भारत

पेगासस मामले में जाँच समिति की रिपोर्ट आने के बाद बीजेपी, कांग्रेस और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

भारत में पेगासस जासूसी मामले में बनाई गई तकनीकी जाँच समिति ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जाँच के लिए उसके पास जमा किए गए किसी भी मोबाइल फ़ोन में जासूसी साॅफ्टवेयर (स्पाइवेयर) के पुख़्ता सबूत नहीं मिले। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पाँच फ़ोन्स में मैलवेयर पाए गए हैं।

हालाँकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि केंद्र सरकार ने जाँच में पूरा सहयोग नहीं किया।

इसके बाद बीजेपी ने कांग्रेस और उनके नेता राहुल गांधी की आलोचना की। जबकि कांग्रेस ने जाँच समिति से सहयोग न करने को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की।

बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने नई दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस पर आरोप लगाया कि इस मामले में उसकी ओर से चलाई गई मुहिम झूठी और दुर्भावना से प्रेरित थी।

उन्होंने कहा कि ये अभियान पीएम मोदी को बदनाम करने की कोशिश थी।

रविशंकर प्रसाद ने यह भी आरोप लगाया है कि राहुल गांधी और उनकी पार्टी की समस्या यह है कि उन्हें पीएम मोदी और उनकी सरकार से दुश्मनी है और वे अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं।

रविशंकर प्रसाद के अनुसार, "राहुल गांधी ने कहा था कि पेगासस लोकतंत्र को कुचलने की कोशिश है और यह देश और यहाँ की संस्थाओं पर हमला है।''

दूसरी ओर कांग्रेस ने जाँच समिति से सहयोग न करने को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने ट्वीट करके लिखा है कि पेगासस जासूसी कांड को लेकर मोदी सरकार का रवैया शुरू से ही संदेहास्पद रहा है।

कांग्रेस का कहना है कि जाँच समिति की रिपोर्ट मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर बहुत से सवाल खड़े करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या कहा ?

पेगासस जासूसी मामले में जाँच समिति की रिपोर्ट गुरुवार, 25 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में खोली गई। इस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत ने बताया है कि पेगासस जासूसी मामले की जाँच के दौरान ज़्यादातर मोबाइल फोन में किसी भी जासूसी सॉफ़्टवेयर (स्पाइवेयर) की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरवी रवींद्रन के नेतृत्व वाली समिति की इस रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने कहा कि जाँच के लिए जो 29 मोबाइल फोन जमा किए गए, उसमें से किसी भी फ़ोन में पेगासस स्पाइवेयर नहीं मिले। हालाँकि अदालत ने यह ज़रूर बताया कि 5 फोनों में पेगासस से अलग कोई और मैलवेयर पाया गया है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जाँच समिति की सिफ़ारिश का ज़िक्र करते हुए कहा है कि निगरानी के लिए बनाए गए क़ानूनों में संशोधन होना चाहिए। जांच समिति ने देश की साइबर सुरक्षा को मज़बूत बनाने की भी जरूरत बताई है और देश में साइबर हमलों की जाँच के लिए एक विशेष जाँच एजेंसी बनाने की भी सिफ़ारिश की है।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि मोबाइल फ़ोनों में मालवेयर या स्पाइवेयर की जाँच के दौरान उसने समिति के साथ पूरा सहयोग नहीं किया।

प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा में चूक के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फ़िरोज़पुर एसएसपी को ज़िम्मेदार बताया

भारत में पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य के दौरे पर गए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई चूक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ़िरोज़पुर एसएसपी को ज़िम्मेदार ठहराया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फ़िरोज़पुर एसएसपी अपनी ड्यूटी निभाने में असफल रहे और इसकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफ़िला सड़क पर खड़ा रहा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने गुरुवार, 25 अगस्त 2022 को अपने आदेश में कहा, ''फ़िरोज़पुर एसएसपी रूट पर सुरक्षा व्यवस्था पुख़्ता नहीं कर सके। एसएसपी अपनी ड्यूटी नहीं निभा पाए। पीएम के पहुँचने से पहले पर्याप्त समय था। एसएसपी आदेश मिलने के बाद रूट पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी नहीं कर पाए।''

