अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध

ग़ज़ा में संघर्ष विराम तुरंत लागू हो, सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव को मंजूरी मिली

ग़ज़ा में संघर्ष विराम तुरंत लागू हो, सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव को मंजूरी मिली

सोमवार, 25 मार्च 2024

ग़ज़ा में तुरंत संघर्ष विराम लागू करने की मांग को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में लाया गया प्रस्ताव अब से थोड़ी देर पहले मंजूर हो गया है।

समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में अमेरिका ने भाग नहीं लिया।

चीन ने सोमवार, 25 मार्च 2024 को ही बताया था कि ग़ज़ा में संघर्ष विराम तुरंत लागू करने की मांग को लेकर उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पेश किया है।

इससे पहले अमेरिका की ओर से लाए गए एक प्रस्ताव पर चीन और रूस ने वीटो लगा दिया था।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने बताया कि चीन इस मसौदा प्रस्ताव का समर्थन करता है।

उसने यह भी कहा कि वह इस प्रस्ताव को तैयार करने के लिए अल्जीरिया और अन्य अरब देशों की कड़ी मेहनत की तारीफ़ करता है।

सात अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हमास के हमले के बाद ग़ज़ा पर हो रहे इसराइली हमले में अब तक 32,226 लोगों की मौत हो गई है। यह डेटा ग़ज़ा में हमास संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी किया गया है।

ग़ज़ा पर यूएन में अमेरिकी रुख़ से इसराइल नाराज़, अमेरिका का दौरा रद्द किया

सोमवार, 25 मार्च 2024

ग़ज़ा में तुरंत संघर्ष विराम लागू करने की मांग करने वाला प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में पारित होने के बाद इसराइल ने अपने प्रतिनिधिमंडल की अमेरिका की प्रस्तावित यात्रा रद्द कर दी है।

इसराइल के प्रधानमंत्री के कार्यालय ने बताया है कि यूएनएससी में अमेरिका के रुख़ में आए बदलाव के बाद बिन्यामिन नेतन्याहू ने यह फ़ैसला लिया है।

बिन्यामिन नेतन्याहू ने पहले ही धमकी दी थी कि अगर अमेरिका के रुख़ में बदलाव होता है, तो यह दौरा रद्द कर दिया जाएगा।

इसराइल की नाराज़गी का कारण इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में अमेरिका का वीटो नहीं लगाना रहा है।

अमेरिका ने सोमवार, 25 मार्च 2024 को हुए मतदान में भाग नहीं लिया।  यह प्रस्ताव चीन लेकर ​लाया था।

हालांकि व्हाइट हाउस ने कहा है कि मतदान प्रक्रिया में भाग न लेना, अमेरिका की नीति में बदलाव होना नहीं है।

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने यह भी कहा कि अमेरिका इसराइल से उसके इस फैसले पर बात करेगा।

ग़ज़ा की 20 लाख की आबादी पर "गंभीर खाद्य संकट" का ख़तरा मंडरा रहा है: एंटनी ब्लिंकन

ग़ज़ा की 20 लाख की आबादी पर "गंभीर खाद्य संकट" का ख़तरा मंडरा रहा है: एंटनी ब्लिंकन

बुधवार, 20 मार्च 2024

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बीबीसी से कहा कि ग़ज़ा की 20 लाख की आबादी पर "गंभीर खाद्य संकट" का ख़तरा मंडरा रहा है।

इसराइल-हमास जंग शुरू होने के बाद ये पहली बार है, जब ग़ज़ा की पूरी की पूरी आबादी के लिए इस तरह का बयान सामने आया है।

वहीं ग़ज़ा में काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने कहा है कि मई 2024 तक अगर युद्ध न रुका और ग़ज़ा में ज़रूरी मात्रा में राहत सामग्री न पहुंचाई गई तो ग़ज़ा भीषण भुखमरी का सामना कर सकता है।

एंटनी ब्लिंकन फ़िलहाल फ़िलिपीन्स के दौरे पर हैं। अमेरिकी अधिकारियों ने मंगलवार, 19 मार्च 2024 को कहा है कि वो जल्द मध्य पूर्व का दौरा करने वाले हैं।

अक्टूबर 2023 में हमास के ख़िलाफ़ इसराइल के हमले के बाद ये मध्य पूर्व का एंटनी ब्लिंकन का छठा दौरा हैं। अपने दौरे में वो युद्धविराम बढ़ाने की संभावना को लेकर चर्चा करेंगे।

मंगलवार, 19 मार्च 2024 से क़तर में इसराइली मध्यस्थ एक बार फिर संभावित युद्धविराम को लेकर चर्चा कर रहे हैं। चर्चा में ग़ज़ा में राहत सामग्री पहुंचाने से लेकर हमास के कब्ज़े में मौजूद इसराइली बंधकों को छुड़ाने पर भी चर्चा होनी है।

ब्लिंकन ने क्या कहा?

