अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध

भारत ने ब्राज़ील को जी-20 की अध्यक्षता सौंपी

जी-20 देशों के मौजूदा अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन के समापन पर ब्राज़ील को अध्यक्षता सौंप दी है।

जी-20 देशों की अध्यक्षता नवंबर 2023 से ब्राज़ील के पास होगी।

पीएम मोदी ने कहा, ''भारत के पास नवंबर तक जी-20 की अध्यक्षता है। अभी हमारे पास ढाई महीने बाकी हैं। मेरा प्रस्ताव है कि एक वर्चुअल सेशन रखें ताकि जो हमने तय किया है कि उसकी समीक्षा की जाए। आप उससे जुड़ेंगे, ऐसी उम्मीद है। इसी के साथ जी-20 के समापन की घोषणा करता हूं। संपूर्ण विश्व में आशा और शांति का संचार हो। 140 करोड़ भारतीयों की इसी मंगलकामना के साथ आप सबका धन्यवाद।''

इस दौरान पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की भी बात कही।

उन्होंने कहा कि वक्त के साथ बदलाव ज़रूरी है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिलहाल पांच सदस्य हैं।

इनमें अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस शामिल है।

भारत इसके स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की मांग लंबे समय से करता आ रहा है।

न्यू दिल्ली जी-20 लीडर्स समिट डिक्लेरेशन: परमाणु हथियारों की धमकी या इस्तेमाल को मंज़ूर नहीं किया जा सकता है

'न्यू दिल्ली जी-20 लीडर्स समिट डिक्लेरेशन' में यूक्रेन युद्ध का जिक्र करते हुए जी-20 के देशों ने कहा है कि परमाणु हथियारों की धमकी या इस्तेमाल को मंज़ूर नहीं किया जा सकता है।

रूस का जिक्र किए बगैर जी-20 के सदस्य देशों ने बाली घोषणापत्र की याद दिलाई और कहा कि सभी देशों को यूक्रेन में टिकाऊ शांति के लिए यूएन चार्टर के सिद्धांतों के तहत काम करना चाहिए।

इसी घोषणापत्र में सदस्य देशों को ये भी याद दिलाया गया है कि वे अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए ताक़त या धमकी के इस्तेमाल से दूर रहेंगे।

भारत की अध्यक्षता में हो रहे जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों ने आपसी सहमति से शनिवार, 9 सितम्बर 2023 को 'न्यू दिल्ली जी-20 लीडर्स समिट डिक्लेरेशन' की घोषणा की।

इस घोषणा पत्र में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को कही उस बात को भी शामिल किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था, "आज का दौर युद्ध का नहीं है।''

जी-20: जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों में गंभीर असहमति

जलवायु परिवर्तन के लिए होने वाले संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलनों के उलट जी-20 की बैठकों में इस समस्या को लेकर उठाए जाने वाले कदमों पर आमतौर पर विकसित और विकासशील देशों में ज्यादा गंभीर असहमतियां नहीं दिखती हैं।

लेकिन इस बार के जी-20 सम्मेलन में इसे लेकर तस्वीर कुछ अलग दिख रही है। जी-20 देशों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम करने, रिन्युबल एनर्जी के लक्ष्यों को बढ़ाने और ग्रीन हाउस उत्सर्जन में कमी जैसे लक्ष्यों को हासिल कर कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है।

जबकि जी-20 के देश दुनिया के 75 ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं। जी-20 सम्मेलन में रूस, चीन, सऊदी अरब और भारत ने 2030 तक रिन्युबल एनर्जी की क्षमता तीन गुना बढ़ाने के विकसित देशों के लक्ष्य का विरोध किया है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि 6 सितंबर 2023 को शेरपा स्तर की बैठक में ये देश 2035 तक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 60 फीसदी घटाने के विकसित देशों के लक्ष्य से असहमत दिखे।

चीन ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया है, जिनमें कहा गया था कि जुलाई 2023 में हुई जी-20 के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में उसने जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर बनने वाली सहमति में बाधा डाली थी।

चीन ने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन की समस्या को खत्म करने के लिए अपनी क्षमता, जिम्मेदारियों और कर्तव्य के मुताबिक काम करने की अपील की थी।

चीन और भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का कहना है कि विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

जबकि विकासशील देशों का कहना है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को साथ आए बगैर ये काम मुश्किल है। जी-20 में दोनों ओर के देश अड़े हुए हैं। इससे संकेत मिल रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर यूएन के वार्षिक सम्मेलन सीओपी 28 में क्या होने वाला है।

तिब्बती प्रदर्शनकारियों ने जी-20 के नेताओं से चीन से बात करने की अपील क्यों की?