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "सभी गवाहों और तथ्यों और मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, पुलिस को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उन्हें इन मामलों को लेकर संवेदनशील बनाना चाहिए।''

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''हम भारत सरकार को ये आदेश भेजेंगे और सुरक्षा के साथ ही इसे अन्य पहलुओं से जुड़े मामलों पर सरकार को ही फ़ैसला लेने दिया जाए।"

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जस्टिस इंदु मल्होत्रा की सौंपी रिपोर्ट को देखते हुए ये टिप्पणी दी है।

पूर्व जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अगुआई वाली पाँच सदस्यीय समिति ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दायर की थी। इस रिपोर्ट में पंजाब के कुछ अफसर और पुलिस अधिकारियों की ओर इशारा किया गया था।

पाँच जनवरी, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफ़िले को पंजाब के फ़िरोज़पुर रोड के फ़्लाइओवर पर काफ़ी देर खड़ा रहना पड़ा था। ये इलाक़ा पाकिस्तान से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है।

बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई पर गुजरात सरकार और केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

भारत में बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों की रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार और केंद्र को नोटिस जारी किया है। 15 अगस्त, 2022 को गुजरात सरकार ने माफ़ी योजना के तहत इन 11 दोषियों को रिहा कर दिया था।

गैंगरेप के दोषियों की रिहाई को लेकर गुजरात सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "सवाल ये है कि गुजरात सरकार के अंतर्गत क्या इन दोषियों को माफ़ी दी जा सकती है या नहीं। हमें ये भी देखना है कि क्या इन्हें माफ़ी देते समय सोच-विचार किया गया या नहीं।''

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 11 दोषियों को भी पार्टी बनाने का निर्देश दिया।

इस मामले में नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई दो सप्ताह बाद करने का फ़ैसला किया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना की खंडपीठ ने कहा, ''हम गुजरात सरकार और केंद्र को नोटिस जारी कर रहे हैं। हम उनसे जवाब मांग रहे हैं। दो सप्ताह बाद इस पर सुनवाई होगी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने अदालत से मांग की कि दोषियों की रिहाई तुरंत रद्द होनी चाहिए और गुजरात सरकार के फ़ैसले को खारिज कर देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि गुजरात दंगों के दौरान बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे और मुसलमानों का पलायन भी हुआ था। कपिल सिब्बल ने कहा कि एक गर्भवती महिला के गैंगरेप के दोषियों को माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए थी।

विपक्ष की कई पार्टियों ने इस मामले में गुजरात सरकार की आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट में इन 11 दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ़ कई लोगों ने याचिका दाखिल की थी। इनमें वामपंथी नेता सुभासिनी अली और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा भी शामिल हैं।

तीन मार्च 2002 को गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के 14 सदस्यों को मार दिया गया था। मृतकों में बिलकिस बानो की तीन साल की बेटी भी शामिल थी।

इस मामले की जाँच सीबीआई ने की थी जिसके बाद 2008 में बॉम्बे सत्र अदालत ने 11 लोगों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। 15 अगस्त, 2022 को गोधरा जेल में सज़ा काट रहे इन 11 क़ैदियों को गुजरात सरकार की सज़ा माफ़ी की नीति के तहत रिहा कर दिया गया था।

दोषियों के रिहा होने पर क्या कहा था बिलकिस के पति ने

बिलकिस बानो के पति याकूब रसूल ने 11 दोषियों का रिहाई के बाद इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा था, ''हमें जिस हालत में छोड़ा गया है, उसमें कुछ भी महसूस करने की शक्ति नहीं बची है।''

