अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध

तुर्की-ग्रीस तनाव: तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने फ़्रांस-ग्रीस को चेतावनी दी

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने रविवार को फ़्रांस और ग्रीस पर जमकर निशाना साधा है। अर्दोआन ने उन्हें लालची और अयोग्य करार दिया।

पूर्वी भूमध्यसागर में तुर्की के ऊर्जा खोज अभियान को फ़्रांस और ग्रीस ने चुनौती दी है। इसे लेकर अर्दोआन ग़ुस्से में हैं।

पूर्वी भूमध्यसागर में ऊर्जा भंडार की खोज को लेकर ग्रीस और तुर्की में काफ़ी तनातनी चल रही है। तुर्की के ख़िलाफ़ फ़्रांस भी खुलकर ग्रीस के साथ आ गया है।

यहां तक कि यूरोप में तुर्की के ख़िलाफ़ एक किस्म की गोलबंदी बनती दिख रही है। ग्रीस, फ़्रांस और तुर्की तीनों नेटो के सदस्य हैं। ऐसे में नेटो सदस्य ही आपस में उलझ गए हैं।

समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार अर्दोआन ने अपने अधिकारियों से कहा है, ''ग्रीस और फ़्रांस को अपने लालची और अक्षम नेताओं के कारण भुगतना पड़ेगा।''

10 अगस्त को तुर्की के रिसर्च पोत ग्रीस के जलक्षेत्र में चले गए थे। इसके बाद से ही दोनों देशों की नौसेना हरकत में हैं। दोनो देशों की नौसेनाएं युद्धाभ्यास भी कर रही हैं।

फ़्रांस के फाइटर्स जेट ग्रीस के पक्ष में खड़े हैं। फ़्रांस ने तुर्की को चेतावनी भी दी है कि वो ख़तरों से ना खेले। फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था कि तुर्की को बातचीत का रास्ता समझ में नहीं आता है।

अर्दोआन ने रविवार को कहा, ''अगर फ़्रांस और ग्रीस दोनों से लड़ने का वक़्त आएगा तो हम बलिदान देने में संकोच नहीं करेंगे। सवाल यह है कि भूमध्यसागर में ये हमारे ख़िलाफ़ खड़े होंगे तो क्या ये बलिदान के लिए तैयार हैं?"

शनिवार को तुर्की ने घोषणा की थी कि वो उत्तरी साइप्रस में सैन्य अभ्यास करने जा रहा है।

इससे पहले तुर्की और ग्रीस ने घोषणा की थी वे मंगलवार को ग्रीस के क्रीट द्वीप के पास एक-दूसरे के विरोध में सैन्य अभ्यास करेंगे।

दोनों देशों के बीच पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस भंडारों पर दावों को लेकर विवाद बढ़ गया है। तुर्की ने अधिकारिक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जहाज़ इस क्षेत्र से दूर रहें।

तुर्की के अपने खोजी मिशन को आगे बढ़ाने का ऐलान करने के बाद ग्रीस ने भी सैन्य अभ्यास का ऐलान किया था। क्रीट और साइप्रस के पास विवादित जलक्षेत्र में तेल और गैस के भंडार मिलने के बाद से ही ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव बढ़ा हुआ है।

राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा था, ''तुर्की ओरुक रीस और उसे एस्कॉर्ट कर रहे जंगी जहाज़ों की गतिविधियों से एक क़दम भी पीछे नहीं हटेगा।''

उन्होंने कहा कि ग्रीस ने अपने आप को ऐसी मुसीबत में डाल लिया है जिससे बाहर निकलने का रास्ता उसे नहीं मिल रहा है।

बीते महीने जब तुर्की ने अपने जहाज़ को भेजते समय नौसैन्य चेतावनी नेवटेक्स जारी की थी तब भी ग्रीस ने आक्रामक रवैया अपनाया था। ग्रीस ने तुर्की से कहा था कि वह पूर्वी भूमध्य सागर में तेल की खोज में निकले अपने जहाज़ को वापस बुला ले।

भारत-चीन तनाव: अगर भारत और चीन के बीच युद्ध होता है तो अंजाम क्या होगा?

भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ जनरल बिपिन रावत की 24 अगस्त 2020 को की गई 31 शब्दों की एक टिप्पणी ने अधिकतर अख़बारों के पहले पन्ने पर जगह बनाई और साथ ही इस पर ख़ासी चर्चाएं भी हुईं।

इसमें उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा था, ''लद्दाख में चीनी सेना के अतिक्रमण से निपटने के लिए सैन्य विकल्प भी है लेकिन यह तभी अपनाया जाएगा जब सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर वार्ता विफल रहेगी।''

रक्षा सेवा में रहे दिग्गजों ने शायद ही उनके इस बयान पर भौंहें चढ़ाई हों।

सेना के उत्तरी कमान के प्रमुख रहे लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डी.एस. हुड्डा ने कहा, ''क्या सीडीएस कह सकते हैं कि सैन्य विकल्प मौजूद नहीं हैं? मुझे लगता है कि वो केवल तथ्य बता रहे थे।''

भारतीय वायु सेना के उप-प्रमुख पद से रिटायर होने वाले एयर मार्शल अनिल खोसला कहते हैं, ''सीडीएस ने जो कहा, मुझे उसमें कुछ भी ग़लत नहीं लगा। यह एक नपा-तुला बयान था और मुझे लगता है कि यह थोड़ा पहले आ जाना चाहिए था।''

जनरल रावत के बयान के निहितार्थ निकालने से पहले हमें चीन के बारे में भी जान लेना चाहिए।

चीन की ज़मीनी सीमा 22,000 किलोमीटर और तटीय सीमा 18,000 किलोमीटर लंबी है। इसके अलावा विदेशों में भी उसने अपना आधारभूत ढांचा तैयार किया हुआ है जिसमें जिबूती में उसका बेस भी शामिल है।

भारत में रक्षा बलों को रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय अलग-अलग नियंत्रित करते हैं वहीं चीन में एक सेंट्रल मिलिट्री कमिशन (सीएमसी) है।  सीएमसी को सेना का प्रमुख अंग और उसके सैन्य बलों का कमांडर बताया जाता है और इसका नेतृत्व चेयरमैन और वाइस चेयरमैन करते हैं।

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सीएमसी के चेयरमैन हैं।

सीएमसी चीन के हर एक सैन्य बल को नियंत्रण करती है। इनमें पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), पीएलए नेवी (पीएलएएन), पीएलए एयर फ़ोर्स, (पीएलएएएफ़) पीएलए रॉकेट फ़ोर्स (पीएलएआरएफ़), पीएलए स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फ़ोर्स (पीएलएएसएसएफ़) और पीएलए जॉइंट लॉजिस्टिक सपोर्ट फ़ोर्स (पीएलएजेएलएसएफ़) शामिल हैं।  

भारत में जहां हर सेना की अपनी कमान है। वहीं चीनी सेना में भौगोलिक दृष्टि से परिभाषित पांच थिएटर कमान (टीसी) हैं। इनमें ईस्टर्न टीसी, सदर्न टीसी, वेस्टर्न टीसी, नॉर्दर्न टीसी और सेंट्रल टीसी शामिल हैं।

2019 में सुरक्षा पर जारी श्वेत पत्र में चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय ने 2012 के बाद से हुए बदलावों के बारे में बताया था। इसमें कहा गया था-

संयुक्त सेना ने अपनी क्षमता को 3,00,000 जवानों से कम कर दिया है जबकि सक्रिय जवानों की संख्या 20 लाख है।

थल सेना में जहां जवान कम किए गए वहीं एयरफ़ोर्स ने अपने जवानों की संख्या बरक़रार रखी। वहीं, नेवी और पीएलएआरएफ़ में जवानों की संख्या बढ़ाई गई।

पीएलएआरएफ़ के पास चीन के परमाणु और पारंपरिक मिसाइलों का भंडार है और इसे पहले सेकंड अर्टिलरी फ़ोर्स भी कहा जाता था।

2012 से चीनी सेना पर अच्छा ख़ासा पैसा ख़र्च किया गया है। यह पैसा अच्छे वेतन, जवानों की ट्रेनिंग और उनके लिए काम करने का अच्छा माहौल बनाने, पुराने हथियारों को ख़रीदकर नए हथियार बनाने, सैन्य सुधार और विभिन्न सुरक्षाबलों के बीच सामंजस्य बनाने जैसे कामों पर खर्च किया गया।

हालांकि, कई भारतीय रक्षा विशेषज्ञों को चीन के इन दावों पर शक़ है।  कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीनी तकनीक अप्रमाणित हैं और उनके सुरक्षाबलों के पास युद्ध के अनुभव की कमी है।

क्या भारत के पास चीन के खिलाफ सैन्य विकल्प मौजूद है?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय सेना ख़ुद को चीन के साथ लगने वाली 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर रक्षात्मक युद्ध में लगा देखती है।

इसका सीधा-सीधा मतलब है कि यह लड़ाई सामने से आने वाले दुश्मन को मार गिराने की है।

जनरल हुड्डा कहते हैं, ''चीन को लेकर हमारी सैन्य रणनीति पाकिस्तान से बिलकुल अलग है। पाकिस्तान को लेकर हम आक्रामक रहते हैं, विभिन्न क्षेत्रों में उन्हें धमकी भी देते रहते हैं लेकिन चीन को धमकाने के मामले में हम रक्षात्मक रणनीति अपनाते हैं और हम युद्ध करने की कल्पना भी नहीं करते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि हम एलएसी के पार जाकर हमला नहीं कर सकते हैं। ज़रूरत पड़ने पर हमें करना चाहिए। भारत ने माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स का गठन इसी मक़सद के लिए किया है।''

चीनी घुसपैठ के जवाब में क्या भारत जैसे को तैसा वाली रणनीति अपनाकर उसकी कुछ ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके सौदेबाज़ी कर सकता है?

