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गोवा में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन जल्द ही टूट जाएगा

शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने सोमवार को कहा कि गोवा में नवनिर्वाचित भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन जल्द ही टूट जाएगा और सरकार गिरेगी।

संजय राउत ने भाजपा के साथ दो क्षेत्रीय दलों और दो निर्दलीय विधायकों के गठबंधन को 'भ्रष्ट गठबंधन' करार दिया। राउत ने पत्रकारों से कहा, ''मनोहर पर्रिकर रक्षा मंत्रालय छोड़कर सरकार बनाने और भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए गोवा आए। जबकि उन्हें पता है कि उनकी सरकार के पांव मजबूती से टिके नहीं हैं और वे जल्द ही लड़खड़ाएंगे। यह भ्रष्टों का गठबंधन है।''

उन्होंने कहा कि जनादेश स्पष्ट रूप से भाजपा के खिलाफ था, लेकिन पर्रिकर ने सरकार चुरा ली और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी व गोवा फॉरवर्ड जैसी स्थानीय पार्टियों ने गोवावासियों के साथ विश्वासघात किया है क्योंकि उन्होंने चुनाव तो भाजपा के खिलाफ मुद्दों पर लड़ा था। लेकिन नतीजे आने के बाद सत्ता के लालच में भाजपा का दामन थाम लिया।

राउत ने कहा, ''इन दोनों स्थानीय दलों ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन मतदान के बाद तुरंत पाला बदलते हुए भाजपा से जुड़ गए। यह गोवावासियों के साथ धोखा है। गोवावासी उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे।''

राउत ने यह भी कहा कि गोवा में शिवसेना को करारी हार मिली, इसके बावजूद वह गोवा में काम करते रहेंगे।

संजय राउत से पहले शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में भी गोवा में भाजपा की सरकार बनने को लेकर कडी आलोचन की गई थी। शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में इसे 'लोकतंत्र की हत्या' बताया था। एक संपादकीय में लिखा गया था कि, ''छोटी पार्टियों ने राज्यपाल को इस शर्त के साथ स्वीकृति के पत्र दिए थे कि अगर मनोहर पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, तभी वे भाजपा को समर्थन देंगे ... हालांकि भाजपा के लिए अपने 13 निर्वाचित विधायकों में से एक को मुख्यमंत्री चुनना आसान नहीं था।''

शिवसेना ने कहा कि गोवा की जनता ने हालांकि कांग्रेस का चयन किया है, लेकिन पार्टी त्वरित कदम नहीं उठा पाई और भाजपा ने तेजी से काम करते हुए संख्या के जोड़-तोड़ का लाभ उठा लिया।

पर्रिकर के बारे में शिवसेना ने कहा कि या तो वह मोदी सरकार के लिए एक दायित्व बन चुके हैं या फिर वह खुद ही राष्ट्रीय राजनीति से परेशान होकर अपने गृह नगर में ही आरामदायक स्थिति में रहना चाहते हैं।

योगी आदित्यनाथ के सीएम बनते ही यूपी को 56 हजार करोड़ रुपए की चपत

यूपी में सरकार बनाने में कामयाब होने के बाद बीजेपी का पूरा जोर जनता से किए गए वादों को निभाने पर होगा। पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा था कि अगर वह सत्ता में आती है तो सभी अवैध बूचड़खानों को बंद किया जाएगा।

हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ओर से कहा गया था कि 12 मार्च से (वोटों की गिनती के अगले दिन) राज्य के सभी बूचड़खाने बंद होंगे। शाह का यह बयान पहले चरण के चुनाव के बाद आया था।

रविवार को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान बीजेपी के मंत्री श्रीकांत शर्मा ने शाह के वादे को याद दिलाया। शर्मा ने योगी आदित्यनाथ की ओर से अपने सभी मंत्रियों को ऐसे बयानों से बचने के लिए कहा है जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हो।