याकूब रसूल ने कहा था, ''जिस लड़ाई को हम वर्षों से लड़ रहे थे, वह एक क्षण में बिखर गई। अदालत की ओर से दी गई उम्र क़ैद की सज़ा को मनमानी तरीक़े से कम कर दिया गया। मैंने सज़ा कम करने की इस प्रक्रिया के बारे में आज तक सुना भी नहीं था।''

याकूब रसूल गुजरात में दाहोद के देवगढ़ बारिया में रहते हैं।

रसूल कहते हैं, ''2002 में जो कुछ हुआ वह भयावह था. बिलकिस के साथ जो बर्बरता हुई वह अकल्पनीय थी। उसने अपनी बेटी की हत्या अपनी आँखों के सामने देखी। एक माँ, एक महिला और एक इंसान के रूप में उसने सारी बर्बरता झेली। इससे बुरा और क्या हो सकता है?''

उन्होंने कहा था, ''अब हम यही चाहते हैं कि हमें अकेला छोड़ दीजिए। हमें अपनी सुरक्षा को लेकर डर है लेकिन अब कुछ करने की हिम्मत और वक़्त नहीं है।''

सीएम नीतीश कुमार ने कहा, 2024 में एकजुट विपक्ष टक्कर देगा

भारत के राज्य बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार ने विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण में बहुमत हासिल कर लिया है।

इस दौरान नीतीश कुमार ने बीजेपी और केंद्र सरकार पर कई आरोप लगाए। नीतीश कुमार ने बीजेपी पर हिंदू-मुसलमान करने का आरोप लगाया और कहा कि 2024 में एकजुट विपक्ष टक्कर देगा।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में अपनी नई सरकार के विश्वास मत पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अगर सभी धर्म और जाति के लोग एक साथ आएँगे और 2024 में एकजुट विपक्ष टक्कर देगा।

नीतीश कुमार ने बताया कि देश भर के नेताओं ने उन्हें फ़ोन किया और इस फ़ैसले पर बधाई दी। नीतीश कुमार ने उन नेताओं से 2024 के चुनाव में एक साथ लड़ने का आग्रह किया।

वे बोले, ''हमें देश भर की पार्टियों के लोगों ने फ़ोन कर कहा कि आपने सही निर्णय लिया है। हमने कहा कि सब मिल कर लड़ेंगे तो 2024 भी जीतेंगे।''

सीएम बनने के लिए दबाव दिया गया : नीतीश कुमार

इस दौरान नीतीश कुमार ने बीजेपी पर कई आरोप लगाए और बार-बार बोलते रहे कि ''जो भी कह रहा हूँ दिल्ली से बोल रहा हूँ।''

नीतीश बोले, ''मेरी इच्छा कुछ भी बनने की नहीं है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जद (यू) को ख़त्म करने की साज़िश रची।''

नीतीश कुमार ने इस दौरान बताया कि 2020 में उन पर मुख्यमंत्री बनने के लिए दबाव दिया गया था।

उन्होंने कहा, ''2020 में हमने कहा था कि ज़्यादा सीट आप जीते हैं तो आपका मुख्यमंत्री बनना चाहिए। लेकिन मुझ पर दवाब दिया गया कि आप ही संभालिए। अब हमारी पार्टी के लोगों ने तय किया तो हम जहाँ पहले थे वहाँ चले गए। अब हमारा संकल्प है कि हम मिलकर बिहार का विकास करेंगे।''

वे बोले, ''सिर्फ़ 2020 के विधानसभा चुनाव की बात मत करें, अतीत के चुनावों को याद करें जब जद (यू) ने भाजपा से अधिक सीटें जीती थीं। पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा देने का मेरा अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया। 2017 में जब मैंने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय दर्जा देने की मांग की तो किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अब आप (केंद्र सरकार) अपने काम का बखान करने के लिए ऐसा ही करेंगे। सोशल मीडिया और प्रेस पर उनका नियंत्रण है। सब सिर्फ़ केंद्र के काम की चर्चा कर रहे हैं।''

नीतीश ने बताया, 2013 में क्यों अलग हुए?

