

- भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य बनाने के लिए अमेरिका ने समर्थन दोहराया।

- इंडो-पैसेफ़िक क्षेत्र को स्वतंत्र रखने के लिए क्वाड की अहमियत पर भारत और अमेरिका में सहमति।

- जो बाइडन ने चंद्रयान 3 और आदित्य एल 1 मिशन के लिए भारत को बधाई दी। जो बाइडन ने इसरो और नासा में सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया।

- अमेरिका और भारत के बीच सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन पर भी बात हुई। इस क्षेत्र में अमेरिका भारत में कुल 700 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा।

- भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को जारी रखने पर राष्ट्रपति बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी ने सहमति जताई।

भारत की समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अमेरिकी ट्रेज़री सेक्रेटरी जैनेट येलेन, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भी अमेरिका की ओर से इस मीटिंग में मौजूद थे।

भारत के प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल थे।

जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी अगले दो दिनों में विश्व के शीर्ष नेताओं से 15 द्विपक्षीय वार्ताएं करेंगे।

अमेरिकी सेना के लाखों ईमेल एक गलती से रूस के सहयोगी देश पहुंचते रहे?

अमेरिकी सेना के लाखों ईमेल एक छोटी सी गलती के कारण सालों तक रूस के सहयोगी देश माली को भेजे जाते रहे।

इन ईमेल में पासवर्ड, मेडिकल रिकॉर्ड और वरिष्ठ अधिकारियों के यात्रा कार्यक्रमों जैसी संवेदनशील जानकारियां शामिल थीं।

दरअसल ये गलती डोमेन के नाम को लेकर हुई। माली का डोमेन नेम .ml है।

अमेरिका की सेना के ईमेल जिस पते पर भेजने थे उसके डोमेन नेम में .mil था, लेकिन गलती से ये मेल .ml पर भेज दिए गए।

अमेरिका खुफिया विभाग पेंटागन ने इस समस्या को हल करने के लिए कदम उठाने का दावा किया है।

फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार एक डच इंटरनेट उद्यमी जोहान्स ज़ुर्बियर ने करीब 10 साल पहले इस समस्या का पता लगाया था।

ज़ुर्बियर के पास माली देश के डोमेन चलाने का कॉन्ट्रैक्ट है। हाल के दिनों में उन्हें हजारों ऐसे ईमेल प्राप्त हुए हैं।

अखबार के मुताबिक़, किसी भी मेल को क्लासिफाइड नहीं बताया गया है, लेकिन इन ईमेल में अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठानों के नक्शे, वित्तीय रिकॉर्ड, आधिकारिक यात्रा के ब्यौरे और कुछ राजनयिक संदेश भी शामिल हैं।

ज़ुर्बियर ने जुलाई 2023 में अमेरिकी अधिकारियों को एक पत्र भेजकर समस्या के बारे में चेतावनी दी थी।

उन्होंने दावा किया कि माली सरकार के साथ उनका कॉन्ट्रैक्ट जल्द ही खत्म हो जाएगा।

डोमेन नाम mil क्या है?

डोमेन नाम mil संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग और उसकी सहायक या संबद्ध संगठनों के लिए इंटरनेट के डोमेन नाम प्रणाली में प्रायोजित शीर्ष-स्तरीय डोमेन (एसटीएलडी) है। यह नाम मिलिट्री से लिया गया है। यह जनवरी 1985 में बनाए गए पहले शीर्ष-स्तरीय डोमेन में से एक था।

संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास अपनी सेना के लिए शीर्ष-स्तरीय डोमेन है, जो इंटरनेट के निर्माण में संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना की भूमिका की विरासत है। अन्य देश अक्सर इस उद्देश्य के लिए दूसरे स्तर के डोमेन का उपयोग करते हैं, उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम के रक्षा मंत्रालय के लिए mod.uk। कनाडा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ norad.mil का उपयोग करता है क्योंकि वे संयुक्त रूप से उत्तरी अमेरिकी एयरोस्पेस डिफेंस कमांड का संचालन करते हैं।