तिब्बती आंदोलनकारियों ने भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज में एक विरोध जुलूस निकाल कर चीन पर कथित तौर पर तिब्बती संस्कृति को मिटाने का आरोप लगाया है।

शनिवार, 9 सितम्बर 2023 को एक प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारी जी-20 में आए दुनिया भर के नेताओं से चीन से बात करने की अपील की। उनका कहना था कि चीन तिब्बती संस्कृति को मिटाने की कोशिश कर रहा है।

लिहाजा जी-20 सम्मेलन में भारत आए दुनिया भर के नेता चीन से इसे रोकने की अपील करें। प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने कहा कि चीन की सरकार तिब्बत की शिक्षा व्यवस्था पर लगातार हमले कर रही है। चीन तिब्बत की संस्कृति और पहचान मिटा देना चाहता है।

प्रदर्शनकारियों ने जी-20 सम्मेलन में आए दुनिया के नेताओं से अपील करते हुए कहा कि वो चीन को इस तरह के कदम उठाने से रोके।

स्टुडेंट्स फॉर फ्री तिब्बत (इंडिया) के राष्ट्रीय निदेशक तेनज़िन पसांग ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि चीन तिब्बत में औपनिवेशक ढर्रे के बोर्डिंग स्कूल खोल रहा है।

यहां चार-चार साल के छोटे बच्चों को उनके परिवार से अलग कर रखा जा रहा है। उन्हें जबरदस्ती इन स्कूलों में भेजा जा रहा है। इस तरह परिवार से अलग करके रखे जाने पर उनकी भाषा और संस्कृति खत्म की जा रही है।

डब्ल्यूटीओ में भारत और अमेरिका ने पॉल्ट्री उत्पादों के मुद्दे पर आख़िरी विवाद सुलझाया

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत और अमेरिका ने पॉल्ट्री उत्पादों के मुद्दे पर अपना आख़िरी विवाद सुलझा लिया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, इसके साथ ही दोनों देशों ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन में लंबित सभी सातों व्यापार विवादों को आपसी सहमति से सुलझा लिया है।

दोनों देशों ने एक साझा बयान भी जारी किया है जिसमें कहा गया है, "विश्व व्यापार संगठन में भारत और अमेरिका के बीच लंबित सातवें और आख़िरी विवाद के निपटारे का दोनों देशों ने स्वागत किया है। जून, 2023 में छह द्विपक्षीय व्यापार विवादों के निपटारे के बाद ये हुआ है।''

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों की ओर से ये साझा बयान जारी किया गया है।

राष्ट्रपति जो बाइडन जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दो दिनों के लिए भारत दौरे पर आए हुए हैं।

अफ़्रीकन यूनियन को स्थायी सदस्य के तौर पर जी-20 में शामिल किया गया

भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में अफ़्रीकन यूनियन यानी अफ़्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के तौर पर जी-20 में शामिल कर लिया गया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वागत भाषण में कहा, "आप सबकी सहमति से आगे की कार्यवाही शुरू करने से पहले मैं अफ़्रीकन यूनियन के अध्यक्ष को जी-20 के स्थायी सदस्य के रूप में अपना स्थान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करता हूं।''

जी20 ग्रुप में 19 देश शामिल हैं- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका।

जी20 ग्रुप का 20वां सदस्य यूरोपीय संघ है।

अफ़्रीकी यूनियन के जी20 ग्रुप में स्थायी सदस्य के रूप में शामिल होने के बाद अब 19 देश और दो संघ इसके सदस्य हो गए हैं।

भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य बनाने के लिए अमेरिका ने समर्थन दोहराया

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से उनकी मुलाक़ात बहुत उपयोगी रहीं। भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक और जनता के बीच संबंधों पर बातचीत हुई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती वैश्विक भलाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी रखेगी।

शुक्रवार, 8 सितम्बर, 2023 को राष्ट्रपति बाइडन के दिल्ली पहुंचने के कुछ ही देर बाद दोनों नेताओं में द्विपक्षीय वार्ता हुई।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के मुलाक़ात के बाद अमेरिका की ओर से साझा बयान जारी किया गया है जिसमें निम्न प्रमुख बातें कही गई हैं -

- भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य बनाने के लिए अमेरिका ने समर्थन दोहराया।

- इंडो-पैसेफ़िक क्षेत्र को स्वतंत्र रखने के लिए क्वाड की अहमियत पर भारत और अमेरिका में सहमति।