नीतीश ने कहा, ''2017 में केंद्र ने 600 करोड़ दे कर कहा कि मान लीजिए हर घर नल, केंद्र की योजना है लेकिन हमने नहीं माना। हर घर नल 2015 में शुरू हुआ, तब आरजेडी सहयोगी थी। बिहार में सड़क बनाने का काम केंद्र सरकार ने नहीं, राज्य सरकार ने किया।''

नीतीश कुमार ने इस दौरान यह भी बताया कि 2013 में वो एनडीए से अलग क्यों हुए थे। उन्होंने कहा, "अटल जी, आडवाणी जी, मुरली मनोहर जी सभी आप की पार्टी के ही नेता थे। ये सभी मेरी बात सुनते थे। 2013 में अटल जी की तबीयत ठीक नहीं थी। तब बाकी जो नेता हैं उनकी बात होनी चाहिए। अटल जी बीमार हो गए तो आगे आडवाणी जी को पावर मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी ने सभी पुराने नेता को साइड कर दिया। इसकी वजह से अलग हुए थे। 2005 के नतीजों को भी याद किया जाए।''

इस दौरान नीतीश ने वर्तमान केंद्र सरकार पर एक के बाद एक कई हमले किए। उन्होंने कहा कि, ''खाली दिल्ली का प्रचार होते रहता है, हमलोग क्या कर रहे थे, हम कुछ नहीं बनना चाहते हैं, सिर्फ काम करना चाहते हैं। हम पूछते हैं कि पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा क्यों नहीं दिया, इसकी हम बार-बार मांग कर रहे थे।''

26 अगस्त, 2022 को विधानसभा अध्यक्ष चुने जाएंगे

इस चर्चा के दौरान भाजपा के कुछ विधायकों ने विधानसभा से वॉकआउट किया।

इस पर नीतीश कुमार ने कहा, ''आप (भाजपा विधायक) सब भाग रहे हैं? अगर आप मेरे ख़िलाफ़ बातें करेंगे तो ही आपको अपनी पार्टी में पद मिलेगा। आप सभी को अपने वरिष्ठ आकाओं से आदेश मिला होगा।''

हालांकि तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के भाषणों के बाद सदन में विश्वासमत ध्वनिमत से पारित हो गया।

विपक्ष के सदस्यों के वॉकआउट करने के बाद प्रस्ताव के पक्ष में 160, विपक्ष में शून्य मत आया।

इस दौरान कार्यकारी सदन अध्यक्ष ने बताया कि राज्यपाल की ओर से निर्देश आया है कि 26 अगस्त 2022 को विधानसभा अध्यक्ष का चयन किया जाएगा जिसके लिए नामांकन की तारीख़ 25 अगस्त, 2022 रखी गई है।

बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी

भारत के राज्य गुजरात के बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार के दोषियों की रिहाई के आदेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नेता सुहासिनी अली, पत्रकार रेवती लॉल और प्रोफ़ेसर रूप रेखा वर्मा ने रिहाई के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

बाद में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने दोषियों की रिहाई के ख़िलाफ़ जनहित याचिका दायर की है।

15 अगस्त, 2022 को जेल की सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने माफ़ी योजना के तहत रिहा किया था।

ये 11 दोषी साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र-कैद की सज़ा काट रहे थे और गोधरा जेल में बंद थे।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में कहा कि एक गर्भवती महिला से सामूहिक बलात्कार के मामले में दोषियों को रिहाई नहीं मिलनी चाहिए। इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि वो इस मामले में सुनवाई के लिए तैयार है।

दोषियों की रिहाई के बाद ऐसी तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए जिसमें इन सबका मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किए जाते देखा गया था।

लाइव लॉ की ख़बर के अनुसार याचिका में कहा गया है कि दोषियों के स्वागत से इस मामले में 'राजनीतिक एंगल' साफ़ दिखता है।

बीजेपी विधायक टी राजा को कोर्ट ने दी ज़मानत, पैग़ंबर मोहम्मद पर की थी विवादित टिप्पणी