एक समर्पित शीर्ष-स्तरीय डोमेन होने के बावजूद, अमेरिकी सेना अपनी कुछ भर्ती साइटों, जैसे कि goarmy.com, के साथ-साथ डिफेंस कमिशनरी एजेंसी की वेबसाइट www.commissaries.com और अधिकांश गैर-विनियोजित निधि उपकरणों के लिए भी com डोमेन का उपयोग करती है। जैसे कि सैन्य एमडब्ल्यूआर संगठन और सैन्य आदान-प्रदान। इसके अलावा, सेना अपनी सेवा अकादमियों के लिए edu डोमेन का उपयोग करती है: यूनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री अकादमी, यूनाइटेड स्टेट्स कोस्ट गार्ड अकादमी, यूनाइटेड स्टेट्स नेवल अकादमी, और यूनाइटेड स्टेट्स एयर फ़ोर्स अकादमी सभी तक edu या mil डोमेन नाम का उपयोग करके पहुंचा जा सकता है। तीन अकादमियों की आधिकारिक एथलेटिक कार्यक्रम साइटें जो एनसीएए डिवीजन I (सेना, नौसेना, वायु सेना) के सदस्य हैं, कॉम डोमेन का उपयोग करती हैं, साथ ही तटरक्षक बल, जो एनसीएए डिवीजन III का सदस्य है। रक्षा विभाग स्वयं अपने होम पेज के लिए gov का उपयोग करता है, जिसमें mil (रक्षा, डीओडी और पेंटागन) के भीतर कम से कम तीन दूसरे स्तर के डोमेन अपने डोमेन नाम www.defense.gov पर रीडायरेक्ट होते हैं।

यूनाइटेड स्टेट्स कोस्ट गार्ड, अन्य सैन्य सेवाओं की तरह, mil डोमेन का उपयोग करता है, हालाँकि वैधानिक शांतिकाल के दौरान यह सेवा यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी के अंतर्गत आती है।

नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड और भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने द्विपक्षीय वार्ता की

भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद नई दिल्ली में प्रेस वार्ता को संबोधित किया है।

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार, 1 जून 2023 को दिल्ली में द्विपक्षीय वार्ता की।

नरेंद्र मोदी ने कहा

- हम अपने रिश्तों को हिमालय जितनी ऊंचाई देने के लिए काम करते रहेंगे, और इसी भावना से, हम सभी मुद्दों को, चाहे बाउंड्री का हो या कोई और विषय, सभी का समाधान करेंगे।
- आज मैंने और प्रधानमंत्री प्रचण्ड जी ने भविष्य में अपनी पार्टनरशिप को सुपरहिट बनाने के लिए बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं।
- आज ट्रांजिट अग्रीमेंट संपन्न किया गया है। इसमें नेपाल के लोगों के लिए, नए रेल रूट्स के साथ साथ, भारत के इनलैंड वाटरवेज़ की सुविधा का भी प्रावधान किया गया है।
- मुझे याद है, 9 साल पहले, 2014 में, कार्यभार सँभालने के तीन महीने के भीतर मैंने नेपाल की अपनी पहली यात्रा की थी। उस समय मैंने भारत-नेपाल संबंधों के लिए एक हिट फार्मूला दिया था- हाईवेस, आई-वेज़, और ट्रांस-वेज़।
- मैंने कहा था कि भारत और नेपाल के बीच ऐसे संपर्क स्थापित करेंगे कि हमारे बॉर्डर्स, हमारे बीच रुकावट न बने।
- भारत और नेपाल के धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध बहुत पुराने और मज़बूत हैं। इस सुन्दर कड़ी को और मज़बूती देने के लिए प्रधानमंत्री प्रचण्ड जी और मैंने निश्चय किया है कि रामायण सर्किट से संबंधित परियोजनाओं में तेजी लायी जानी चाहिए।

तुर्की में अर्दोआन की जीत भारत के लिए क्या मायने रखती है?

तुर्की में रेचेप तैय्यप अर्दोआन फिर से राष्ट्रपति चुनाव जीत गए हैं। अर्दोआन पिछले दो दशक से तुर्की की कमान संभाल रहे हैं और दो दशक सत्ता में रहने के बाद भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

अर्दोआन की जीत भारत के लिए क्या मायने रखती है? भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्दोआन को जीत की बधाई दे दी है। मोदी ने बधाई देते हुए उम्मीद जताई है कि आने वाले वक़्त में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध अच्छे होंगे और वैश्विक मुद्दे पर सहयोग बढ़ेगा।

मोदी ने भले बधाई दे दी है लेकिन उन्हें पता है कि अर्दोआन के सत्ता में आने के बाद भारत से रिश्ते सहज नहीं रहे हैं। पिछले नौ सालों में मोदी ने मध्य-पूर्व के कई देशों का दौरा किया लेकिन तुर्की नहीं गए।

2019 में मोदी तुर्की का दौरा करने वाले थे लेकिन ऐन मौक़े पर दौरा रद्द हो गया था। पाँच अगस्त 2019 को कश्मीर का विशेष दर्जा भारत ने ख़त्म कर दिया था और तुर्की ने इसका खुलकर विरोध किया था। अर्दोआन ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भी उठाया था।

कश्मीर पर अर्दोआन की लाइन पाकिस्तान के पक्ष में रही है। भारत के लिए हमेशा से यह असहज करने वाला रहा है। तुर्की इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी में भी कश्मीर को लेकर हमलावर रहा है।

भारत तुर्की की इन आपत्तियों के जवाब में कहता रहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और तुर्की की टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है।

