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दक्षिण अफ्रीका के एएनसी पार्टी के लिए आगे क्या है?

दक्षिण अफ्रीका में शासन करने वाली एएनसी अफ्रीका में सबसे पुराना राजनीतिक आंदोलनों में से एक है।

यह पार्टी 1 912 में स्थापित किया गया था और 1994 में रंगभेद के अंत के बाद से यह प्रभावशाली पार्टी रही है।

इस पार्टी ने लाखों दक्षिण अफ्रीकी में समृद्धि लाने का वादा किया था, लेकिन उस पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया है।

इसके नए नेता सिरिल रमोफोसा का कहना है कि वह इसे बदलना चाहते हैं।

उन्होंने इस पार्टी में विश्वसनीयता बहाल करने का वादा किया है, जिसे एक बार नेल्सन मंडेला ने नेतृत्व किया था।

लेकिन क्या वह इस काम को पूरा कर पाएंगे?

ब्लेज़ ऑफ़ फायर एंड फुरी: ट्रम्प अंतर्दृष्टि या उपन्यास?

ईरान परमाणु समझौते के खिलाफ ट्रम्प क्यों है?

संसद की स्थायी समिति ने रेलवे से पूछा, लक्जरी ट्रेनें सिर्फ 30 प्रतिशत यात्रियों के साथ क्यों चलाई जा रही हैं?

भारत में संसद की एक स्थायी समिति ने भारतीय रेल से पूछा है कि लक्जरी ट्रेनें सिर्फ 30 प्रतिशत यात्रियों के साथ क्यों चलाई जा रही हैं? भारतीय रेल पर संसद की स्थायी समिति ने गुरुवार को संसद में पर्यटन संवर्द्धन और तीर्थाटन सर्किट पर अपनी रिपोर्ट पेश की।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय को स्थिति-सुधार के उपाय करने चाहिए। समिति के अनुसार, महाराजा एक्सप्रेस, गोल्डन चैरियट, रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स, डेक्कन ओडिसी और पैलेस ऑन व्हील्स ट्रेनों में 2012 से 2017 के दौरान खाली सीटों की संख्या क्रमश: 62.7 प्रतिशत, 57.76 प्रतिशत, 45.46 प्रतिशत और 45.81 प्रतिशत रही है।

तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंध्योपाध्याय की अगुवाई वाली समिति ने कहा कि सबसे चौंकाने वाला मामला महाराजा एक्सप्रेस का है। यह ट्रेन पूरी तरह भारतीय रेल द्वारा चलाई जाती है। 2012-13, 2013-14, 2014-15, 2015-16 और 2016-17 में इस ट्रेन में यात्रियों की औसत संख्या क्षमता के क्रमश: 29.86 प्रतिशत, 32.33 प्रतिशत, 41.8 प्रतिशत, 41.58 प्रतिशत और 36.03 प्रतिशत रही।

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने व्यापार और यात्रा पर अंशधारकों के साथ पहला परिचर्चा सत्र आयोजित किया है। भारतीय रेल की इस पहल का मकसद रेलवे के माध्यम से पर्यटन को प्रोत्साहन देना है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने लक्जरी ट्रेनों में यात्रियों की कमी के मामले को गंभीरता से नहीं लेने के लिए रेल मंत्रालय की आलोचना की है। समिति ने कहा है कि मंत्रालय को इसकी उचित तरीके से समीक्षा के बाद बताना चाहिए कि ऐसी ट्रेनें सिर्फ 30 प्रतिशत यात्रियों के साथ क्यों चलाई जा रही हैं? वहीं दूसरी तरफ, भारतीय रेल की ड्रीम परियोजना 'स्वर्ण प्रोजेक्ट' के तहत शताब्दी ट्रेनों का कायाकल्प किया जा रहा है। इन ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों को बेहतरीन सुविधाएं मुहैया कराने के लिए काफी काम हो रहा है। मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलने वाली शताब्दी ट्रेन के लिए सोमवार को 25 नवीनीकृत और सर्वसुविधायुक्त कोच लॉन्च किए गए हैं। इन सभी कोच की बनावट बेहद ही खास है, इसमें स्वच्छता और सुंदरता पर काफी ध्यान दिया गया है।

मोदी सरकार ने माना: किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा

भारत में केंद्र की मोदी सरकार ने माना है कि किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने शुक्रवार को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान समर्थन मूल्य से जुड़े एक सवाल के मौखिक जवाब में कहा, ''यह सही है कि किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है, हालांकि किसानों को उपज का उचित मूल्य मिले, इसके लिए देशव्यापी स्तर पर उपाय किए जा रहे हैं।''