इस्लाम के पैग़बर मोहम्मद पर विवादित बयान देने के मामले में कोर्ट ने बीजेपी विधायक टी राजा को ज़मानत दे दी है। लाइव लॉ के मुताबिक हैदराबाद पुलिस ने कोर्ट में रिमांड ऑर्डर पेश किया था जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

उनके विवादित बयान के विरोध में हैदराबाद में सोमवार, 22 अगस्त, 2022 की देर रात प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने टी राजा सिंह की जल्द से जल्द गिरफ़्तारी की मांग की थी। जिसके बाद तेलंगाना पुलिस ने बीजेपी विधायक टी राजा को मंगलवार, 23 अगस्त, 2022 की सुबह गिरफ्तार किया। टी राजा हैदराबाद की गोशामहल सीट से विधायक हैं।

टी राजा सिंह ने एक वीडियो जारी कर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। बीजेपी विधायक के बयान के विरोध में हैदराबाद में सोमवार, 22 अगस्त, 2022 की देर रात प्रदर्शन हुए।

प्रदर्शनकारियों ने टी राजा सिंह की जल्द से जल्द गिरफ़्तारी की मांग की थी। सोमवार, 22 अगस्त, 2022 की देर रात पुलिस कमिश्नर सीवी आनंद के दफ़्तर और शहर के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन और नारेबाज़ी हुई।

इसके बाद टी राजा के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 295(ए), 153 (ए) सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया गया था।

टी राजा सिंह ने हास्य कलाकार मुन्नवर फ़ारूकी को लेकर एक वीडियो जारी किया था। उन्होंने हैदराबाद में होने वाले फ़ारूकी के शो को रोकने की धमकी भी दी थी। इस वीडियो में ख़ुद राजा सिंह ने मुन्नवर फ़ारूकी और उनकी माँ के ख़िलाफ़ टिप्पणी की थी। साथ ही पैग़बंर मोहम्मद को लेकर भी आपत्तिजनक बयान दिया था।

ये विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब कुछ समय पहले ही बीजेपी की पूर्व नेता नूपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित बयान दिया था।

उस समय कई इस्लामिक देशों ने आधिकारिक तौर पर भारत के सामने आपत्ति दर्ज कराई थी। बीजेपी ने बयान के लिए नूपुर शर्मा को बीजेपी से निलंबित कर दिया था। नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ देशभर में कुल 10 एफ़आईआर दर्ज कराई गई थीं।

नीतीश कुमार ने आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तेजस्वी यादव ने भी शपथ ली

नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। उनके साथ तेजस्वी यादव ने भी शपथ ली है। बिहार के राज्यपाल फागू चौहान ने राजभवन में हुए एक कार्यक्रम में उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।

एक दिन पहले ही नीतीश कुमार ने एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ते हुए मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के साथ नई सरकार बनाने का दावा पेश किया था।

नीतीश कुमार ने 165 विधायकों के समर्थन का दावा पेश किया है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से दोनों पार्टियों के बीच मतभेद खुलकर सामने आने लगे थे।

भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को लेकर विवाद और बढ़ गया। मंगलवार, 9 अगस्त, 2022 को नीतीश कुमार ने जनता दल यूनाइटेड के विधायकों और सांसदों की बैठक बुलाई थी, जिसमें बीजेपी से अलग होने का फ़ैसला किया गया। नीतीश कुमार ने आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।

पहली बार उन्होंने तीन मार्च 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उस समय उनके पास बहुमत नहीं था और सात दिन बाद ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। 2005 में नीतीश कुमार ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस बार उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई।

वर्ष 2010 में एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बनाई और तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली। लेकिन 2013 में उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया।

लेकिन 2015 में एक बार फिर उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और कहा कि इस्तीफ़ा देना उनकी भूल थी। इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर महागठबंधन बनाई। चुनाव में महागठबंधन को बड़ी सफलता मिली और नीतीश कुमार ने पाँचवीं बार सीएम पद की शपथ ली।