बीबीसी ने एंटनी ब्लिंकन से सवाल किया था, कि अगर युद्धविराम न हुआ और मौजूदा हालात बरकरार रहे तो क्या इससे इलाक़े के भविष्य पर असर पड़ेगा।

इस सवााल के उत्तर में एंटनी ब्लिंकन ने कहा, "स्थिति का आकलन किया जाए तो ग़ज़ा की 100 फ़ीसदी आबादी गंभीर खाद्य संकट झेलने की कग़ार पर है।"

ये पहली बार है जब पूरी आबादी की स्थिति को इस तरह बताया जा रहा है।

गंभीर खाद्य संकट वो स्थिति होती है, जब खाना न मिलने के कारण किसी व्यक्ति के जीवन पर तुरंत ख़तरा मंडराने लगे। हालात न सुधरे तो ये भुखमरी का कारण बन सकता है।

हूती विद्रोहियों ने अदन की खाड़ी में मालवाहक जहाज पर हमला किया, तीन लोगों की मौत

हूती विद्रोहियों ने अदन की खाड़ी में मालवाहक जहाज पर हमला किया, तीन लोगों की मौत

गुरुवार, 7 मार्च 2024

यमन के हूती विद्रोहियों के हमले में एक मालवाहक जहाज के चालक दल के तीन सदस्यों की मौत हो गई। ये हमला अदन की खाड़ी में हुआ।

ट्रू कॉन्फ़िडेंस नाम के इस मालवाहक जहाज पर बारबाडोस का झंडा लगा हुआ था। बुधवार, 6 मार्च 2024 को हुए इस हमले में जहाज को बहुत क्षति पहुंची है। इस हमले में फिलीपींस के दो और वियतनाम के एक व्यक्ति की मौत हुई।

यमन के हूती विद्रोही इसराइल-हमास युद्ध के बीच ये कहते रहे हैं कि जब तक इसराइल ग़ज़ा पर हमले बंद नहीं करेगा वो लाल सागर में जहाजों को निशाना बनाना जारी रखेंगे।

अमेरिका ने कहा है कि कारोबारी जहाजों पर हूती विद्रोहियों के हमलों में पहली बार मौतें हुई हैं।

अमेरिकी सेना के सेंट्रल कमांड ने इस घटना की निंदा की है और बताया है कि इस समूह के हमले के बाद उन्होंने यमन में दो ड्रोन मार गिराए।

हूती विद्रोही के एक सैन्य प्रवक्ता ने दावा किया कि उन्होंने वेसल को निशाना बनाया क्योंकि ये 'अमेरिकी' जहाज था जबकि जहाज के मालिकों ने इससे इनकार किया है।

इस जहाज पर चालक दल के 20 सदस्य थे, जिनमें से एक सदस्य भारत का, चार वियतनाम से, 15 फिलीपींस के थे। वहीं तीन आर्म्ड गार्ड्स भी थे जिनमें से दो श्रीलंका और एक नेपाल के थे।

ग़ज़ा में संघर्ष विराम के लिए हो रही बातचीत में बिना किसी डील के हमास क्यों बाहर आया?

ग़ज़ा में संघर्ष विराम के लिए हो रही बातचीत में बिना किसी डील के हमास क्यों बाहर आया?

