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बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान भारत को पीछे ले जाने के लिए जिम्मेदार हैं: नीति आयोग

भारत में नीति आयोग के सी ई ओ अमि​ताभ कांत ने सोमवार को कहा कि भारत के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्सों के राज्य तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन कुछ राज्य जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कारण देश पीछे जा रहा है।

नीति आयोग के सी ई ओ अमिताभ कांत नई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के खान अब्दुल गफ्फार खान मेमोरियल लेक्चर में बोल रहे थे।

समाचार एजेंसी पी टी आई के मुताबिक, अमिताभ कांत ने कहा कि, ''कुछ राज्य जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान भारत को पीछे ले जाने के लिए जिम्मेदार हैं। खासतौर पर सामाजिक मानकों पर। ऐसे वक्त में जब हम कारोबार करना आसान बनाने में जुटे हैं। हमें मानव विकास सूचकांक पर भी नजर रखनी होती है। भारत मानव विकास सूचकांक में अभी भी 188 देशों की सूची में 131वें स्थान पर है।''

अमिताभ कांत ने कहा कि,''सरकार देश के सामाजिक तानेबाने के उत्थान में जुटी हुई है। इसके लिए कई सुधार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। मैं समाज में स्थिर बढ़त को कायम रखने का भी समर्थक हूं। शिक्षा और स्वास्थ्य ये दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें देश की स्थिति अच्छी नहीं है। ये ही देश की विकास दर को पीछे ढकेलने वाले प्रमुख तत्व हैं। हमारे देश में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता बेहद खराब है।''

अमिताभ कांत ने उदाहरण देते हुए बताया कि, ''भारत जैसे देश में कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चे कक्षा 2 के स्तर का गुणा नहीं कर पाते हैं। कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चे अपनी मातृभाषा को पढ़ नहीं पाते हैं। देश में शिशु मृत्यु दर बेहद ऊंची है। ऐसे में जब तक हम इन आयामों पर काम नहीं करेंगे। हम अपनी सतत बढ़त को बनाए रखने में कामयाब नहीं हो सकेंगे।''

उन्होंने देश में फैसला करने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का भी समर्थन किया। कांत ने कहा कि, ''इस देश में नीतियों के निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए महिलाओं को मौके देने की जरूरत है।''

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस-भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है नया मोर्चा

कर्नाटक चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे कर्नाटक में कांग्रेस-भाजपा से अलग एक नया मोर्चा भी बनता दिख रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्यूलर पहले ही मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ का फैसला कर चुकी है। अब माना जा रहा है कि वोक्कालिगा और दलित समीकरण में मुस्लिम भी जुड़ सकता है।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहाद-उल मुस्लिमीन (ए आई एम आई एम) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने वैसे तो 40 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का ऐलान किया है, मगर सूत्र बता रहे हैं कि जे डी एस-बी एस पी गठबंधन के साथ उनकी बातचीत भी चल रही है। अगर इनका चुनाव पूर्व गठबंधन होता है तो यह कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए खतरा हो सकता है।

कर्नाटक में वोक्कालिगा और पिछड़े वोट बैंक पर जे डी एस का प्रभाव माना जाता है, जबकि दलितों पर मायावती का भी प्रभाव है। नए राजनीतिक परिदृश्य में हाल के वर्षों में असदुद्दीन ओवैसी का प्रभाव भी मुसलमानों पर बढ़ा है। ऐसे में अगर ये तीनों नेता एकसाथ आते हैं तो दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के वोट बैंक में सेंध लग सकता है।

कर्नाटक में अल्संख्यकों की आबादी करीब 17 फीसदी है, जिसमें 13 फीसदी सिर्फ मुसलमान हैं। दलितों-पिछड़ों की आबादी भी 32 फीसदी है, जबकि वोक्कलिगा समुदाय की आबादी भी करीब 17 फीसदी है। ऐसे में मुस्लिम, दलित और पिछड़े वोटों का विभाजन होने से कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान हो सकता है।