लेकिन 2017 में उन्होंने आरजेडी से रिश्ता तोड़ लिया। उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और छठी बार सीएम पद की शपथ ली। 2020 के विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी के साथ लड़े और फिर सातवीं बार सीएम पद की शपथ ली। लेकिन अब वे एक बार फिर बीजेपी से अलग हो गए हैं और आरजेडी के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बनाई है और आठवीं बार सीएम पद की शपथ ली है।

नूपुर शर्मा को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार, उदयपुर की घटना के लिए 'ज़िम्मेदार' बताया

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा की ही अर्ज़ी पर सुनवाई करते हुए कहा है कि नूपुर शर्मा के बयान ने पूरे देश में अशांति फैला दी।

बीजेपी से निलंबित नूपुर शर्मा ने पैग़ंबर विवाद में उनके ख़िलाफ़ भारत के अलग-अलग राज्यों में दर्ज हुई सभी एफ़आईआर को दिल्ली शिफ़्ट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी थी।

उनकी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के बयानों को उदयपुर में हुई दुर्भाग्यपूर्ण वारदात के लिए ज़िम्मेदार बताया।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सूर्यकांत और जेबी परदीवाला की अवकाशकालीन बेंच ने नूपुर शर्मा की अर्ज़ी पर विचार करने से इनकार करते हुए उन्हें हाई कोर्ट जाने को कहा है। इसके बाद नूपुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी अर्ज़ी वापस ले ली।

नूपुर शर्मा ने जून 2022 में एक टीवी डिबेट के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की थी, जिसके विरोध में भारत के कई राज्यों में उनके ख़िलाफ़ लगभग एक दर्जन एफ़आईआर दर्ज कराई गई थीं।

इस बयान के विरोध में 16 से अधिक मुस्लिम देश आ गए थे और भारत सरकार के समक्ष आधिकारिक तौर पर विरोध दर्ज कराया था।

हालाँकि, बाद में भारत सरकार ने कहा था कि ये कुछ फ़्रिंज एलिमेंट की ओर से दिए गए बयान हैं और ये भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान नूपुर शर्मा की टिप्पणियों को ''तकलीफ़देह'' बताया और कहा- ''उनको ऐसा बयान देने की क्या ज़रूरत थी?''

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी सवाल किया कि एक टीवी चैनल का एजेंडा चलाने के अलावा ऐसे मामले पर डिबेट करने का क्या मक़सद था, जो पहले ही न्यायालय के अधीन है।

सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा की बयानबाज़ी पर सवाल किया और कहा, ''अगर आप एक पार्टी की प्रवक्ता हैं, तो आपके पास इस तरह के बयान देने का लाइसेंस नहीं है।''

नूपुर शर्मा की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि उनके मुवक्किल ने अपने बयान को तत्काल वापस ले लिया है और इसके लिए माफ़ी भी मांगी है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने इससे नाख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा कि नूपुर को टीवी पर जाकर पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के वकील से कहा, ''नूपुर शर्मा ने बहुत देर कर दी और बयान को भी सशर्त वापस लिया। उन्होंने (नूपुर) कहा कि अगर किसी की भावनाएं आहत हुई तो वो माफ़ी मांगती हैं।''

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''जिस तरह से नूपुर शर्मा ने देशभर में भावनाओं को उकसाया, वैसे में ये देश में जो भी हो रहा है उसके लिए वो अकेली ज़िम्मेदार हैं।''

सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दायर करने पर भी नाख़ुशी जताते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा, ''ये याचिका नूपुर के अहंकार को दिखाती है, ऐसा लगता है कि देश के मजिस्ट्रेट उनके लिए बहुत छोटे हैं।''

सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के वकील से ये भी कहा, ''जब आपके ख़िलाफ़ एफ़आईआर हो और आपको गिरफ़्तार नहीं किया जाए, तो ये आपकी पहुँच को दिखाता है। उन्हें लगता है उनके पीछे लोग हैं और वो ग़ैर-ज़िम्मेदार बयान देती रहती हैं।''

उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भारत के राज्य महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।

बहुमत परीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के कुछ वक़्त बाद सोशल मीडिया पर लाइव आकर उद्धव ठाकरे ने कहा कि वो नहीं चाहते कि शिवसैनिकों का ख़ून बहे। इसलिए वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद छोड़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे ने कहा कि उन्हें पद छोड़ने का कोई दुख नहीं है।

उद्धव ठाकरे ने कहा कि वो विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ रहे हैं।

इसके बाद वो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को इस्तीफ़ा देने राजभवन पहुंचे।

इसके पहले बुधवार, 29 जून 2022 की रात करीब नौ बजे सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत परीक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

महाराष्ट्र के राज्यपाल ने गुरुवार, 30 जून 2022 की सुबह 11 बजे बहुमत परीक्षण के लिए कहा था।

उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के बाग़ी विधायकों पर भी निशाना साधा।

उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन की शुरुआत महाविकास अघाड़ी गठबंधन के सदस्य दलों कांग्रेस और एनसीपी को धन्यवाद देने के साथ की। उन्होंने ढाई साल के कार्यकाल में सरकार की उपलब्धियों को गिनाया।

उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में क्या-क्या कहा?

- मैं कुर्सी छोड़ रहा हूं। पिछले बुधवार को ही मैंने 'वर्षा' (महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का आवास) छोड़ दिया था और 'मातोश्री' (बाल ठाकरे का आवास) आ गया था। मुझे मुख्यमंत्री पद छोड़ने का कोई दुख नहीं है।

- जब कुछ अच्छा हो रहा होता है तो नज़र तो लगती ही है

- जिन लोगों को बाला साहब ठाकरे ने बड़ा बनाया, जिन सामान्य लोगों को बाला साहेब ठाकरे और शिवसेना ने बड़ा बनाया, वे आज उन्हें भूल गए हैं।

- सुप्रीम कोर्ट ने आज जो भी फ़ैसला दिया है, हम उसका सम्मान करते हैं और उसका पालन करेंगे।

- बाग़ी विधायकों को अगर कोई शिकायत थी तो सूरत या गुवाहाटी के बजाय मातोश्री आकर अपनी बात रखनी चाहिए थी।

- शिवसेना हमसे कोई छीन नहीं सकता।

- शिवसैनिकों से अनुरोध है कि बाग़ी विधायकों के ख़िलाफ़ कोई प्रदर्शन ना करें।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में क्या कहा?

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 29 जून 2022 को महाराष्ट्र में जारी सियासी संग्राम पर फ़ैसला देते हुए कहा है कि विधानसभा में फ़्लोर टेस्ट नहीं रोका जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्य कांत और जेबी पार्डीवाला की अवकाश पीठ ने शिवसेना नेता सुनील प्रभू की याचिका पर सुनवाई के बाद ये फ़ैसला दिया।

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बुधवार, 29 जून 2022 को आदेश जारी कर 30 जून 2022 की सुबह 11 बजे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था।

इसका उद्देश्य उद्धव ठाकरे सरकार का शक्ति परीक्षण था।

शिव सेना नेता सुरेश प्रभू ने राज्यपाल के इसी फ़ैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

सुरेश प्रभू ने अपनी याचिका में कहा था कि राज्यपाल द्वारा फ़्लोर टेस्ट कराने का फ़ैसला ग़ैर-कानूनी है क्योंकि उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया कि डिप्टी स्पीकर ने 39 में से 16 विधायकों को अयोग्यता नोटिस जारी किया है।

सुरेश प्रभू ने ये भी कहा है कि 39 में से किसी भी विधायक ने महाविकास अगाड़ी सरकार से अपना समर्थन वापस नहीं लिया है।