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने भी ट्वीट कर इस बात पर चिंता जताई है कि अर्दोआन की जीत भारत के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है।

कंवल सिब्बल ने अपने ट्वीट में लिखा है, ''तुर्की में अर्दोआन की जीत भारत के लिए बहुत सहज स्थिति नहीं है। तुर्की कश्मीर पर इस्लामिक लाइन पर समर्थन पाकिस्तान को देगा। ओआईसी में भी कश्मीर पर सक्रिय रहेगा। पाकिस्तान के साथ तुर्की की जुगलबंदी चिंताजनक है। ऑटोमन साम्राज्य वाला अर्दोआन का लक्ष्य भी विनाशकारी है। अर्दोआन के नेतृत्व में तुर्की का ब्रिक्स में आना किसी भी मायने में ठीक नहीं है। रूस के साथ भी अर्दोआन की दोस्ती बहुत अच्छी है।''

तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ रहा है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1950 के शुरुआती दशक या फिर शीत युद्ध के दौर में होती है।

इसी दौर में भारत-पाकिस्तान के बीच दो जंग भी हुई थी। तुर्की और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुआ था। तब भारत के आज़ाद हुए मुश्किल से एक साल ही हुआ था।

इन दशकों में भारत और तुर्की के बीच क़रीबी साझेदारी विकसित नहीं हो पाई। कहा जाता है कि तुर्की और भारत के बीच तनाव दो वजहों से रहा है। पहला कश्मीर के मामले में तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ और दूसरा शीत युद्ध में तुर्की अमेरिकी खेमे में था जबकि भारत गुटनिरपेक्षता की वकालत कर रहा था।

नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था। तुर्की इसका सदस्य था। नेटो को सोवियत यूनियन विरोधी संगठन के रूप में देखा जाता था।

इसके अलावा 1955 में तुर्की, इराक़, ब्रिटेन, पाकिस्तान और ईरान ने मिलकर 'बग़दाद पैक्ट' किया था। बग़दाद पैक्ट को तब डिफ़ेंसिव ऑर्गेनाइज़ेशन कहा गया था।

इसमें पाँचों देशों ने अपनी साझी राजनीति, सेना और आर्थिक मक़सद हासिल करने की बात कही थी. यह नेटो की तर्ज़ पर ही था। 1959 में बग़दाद पैक्ट से इराक़ बाहर हो गया था। इराक़ के बाहर होने के बाद इसका नाम सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन कर दिया गया था। बग़दाद पैक्ट को भी सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ देखा गया। दूसरी तरफ़ भारत गुटनिरपेक्षता की बात करते हुए भी सोवियत यूनियन के क़रीब लगता था।

जब शीत युद्ध कमज़ोर पड़ने लगा था तब तुर्की के 'पश्चिम परस्त' और 'उदार' राष्ट्रपति माने जाने वाले तुरगुत ओज़ाल ने भारत से संबंध पटरी पर लाने की कोशिश की थी।

1986 में ओज़ाल ने भारत का दौरा किया था। इस दौरे में ओज़ाल ने दोनों देशों के दूतावासों में सेना के प्रतिनिधियों के ऑफिस बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तुर्की का दौरा किया था। राजीव गांधी के दौरे के बाद दोनों देशों के रिश्ते कई मोर्चे पर सुधरे थे।

लेकिन इसके बावजूद कश्मीर के मामले में तुर्की का रुख़ पाकिस्तान के पक्ष में ही रहा इसलिए रिश्ते में नज़दीकी नहीं आई।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, अमेरिका चीन को घेरने, दबाने और रोकने की पूरी कोशिश कर रहा है

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अक्सर अपने बयानों में चीन के विकास की बात करते हैं लेकिन सीधे तौर पर अमेरिका के बारे में कुछ नहीं कहते।

लेकिन चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस के दौरान आयोजित राजनीतिक सलाहकारों के समूह की एक बैठक में व्यापारियों से बात करते हुए उन्होंने अमेरिका की आलोचना की।

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि अमेरिका चीन को 'घेरने, दबाने और रोकने' की पूरी कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस कारण चीन के सामने कई 'चुनौतियां' खड़ी हो गई हैं।

दूसरी तरफ चीन के विदेश मंत्री चिन गांग ने मंगलवार, 7 मार्च 2023 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बयान का समर्थन किया और चीन-अमेरिका के तनावपूर्ण रिश्तों के लिए अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया।

चिन गांग ने कहा, "अगर अमेरिका ने अपनी हरकतों पर ब्रेक नहीं लगाया और ग़लत राह पर चलना बंद नहीं किया तो चाहे कितनी भी सुरक्षा रखी जाए, गाड़ी का पटरी से उतरना तय है और इससे संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो इसका परिणाम भयंकर होगा?"