इस सवाल पर लेफ़्टिनेंट जनरल हुड्डा कहते हैं, ''इस तरह के विकल्प शायद पहले अपनाए जाते। जैसे को तैसे की रणनीति अपनाकर सौदेबाज़ी करने का विकल्प काफ़ी भड़काऊ दिखाई दे सकता है लेकिन मुझे लगता है कि हम अच्छी स्थिति में हैं और उनका जवाब देने के लिए हमारे पास सैन्य क्षमता है।''

क्या लद्दाख की भौगोलिक स्थिति भारत को बढ़त देती है?

इस सवाल पर लेफ़्टिनेंट जनरल हुड्डा कहते हैं, ''पूर्वी लद्दाख का क्षेत्र समतल है और काफ़ी ऊंचाई पर है। एलओसी की तरह यह पहाड़ी नहीं है। सड़क नेटवर्क भी अच्छा है, अधिकतर चौकियों पर गाड़ी से आया जाया जा सकता है वहां हमें कोई चुनौती नहीं है। लेकिन यह कहना ग़लत होगा कि लद्दाख़ की भौगोलिक स्थिति भारत के पक्ष में है। चीन का मूलभूत ढांचा बहुत बेहतर है और यह उनको बढ़त देता है।''

क्या भारत की नौसेना-वायुसेना चीन से मज़बूत है?

अगर चीन के साथ समुद्री क्षेत्र में मामला बिगड़ता है तो क्या स्थिति होगी? इस पर नौसेना के एक पूर्व प्रमुख ने बताया कि उस हालत में भारत उस क्षेत्र में जाएगा जहां वो मज़बूत स्थिति में है यानी हिंद महासागर में।

वो कहते हैं, ''अगर कोई कहता है कि नौसेना को दक्षिण चीन सागर में चीन पर हमला करने के लिए भेजा जाएगा तो मुझे हैरानी होगी। हम चीन पर हिंद महासागर में ही बढ़त बना सकते हैं क्योंकि हम इस इलाक़े को जानते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि हमारे पास यहां उनसे अधिक साज़ो-सामान उपलब्ध होगा।''

कई विश्लेषकों का मानना है कि अगर भारत सैन्य विकल्प की ओर जाता है तो भारतीय वायु सेना का इस्तेमाल सबसे बेहतर रहेगा।

ऐसा अनुमान है कि एयर बेस से कम ऊंचाई पर उड़ने के कारण भारतीय जहाज़ों में अधिक तेल और हथियार रहेगा। वहीं, चीनी वायु सेना तिब्बत के पठार और अन्य ऊंची जगहों से उड़ान भरेगी जहां पर बेहद बारीक हवा बहती है जिसकी वजह से हथियार रखने पर उनका अधिक तेल ख़र्च होगा।

लेकिन यही सब कुछ नहीं है।

पूर्वी एयर कमान के प्रमुख रहे एयर मार्शल (रिटायर्ड) खोसला कहते हैं, ''यह माना जाता रहा है कि हमें टी-3 की बढ़त है- मतलब टेक्नोलॉजी, टेरेन (भूगोल) और ट्रेनिंग। तकनीकी रूप से वो आगे हैं लेकिन दावों और वास्तविक क्षमता में संदेह है। भूगोल और ट्रेनिंग की बढ़त हमें है लेकिन वो इन मुद्दों को देख रहे हैं और व्यवस्थित रूप से इन्हें हल कर रहे हैं। अंतर कम करने के लिए हमें अपनी क्षमता को गुणात्मक और संख्यात्मक रूप से बढ़ाने की ज़रूरत है।''

उन्होंने बताया कि हाल के सालों में पीएलएएएफ़ ने कितनी तेज़ी से ख़ुद को विकसित किया है।

एयर मार्शल (रिटायर्ड) खोसला ने कहा, ''चीनी वायुसेना पीएलए का ही हिस्सा रही है। किसी भी सेना की तरह यह अच्छे से बनी है जिसके पास आवश्यकता के सारे साज़ो-सामान हैं। चीन के आर्थिक तौर पर उभरने के बाद खाड़ी युद्ध के दौरान उसने अपनी नौसेना और वायुसेना को तेज़ी से आधुनिक बनाना शुरू किया था। आज उनकी वायु सेना तेज़ी से अपनी क्षमताएं बढ़ा रही है।''

चीन से मुकाबला करने के लिए भारत को कहां तेज़ी लाने की ज़रूरत है?