यूपी में स्लाटर हाउस (बूचड़खाने) पर पाबंदी लगाई जाती है तो इसका असर इकोनॉमी और रोजगार दोनों पर पड़ेगा। सरकार के इस फैसले से यूपी को हजारों करोड़ के राजस्व का नुकसान हो सकता है।

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी ने साल 2014-15 में 7,515.14 लाख किलो भैस के मीट, 1171.65 लाख किलो बकरे का मीट, 230.99 लाख किलो भेड़ का मांस और 1410.32 लाख किलो सुअर के मांस का उत्पादन किया था।

वर्तमान में भारत में सरकार द्वारा स्वीकृत 72 बूचड़खाने कम मांस प्रोसेसिंग प्लांट हैं, जिनमें से अकेले 38 उत्तर प्रदेश में हैं। साल 2011 में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा जारी लिस्ट के मुताबिक, देशभर में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त करीब 30 बूचड़खाने थे, जिसमें से आधे यूपी में थे। साल 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 53 हो गई। इसके बाद वाले साल में 11 बूचड़खाने की संख्या और बढ़ गई। इस तरह कुल बूचड़खानों की संख्या 62 हो गई। वर्तमान में यूपी में 38 स्लाटर हाउस है, जिनमें से 7 अलीगढ़ और 5 गाजियाबाद में है।

साल 2016 में भारत ने पूरे विश्व में 13,14,158.05 मीट्रिक टन भैस के मांस का निर्यात किया था, जिसकी कीमत 26,681.56 करोड़ रुपए थी। ज्यादातर निर्यात मुस्लिम देशों जैसे मलेशिया, मिस्त्र, सऊदी अरब और इराक में किया गया। उत्तर प्रदेश में स्लाटर हाउस को 15 साल से बड़े भैसे या बैल या फिर अस्वस्थ्य नस्ल को काटने की इजाजत है।

हालांकि सरकार की ओर से अभी तक यह साफ नहीं किया गया है कि वह भैस के मांस का कारोबार करने वालों को टारगेट करेगी या फिर अन्य मीट के अन्य उत्पादों में कारोबार करने वालों को भी टारगेट करेगी।

APEDA की साल 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी देश में सबसे ज्यादा मीट का उत्पादन करने वाला राज्य (19.1 पर्सेंट) है। इसके बाद आंध्र प्रदेश (15.2 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (10.9 प्रतिशत) का नंबर आता है। साल 2008 से 2013 के दौरान यूपी मीट उत्पादन में सबसे आगे रहा है।

2007 में किए गए 18 वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक यूपी गोजातीय जनसंख्या के मामले में भी सभी राज्यों से आगे है। 2012 में आए 19वें पशुधन जनगणना में भी यह बढ़त बरकरार रही। राज्य में इसकी संख्या 29 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2,38,12,000 से बढ़कर 3,06,25,000 हो गई है। वहीं, आंध्र प्रदेश में 20 प्रतिशत गिरावट के साथ जनसंख्या 1,32,71,000 से घटकर 1,06,22,000 हो गई है।

निर्यात पर प्रतिबंध से राजस्व के मामले में कम से कम 11,350 करोड़ (2015-16) की कमी हो सकती है। बीजेपी की सरकार अगर अपने पूरे कार्यकाल यानी की 5 साल के लिए बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगाती है तो उस हिसाब से 56 हजार करोड़ से ज्यादा (5 साल के लिए लागू रहा बैन तो) का नुकसान होगा। साल 2015-16 में यूपी ने 5,65,958.20 मीट्रिक टन भैस के मीट का निर्यात किया था। संसाधनों या गोजातीय जनसंख्या के साथ देश में कोई अन्य ऐसा राज्य नहीं है, जो यूपी की जगह को भर सके।

योगी आदित्यनाथ बने यूपी के 21वें सीएम, दो डिप्टी सीएम ने ली शपथ

योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के 21वें मुख्यमंत्री के रूप में आज (19 मार्च को) पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। योगी प्रदेश में भाजपा के चौथे सीएम बने हैं।