कर्नाटक में फिलहाल कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पहले ही आरोप लगा चुके हैं कि जे डी एस बीजेपी की बी पार्टी है। ऐसे में कांग्रेस और जे डी एस के बीच दोस्ती की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं।

कर्नाटक में कांग्रेस अकेले अपने दम पर जोर आजमाइश में लगी है, जबकि जे डी एस अभी भी एक बड़े गठबंधन की कोशिश कर रही है। पिछले दिनों संसद में देवगौड़ा और असदुद्दीन ओवैसी के बीच भी बातचीत हो चुकी है।

अगर देवगौड़ा की मुहिम कामयाब होती है तो माना जा रहा है कि यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हो सकता है।

हैदराबाद में जड़ें जमा चुकी ए आई एम आई एम पिछले पांच सालों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बाहर भी पांव पसारने की कोशिश करती रही है। महाराष्ट्र विधानसभा में भी इस पार्टी ने दो सीटें जीती हैं। अब पार्टी की नजर पड़ोसी राज्य कर्नाटक के मुस्लिम बहुल इलाकों पर है। कर्नाटक में 224 सीटों के लिए 12 मई को चुनाव होंगे, जबकि 15 मई को नतीजे आएंगे।

कर्नाटक में वोटर्स लिस्‍ट से 15 लाख मुस्लिमों के नाम गायब

भारत के राज्य कर्नाटक में इसी वर्ष मई में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले एक गैर सरकारी संगठन ने राज्य में मुस्लिम मतदाताओं को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। एन जी ओ सेंटर फॉर रिचर्स एंड डिबेट्स इन डिवेलपमेंट पॉलिसी (सीआरडीडीपी) ने दावा किया है कि राज्य में 15 लाख मुसलमानों के नाम मतदाता सूची में नहीं हैं।

कैरावैन डेली की खबर के मुताबिक, राज्य अल्पसंख्यक आयोग, भारतीय चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों का ध्यान खींचने के बाद एन जी ओ मतदाताओं के लिए एनरोलमेंट मिशन चला रहा है। एन जी ओ के अध्यक्ष जाने-माने अर्थशास्त्री अबुसालेह शरीफ हैं। एन जी ओ ने सामुदायिक कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को मतदाताओं के नामांकन के काम में लगाया है।

मार्च के पहले हफ्ते में एन जी ओ ने अपने काम में पाया कि राज्य में 15 लाख के करीब मुसलमानों के पास वोटर आई डी नहीं है। एन जी ओ ने बहुत कम समय में सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और डिवेलपर्स की एक टीम बनाई। इस टीम ने एक एंड्रॉयड एप और वेबसाइट तैयार की, जिस पर वोटर आई डी नहीं रखने वाले मतदाताओं का विवरण मुहैया कराया गया है।

वेबसाइट के माध्यम से उम्मीदवारों से अपील की गई है कि वे इस सूचना से लाभ उठाए और मतदान में लोगों की सहभागिता बढ़ाने के लिए वोटरों की संख्या में इजाफा करें। कैरावैन डेली ने जब एन जी ओ से उसके द्वारा दी गई सूचना की प्रमाणिकता को लेकर सवाल पूछा तो संस्था के एक अधिकारी सैयद खालिद सैफुल्लाह ने बताया कि मुस्लिम परिवारों की जनगणना और चुनाव आयोग की मतदाता सूची के आंकड़े मिलाकर इस बारे में जानकारी जुटाई गई है।

बता दें कि चुनाव आयोग ने 224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में विधानसभा चुनाओं की तारीख 12 मई रखी है और 15 मई को मतदान के नतीजे आएंगे। राज्य में एक ही चरण में चुनाव संपन्न होंगे। चुनावों की पारदर्शिता का ध्यान रखते हुए चुनाव आयोग ने हर पोलिंग बूथ पर वी वी पी ए टी मशीन लगाने की बात कही है। फिलहाल राज्य में कांग्रेस की सरकार है और मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी वोटरों को लुभाने का कोई भी मौका नहीं चूक रहा है। भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी एस येदियुरप्पा है।

वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट: भारत में जीएसटी दुनिया में दूसरा सबसे ऊंचा टैक्स रेट

वर्ल्ड बैंक ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी कर सुधार प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। वर्ल्ड बैंक ने भारत में लागू जी एस टी (वस्तु एवं सेवा कर) को सबसे ज्यादा जटिल करार दिया है।

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 115 देशों में भारत का टैक्स रेट दूसरा सबसे ऊंचा है। लाइव मिंट के मुताबिक, रिपोर्ट में शामिल देशों में भारत की तरह ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू है। मोदी सरकार द्वारा 1 जुलाई, 2017 को लागू किये गए जी एस टी के ढांचे में पांच स्लैब (0, 5, 12, 18 और 28 फीसद) बनाए गए हैं। सभी वस्तुओं और सेवाओं को इसी दायरे में रखा गया है। सरकार ने कई वस्तुओं और सेवाओं को जी एस टी के दायरे से बाहर भी रखा है और कुछ पर काफी कम टैक्स लगाए गए हैं। जैसे सोने पर 3 फीसदी और कीमती पत्थरों पर 0.25 फीसद की दर से कर लगाया गया है। वहीं, अल्कोहल, पेट्रोलियम उत्पाद, रियल एस्टेट और बिजली बिल को जी एस टी के दायरे से बाहर रखा गया है। विश्व बैंक ने बुधवार (14 मार्च) को 'इंडिया डेवलपमेंट अपडेट' की छमाही रिपोर्ट जारी की थी।

दुनिया के 49 देशों में जी एस टी के तहत एक और 28 देशों में दो स्लैब हैं। भारत समेत पांच देशों में इसके अंतर्गत पांच स्लैब बनाए गए हैं। भारत के अलावा इनमें इटली, लक्जेम्बर्ग, पाकिस्तान और घाना जैसे देश शामिल हैं।

बता दें कि चारों देशों की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। ऐसे में भारत जी एस टी के तहत सबसे ज्यादा स्लैब वाला देश भी है। भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 12 और 18 फीसद वाले स्लैब को एक करने का वादा किया है। लेकिन, कर अदा करने में सुधार और राजस्व में वृद्धि के बाद ही यह कदम उठाया जाएगा। पिछले साल नवंबर में जी एस टी काउंसिल की गुवाहाटी बैठक में 28 फीसद के स्लैब को लेकर महत्वपूर्ण फैसला लिया गया था। पहले इसके दायरे में 228 वस्तुओं एवं सेवाओं को रखा गया था, जिसे 50 तक सीमित कर दिया गया।

वर्ल्ड बैंक ने भारत में टैक्स रिफंड की धीमी रफ्तार पर भी चिंता जताई है। इसका असर पूंजी की उपलब्धता पर पड़ने की बात कही गई है। रिपोर्ट में कर प्रणाली के प्रावधानों को अमल में लाने पर होने वाले खर्च को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। विश्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के आधार पर भविष्य में स्थिति में सुधार आने की उम्मीद जताई है। रिपोर्ट में टैक्स रेट की संख्या कम करने, कानूनी प्रावधान और प्रक्रियाओं को सरल बनाने की वकालत की गई है।

वर्ल्‍ड बैंक ने भारत से विकासशील देश का तमगा छीन लिया

वर्ल्‍ड बैंक ने भारत से विकासशील देश का तमगा छीन लिया है। अब भारत लोअर मिडिल इनकम कैटेगरी में गिना जाएगा। भारत नए बंटवारे के बाद जांबिया, घाना, ग्‍वाटेमाला, पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की श्रेणी में आ गया है।

सबसे बुरी बात यह है कि ब्रिक्‍स देशों में भारत को छोड़कर चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील अपर मिडिल इनकम श्रेणी में आते हैं। अभी तक लो और मिडिल इनकम वाले देशों को विकासशील और हाई इनकम वाले देशों को विकसित देशों में गिना जाता रहा है।