- जो बाइडन ने चंद्रयान 3 और आदित्य एल 1 मिशन के लिए भारत को बधाई दी। जो बाइडन ने इसरो और नासा में सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया।

- अमेरिका और भारत के बीच सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन पर भी बात हुई। इस क्षेत्र में अमेरिका भारत में कुल 700 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा।

- भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को जारी रखने पर राष्ट्रपति बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी ने सहमति जताई।

भारत की समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अमेरिकी ट्रेज़री सेक्रेटरी जैनेट येलेन, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन भी अमेरिका की ओर से इस मीटिंग में मौजूद थे।

भारत के प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल थे।

जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी अगले दो दिनों में विश्व के शीर्ष नेताओं से 15 द्विपक्षीय वार्ताएं करेंगे।

इसराइल और तुर्की के बीच राजनयिक संबंध पूरी तरह बहाल होते दिख रहे

इसराइल और तुर्की के बीच चल रही तनावपूर्ण स्थिति के बाद अब राजनयिक संबंध पूरी तरह बहाल होते दिख रहे हैं।

मंगलवार, 27 दिसम्बर 2022 को तुर्की में इसराइल की राजदूत आइरिट लिलियन ने तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तय्यप अर्दोआन को अपना विश्वास पत्र सौंपा। कई सालों बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते फिर से शुरू हुए हैं।

आइरिट लिलियन जनवरी 2021 से तुर्की में उपराजूदत के तौर पर नियुक्त थीं, लेकिन अब विश्वास पत्र देने के बाद उन्हें औपचारिक तौर पर इसराइल के राजदूत का दर्जा दे दिया गया है।

आइरिट लिलियन ने कहा, ''इस मौके ने दिल को उम्मीदों से भर दिया है। हम सभी उम्मीद करते हैं कि इसरायल और तुर्की के बीच राजनीतिक मेल-मिलाप की प्रक्रिया तेज़ होगी और कई क्षेत्रों तक इसका विस्तार होगा।''

दिसंबर 2022 में इसराइल में भी तुर्की के नए राजदूत साकिर ओज़कान ने अपना विश्वास पत्र सौंपा था।

इसराइल में प्रधानमंत्री पद के लिए नामित बिन्यामिन नेतन्याहू और अर्दोआन के बीच एक नवंबर 2022 के चुनाव के बाद बात हुई थी।

इसमें दोनों नेताओं ने पारस्परिक हितों का सम्मान करते हुए साथ मिलकर काम करने पर सहमति जताई थी।

कभी क्षेत्रीय सहयोगी रहे इसराइल और तुर्की के बीच लगभग एक दशक से रिश्तों में तनाव चल रहा था।

गज़ा पट्टी में सहायता के लिए जा रहे एक जहाज़ पर छापेमारी के बाद तुर्की ने साल 2010 में इसराइल के राजदूत को बर्ख़ास्त कर दिया था। इस घटना में 10 तुर्की नागरिक मारे गए थे।

फिर साल 2016 में राजनयिक रिश्ते बहाल हुए। लेकिन, दो साल पहले तुर्की ने अपने राजदूत को इसराइल से वापस बुला लिया था।

ये फ़ैसला गज़ा पट्टी पर इसराइल की ओर से फ़लस्तीनियों के विरोध प्रदर्शन पर की गई फ़ायरिंग के कारण लिया गया था। इसके बाद से दोनों देश एक-दूसरे से संबंध सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।

स्टॉलटेनबर्ग ने यूक्रेन में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर रूस को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी

नेटो के महासचिव जेन्स स्टॉलटेनबर्ग ने यूक्रेन में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर रूस को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।

उन्होंने रविवार, 2 अक्टूबर 2022 को कहा, ''परमाणु हथियारों को लेकर हो रही बयानबाजी ख़तरनाक है और यह बड़ी लापरवाही है और किसी भी तरह के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध के तरीक़े को बदल सकता है।''

नेटो महासचिव ने कहा, ''परमाणु युद्ध कभी न तो लड़ा जाना चाहिए और न ही जीता जा सकता है। ये संदेश स्पष्ट रूप से नेटो और उसके सहयोगी रूस को देना चाहते हैं।''

स्टॉलटेनबर्ग का ये बयान ऐसे समय पर आया है, जब यूक्रेन में अपनी सेना पर बढ़ते दबाव और कई इलाकों में हार के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने के संकेत दिए हैं।

रूस के लोग ही कर रहे अपनी सेना की आलोचना

पश्चिमी देशों के नेता और सरकारें यह मानती हैं कि शुक्रवार, 30 सितम्बर 2022 के बाद से यह ख़तरा और बढ़ा है, जब राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र में चार इलाक़ों को आधिकारिक तौर पर रूस का हिस्सा घोषित कर दिया।