लखनऊ के कांशीराम स्मृति उपवन में आयोजित समारोह में राज्यपाल राम नाईक ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अलावा केन्द्र सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री भी मौजूद थे। इनके अलावा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, नारायण दत्त तिवारी भी मौजूद थे। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस शपथ ग्रहण समारोह के गवाह बने। राज्यपाल राम नाईक ने केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई।

सूर्य प्रताप शाही, सुरेश खन्ना, सतीश महाना, राजेश अग्रवाल, रीता बहुगुणा जोशी, दारा सिंह चौहान, धर्मपाल सिंह, रमापति शास्त्री, जयप्रताप सिंह, ओमप्रकाश राजभर, चेतन शर्मा, सिद्धार्थ सिंह को मंत्री बनाया गया है।

इनके अलावा अनुपमा जायसवाल, सुरेश राणा, उपेंद्र तिवारी, डॉ. महेंद्र सिंह, धर्म सिंह सैनी, स्वतंत्र देव सिंह, उपेंद्र सिंह चौधरी, अनिल राजभर और स्वाति सिंह को राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है।

योगी आदित्यनाथ को मर्डर के आरोप में दोषी साबित होने पर सजा-ए-मौत भी संभव

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर आज शपथ लेने जा रहे योगी आदित्यनाथ का विवादों से पुराना नाता रहा है। अपनी फायरब्रांड इमेज के लिए मशहूर इस बीजेपी सांसद ने कई एेसे विवादित बयान दिए हैं जिससे लोगों में उनकी इमेज एक कट्टर हिंदूवादी नेता की बन गई है, लेकिन इन सबसे अलग उनके ऊपर कई आपराधिक धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं।

अगर बात उनके 2014 लोकसभा चुनावों में दाखिल हलफनामे की करें तो इसमें योगी ने अपने ऊपर लगे सभी मामलों के बारे में जानकारी दी है। आइए आपको बताते हैं इन मामलों और उनमें होने वाली सजा के बारे में:

1999 में उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री पर महाराजगंज जिले में आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 295 (किसी समुदाय के पूजा स्थल का अपमान करना), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण), 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के मामले दर्ज हुए थे। पुलिस ने इन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट तो साल 2000 में ही दाखिल कर दी थी, लेकिन स्थानीय अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

1999 में ही मामला महाराजगंज का ही है, जहां उन पर धारा 302 (मौत की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा 307 (हत्या का प्रयास) 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत भी उन पर मामला दर्ज हुआ था। पुलिस ने 2000 में ही क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।

1999 में ही महाराजगंज में उन पर आईपीसी की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 149, 307, 336 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत मामले दर्ज किए गए। एफिडेविट के मुताबिक पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला आना बाकी है।

2006 में गोरखपुर में उन पर आईपीसी की धारा 147, 148, 133A (उपद्रव को हटाने के लिए सशर्त आदेश), 285 (आग या दहनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण) के तहत मामला दर्ज किया गया था। यहां भी पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी, लेकिन फैसला अभी नहीं आया।

योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री; केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा डिप्टी सीएम

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ सूबे के अगले मुख्यमंत्री होंगे। शनिवार को लखनऊ में भाजपा विधायकों की हुई बैठक में उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया है।

इसके साथ ही यूपी भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम उम्मीदवार चुना गया है।

भाजपा ने नतीजे आने के 7 दिनों बाद यह फैसला किया है।

योगी आदित्यनाथ रविवार को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए वैंकेया नायडू ने कहा कि विधायक दल की बैठक में सुरेश खन्ना ने योगी आदित्यनाथ के नाम का प्रस्ताव रखा। 11 विधायकों ने उनके नाम के अनुमोदन किया। इसके बाद सबने एक साथ खड़े होकर कहा कि हम इसका समर्थन करते हैं। इसके बाद योगी आदित्यनाथ को भाजपा विधायक दल का नेता चुन लिया गया।