वर्ल्‍ड बैंक ने अर्थव्‍यवस्‍था के बंटवारें की श्रेणियों के नामों में परिर्वतन किया है। वर्ल्‍ड बैंक के डाटा साइंटिस्‍ट तारिक खोखर ने बताया, ''हमारे वर्ल्‍ड डवलपमेंट इंडिकेटर्स पब्लिकेशन में हमने लो और मिडिल इनकम वाले देशों को विकासशील देशों के साथ रखना बंद कर दिया है। विश्‍लेषणात्‍मक उद्देश्‍य से भारत को लोअर मिडिल इनकम अर्थव्‍यवस्‍था में रखा जा रहा है। हमारे सामान्‍य कामकाज में हम विकासशील देश की टर्म को नहीं बदल रहे हैं। लेकिन जब स्‍पेशलाइज्‍ड डाटा देंगे तो देशों की सूक्ष्‍म श्रेणी का प्रयोग करेंगे।''

वर्ल्‍ड बैंक की ओर से कहा गया है कि मलावी और मलेशिया दोनों विकासशील देशों में गिने जाते हैं। लेकिन अर्थव्‍यवस्‍था की दृष्टि से देखें तो मलावी का आंकड़ा 4.25 मिलियन डॉलर है, जबकि मलेशिया का 338.1 बिलियन डॉलर है।

नए बंटवारे के बाद अफगानिस्‍तान, नेपाल लो इनकम में आते हैं। रूस और सिंगापुर हाई इनकम नॉन ओ ई सी डी और अमेरिका हाई इनकम ओ ई सी डी कैटेगिरी में आता है।

नई श्रेणियों का निर्धारण वर्ल्‍ड बैंक ने कई मानकों के आधार पर किया है। इनमें मातृ मृत्‍यु दर, व्‍यापार शुरू करने में लगने वाला समय, टैक्‍स कलेक्‍शन, स्‍टॉक मार्केट, बिजली उत्‍पादन और साफ-सफाई जैसे मानक शामिल हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट: भारत में और बढ़ा भ्रष्‍टाचार, आवाज उठाने वालों को मौत के घाट उतार देते हैं

अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रपट की माने तो भ्रष्टाचार को लेकर भारत के सरकारी क्षेत्र की छवि दुनिया की निगाह में अब भी खराब है। वैसे 2015 की तुलना में स्थिति में सुधार के संकेत हैं। संस्था की ताजा रपट ग्लोबल करप्शन इंडेक्स - 2017 में भारत को 81वें स्थान पर रखा गया है, जबकि पिछले साल की रपट में भारत 79वें स्थान पर था।

भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारों को एक सशक्त संदेश देने के उद्देश्य से 1995 में शुरू किए गए इस सूचकांक में 180 देशों की स्थित का आकलन किया गया है। यह सूचकांक विश्लषकों, कारोबारियों और विशेषज्ञों के आकलन और अनुभवों पर आधारित बताया जाता है। इसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के लिए काम की आजादी जैसी कसौटियां भी अपनाई जाती हैं।

सूचकांक तैयार करने के लिए देशों को विभिन्न कसौटियों पर 0 से 100 अंक के बीच अंक दिए जाते हैं। सबसे कम अंक सबसे अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त होने का संकेत माना जाता है। इस बार की सूची में भारत को 40 अंक दिए गए हैं, जो पिछले साल के ही बराबर है, लेकिन 2015 के बाद स्थिति में सुधार हुआ। जब भारत को 38 अंक दिया गए थे।

ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल ने कहा है, ''पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कुछ देशों में पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं और यहां तक कि कानून लागू करने वाली और नियामकीय एजेंसियों के अधिकारियों तक को धमकियां दी जाती हैं। कहीं-कहीं हालत ऐसी ख़राब है कि उनकी हत्याएं कर दी जाती हैं।''