गुरुवार, 7 मार्च 2024

मिस्र की राजधानी काहिरा में ग़ज़ा में संघर्ष विराम के लिए हो रही वार्ता से हमास का प्रतिनिधिमंडल बिना किसी डील के बाहर निकल गया है।

हालांकि, हमास का कहना है कि अप्रत्यक्ष तौर पर इसराइल से बातचीत अभी ख़त्म नहीं हुई है। हमास ने उम्मीद जताई थी कि रमज़ान के महीने की शुरुआत में 40 दिन का संघर्ष विराम हो सकता है।

इसराइल ने अपना प्रतिनिधिमंडल काहिरा नहीं भेजा था।

इसराइल का कहना था कि उन्हें जीवित इसराइली बंधकों की सूची चाहिए जिन्हें समझौते के तहत छोड़ा जाएगा।

हमास ने कहा है कि इसराइल ने अपने जगह से युद्ध की वजह से विस्थापित हुए फ़लस्तीनियों के वापस लौटने की मांग नहीं मानी है और न ही ग़ज़ा के शहरों से इसराइली सैनिकों की वापसी की मांग स्वीकार की है।

ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इसराइली हमले में अब तक 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है। वहीं सात अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हमास के हमले में क़रीब 1,200 लोगों की मौत हुई थी।

इसराइल-ग़ज़ा युद्धविराम: इसराइली पीएम नेतन्याहू का हमास की मांग मानने से इनकार

इसराइल-ग़ज़ा युद्धविराम: इसराइली पीएम नेतन्याहू का हमास की मांग मानने से इनकार

गुरुवार, 8 फरवरी 2024

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने प्रस्तावित सीज़फ़ायर पर हमास की शर्तों को ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया है कि- कुछ महीनों में ही ग़ज़ा पर ‘पूरी तरह’ जीत संभव है।

नेतन्याहू ने इसराइल समर्थित युद्धविराम प्रस्ताव के जवाब में हमास की कई मांगों को लेकर ये बात कही है।

नेतन्याहू ने कहा कि हमास के साथ बातचीत 'किसी ओर आगे नहीं बढ़' रही है और समूह जो मांग रख रहा है वो 'अजीबोगरीब' है।

सीज़फ़ायर को लेकर बातचीत अब भी चल रही है ताकि किसी डील पर पहुंचा जा सके।

बुधवार, 7 फरवरी 2024 को नेतन्याहू ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ''ग़ज़ा पर पूरी तरह जीत के अलावा इसका कोई दूसरा निष्कर्ष नहीं है।  अगर हमास ग़ज़ा में बचा रहता है तो अगला जनसंहार कभी भी हो सकता है।''

माना जा रहा था कि इसराइल हमास की शर्तों पर बातचीत करेगा लेकिन प्रधानमंत्री नेतन्याहू के इस बयान ने साफ़ तौर पर इस तरह की संभावनाओं को ख़त्म दिया।

इसराइली आधिकारियों का कहना है कि हमास इस युद्ध का अंत अपनी शर्तों पर चाहता है जो उसे पूरी तरह नामंज़ूर है।

हमास के वरिष्ठ अधिकारी सामी अबू ज़ुहरी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि नेतन्याहू की टिप्पणी "राजनीतिक घमंड का एक रूप है", और दिखाती है कि वह क्षेत्र में संघर्ष को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

मिस्र के एक आधिकारिक सूत्र ने बीबीसी को बताया कि मिस्र और क़तर की मध्यस्थता में गुरुवार, 8 फरवरी 2024 को राज़धानी काहिरा में बातचीत का नया दौर शुरू होने की उम्मीद है।

मिस्र के एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि मिस्र ने सभी पक्षों से शांतिपूर्ण समझौते पर पहुंचने के लिए सहयोग की अपील की है।

रॉयटर्स के अनुसार हमास की शर्तें हैं-

पहला चरण- युद्ध में 45 दिनों का विराम, जिस दौरान सभी इसराइली महिला बंधकों, 19 साल से कम उम्र के पुरुष बंधकों, बुजुर्गों और बीमारों को छोड़ा जाएगा। बदले में इसराइली जेलों में बंद फ़लीस्तीनी महिलाओं और बच्चों को रिहा किया जाए। इसराइली सेना ग़ज़ा के आबादी वाले इलाकों से हट जाए और अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों का पुनर्निर्माण हो।

दूसरा फ़ेज़- जो बचे हुए इसराइली बंधक हैं वो तब छोड़े जाएंगे जब इसराइली सेना पूरी तरह ग़ज़ा से निकल जाएगी।

तीसरा फ़ेज़- दोनों ही पक्ष मारे गए लोगों के शव और उनके सामान एक दूसरे को देंगे।

हमास के द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अब तक ग़ज़ा में 27,700 लोगों की मौत हो चुकी है और 65000 घायल हैं।

भारत म्यांमार से सटी 1643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़बंदी करवाएगी