योगी आदित्यनाथ ने विधायकों को भाषण देते हुए कहा कि यूपी बहुत बड़ा प्रदेश है। इसे अच्छे से संभालना है तो मुझे दो साथी दें, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व हमें इसकी मंजूरी दे। इसके बाद चर्चा की गई। बाद में तय किया गया कि यूपी भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया।

साथ ही, योगी आदित्यनाथ ने बताया, रविवार को शपथ समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य मौजूद होंगे। साथ ही कुछ वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री होंगे। पूरे देश में हमारे सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री और हमारी पार्टी के मुख्यमंत्रियों को शपथ समारोह में बुलाया जाएगा। अब हम लोग राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे।

लखनऊ में भारतीय जनता के नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक लखनऊ के लोकभवन में हुई। इस बैठक में भाजपा के सभी नए विधायकों के अलावा केन्द्रीय पर्यवेक्षक के रुप में वेंकैया नायडु और भूपेन्द्र यादव और अन्य वरिष्ठ भाजपा नेता भी मौजूद थे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की रेस में केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा, यूपी भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा भी शामिल थे। पहले मनोज सिन्हा इस रेस में सबसे आगे थे, लेकिन बाद में आदित्यनाथ का नाम इस रेस में आगे आ गया।

एन बीरेन सिंह मणिपुर के सीेएम बने

एन बीरेन सिंह ने 15 मार्च को मणिपुर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनका यह शपथ कार्यक्रम इंफाल के राज भवन में हुआ। इससे पहले मंगलवार को मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्लाह ने बीजेपी और उनकी साथी पार्टियों को सरकार बनाने का न्योता दिया था। 11 मार्च को आए चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों द्वारा सरकार बनाने का दावा किया जा रहा था।

मणिपुर में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस के 28 उम्मीदवार जीते थे, वहीं बीजेपी के 21 उम्मीदवार जीते थे। बीजेपी ने दावा किया था कि उसके पास NPP(4), NPF (4) और LJP(1) के साथ-साथ तीन और विधायकों का भी समर्थन है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीरेन सिंह को बधाई दी। मोदी ने कहा, ''बीरेन सिंह और उनकी पूरी टीम को शपथ ग्रहण की बधाई। मुझे भरोसा है कि उनकी टीम और वह मणिपुर के विकास के  लिए दिन-रात मेहनत करेंगे।''

बाकी जिन मंत्रियों ने शपथ ली उसमें बीजेपी के विश्वजीत, NPP के एल जयंतकुमार, LJP के करण श्याम, NPP के एल होकिप, NPP के एन कोयिसी, NPF के लूसी दिखो, कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले श्यामकुमार का नाम शामिल है।

NPP के वाई जॉयकुमार ने डिप्टी सीएम की शपथ ली।

आखिरकार इबोबी सिंह कार्यक्रम के लिए पहुंच गए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष टीएन हाओकिप भी वहां होंगे।

गोवा में मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में भाजपा सरकार ‘अनैतिक’

मंगलवार (14 मार्च) को भारतीय जनता पार्टी विधायक दल के नेता के तौर पर मनोहर पर्रिकर ने गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली। उन्हें गुरुवार (16 मार्च) को सदन में अपना बहुमत साबित करना है।

मंगलवार को जिन आठ मंत्रियों ने पर्रिकर के साथ शपथ ली उनमें से सात भाजपा के नहीं हैं। यानी मनोहर पर्रिकर अगर बहुमत साबित कर भी देते हैं तो उनके पहले मंत्रिमंडल में करीब 70 प्रतिशत विधायक ऐसे होंगे जो या तो भाजपा को हराकर आए हैं या फिर भाजपा उनकी प्रतिद्वंद्वी भी नहीं थी।

जाहिर है कि सत्ताधारी भाजपा को अन्य दलों और निर्दलीयों के मिले समर्थन का असली समीकरण सामने आ गया है। जमीनी आंकड़ों को देखें तो भले ही गोवा में भाजपा सरकार अंवैधानिक न हो, ''अनैतिक'' जरूर है।