ज्ञानवापी मस्जिद मामला : सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर सुनवाई करते हुए मंगलवार, 17 मई, 2022 को आदेश दिया है कि मस्जिद परिसर में जिस जगह शिवलिंग मिलने की बात कही जा रही है, उस जगह को संरक्षित रखा जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष के वहाँ नमाज़ पढ़ने पर कोई रोक नहीं होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की अगली तारीख गुरुवार, 19 मई, 2022 को तय की है।

हालांकि निचली अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रही कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है। मुस्लिम पक्ष की ओर से ये मांग की गई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद में यथास्थिति बरकरार रखी जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "वाराणसी की अदालत के फ़ैसले पर हुए विवाद का निराकरण करते हुए ये आदेश दिया जाता है कि 16 मई 2022 का आदेश केवल इसी हद तक प्रभावी रहेगा कि वाराणसी के ज़िलाधिकारी ये सुनिश्चित करेंगे कि अगर जिस जगह पर शिवलिंग पाया गया है, अगर वहां किसी के कदम पड़े तो उससे क़ानून और व्यवस्था की समस्या पैदा हो जाएगी।''

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया है कि मुसलमान वहां पर वजू भी कर सकेंगे क्योंकि ये उनकी धार्मिक प्रक्रिया का हिस्सा है।

मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट हुज़ेफ़ा अहमदी ने जब अदालत से वजू की प्रक्रिया को संरक्षित करने की मांग की तो सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा, "क्या वजू धार्मिक क्रिया नहीं है? हम इसे भी संरक्षित कर रहे हैं।''

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनके विरोध के बाद कोर्ट ने वाराणसी के सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रही सुनवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

इससे पहले सोमवार, 16 मई, 2022 को वाराणसी की एक अदालत ने ज़िला प्रशासन को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की उस जगह को सील करने का आदेश दिया था जहाँ सर्वे करने वाली टीम में शामिल हिन्दू पक्ष ने कथित शिवलिंग मिलने का दावा किया था। जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा कहा है।

मंगलवार, 17 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ के सामने अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद की प्रबंध कमेटी की याचिका पर सुनवाई हुई। यही कमेटी ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करती है।

शुक्रवार, 13 मई, 2022 को भारत के चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने अपने लिखित आदेश में इस मामले पर जस्टिस चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच को सुनवाई के लिए कहा था।

शुक्रवार, 13 मई, 2022 को चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में चल रहे सर्वे के ख़िलाफ़ यथास्थिति बनाए रखने के लिए कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार कर दिया था।

शुक्रवार, 13 मई, 2022 की सुनवाई में क्या हुआ था?

लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई। इस बेंच में चीफ़ जस्टिस के अलावा जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल थे।

बेंच ने कहा, ''याचिकाकर्ता की तरफ़ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील हुज़ेफ़ा अहमदी की बात सुनने के बाद हमारा ये मानना है कि इस मामले पर अदालत की रजिस्ट्री को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच के सामने सुनवाई के लिए इस केस को लिस्ट करने का निर्देश दिया जाए।''

अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद की प्रबंध कमेटी का पक्ष रख रहे हुज़ेफ़ा अहमदी ने बेंच से कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में चल रहे सर्वे कार्य के ख़िलाफ़ याचिका दायर की गई है और उन्होंने इस मामले में अदालत से अंतरिम आदेश जारी किए जाने की मांग की।

हुज़ेफ़ा अहमदी ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे कराए जाने के आदेश के ख़िलाफ़ हमने एक याचिका दायर की है। ये जगह पुराने समय से मस्जिद रही है और धार्मिक उपासना स्थल क़ानून, 1991 के तहत भी इस तरह की किसी कार्रवाई पर पूरी तरह से रोक है।

मुस्लिम पक्ष की ओर से प्लेस ऑफ़ वरशिप (स्पेशल प्रोविजंस) ऐक्ट, 1991 और इसके सेक्शन चार का हवाला दिया गया है।

ये प्रावधान 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र में किसी तरह के बदलाव के लिए कोई मुक़दमा दायर करने या किसी किस्म की क़ानूनी प्रक्रिया शुरू करने पर रोक लगाता है।