खोसला कहते हैं कि भारत पर चीन की सबसे बड़ी बढ़त उसका स्वदेशी रक्षा विनिर्माण बेस है।

विनिर्माण बेस होने की वजह से हथियारों की आपूर्ति देश में ही हो सकती है जबकि भारत इस दिशा में काम कर रहा है और आने वाले भविष्य में उसे आयातित हथियारों पर निर्भर रहना होगा।

इसके अलावा जब साइबर और अंतरिक्ष की क्षमताओं की बात आती है तो उसमें भी चीन की भारत पर बढ़त क़ायम है।

चीफ़ ऑफ़ इंटिग्रेटेड डिफ़ेंस स्टाफ़ के पद से रिटायर हुए लेफ़्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कहते हैं, ''चीन ने साइबर आर्मी बनाने में महारत पाई है और उसकी उस क्षेत्र में क्षमताएं हैं जहां पर हम पहुंचने का सोच रहे हैं।  हमारे सैन्य बलों को बेस्ट टैलेंट को आकर्षित करना होगा। हमारे देश में टैलेंट हैं लेकिन वो हमारे साथ काम करने की जगह किन्हीं और के साथ काम कर रहे हैं।''

चीन के श्वेत पत्र में सैन्य सुधार का भी ज़िक्र था। जनरल दुआ भारत में सैन्य सुधार के अपने अनुभवों को साझा करते हैं।

वो कहते हैं, ''भारत में अभी साइबर, स्पेस एजेंसी और एक विशेष बल डिवीज़न है। हम चाहते हैं कि यह कमान मज़बूत और सुसज्जित हों। यहां तक कि 2013 में हमें इन विशेष बलों को सक्रिय करने की अनुमति मिल गई थी लेकिन हम इन्हें 2018 के आख़िर में सक्रिय कर पाए। ये बहुत कमज़ोर काम था। इस तरह की योजनाओं को लागू करने में तेज़ी लाने वाले सुधार किए जाने चाहिए। हमें तहख़ानों में बैठकर काम करना बंद कर देना चाहिए। युद्ध के तरीक़े लगातार बदल रहे हैं इसलिए जो पुराने ढर्रों पर चलना चाह रहे हैं उन्हें बदले जाने की ज़रूरत है।''

तुर्की-ग्रीस तनाव: तुर्की एक क़दम भी पीछे नहीं हटेगा - प्रेसिडेंट अर्दोआन

तुर्की और ग्रीस ने घोषणा की है कि वे मंगलवार को ग्रीस के क्रीट द्वीप के पास एक-दूसरे के विरोध में सैन्य अभ्यास करेंगे।

दोनों देशों के बीच पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस भंडारों पर दावों को लेकर विवाद बढ़ गया है।

तुर्की ने आधिकारिक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जहाज़ इस क्षेत्र से दूर रहें।

तुर्की के अपने खोजी मिशन को आगे बढ़ाने का ऐलान करने के बाद ग्रीस ने भी सैन्य अभ्यास का ऐलान किया है।

इसी बीच जर्मनी के विदेश मंत्री हीको मास मंगलवार को एथेंस और अंकारा पहुंच रहे हैं जहां वो तनाव कम करने के लिए वार्ताएं करेंगे।

हीको मास पहले एथेंस में ग्रीस के प्रधानमंत्री किरयाकोस मिट्सोटाकिस से बात करेंगे और फिर अंकारा में तुर्की के विदेश मंत्री के साथ वार्ता करेंगे।

क्रीट और साइप्रस के पास विवादित जलक्षेत्र में तेल और गैस के भंडार मिलने के बाद से ही ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव बढ़ा हुआ है।

ग्रीस यूरोपियन यूनियन का भी हिस्सा है, जिसने वार्ता की अपील की है लेकिन फ्रांस ग्रीस का साथ देता दिख रहा है। फ्रांस ने हाल ही में ग्रीस के साथ सैन्य अभ्यास भी किया है।

सोमवार को तुर्की ने घोषणा की थी कि उसका शोध जहाज़ ओरुक रीस 27 अगस्त 2020 तक अपना काम चारी रखेगा। माना जा रहा है कि ग्रीस इसी से नाराज़ है। ग्रीस तुर्की के सर्वेक्षण को ग़ैर क़ानूनी मान रहा है और अब तुर्की के विरोध में युद्धाभ्यास करने जा रहा है।

ग्रीस सरकार के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा है, ''ग्रीस शांति से जवाब दे रहा है और कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर जवाब के लिए तैयार है। राष्ट्रीय विश्वास के साथ, ग्रीस अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करेगा।''