कांग्रेस सदस्य विप्लव ठाकुर द्वारा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के बावजूद किसानों को इसके मुताबिक उपज की कीमत नहीं मिल पाने के सवाल पर राधा मोहन सिंह ने कहा कि सरकार ने कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर धान, ज्वार, बाजरा सहित 22 फसलों के साल 2017-18 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में लागत पर लाभ 50 प्रतिशत से अधिक रखा था।

उन्होंने कहा, ''इसके बावजूद मेरा अनुभव कहता है कि दिल्ली से कोलकाता तक समूचे इलाके में सौ किमी के दायरे में धान की खेती करने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है।'' राधा मोहन सिंह ने कहा कि सरकार राज्यों में फसलों की खरीद प्रक्रिया पर पूरी निगरानी रख रही है जिससे किसानों को उपज की निर्धारित कीमत मिल सके। राधा मोहन सिंह ने कहा कि सरकार इस समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में नीति आयोग और राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर रही है जिससे बेहतर व्यवस्था कायम की जा सके।

राधा मोहन सिंह ने इस समस्या के समाधान के तौर पर गेंहू और धान से इतर अन्य फसलों की पैदावार करने वाले किसानों के लिए मूल्य समर्थन योजना को बेहतर विकल्प बताया। इसके तहत उपज की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम होने पर फसल की खरीद राज्य सरकार को करना चाहिए। इस बारे में राज्य सरकारों से जब भी प्रस्ताव आते हैं, केन्द्र सरकार इस योजना के तहत अतिरिक्त राशि जारी करती है। इस योजना में केन्द्र सरकार ने राज्यों से आठ लाख मीट्रिक टन दाल और कपास आदि की खरीद की है।

वित्त वर्ष 2017-18: सरकार ने GDP का अनुमान जारी किया, 7 फीसदी से कम विकास दर रहेगी

भारत में केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए शुक्रवार को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पहला अनुमान जारी किया। सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (सीएसओ) के अनुसार, इस वित्त वर्ष में विकास दर में कमी देखने को मिलेगी। विकास दर 6.5 फीसदी के आसपास होगी। जबकि, बीते साल यह 7.1 फीसदी थी। वहीं, 2015-16 में विकास दर आठ फीसदी के करीब थी। 2014-15 में यह 7.5 प्रतिशत थी।

बता दें कि तीन तिमाही के आंकड़ों के साथ जीडीपी का दूसरा अनुमान 28 फरवरी को जारी किया जाएगा। पूरे साल के आंकड़े 2018 में जारी किए जाएंगे। कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन की वजह से जीडीपी की वृद्धि दर चालू 2017-18 में 6.5 प्रतिशत के चार साल के निचले स्तर पर रहेगी। नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में यह सबसे कम वृद्धि दर होगी। नरेंद्र मोदी की सरकार ने मई 2014 में अपना कार्यभार संभाला था। जानकार इसे आर्थिक मोर्चे पर भारत के लिए झटके के तौर पर देख रहे हैं।

सीएसओ ने जीडीपी को लेकर कहा, ''चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 7.1 प्रतिशत रही थी।'' वास्तविक सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) के आधार पर 2017-18 में वृद्धि 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो इससे पिछले साल 6.6 प्रतिशत थी।

आर्थिक गतिविधियां नोटबंदी और उसके बाद माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन से प्रभावित चालू वित्त वर्ष में आर्थिक गतिविधियों में गिरावट दिख रही है। सीएसओ के आंकड़ों के अनुसार, कृषि, वन और मत्स्यपालन क्षेत्र की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में घटकर 2.1 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में यह 4.9 प्रतिशत थी। इसके अलावा विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर भी घटकर 4.6 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जो 2016-17 में 7.9 प्रतिशत रही थी।

गुजरात चुनाव: सीएसडीएस सर्वे- शुरू में कांग्रेस हावी थी, अंतिम दौर में बीजेपी बाजी मारने में सफल रही

गुजरात चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। बीजेपी अब वहां नए मुख्यमंत्री की तलाश में जुटी है, मगर राज्य में छठी बार सरकार बनाने जा रही बीजेपी को इन चुनावों में कांग्रेस ने जबर्दस्त टक्कर दी। चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में कांग्रेस बीजेपी से लंबी लकीर खींच चुकी थी, मगर अंतिम दौर आने तक सियासी घमासान में फिर से बीजेपी ने कांग्रेस पर निर्णायक बढ़त बना ली।