चिन गांग ने कहा, "ये एक लापरवाह खेल है जिसमें दोनों पक्षों के हित और साथ ही पूरी मानवता का भविष्य शामिल है। ये सामान्य बात है कि चीन हर तरह से इसके ख़िलाफ़ है।''

चिन गांग ने ताइवान मामले का ज़िक्र किया और कहा कि ये वो लाल रेखा है जिसे पार करने की इजाज़त नहीं है।

चिन गांग ने कहा, "ताइवान का सवाल चीन के मूल हितों से जुड़ा है, ये चीन-अमेरिका के राजनीतिक रिश्तों के मूल में है और दोनों के रिश्तों में ये वो लाल रेखा है जिसे पार नहीं किया जाना चाहिए।''

"ताइवान मामले पर सवाल खड़ा करने की जिम्मेदारी पूरी तरह से अमेरिका की है। हम अमेरिका के ताइवान मामले को लेकर इसलिए बात कर रहे हैं ताकि हम उसे कहें कि वो चीन के आंतरिक मामलों में दखलअंदाज़ी न करे।''

अमेरिका में कई जगहों पर ऊंचाई पर उड़ने वाले चीन के बैलून देखे जाने के बाद अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते और बिगड़ गए हैं।

अमेरिका ने ये कहते हुए चीनी बैलून को गिरा दिया था कि इसमें जासूसी के लिए उपकरण लगे हुए थे।

लेकिन चीन ने कहा कि ये मौसम की जानकारी इकट्ठा करने वाला बैलून था जो रास्ता भटक कर अमेरिका के इलाक़े में चला गया था, लेकिन अमेरिका ने इसे लेकर ओवररिएक्ट किया है।

यूक्रेन को अमेरिका का समर्थन मिलता रहेगा: बाइडन

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन यूक्रेन की राजधानी कीएव पहुंचे। साल भर पहले रूस के आक्रमण के बाद से बाइडन की ये यूक्रेन की पहली यात्रा है।

इससे पहले, बाइडन पोलैंड के राष्ट्रपति एंद्रेज दुदा से मिलने गए थे। लेकिन वहां से वह अचानक कीएव पहुंच गए।

यूक्रेन की राजधानी कीएव में सुबह से यह अंदाज़ा लग रहा था कि कोई अहम मेहमान आने वाला है।

यूक्रेन की नेता लिसिया वेसिलेन्को ने बताया कि ये मेहमान बाइडन हैं।

यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने अपने आधिकारिक टेलीग्राम अकाउंट से अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हाथ मिलाते हुए एक तस्वीर पोस्ट की है।

ज़ेलेंस्की ने लिखा, "जो बाइडेन, कीएव में आपका स्वागत है। आपकी यात्रा सभी यूक्रेनियन के लिए समर्थन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण संकेत है।''

पोलैंड से अचानक यूक्रेन की राजधानी कीएव पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि यूक्रेन को अमेरिका का समर्थन मिलता रहेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ''कीएव की मेरी यात्रा यूक्रेन के लोकतंत्र, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति हमारी अटूट और अटल प्रतिबद्धता की एक बार फिर पुष्टि करते हैं।''

बयान में आगे कहा गया है, "लगभग एक साल पहले पुतिन ने हमला करते हुए सोचा था कि यूक्रेन कमजोर है और यूरोप बंटा हुआ। उन्होंने सोचा था कि वो हमें थका देंगे। लेकिन वो बिल्कुल गलत थे।''

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने एक साझा बयान जारी किया गया है।

इस बयान में जेलेंस्की ने कहा, 'लोकतांत्रिक दुनिया' ये 'ऐतिहासिक जंग' जीत कर रहेगी।''

बाइडेन की मौजूदगी में ज़ेलेंस्की ने टेलीविजन पर जारी संयुक्त बयान में कहा, ''अमेरिका और यूक्रेन के रिश्ते के पूरे इतिहास में ये सबसे अहम यात्रा है। ये उन नतीजों के बारे में बताता है, जिन्हें हमने पहले ही हासिल कर लिया है। आज की हमारी बातचीत काफी सफल रही।''

जेलेंस्की ने कहा, ''इस यात्रा के नतीजें दिखेंगे। इस मुलाकात का असर युद्ध के मैदान में होगा। यूक्रेन को अबराम्स टैंक देने के अमेरिकी फैसले से यूक्रेनी सेना मजबूत हुई है। मेरी और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच लंबी रेंज के हथियारों पर भी बातचीत हुई है।''

यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने आगे कहा, ''मुझे मालूम है कि यूक्रेन की मदद के लिए काफी अहम पैकेज मिलेगा। इसका मतलब साफ़ है कि रूसी आक्रामकता के लिए अब कोई मौका नहीं होगा।''

जेलेंस्की ने कहा, ''मिस्टर प्रेसिडेंट यूक्रेन आपका आभारी है।''