तुर्की ने भी इसी भाषा में जवाब दिया है।

तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा है, ''तुर्की ओरुक रीस और उसे एस्कॉर्ट कर रहे जंगी जहाज़ों की गतिविधियों से एक क़दम भी पीछे नहीं हटेगा।''

उन्होंने कहा कि ग्रीस ने अपने आप को ऐसी मुसीबत में डाल लिया है जिससे बाहर निकलने का रास्ता उसे नहीं मिल रहा है।

बीते महीने जब तुर्की ने अपने जहाज़ को भेजते समय नौसैन्य चेतावनी नेवटेक्स जारी की थी तब भी ग्रीस ने आक्रामक रवैया अपनाया था।

ग्रीस ने तुर्की से कहा था कि वह पूर्वी भूमध्य सागर में तेल की खोज में निकले अपने जहाज़ को वापस बुला ले।

ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव भड़कता रहता है, लेकिन गैस रिज़र्व और जलक्षेत्र अधिकारों को लेकर शुरू हुए इस ताज़ा विवाद के बड़े संघर्ष में बदलने का ख़तरा पैदा हो गया है।

जुलाई में जब तुर्की ने ग्रीस के द्वीप कास्टेलोरीज़ो के पास अपने सर्वे जहाज़ भेजने का ऐलान किया था तो जर्मनी ने मध्यस्थता करके संकट टाल दिया था। जर्मनी इस समय यूरोपीय यूनियन का अध्यक्ष है।

लेकिन अब ये जहाज़ और इसके साथ तुर्की की नौसेना के पाँच जंगी जहाज़ जलक्षेत्र में सर्वे कर रहे हैं और तनाव फिर से बढ़ गया है।

नेटो सदस्य ग्रीस और तुर्की के बीच ज़ुबानी जंग छिड़ गई है।

इसी विवाद में ग्रीस कहता रहा है कि वह अपनी संप्रभुता की रक्षा करेगा और यूरोपीय यूनियन ने कहा है कि दोनों देशों के बीच बातचीत होनी चाहिए।

तुर्की और ग्रीस के रिश्ते कैसे ख़राब हुए?

गैस भंडारों को लेकर तुर्की और ग्रीस के अपने-अपने दावे हैं और पूर्वी भूमध्यसागर के कई महत्वपूर्ण इलाक़ों को लेकर दोनों देशों के बीच भारी मतभेद हैं।

दोनों ही देश कई इलाक़ों पर अपने-अपने दावे इस तर्क के साथ ठोकते रहे हैं कि ये उनके महाद्वीपीय जलसीमा में आते हैं।

जुलाई में तुर्की ने नौसैनिक अलर्ट (नेवटेक्स) जारी किया था कि वह अपने शोध जहाज़ ओरुक रीस को ग्रीस के द्वीप कास्टेलोरीज़ो के पास सर्वे करने भेज रहा है।

ये द्वीप दक्षिण-पश्चिम तुर्की के तट से कुछ ही दूर स्थित है।  

इस सर्वे में तुर्की साइप्रस और क्रीट के बीच के इलाक़ों में गैस की खोज कर रहा है।

उस समय तुर्की के जहाज़ ने अंतालया के बंदरगाह से अपना लंगर नहीं उठाया था लेकिन ग्रीस की सेना में कास्टेलोरीज़ो द्वीप के नज़दीक संघर्ष की चिंता पैदा हो गई थी।

बीते कई महीनों से तुर्की और ग्रीस के रिश्ते ठंडे हैं। दोनों देशों के बीच प्रवासियों के ग्रीस में घुसने को लेकर भी विवाद है। और फिर तुर्की ने इस्ताबुंल के हागिया सोफ़िया म्यूज़ियम को फिर से मस्जिद बना दिया। ये इमारत कई सदियों तक ऑर्थोडॉक्स चर्च रही है। इससे भी ग्रीस को बुरा लगा।

जर्मनी के दख़ल के बाद दोनों देश बातचीत के लिए तैयार हुए और कुछ दिनों के लिए मामला ठंडा पड़ गया।

लेकिन इसी बीच अगस्त में ग्रीस ने मिस्र के साथ समझौता कर एक जलक्षेत्र बना लिया जिससे तुर्की भड़क गया है।

बातचीत टूट गई और तुर्की के जहाज़ ओरुक रीस ने दस अगस्त को बंदरगाह छोड़ दिया। अगले ही दिन ये क्रीट और साइप्रस के बीच के पानी में पहुंच गया।

अब क्यों बढ़ा तनाव?