कांग्रेस की ओर से जहां राहुल गांधी ने मोर्चा संभाल रखा था, वहीं बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृह राज्य में लगातार कैम्प किए हुए थे। दोनों ही दलों ने गुजरात में लगभग एक साथ ही तैयारी शुरू की थी। कांग्रेस पिछले कुछ विधानसभा चुनावों की तुलना में अच्छी रणनीति के साथ गुजरात में उतरी थी। लिहाजा, उसने 22 साल से सत्ता में रहने वाली बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर दी थी, लेकिन अंतिम दौर में बीजेपी ही बाजी मारने में सफल रही।

सीएसडीएस के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो गुजरात की राजनीति में बीजेपी को लगातार कड़ी टक्कर दे रही कांग्रेस अंतिम समय में लोगों का विश्वास जीतने में पीछे रह गई। सीएसडीएस के इस सर्वे में साफ देखा जा सकता है कि चुनाव प्रचार के अंतिम दो सप्ताह में बीजेपी को कांग्रेस पर बढ़त बनाने में जबर्दस्त सफलता हाथ लगी।

सर्वे के मुताबिक, गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान की शुरुआत से पहले 48 प्रतिशत जनता कांग्रेस के साथ खड़ी थी, जबकि 46 प्रतिशत जनता का भरोसा बीजेपी पर कायम था। यानी कांग्रेस को जहां 10 प्रतिशत का फायदा हो रहा था, वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी को आठ प्रतिशत का नुकसान। सर्वे के मुताबिक 6 फीसदी लोग अन्य के साथ भी खड़े दिखाई दिए।

सर्वे के मुताबिक, चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में 100 में से 42 लोग कांग्रेस को और 47 लोग बीजेपी के समर्थन में मतदान करने का मन बना चुके थे। चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में कांग्रेस को 7 प्रतिशत का फायदा हो रहा था, जबकि बीजेपी को 4 प्रतिशत का नुकसान। मगर आखिरी दो सप्ताह में कांग्रेस को जबर्दस्त झटका लगा और वोटर चुपचाप बीजेपी की तरफ सरक गए।

माना जा रहा है कि पीएम मोदी पर कांग्रेस नेता मणिशंक्कर अय्यर का 'नीच' वाला बयान बीजेपी को लाभ पहुंचा गया। बयान पर भावनात्मक अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को गुजरात का बेटा बताते हुए इसे गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया। यही वजह रही कि अंतिम दो सप्ताह में बीजेपी कांग्रेस पर बढ़त बनाने में सफल रही। आखिरकार अंतिम दौर में 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ 100 में से 53 लोग बीजेपी के पक्ष में वोट करने का मन बना चुके थे। कांग्रेस को इस दौरान काफी नुकसान झेलना पड़ा और उसे महज 38 प्रतिशत जनता का समर्थन ही हासिल हो सका।

पीडब्ल्यूसी और सीआईआई की रिपोर्ट: भारत में 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाएं शीर्ष 20 शहरों तक सीमित हैं

भारत की 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा शीर्ष 20 शहरों तक ही सीमित है। इसके अलावा 30 फीसदी भारतीय हर साल स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च की वजह से गरीबी रेखा की जद में आ जाते हैं।

पीडब्ल्यूसी और सीआईआई द्वारा संयुक्त रूप से जारी किए गए 'कैसे एमहेल्थ भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकता हैं', नामक ज्ञान पत्र के मुताबिक, भारत में 30 फीसदी लोग प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। इसमें कहा गया है कि भारत अकेले वैश्विक बीमारी का 21 फीसदी बोझ झेल रहा है।

पीडब्ल्यूसी के 14वें भारत स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन में जारी ज्ञान पत्र में कहा गया कि बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच एक चुनौती है, क्योंकि सहायक बुनियादी ढांचा और संसाधन अपर्याप्त हैं। ज्ञान पत्र में भारत के अंदर स्वास्थ्य सेवाओं के खस्ताहाल को दर्शाया गया, जिसमें कहा गया है कि भारत की 70 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा शीर्ष 20 शहरों तक ही सीमित है, साथ ही 30 फीसदी भारतीयों के पास प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा तक पहुंच नहीं है।