भारत म्यांमार से सटी 1643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़बंदी करवाएगी

मंगलवार, 6 फरवरी 2024

भारत की केंद्र सरकार ने म्यांमार से सटी 1643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़बंदी करवाने का निर्णय लिया है। भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर के इसकी जानकारी दी।

अमित शाह ने कहा कि इससे सीमा पर बेहतर सर्विलांस, पेट्रोलिंग और ट्रैकिंग की जा सकेगी। अमित शाह ने कहा कि भारत के राज्य मणिपुर के मोरेह में 10 किलोमीटर लंबी सीमा की बाड़बंदी की जा चुकी है।

अमित शाह ने बताया, "हाइब्रिड सर्विलांस सिस्टम (एचएसएस) के ज़रिए बाड़बंदी के दो पायलट प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। भारत के राज्यों अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में एक किलोमीटर लंबी सीमा को इसके तहत बाड़बंद किया जाएगा।''

अमित शाह ने कहा कि मणिपुर में करीब 20 किलोमीटर लंबी बाड़बंदी को मंज़ूरी मिल गई है और इस पर जल्द काम शुरू हो जाएगा।

बाड़बंदी की ये घोषणा ऐसे समय में हुई है जब पिछले कई महीनों से मणिपुर में हिंसा जारी है। मणिपुर राज्य की करीब 400 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगती है। हाल ही में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने पिछली केंद्र सरकारों पर पूर्वोत्तर के राज्यों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था।

भारत ने अपने नागरिकों से म्यांमार के रखाइन प्रांत की यात्रा न करने को कहा

मंगलवार, 6 फरवरी 2024

भारत ने अपने नागरिकों से म्यांमार के रखाइन प्रांत की यात्रा न करने को कहा है। इस संबंध में भारत के विदेश मंत्रालय ने एक एडवाइज़री जारी की है।

भारत के विदेश मंत्रालय की एडवाइज़री के अनुसार, "सुरक्षा स्थिति के बिगड़ने, लैंडलाइन सहित अन्य संचार सेवाओं के बाधित होने और बुनियादी सामान की भारी कमी के कारण सभी भारतीयों को ये सलाह दी जाती है कि वे म्यांमार के रखाइन प्रांत न जाएं।''

"जो भारतीय पहले से रखाइन प्रांत में मौजूद हैं, उन्हें फ़ौरन ये इलाक़ा खाली कर देना चाहिए।''

रखाइन प्रांत में साल 2016 से ही हिंसा जारी है। हालांकि, हालिया दिनों में रखाइन प्रांत में म्यांमार की सैन्य सत्ता और विद्रोही गुट अराकन आर्मी (एए) के बीच संघर्ष और तेज़ हुआ है।

बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाक़े में दो लोगों की मौत, बांग्लादेश ने म्यांमार के राजदूत को तलब किया

बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाक़े में दो लोगों की मौत, बांग्लादेश ने म्यांमार के राजदूत को तलब किया

मंगलवार, 6 फरवरी 2024

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने सीमा पार से दागे गए मार्टार की वजह से हुई दो मौतों को लेकर म्यांमार के राजदूत को तलब किया है।

म्यांमार की सेना और विद्रोही गुटों के बीच बढ़े संघर्ष की वजह से बांग्लादेश के कुछ सीमावर्ती गाँवों में दहशत का माहौल बन गया है।

म्यांमार की सेना के कई और सैनिक भागकर बांग्लादेश चले गए हैं।  बांग्लादेश में म्यांमार से भागकर आए ऐसे नागरिकों और सैनिकों की संख्या बढ़कर 229 हो गई है।

अराकान विद्रोहियों ने कथित तौर पर सीमा पर कई ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया है।

मामला क्या है?

बांग्लादेश में सोमवार, 5 फरवरी 2024 की सुबह म्यांमार से दागी गई मोर्टार से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई थी।

बांग्लादेश से सटी 270 किलोमीटर लंबी म्यांमार के सीमावर्ती इलाकों में नवंबर 2023 से ही हिंसक संघर्ष जारी है, जब विद्रोही अराकान आर्मी (एए) के लड़ाकों ने 2021 के तख्तापलट के बाद से चल रहे सीज़फायर को खत्म करने का ऐलान किया।

समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार म्यांमार की सीमा से सटे बांग्लादेश के गाँव में रहने वालों का कहना है कि वे इस संघर्ष की वजह से भय के माहौल में जी रहे हैं।

बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) ने मंगलवार, 6 फरवरी 2024 को कॉक्स बाज़ार ज़िले के उखिया में शरण मांगने वाले म्यांमार के बॉर्डर गार्ड पुलिस के सैनिक को हिरासत में लिया।

सहायता एजेंसी डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि उन्होंने रविवार, 4 फरवरी 2024 को हिंसक संघर्ष में घायल 17 लोगों का इलाज किया है।

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने सोमवार, 5 फरवरी 2024 को बताया कि सभी घायलों को गोली लगी थी। इनमें से दो की जान को ख़तरा था और पाँच गंभीर रूप से घायल थे।

स्थानीय पुलिस चीफ़ अब्दुल मन्नान ने कहा कि 48 वर्षीया बांग्लादेशी महिला, जिनका नाम हुस्ने आरा था, उनकी सोमवार, 5 फरवरी 2024 को मौत हो गई। उनके अलावा एक अज्ञात रोहिंग्या शख्स की भी सोमवार, 5 फरवरी 2024 की दोपहर को मौत हुई है।

हुस्ने आरा की बहू ने कहा, "वे लोग किचन में बैठे थे..जब अचानक मोर्टार आकर गिरा। वह उस रोहिंग्या शख्स को खाना परोस रही थीं। उस शख्स को हमने अपने खेत की देखरेख के लिए काम पर रखा था।''

अमेरिका ने भारत के साथ चार अरब डॉलर के ड्रोन समझौते को मंज़ूरी दी

अमेरिका ने भारत के साथ चार अरब डॉलर के ड्रोन समझौते को मंज़ूरी दी
 
शुक्रवार, 2 फरवरी 2024

भारत को 31 अत्याधुनिक हथियारबंद ड्रोन देने के चार अरब डॉलर के समझौते को अमेरिकी विदेश विभाग ने मंज़ूरी दे दी है।

जून 2023 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी यात्रा के दौरान एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन के समझौते की घोषणा हुई थी।

अमेरिका में एक भारतीय की हत्या की कथित साज़िश की जांच के कारण सीनेट कमेटी ने दिसम्बर 2023 में इस समझौते पर रोक लगा दी थी।

अब इस समझौते को अमेरिकी कांग्रेस ने मंज़ूरी दे दी है।

पेंटागन ने कहा कि इस समझौते में 31 हथियारबंद एमक्यू-9बी स्काईगार्डियन ड्रोन, 170 एजीएएम-114आर हेलफ़ायर मिसाइलें और 310 छोटे व्यास वाले बम, कम्युनिकेशन और सर्विलांस उपकरण और प्रिसीशन ग्लाइड बम की बिक्री शामिल है।

इस समझौते का प्रमुख कॉन्ट्रैक्टर जनरल एटोमिक्स एरोनॉटिक्स सिस्टम्स होगा।

समाचार एजंसी रॉयटर्स के अनुसार, सीनेटर बेन कार्डिन ने कहा कि अमेरिकी सरकार द्वारा गुरपतवंत सिंह पन्नू हत्या की साज़िश की पूरी जांच करने पर सहमति के बाद ही इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया।

सीनेटर बेन कार्डिन ने बताया, "बाइडेन प्रशासन ने मांग की है कि अमेरिकी धरती पर साज़िश को लेकर जांच और जवाबदेही तय होनी चाहिए और इस तरह की गतिविधियों को लेकर भारत में भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।''

साल 2023 में अमेरिका ने भारत सरकार पर, खालिस्तान का समर्थन करने वाले एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की साज़िश रचने का आरोप लगाया था।

गुरुवार, 1 फरवरी 2024 को पेंटागन ने कहा कि "अमेरिका-भारत रणनीतिक रिश्ते को मजबूत करने के लिए, भारत के साथ प्रस्तावित यह ड्रोन समझौता अमेरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों में मदद करेगा।''

इसराइल की ग़ज़ा नीति के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के सैकड़ों ब्यूरोक्रेट्स

इसराइल की ग़ज़ा नीति के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के सैकड़ों ब्यूरोक्रेट्स

शुक्रवार, 2 फरवरी 2024

अमेरिका और यूरोप में काम कर रहे सैकड़ों अधिकारियों ने एक साझा बयान में अपनी-अपनी सरकारों को इसराइल की ग़ज़ा नीति को लेकर आगाह किया है।