पूर्वी भूमध्यसागर में ऊर्जा संसाधन विकसित करने की दौड़ में तुर्की और ग्रीस एक दूसरे के ख़िलाफ़ हैं।

हाल के सालों में साइप्रस के पास के पानी में बड़े गैस भंडार मिले हैं। साइप्रस, ग्रीस, इसराइल और मिस्र की सरकारें इनके दोहन के लिए एक साथ आई हैं। समझौते के तहत दो हज़ार किलोमीटर पाइपलाइन के ज़रिए यूरोप तक गैस भेजी जाएगी।

पिछले साल तुर्की ने साइप्रस के पश्चिम में तेल और गैस की खोज शुरू की थी। साइप्रस 1974 से बँटा हुआ है। तुर्की के नियंत्रण वाले उत्तरी साइप्रस को सिर्फ़ तुर्की ने ही मान्यता दे रखी है। तुर्की हमेशा ये तर्क देता रहा है कि इस द्वीप के प्राकृतिक संसाधनों पर उसका भी हक़ है और इनका बँटवारा होना चाहिए।  

और फिर नवंबर 2019 में तुर्की ने लीबिया के साथ एक समझौता करके तुर्की के दक्षिणी तट से लीबिया के उत्तर पूर्वी तट तक एक विशेष आर्थिक जलक्षेत्र का निर्माण कर लिया।

मिस्र ने कहा कि ये समझौता ग़ैरक़ानूनी है और ग्रीस ने कहा कि ये बेतुका है क्योंकि इसमें बीच में आने वाले ग्रीस के द्वीप क्रीट का संदर्भ नहीं लिया गया है।

फिर मई में तुर्की ने कहा कि वह अगले कुछ महीनों में पश्चिम की ओर अन्य इलाक़ों में तेल और गैस की खोज में खुदाई शुरू करेगा। इससे यूरोपीय यूनियन के सदस्य ग्रीस और साइप्रस में चिंताएं पैदा हो गईं।

तुर्की ने पूर्वी भूमध्यसागर में खुदाई करने के लिए टर्किश पेट्रोलियम को कई लाइसेंस जारी कर दिए हैं। इनमें ग्रीस के द्वीप क्रीट और रोड्स के आसपास खुदाई करने का लाइसेंस भी है।

जुलाई में तुर्की के उप-राष्ट्रपति फ़वात ओकताई ने कहा था, ''सभी को ये बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि इस क्षेत्र के ऊर्जा समीकरणों से तुर्की और टर्किश रिपब्लिक ऑफ़ नॉर्थ साइप्रस को अलग नहीं किया जा सकता है।''

फिर 6 अगस्त 2020 को  ग्रीस और मिस्र ने अपना समझौता करके तुर्की को जवाब दिया। दोनों ने विशेष आर्थिक ज़ोन का निर्माण करते हुए कहा कि इससे लीबिया के साथ तुर्की का समझौता रद्द हो जाएगा।

अब तुर्की ने अपने सर्वे जहाज़ को भेजने के अलावा ये भी कहा है कि इस महीने के अंत तक महाद्वीपीय शेल्फ़ के पश्चिमी क्षेत्र में तेल और गैस की खोज के लिए लाइसेंस जारी कर दिए जाएंगे।

क़ानूनी विवाद क्या हैं?

एजियन सागर और पूर्वी भूमध्यसागर में ग्रीस के कई द्वीप ऐसे है जो तुर्की के तट के बिल्कुल पास हैं। ऐसे में दोनों देशों के बीच जलक्षेत्र को लेकर जटिल विवाद हैं और कई बार दोनों देश युद्ध के मुहाने तक आ चुके हैं।

यदि ग्रीस अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अपने जलक्षेत्र को छह मील से लेकर 12 मील तक बढ़ाता है तो तुर्की का तर्क है कि इससे उसके कई समंदरी रास्ते बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं।

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन ने हाल ही में कहा था, ''तुर्की ऐसे किसी भी प्रयास को सहमति नहीं देगा जो उसे उसके तट तक सीमित कर दे।''

लेकिन विवाद सिर्फ़ जलक्षेत्रों तक ही नहीं है बल्कि विशेष आर्थिक ज़ोन (ईईज़ेड) भी एक बड़ा मुद्दा है। जैसे तुर्की और लीबिया का ईईज़ेड, मिस्र और ग्रीस का ईईज़ेड और साइप्रस और लेबनान का ईईज़ेड, मिस्र और इसराइल का ईईज़ेड।

और अब इस ताज़ा विवाद में महाद्वीपीय जलसीमा भी शामिल है जो तट से दो सौ मील दूर तक हो सकती है।

ग्रीस का तर्क है कि तुर्की का सर्वे जहाज़ उसकी महाद्वीपीय जलसीमा का उल्लंघन कर रहा है। ग्रीस का द्वीप कास्टेलोरीज़ो तुर्की के तट से सिर्फ़ दो किलोमीटर दूर है।