वहीं यूक्रेन का दावा है कि उसकी सेनाओं ने पूर्व में दोनेत्स्क प्रांत के लाइमन इलाके पर फिर से कब्जा कर लिया है। लाइमन को रेलवे हब के रूप में जाना जाता है।

लाइमन में रूसी सेना की हार के कारण रूस के सैन्य नेतृत्व की काफ़ी आलोचना हो रही है। इसके बाद पुतिन के कुछ करीबियों ने यूक्रेन पर और मज़बूत हमला करने की मांग शुरू कर दी है। कुछ कट्टर राष्ट्रवादी कम असर वाले परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की वकालत भी कर रहे हैं।

रूस को चेतावनी

रूसी नेता रमज़ान कादिरोव ने शनिवार, 1 अक्टूबर 2022 को कहा कि युद्ध में रूस की रणनीति में बदलाव की जरूरत है। रूस को ''सीमा वाले इलाकों में मार्शल लॉ लागू करने और यूक्रेन पर कम असर वाले परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की जरूरत है।''

टैक्टिकल परमाणु हथियार कम असरदार होते हैं। ये पारंपरिक परमाणु हथियारों के मुकाबले 10 फीसदी ही असर डालते हैं।

स्टॉलटेनबर्ग ने नेटो देशों के इनफ्रास्ट्रक्टर पर हमले को लेकर भी रूस को चेतावनी दी है। उन्होंने संकेत दिए हैं कि नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन लीक भी किसी साजिश के तहत हुआ है।

उन्होंने कहा कि लाइमन में जिस तरह रूस की सेना को पीछे हटना पड़ा वो यूक्रेन के साहस और बहादुरी को दिखाता है। उन्होंने इसके लिए अमेरिका और नेटो के दूसरे देशों की ओर से दिए जा रहे हथियारों को भी वजह माना।

नेटो क्या है?

नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था। इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश थे। इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था। तब दुनिया दो ध्रुवीय थी। एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन।

शुरुआत में नेटो के 12 सदस्य देश थे। नेटो ने बनने के बाद घोषणा की थी कि उत्तरी अमेरिका या यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे। नेटो में शामिल हर देश एक दूसरे की मदद करेगा।

लेकिन दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद कई चीज़ें बदलीं। नेटो जिस मक़सद से बना था, उसकी एक बड़ी वजह सोवियत यूनियन बिखर चुका था। दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी थी। अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बचा था। सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद रूस बना और रूस आर्थिक रूप से टूट चुका था।

यूक्रेन के चार इलाकों के रूस में विलय के ऐलान के बाद अमेरिका ने नए प्रतिबंध लगाए

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन के चार इलाकों के रूस में विलय की घोषणा की कड़ी आलोचना की है। राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, ''यूक्रेन के संप्रभु इलाकों को रूस में मिलाने की धोखे भरी कोशिश की अमेरिका निंदा करता है।

रूस अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन कर रहा है, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को कुचल रहा है और शांतिपूर्ण देशों का अनादर कर रहा है।''

उन्होंने कहा, ''ऐसे कामों की कोई वैधता नहीं है। अमेरिका हमेशा यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का सम्मान करता रहेगा। हम इन इलाकों को वापस हासिल करने की यूक्रेन की कोशिशों को अपना समर्थन देते रहेंगे। इसके लिए कूटनीतिक और सैनिक रूप से हम यूक्रेन के हाथ मजबूत करते रहेंगे।''

राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि अमेरिका ने इस हफ़्ते यूक्रेन को अतिरिक्त सुरक्षा मदद के लिए 1.1 अरब डॉलर की मदद का ऐलान किया है।

रूस पर नए प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, ''यूक्रेन के इलाकों पर कब्ज़े के दावों के जवाब में अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ आज नए प्रतिबंधों की घोषणा करता है। ये प्रतिबंध रूस के अंदर और बाहर यूक्रेन की सीमाओं की स्थिति बदलने की अवैध कोशिशों को राजनीतिक और आर्थिक समर्थन देने वाले व्यक्तियों और संगठनों पर लागू होंगे।''

''हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से रूस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए एकजुट करने की कोशिश करेंगे। मुझे उम्मीद है कि यूक्रेन की मदद के लिए 12 अरब डॉलर अतिरिक्त देने के प्रस्ताव वाले क़ानून को कांग्रेस से मंज़ूरी मिल जाएगी।''