रपट में कमेटी टू प्रोटेक्स जर्नलिस्ट्स का हवाला देते हुए कहा गया है कि इन देशों में छह साल में 15 ऐसे पत्रकारों की हत्या हो चुकी है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रहे थे। इस मामले में रपट में भारत की तुलना फिलीपीन और मालदीव जैसे देशों के साथ की गई है और कहा गया है कि इस मामले में ये देश अपने क्षेत्र में बहुत ही खराब हैं। भ्रष्टाचार के मामले में इन देशों के अंक ऊंचे हैं और इनमें प्रेस की आजादी अपेक्षाकृत कम है और यहां पत्रकारों की हत्याएं भी ज्यादा हुई है।

इस सूची में न्यूजीलैंड और डेनमार्क 89 और 88 अंक के साथ सबसे ऊपर हैं। दूसरी तरफ सीरिया, सूडान और सोमालिया क्रमश: 14, 12 और 9 अंक के साथ सबसे नीचे हैं। इस सूची में चीन 77वें और ब्राजील 96वें और रूस 135वें स्थान पर हैं।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने किसानों का एक हजार करोड़ रुपये लूट लिया

भारत के सबसे बड़े बैंक एस बी आई द्वारा ग्राहकों को चूना लगाए जाने का एक और मामला सामने आ रहा है। अंदेशा है कि बैंक ने किसानों को करीब एक हजार करोड़ रुपए की चपत लगाई है।

मध्‍य प्रदेश के अखबार 'नई दुनिया' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौसम का हाल बताने के एवज में एस बी आई किसान के खाते से 990 रुपए काट रहा है। जबकि, भारत की केंद्र सरकार किसानों को पहले से ही टोल फ्री नंबर पर मौसम की जानकारी मुफ्त में लेने की सुविधा दे रही है।

बता दें कि इससे पहले लो बैलेंस के नाम पर खाताधारकों से बड़ी रकम जुर्माने के तौर पर वसूलने के लिए एस बी आई की काफी आलोचना हो चुकी है।

मध्य प्रदेश में विदिशा के किसान हजारीलाल शर्मा की आपबीती के आधार पर अखबार ने रिपोर्ट छापी है। शर्मा के फोन पर बैंक से सूचना आई कि मौसम न्यूज अलर्ट के बदले में खाते से 990 रुपये काटे गए हैं। किसान ने बैंक प्रबंधन से शिकायत की, मगर पैसा नहीं वापस हुआ।

रिपोर्ट के मुताबिक, विदिशा में सटेरन स्थित एस बी आई के शाखा प्रबंधक बी एस बघेल ने स्वीकार किया कि बगैर जानकारी दिए किसानों के खाते से पैसा कट रहा है। उनका कहना है कि मुंबई स्थित मुख्य शाखा से यह धनराशि काटी जाती है।

हालांकि एस बी आई की कृषि शाखा के मुख्य महाप्रबंधक जितेंद्र शर्मा का कहना है कि किसानों से सहमति पत्र भरवाकर ही राशि काटी गई होगी।

मौसम अलर्ट के नाम पर 990 रुपए की वसूली किसान क्रेडिट कार्ड रखने वाले खाताधारकों से की जा रही है। एस बी आई की वेबसाइट के मुताबिक, देशभर में एक करोड़ एक लाख किसान क्रेडिट कार्डधारक हैं। अगर इन सबसे 990 रुपए वसूले गए होंगे तो कुल रकम 999.90 करोड़ रुपए बनती है।

हालांकि यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि सारे किसानों से पैसे वसूले जा रहे हैं या फिर केवल उन किसानों से जिन्‍होंने इस सुविधा के लिए सहमति दी हो। वैसे, बिना सहमति के बैंक इस तरह की किसी भी सुविधा के लिए फीस नहीं ले सकती। यह भी संभव हो सकता है कि किसानों ने अनजाने में फॉर्म पर संबंधित कॉलम को टिक कर सहमति दे दी हो।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने मौसम अलर्ट की सुविधा देने के लिए आर एम एल नामक कंपनी से करार किया है। 16 राज्यों की 500 एस बी आई शाखाओं के ग्राहकों के लिए यह सुविधा उपलब्‍ध है।

पर इसे लेकर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि किसानों को मौसम की मुफ्त जानकारी पहले से मिल रही है। 1800-180-1551 डायल कर मुफ्त में यह सुविधा ली जा सकती है।