पत्र में कहा गया है, ''भारत में प्रति 1000 आबादी पर केवल 0.7 डॉक्टर, 1.3 नर्स और 1.1 अस्पताल बेड हैं। जिससे इस प्रकार के एक एमहेल्थ (मोबाइल हेल्थ) चैनल की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, भारतीय स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र में वास्तव में कुछ आंकड़े चिंताजनक हैं, जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी प्राथमिक इलाज से वंचित है। स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा की गुणवत्ता व सस्ती स्वास्थ्य सेवा को सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए नए तरीकों का लाभ उठाना जरूरी है।''

भारत में वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण चैनल के रूप में एमहेल्थ (मोबाइल स्वास्थ्य) का लाभ उठाने की काफी क्षमता है और यह सुविधा भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन कर सकती हैं। पीडब्ल्यूसी इंडिया हेल्थकेयर के डॉ. राणा मेहता ने कहा, ''अगर भारत में एमहेल्थ को पूरी तरह से अपना लिया जाता है, तो देश के स्वास्थ्य सेवा में सुधार लाने में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।''

उन्होंने कहा, ''भारत की आबादी करीब 1.3 अरब है और अगर हम 6-8 फीसदी के एक रूढ़िवादी अनुमान लेते हैं, तो हम अतिरिक्त 7.9 से 10.5 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करने की उम्मीद कर सकते हैं।''

सीआईआई हेल्थकेयर काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. नरेश त्रेहन ने कहा, ''भारत को नए और अभिनव तरीकों की जरूरत है, ताकि स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों और अवसंरचना की कमी के लिए देखभाल और क्षतिपूर्ति प्रदान करें।''

डॉक्टर्स विदआउथ बॉर्डर्स की रिपोर्ट: महज एक महीने में म्यांमार में 6700 रोहिंग्या मुसलमानों की जान गई

डॉक्टर्स विदआउथ बॉर्डर्स (एम एस एफ) ने गुरुवार को बताया कि म्यांमार के रखाइन राज्य में विद्रोहियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के पहले ही महीने में कम से कम 6,700 रोहिंग्या मुसलमान मारे गए थे। यह कार्रवाई अगस्त के आखिर में शुरू हुई थी।

एम एस एफ के आंकड़े सर्वाधिक अनुमानित मृतक संख्या हैं। रखाइन राज्य में हिंसा 25 अगस्त को शुरू हुई और इसने बड़ा शरणार्थी संकट खड़ा कर दिया जब तीन महीने में 620,000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से बांग्लादेश चले गए थे।

संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने सैन्य अभियान को मुस्लिम अल्पसंख्यकों का जातीय सफाया बताया था, लेकिन हिंसा में मरने वालों की अनुमानित संख्या जारी नहीं की थी।

एम एस एफ ने बृहस्पतिवार को बताया कि कम से कम भी अनुमान लगाए तो भी 6,700 रोहिंग्या हिंसा में मारे गए थे। इनमें पांच साल से कम उम्र के 730 बच्चे भी शामिल हैं। समूह की यह पड़ताल रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में 2,434 से ज्यादा घरों पर किए गए छह सर्वेक्षण से सामने आई है। ये सर्वेक्षण एक माह में किए गए थे।

समूह के मेडिकल निदेशक सिडनी वॉन्ग ने कहा कि हम म्यांमार में हुई हिंसा के पीड़ितों से मिले तथा बात की। वे बांग्लादेश में क्षमता से अधिक भरे तथा गंदे शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक, 69 फीसदी मामलों में मौत गोली लगने से हुई, जबकि नौ फीसदी मौतें घरों में जिंदा जलाने से हुईं। पांच प्रतिशत लोगों को पीट-पीटकर मारा डाला गया।

पांच साल से कम उम्र के करीब 60 फीसदी बच्चों की मौत गोली लगने की वजह से हुई है।

म्यांमार की सेना ने किसी भी तरह का दुर्व्यवहार किए जाने से इंकार करते हुए कहा है कि 376 रोहिंग्या आतंकवादियों सहित केवल 400 लोगों की मौत कार्रवाई शुरू होने के शुरुआती कुछ सप्ताह में हुई।

गुजरात चुनाव 2017: बीजेपी को बड़ी हार भी मिल सकती है

स्वराज इंडिया पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी राय जाहिर की है। आधिकारिक अकाउंट से ट्वीट कर योगेंद्र यादव ने कुछ आंकड़ों के जरिए बताया कि किस पार्टी को कितने प्रतिशत वोट और सीटें मिल सकती हैं।