एक ओर जहां ग्रीस ने तुर्की से कहा है कि वह उसकी महाद्वीपीय जलसीमा को तुरंत छोड़ दे, तुर्की का कहना है कि ऐसे द्वीप जो मुख्य भूभाग से दूर हैं और तुर्की के पास हैं उनकी महाद्वीपीय जलसीमा नहीं हो सकती है।

बीते महीने तुर्की के उपराष्ट्रपति ने कहा था कि तुर्की उन नक्शों को फाड़ रहा है जो उसे मुख्य भूभाग तक सीमित करने के लिए बनाए गए हैं।

तुर्की इस बात पर भी ज़ोर देता रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र के जलक्षेत्रों को लेकर क़ानूनों के तहत ही काम कर रहा है।  

इसकी प्रतिक्रिया क्या रही है?

ग्रीस के यूरोपीय सहयोगी देशों ने उसका पक्ष लिया है, हालांकि जर्मनी और यूरोपीय यूनियन बातचीत पर ज़ोर दे रहे हैं।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रो ने ग्रीस और साइप्रस को पूर्ण समर्थन देते हुए कहा है कि तुर्की इन देशों की संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है।

हाल के महीनों में फ्रांस के रिश्ते तुर्की से ख़राब हुए हैं, ख़ासकर लीबिया को लेकर।

बढ़ते हुए तनाव के बीच फ्रांस ने कहा है कि वह क्षेत्र में अस्थायी रूप से एक फ्रीजेट और दो रफ़ाल विमान तैनात कर रहा है जो ग्रीस के साथ सैन्य अभ्यास भी करेंगे।

अमरीका ने दोनों ही पक्षों से बात करने के लिए कहा है और नेटो के महासचिव येंस स्टोलटेनबर्ग ने कहा है कि स्थिति को बातचीत के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और नेटो भाइचारे का ध्यान रखते हुए सुलझाया जाए।

जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्कल तनाव कम करने की कोशिशें कर रहीं हैं और उन्होंने तुर्की और ग्रीस दोनों देशों के नेताओं से बात की है।

कुवैत में रह रहे लाखों भारतीयों का भविष्य अंधकार में डूबा, वापसी के आसार

कोरोना वायरस की महामारी ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की हालत ख़राब कर दी है। इसका असर लोगों के रोज़गार पर बहुत ही बुरा पड़ा है। तेल पर निर्भर अरब देशों की अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति और कमज़ोर हुई है। ऐसे में वहां की सरकारें प्रवासी कामगारों को लेकर नियम सख़्त कर रही हैं ताकि स्थानीय लोगों को रोज़गार मिल सके।

कुवैत टाइम्स दैनिक अख़बार के अनुसार कुवैत की नेशनल असेंबली ने प्रवासी कामगारों की संख्या सीमित करने के लिए मसौदा तैयार कर लिया है। इस मसौदे में कुछ ख़ास वीज़ा की मान्यता रद्द करने का भी प्रस्ताव है। अख़बार के अनुसार कुवैत में प्रवासी कामगारों की संख्या सीमित करने वाला क़ानून छह महीने के भीतर लागू हो जाएगा।

अख़बार का कहना है कि इस क़ानून की दस अलग-अलग श्रेणियों में कोटा सिस्टम पर छूट दी जाएगी। यह छूट घरों में काम करने वालों, मेडिकल स्टाफ़, शिक्षक और जीसीसी के नागरिकों को मिलेगी। यात्रा वीज़ा को वर्क वीज़ा में तब्दील करने की सुविधा को भी कुवैत प्रतिबंधित करने जा रहा है। इसके अलावा कोई डोमेस्टिक हेल्पर प्राइवेट या ऑइल सेक्टर में काम नहीं कर सकता है।

कुवैत प्रवासियों की संख्या कम करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रहा है। पिछले हफ़्ते कुवैत ने घोषणा की थी कि बिना यूनिवर्सिटी की डिग्री के 60 साल से ऊपर की उम्र वालों को वर्क वीज़ा नहीं मिलेगा।

लार्सन एंड टर्बो में प्रतीक देसाई चीफ़ एग्जेक्युटिव हैं। वो 25 सालों से कुवैत में रह रहे हैं। लेकिन कुवैत सरकार के नए बिल से अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं।

प्रतीक देसाई ने बीबीसी से पिछले महीने कहा था, ''इस बिल के लागू होने के बाद आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है। 40 लाख की आबादी में यहां 70 फ़ीसदी प्रवासी हैं। इस बिल का लक्ष्य प्रवासियों की तादाद 30 फ़ीसदी करना है।''