उनका कहना है कि इसराइल की ग़ज़ा नीति से अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन हो सकता है। इस साझा बयान पर अमेरिका और यूरोप के 800 से अधिक सेवारत अधिकारियों ने अपने दस्तखत किए हैं।

बयान में कहा गया है कि "इस सदी की सबसे भीषण मानवीय तबाही में शामिल होने का जोख़िम उनकी सरकारों ने उठाया है और उनकी विशेषज्ञ सलाह को दरकिनार कर दिया गया।''

पश्चिम में इसराइल के कुछ प्रमुख सहयोगी देशों की सरकारों में उसे लेकर बड़े स्तर पर असंतोष के ये ताज़ा संकेत हैं। इस बयान पर दस्तख़त करने वाले एक व्यक्ति अमेरिकी सरकार में काम कर रहे हैं।

उनके पास राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने का 25 साल से अधिक समय का अनुभव रहा है। उन्होंने बीबीसी को बताया कि उनकी चिंताएं लगातार खारिज कर दी गईं।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर उन्होंने कहा, "जो लोग उस क्षेत्र को और उसकी स्थितियों को समझते हैं, उनकी आवाज़ों को अनसुना किया जा रहा है। जो हो रहा है, अगर हम उसे नहीं रोक पा रहे हैं तो हम कैसे अलग हैं।  हम इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। ये किसी अन्य हालात से पूरी तरह से अलग है।''

इस ट्रांसअटलांटिक स्टेटमेंट पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी समेत यूरोप के 11 देशों के नौकरशाहों ने दस्तखत किए हैं।

उनके साझा बयान में कहा गया है कि ग़ज़ा में अपने मिलिट्री ऑपरेशंस में इसराइल ने किसी मर्यादा का पालन नहीं किया है। इस वजह से वहां हज़ारों आम लोगों की मौत हुई है जिसे रोका जा सकता था। वो जानबूझकर ग़ज़ा में सहायता सामाग्री पहुंचने से रोक रहा है। इससे बड़े पैमाने पर लोगों के भुखमरी का शिकार होने का ख़तरा मंडराने लगा है।

क्या ग़ज़ा में जनसंहार मामले में आईसीजे का आदेश इसराइल मानेगा?

क्या ग़ज़ा में जनसंहार मामले में आईसीजे का आदेश इसराइल मानेगा?

शनिवार, 27 जनवरी 2024

दक्षिण अफ़्रीका की ओर से इसराइल पर जनसंहार के आरोप में किए गए मुक़दमे पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को तुरंत कुछ क़दम उठाने का आदेश दिया है।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल से कहा है कि वह ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों को हो रहे किसी भी तरह के नुक़सान को तुरंत रोके।

यह आदेश दक्षिण अफ़्रीका या फ़लस्तीनियों के लिए पूरी जीत नहीं माना जा सकता, क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को युद्धविराम करने या सैन्य अभियान रोकने का आदेश नहीं दिया है।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इस बात को स्वीकार किया कि ग़ज़ा में हालात 'विनाशकारी' हैं और ये 'और भयंकर रूप से बिगड़ सकते हैं'।

जनसंहार के जिन आरोपों पर यह मुक़दमा चल रहा है, उन पर अंतिम फ़ैसला सुनाए जाने की प्रक्रिया में कई साल लग सकते हैं।

इस वजह से, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइल को कुछ क़दम उठाने को कहा है। इनमें से ज़्यादातर क़दम दक्षिण अफ़्रीका की ओर से रखी गई नौ मांगों के अनुरूप हैं।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के 17 जजों की बेंच ने बहुमत से आदेश दिया कि इसराइल को फ़लस्तीनियों को मौत और गंभीर शारीरिक या मानसिक क्षति से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने इसराइली राष्ट्रपति और इसराइली रक्षा मंत्री की बातों का उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि इसराइल को जनसंहार के लिए सार्वजनिक तौर पर "उकसावा देने से रोकने" और "ऐसा करने वालों" को सज़ा देने के लिए और प्रयास करने चाहिए।

साथ ही, इसराइल को ग़ज़ा में मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए त्वरित और प्रभावी क़दम उठाने के लिए भी कहा गया है।

भले ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने युद्धविराम के लिए नहीं कहा, मगर उसने इसराइल के सामने जो मांगें रखी हैं, अगर उन पर अमल किया जाता है तो ग़ज़ा में इसराइल के सैन्य अभियान की प्रकृति में बड़े बदलाव आएंगे।