ट्वीट में उन्होंने तीन परिदृश्य भी बताए हैं। इसके साथ उन्होंने आंकड़ों की एक तस्वीर पोस्ट की है। इसके नीचे यह भी लिखा है कि सभी आंकड़ों का अनुमान योगेंद्र यादव ने लगाया है और यह किसी एग्जिट पोल का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

इसके अलावा जिन सीटों का अनुमान लगाया गया है वे सीएसडीएस पोल पर आधारित हैं और एबीपी के अनुमान से अलग है।

इस अनुमान के मुताबिक, गुजरात में इस बार कांग्रेस बाजी मार सकती है और बीजेपी को अब विपक्ष में बैठना पड़ेगा।

योगेंद्र यादव चुनावी विश्लेषक हैं और पहले भी चुनावी नतीजों पर अपनी राय देते रहे हैं।

योगेंद्र यादव के मुताबिक, पहले 'मुमकिन' परिदृश्य में बीजेपी को 86 सीटें (43 प्रतिशत वोट) और कांग्रेस को 92 सीट (43 प्रतिशत) मिलेंगी।

वहीं दूसरे 'संभावित' परिदृश्य में योगेंद्र यादव ने बीजेपी को 65 (41 प्रतिशत वोट) और कांग्रेस को 113 सीटें (45 प्रतिशत) दी हैं।

वहीं तीसरे व अंतिम परिदृश्य के आगे योगेंद्र यादव ने 'इनकार नहीं किया जा सकता' लिखा है। इसके बाद उन्होंने लिखा कि बीजेपी को बड़ी हार भी मिल सकती है।

अगर बात योगेंद्र यादव द्वारा पोस्ट किए गए आंकड़ों की करें तो इसके मुताबिक बीजेपी ने साल 2012 में ग्रामीण इलाकों की 98 सीट में से 44, वहीं कांग्रेस ने 49 सीट जीती थीं। अर्ध शहरी इलाकों की 45 सीटों पर बीजेपी को 36 तो कांग्रेस को 8 सीट पर जीत मिली थी। वहीं शहरी इलाकों की 39 सीटों में बीजेपी को 35 और कांग्रेस को सिर्फ 4 सीट पर विजय मिली थी। इसको अगर जोड़ दें तो बीजेपी के हाथ 115 और कांग्रेस को 61 सीटें मिली थीं। गुजरात में 182 विधानसभा सीटों पर चुनाव होता है।

वहीं योगेंद्र के पहले परिदृश्य (एबीपी-सीएसडीएस में वोट शेयर बीजेपी और कांग्रेस का 43 प्रतिशत) के मुताबिक, इस बार 98 ग्रामीण सीटों में से बीजेपी को 28 और कांग्रेस को 66 सीट मिलेंगी। वहीं अर्ध-शहरी इलाकों की 45 सीट में बीजेपी को योगेंद्र यादव ने 26 और कांग्रेस को 19 सीटें दी हैं। शहरी इलाकों की 39 सीटों में से बीजेपी को 29 और कांग्रेस को 10 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है। यानी बीजेपी को इस बार 83 और कांग्रेस को 95 सीटें मिलेंगी।

दूसरे परिदृश्य के मुताबिक, (अगर 2 प्रतिशत बीजेपी के खिलाफ स्विंग होता है) ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को 20 , कांग्रेस को 74 , अर्ध-शहरी इलाकों में बीजेपी को 18 और कांग्रेस को 27, शहरी इलाकों में बीजेपी को 27 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। इसे जोड़ें तो बीजेपी को 65 और कांग्रेस को 113 सीटें मिलेंगी।

गौरतलब है कि गुजरात विधानसभा चुनावों के दूसरे चरण के लिए गुरुवार 14 दिसंबर को मतदान किया जाएगा। वोटिंग सुबह 8 बजे से शाम 5 पांच बजे तक चलेगी। इस चरण में 93 सीटों पर मतदान किया जाएगा।

चुनाव आयोग की ओर से दूसरे चरण के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। वोटिंग के लिए 25,558 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। इस चरण में कुल 851 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 782 पुरुष और 69 महिला उम्मीदवार शामिल हैं।

चुनाव आयोग के मुताबिक , दूसरे चरण में कुल 2 करोड़ 22 लाख 96,867 मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या एक करोड़ 15 लाख 47,435 और महिला मतदाताओं की संख्या एक करोड़ सात लाख 48,977 है।

9 दिसंबर को पहले चरण की 89 सीटों पर बंपर वोटिंग हुई थी, जिसमें 66.75 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। उम्मीद है कि इस चरण में भी लोग जमकर मतदान करेंगे।