इन प्रवासियों में भारतीय सबसे ज़्यादा हैं। भारत के अलावा यहां पाकिस्तान, फ़िलीपीन्स, बांग्लादेश, श्रीलंका और मिस्र के लोग हैं।

भारत सरकार भी कुवैत के इस बिल को लेकर चिंतित है। पिछले महीने भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था, ''भारतीयों की खाड़ी के देशों में अहम भूमिका रही है और इनके योगदान को वहां की सरकारें स्वीकार भी करती हैं। हमने कुवैत से इस मसले पर बात की है।''

प्रतीक देसाई का कहना है कि यह मामला केवल जॉब जाने का नहीं है बल्कि यहां से वापस आने का है। वो कहते हैं, ''जब आप लंबे समय से किसी जगह पर रहते हैं तो एक किस्म का भावनात्मक संबंध विकसित हो जाता है। इस फ़ैसले से हम आर्थिक से ज़्यादा भावनात्मक रूप से प्रभावित होंगे।''

कुवैत से भारतीय कमाई कर अपने परिजनों को भेजते हैं और यह भारत के लिए विदेशी मुद्रा का अहम स्रोत रहा है। प्यू रिसर्च सेंटर के डेटा के अनुसार 2017 में कुवैत से भारतीयों ने 4.6 अरब डॉलर भारत भेजे थे। कुवैत में क़रीब तीन लाख भारतीय ड्राइवर, रसोइए और केयरटेकर का काम करते हैं।

सीडीएस जनरल बिपिन रावत: चीन से बातचीत नाकाम हुई तो सैन्य विकल्प मौजूद

भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि चीन के साथ अगर बातचीत फ़ेल हुई, तो भारत के पास सैन्य विकल्प मौजूद है।

भारत में दिल्ली से प्रकाशित होने वाली इंग्लिश न्यूज़ पेपर हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, रावत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पूर्वी लद्दाख में चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा किए गए अतिक्रमण से निपटने के लिए भारत के पास एक सैन्य विकल्प मौजूद है, लेकिन इसका इस्तेमाल तभी किया जाएगा जब दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत और राजनयिक विकल्प निष्फल साबित हो जायेंगे।

जनरल रावत ने अख़बार से बातचीत में कहा कि ''वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अतिक्रमण या सीमा-उल्लंघन उस क्षेत्र की अलग-अलग समझ होने पर होता है। डिफ़ेंस सेवाओं को ज़िम्मेदारी दी जाती है कि वो एलएसी की निगरानी करें और घुसपैठ को रोकने के लिए अभियान चलाएं। किसी भी ऐसी गतिविधि को शांतिपूर्वक हल करने और घुसपैठ को रोकने के लिए सरकार के संपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाया जाता है। लेकिन सीमा पर यथास्थिति बहाल करने में सफलता नहीं मिलती तो फ़ौज सैन्य कार्यवाही के लिए हमेशा तैयार रहती है।''

उन्होंने कहा कि भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार सभी लोग इस उद्देश्य के साथ सभी विकल्पों की समीक्षा कर रहे हैं कि चीन की सेना लद्दाख में यथास्थिति बहाल करे।

साल 2017 में चीनी सेना के ख़िलाफ़ डोकलाम में 73 दिन के सैन्य गतिरोध के दौरान भारत के सेना प्रमुख रहे जनरल बिपिन रावत ने अख़बार से बातचीत में इस धारणा को भी ख़ारिज किया कि प्रमुख ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी है।

उन्होंने कहा कि भारत के हिन्द महासागर क्षेत्र के साथ-साथ उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर एक विशाल फ्रंट-लाइन है जिसकी सभी को लगातार निगरानी की आवश्यकता है।

उनके अनुसार सूचनाओं के संग्रहण और संयोजन के लिए ज़िम्मेदार सभी एजेंसियों के बीच नियमित रूप से बातचीत होती है।

उन्होंने कहा कि मल्टी-एजेंसी सेंटर हर रोज़ बैठकें कर रहा है जिनमें लगातार लद्दाख या भारतीय ज़मीन के किसी अन्य टुकड़े की स्थिति को लेकर बातचीत होती है।

जनरल रावत ने इस इंटरव्यू में किसी भी ऑपरेशन के डिटेल्स साझा करने से इनकार किया।

इससे पहले 11 अगस्त को बिपिन रावत ने एक संसदीय समिति को बताया था कि भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लंबे वक़्त तक चीन का मुक़ाबला करने और सर्दियों के दौरान पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में तैनाती के लिए तैयार है।

उन्होंने कहा था कि दोनों पक्षों के बीच तनाव कम होने में अधिक समय लग सकता है, लेकिन हम हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं और लद्दाख में इसके इंतजाम भी कर लिए गए हैं।