इसराइल खुद पर लगे जनसंहार के आरोपों को यह करते हुए खारिज करता है कि आम फ़लस्तीनियों को जो नुक़सान पहुंच रहा है, उसके लिए फ़लस्तीनी चरमपंथी समूह हमास ज़िम्मेदार है।

इसराइल कहता है कि हमास ग़ज़ा के घनी आबादी वाले कस्बों और शरणार्थी शिविरों के नीचे (सुरंगों से) से काम करता है, जिस वजह से इसराइल के लिए आम लोगों की मौत को रोक पाना लगभग असंभव है।

इसराइल का ये भी कहना है कि लोगों को ख़तरे से बचाने और उन्हें आगाह करने के लिए बहुत कुछ किया गया है। इसराइल के लगभग सभी यहूदी नागरिकों का मानना है कि इसराइली सेना दुनिया की सबसे नैतिक सेना है। जो सही नहीं है। इसराइली सेना को दुनिया की सबसे नैतिक सेना कहना गलत होगा।

सात अक्टूबर 2023 से लेकर अब तक, इसराइल के हमले के कारण 23 लाख आबादी वाले ग़ज़ा की 85 फ़ीसदी आबादी विस्थापित हो चुकी है।

जंग से बचकर भाग रहे लोगों को पहले ही क्षमता से ज़्यादा भरे गए शिविरों में शरण लेनी पड़ रही है। ऊपर से वहां स्वास्थ्य सुविधाओं और ज़रूरी चीज़ों की भी गंभीर किल्लत पैदा हो गई है।

क्या इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का आदेश मानेगा?

सबसे बड़ा सवाल कि इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का आदेश मानेगा? इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि 'हमास के ख़ात्मे तक सैन्य कार्रवाई जारी रहेगी'।

जैसे ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की अमेरिकी अध्यक्ष और 17 जजों के बेंच का नेतृत्व कर रही जज जोन डॉनोह्यू ने बोलना शुरू किया, यह स्पष्ट हो गया कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का ध्यान ग़ज़ा के लोगों के कष्टों पर है और इसराइल इस केस को ख़त्म करने की कोशिश में नाकाम रहा है।

जज जोन डॉनोह्यू ने संक्षेप में बताया कि ग़ज़ा में रह रहे फ़लस्तीनी क्या अनुभव कर रहे हैं। जज जोन डॉनोह्यू ने वहां के बच्चों की पीड़ा बयां की और कहा कि ये 'दिल तोड़ने वाली' है।

हालांकि जनसंहार के आरोप को लेकर ये इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का अंतिम फ़ैसला नहीं है। हो सकता है इस बारे में फ़ैसला आने में कई साल का वक्त लग जाएं।

लेकिन जिन क़दमों को उठाने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने कहा है, वे ऐसे हैं जिनसे ग़ज़ा के फ़लस्तीनियों को कुछ सुरक्षा मिल सकती है।

अब इसराइल को तय करना है कि इस पर उसे क्या करना है? इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फ़ैसले बाध्यकारी तो होते हैं, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे उन्हें लागू करवाया जा सके।

ऐसे में, हो सकता है कि इसराइल इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस के फ़ैसले को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दे।

राजयनिक स्तर पर पहले से ही दो महीने के युद्धविराम के लिए कोशिशें चल रही हैं और आने वाले समय में ग़ज़ा में मदद पहुंचाने के काम में भी तेज़ी आ सकती है।

ऐसे में इसराइल कह सकता है कि वह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस की मांगों के आधार पर पहले से ही क़दम उठा रहा है।

अगर स्थिति सुधरी, जिसकी फ़िलहाल आसार नहीं दिख रहे, तो भी इसराइल पर जनसंहार का आरोप बना रहेगा, क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने पाया है कि यह मामला अहम है जिस पर सुनवाई होनी चाहिए।

इसराइल एक ऐसा देश है, जिसका जन्म जनसंहार के सबसे ख़राब उदाहरणों में से एक के कारण हुआ था।

जब तक इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस दक्षिण अफ़्रीका की ओर से दायर मुक़दमे में अंतिम फ़ैसला नहीं सुना देता, तब तक इसराइल को जनसंहार के आरोप के साये में ही रहना होगा।