बता दें कि इससे पहले खाते में न्यूनतम धनराशि नहीं होने पर भी एस बी आई की ओर से चार्ज वसूलने की आलोचना हो चुकी है। एस बी आई ने भारत के छह महानगरों में औसतन पांच हजार रुपये, वहीं शहरी तथा अर्ध शहरी शाखाओं के लिए तीन और दो हजार रुपये न्यूनतम धनराशि तय की थी। जबकि ग्रामीण शाखाओं के लिए यह धनराशि एक हजार रुपये थी। एस बी आई ने न्यूनतम धनराशि खाते में नहीं होने पर 20 रुपए (ग्रामीण शाखा) से 100 रुपए (महानगर) से वसूली शुरू की थी।

पीएनबी घोटाला: मोदी पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया

पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में 10,000 हजार करोड़ रुपये (1.8 अरब डॉलर) के घोटाले के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने डायमंड कारोबारी नीरव मोदी एवं अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है। मोदी पर बैंकों को 280.70 करोड़ रुपये का चूना लगाने का आरोप है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की प्राथमिकी के आधार पर यह केस दर्ज किया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस महीने की शुरुआत में सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की थी। इसी प्राथमिकी के आधार पर यह मामला काला धन रोधक अधिनियम (पी एम एल ए) के तहत दर्ज हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि ईडी ने नीरव मोदी एवं अन्य के खिलाफ पीएनबी की शिकायत का भी संज्ञान लिया है। पीएनबी ने सीबीआई से लुकआउट नोटिस जारी करने की भी मांग की है।

उन्होंने कहा कि सीबीआई इस बात की जांच करेगी कि क्या बैंक की धोखाधड़ी की गई राशि की हेरा-फेरी की गयी थी और अवैध संपत्ति बनाने के लिए आरोपियों ने इस तरीके का बार-बार इस्तेमाल किया था। सीबीआई ने इस संबंध में नीरव मोदी, उसके भाई, उसकी पत्नी और कारोबारी भागीदार के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

इसके अलावा सीबीआई ने मोदी, उसके भाई निशाल, पत्नी एमी और मेहुल चीनूभाई चौकसी के आवास पर छापेमारी भी की है। ये सभी डायमंड्स आर यूएस, सोलर एक्सपोर्ट्स और स्टेलर डायमंड्स में भागीदार हैं। दो बैंक अधिकारियों गोकुलनाथ शेट्टी (अब सेवानिवृत्त), मनोज खारत के आवास पर भी छापेमारी की गई है। नीरव मोदी फोर्ब्स की भारतीय अमीरों की सूची में भी शामिल रहे हैं।

पीएनबी का आरोप है कि गोकुल शेट्टी और मनोज खरट ने निर्धारित प्रक्रिया को पूरा किए बगैर ही हांगकांग स्थित इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक के लिए आठ एलओयू जारी कर दिए थे। इसका कुल मूल्य 4.42 करोड़ डॉलर (280.70 करोड़ रुपये) था।

हैरत की बात है कि आरोपी अधिकारियों ने कथित तौर पर इसकी एंट्री नहीं की थी। विभागीय छानबीन के बाद पीएनबी ने सीबीआई को शिकायत देकर मामले की छानबीन करने को कहा था। आरोप है कि करोड़ों रुपये मूल्य के आठ एलओयू जारी करने के लिए दस्तावेज मुहैया नहीं कराए गए थे। साथ ही, संबंधित अधिकारियों से इसकी मंजूरी भी नहीं ली गई थी।

घोटाला: बीपीएससी ने अप्लाई किये बिना असिस्टेन्ट प्रोफेसर बना दिया, खारिज उम्मीदवारों की बहाली हुई

नीतीश कुमार के शासनकाल में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा असिस्टेन्ट प्रोफेसर की भर्ती में भारी गड़गड़ी के मामले उजागर हुए हैं। बीपीएससी ने कई ऐसे लोगों को भर्ती करने की सिफारिश की है जो पहले बीपीएससी द्वारा अयोग्य करार दिए गए थे। अब ये लोग भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए और वहां से सफल घोषित होकर विश्वविद्यालयों में पदस्थापित भी हो चुके हैं।

एबीपी न्यूज ने महीने भर की गहन छानबीन के बाद यह उजागर किया है कि कई ऐसे अभ्यर्थियों का भी चयन बीपीएससी ने किया है जिनका नाम पहले न तो योग्य, न ही अयोग्य और न ही विलंब से आए आवेदनों की लिस्ट में था, लेकिन बाद में वो सीधे इंटरव्यू के लिए बुलाए गए और सफल भी करार दिए गए। चैनल के ऑपरेशन इंटरव्यू के मुताबिक, छानबीन से पता चलता है कि अंतिम तिथि समाप्त हो जाने के काफी बाद और भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद कुछ लोगों को अनुचित तरीके से फायदा पहुंचाया गया है।

बी एन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा में विजय शंकर और अनामिका यादव दोनों अंग्रेजी के असिस्टेन्ट प्रोफेसर के पद पर बहाल हुए हैं। इन दोनों का नाम आयोग की अयोग्य उम्मीदवारों की लिस्ट में रखा गया था।  इन दोनों ने न तो नेट या स्लेट पास किया था, न ही पीएचडी की थी। इसके बावजूद इन दोनों ने इंटरव्यू दिया और दोनों ही सफल रहे। इसी तरह से मगध विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र विषय में वीरेंद्र मंडल बहाली हुई हैं। उनका नाम किसी लिस्ट में नहीं था। न तो योग्य उम्मीदवारों की लिस्ट में और न ही अयोग्य उम्मीदवारों की लिस्ट में। देर से प्राप्त हुए आवेदनों की लिस्ट में भी इनका नाम नहीं था। इसके बावजूद इंटरव्यू से कुछ दिन पहले इन्हें औपबंधिक रूप से योग्य करार देते हुए इंटरव्यू में शामिल किया गया और सफल करार दिए गए। जब इनसे पूछा गया तो मंडल ने बताया कि उनका आवेदन आयोग में प्राप्त नहीं हुआ था। बाद में आयोग ने उन्हें आवेदन करने को कहा और वो योग्य पाए गए। जबकि नियमानुसार अंतिम तारीख बीत जाने के बाद किसी भी सूरत में किसी का भी आवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यानी वीरेंद्र मंडल का चयन बीपीएससी में घपलेबाजी की ओर इशारा करता है।

आयोग के पूर्व अध्यक्ष राम आश्रय यादव कहते हैं कि इस तरह से किसी भी आवेदन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अगर किसी कारणवश आवेदन स्वीकार किए जाते हैं तो उसकी सूचना सार्वजनिक की जानी चाहिए थी ताकि और लोग भी लाभान्वित हो सकें। उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि स्क्रूटनी में दूसरे विषय का आवेदन दूसरे विषय में जा सकता है, लेकिन इससे कुल आवेदकों की संख्या नहीं बदली चाहिए।

इसके अलावा आरक्षण नियमों को भी झुठलाने के आरोप बीपीएससी पर लगे हैं। एबीपी न्यूज ने जब इन सभी मसलों पर बीपीएससी से पक्ष जानना चाहा तो आयोग की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया।

बता दें कि साल 2014 में बीपीएससी ने अलग-अलग विषयों के लिए कुल 3,364 पदों पर विज्ञापन निकाला था। कई विषयों का रिजल्ट जारी हो चुका है, जबकि कई विषयों में अभी रिजल्ट आना बाकी है। इससे पहले बिहार विद्यालय परीक्षा समिति, बिहार कर्मचारी चयन आयोग में फर्जीवाड़ा उजागर हो चुका है।

अमेरिका ने इस्राइल को वेस्ट बैंक में बस्तियों के निर्माण को हरी झंडी दी

अमेरिका ने इस्राइल को वेस्ट बैंक में बस्तियों के निर्माण को हरी झंडी दी।