गोवा विधान सभा की कुल 40 सीटों में से सत्ताधारी भाजपा को महज 13 पर जीत मिली है।

भाजपा के हारने वाले उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पार्सेकर भी शामिल हैं।

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को इस चुनाव में 17 सीटों पर जीत मिली, लेकिन भाजपा ने अन्य छोटे दलों और निर्दलीयों की सहायता से राज्य में सरकार बनाने का दावा कांग्रेस से पहले पेश कर दिया। राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने पर्रिकर को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। पर्रिकर ने रक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देकर राज्य के मुख्यमंत्री पद के रूप में शपथ भी ले ली।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कहा कि पर्रिकर यथाशीघ्र (16 मार्च) को सदन में अपना बहुमत साबित करें।

गोवा में 27 सीटों पर गैर-भाजपा उम्मीदवरों की जीत से इतना तो साफ है कि जनता ने सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ वोट दिया है।

नतीजे आने के बाद भाजपा को समर्थन देने वाले महाराष्ट्रवादी गोमांतक और गोवा फॉरवर्ड पार्टी दोनों ने ही चुनाव प्रचार के दौरान सत्ताधारी दल भाजपा के खिलाफ वोट मांगा था और दोनों को ही तीन-तीन सीटों पर जीत मिली।

महाराष्ट्रवादी गोमांतक को जिन तीन सीटों पर जीत मिली है तीनों पर ही उसने भाजपा उम्मीदवार को हराया है।

गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी तीनों सीटों पर भाजपा को हराकर ही जीत हासिल की है।

तीन में से दो निर्दलीयों ने भाजपा को हराकर विजय हासिल की है और तीसरे ने जहां से जीत हासिल की है वहां भाजपा मुकाबले में ही नहीं थी।

एक सीट नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को मिली है जहां भाजपा मुकाबले में ही नहीं थी।

कांग्रेस ने भी जिन 17 सीटों पर जीत हासिल की है उनमें से 13 सीटों पर उसने भाजपा को सीधे तौर पर हराया है। कुंकली सीट पर कांग्रेस विजयी रही और भाजपा तीसरे स्थान पर रही।

इन आंकड़ों से साफ है कि करीब दो तिहाई सीटों पर जनता ने भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए वोट दिया, लेकिन हुआ क्या?

गोवा में भाजपा की पांच साल सरकार रही। मनोहर पर्रिकर नवंबर 2014 तक गोवा के मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद लक्ष्मीकांत पार्सेकर मुख्यमंत्री बने। चुनाव में भाजपा ने अपना सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया।

अरुण जेटली समेत कई भाजपा नेताओं ने खुले आम कहा कि गोवा की जनता चाहेगी तो मनोहर पर्रिकर फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन जनता ने इसके बावजूद भाजपा को बहुमत नहीं दिया।

फिर भी भाजपा सरकार भी बन गयी और पर्रिकर मुख्यमंत्री भी बन गए। और जनता, देखती रह गयी।

भारत में ईवीएम से हो सकती है वोटों की हेराफेरी

उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड के विधान सभा चुनावों के नतीजे आने के बाद मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल पर बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सवाल उठाने लगे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो अप्रैल में होने वाले दिल्ली महानगरपालिका के चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग कर दी है।

ऐसा नहीं है कि ईवीएम पर पहली बार सवाल खड़े हुए हैं। जब 2009 के लोक सभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को कांग्रेस गठबंधन से हार मिली थी तब पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। भाजपा नेता और सैफोलॉजिस्ट जीवीएल नरसिम्हा ने तो ईवीएम के त्रुटियों पर पूरी किताब ही लिख दी जिसकी भूमिका खुद आडवाणी ने लिखी थी।

ईवीएम मशीन कैसे काम करती है? मतदान के लिए प्रयोग की जाने वाली ईवीएम मशीन में दो इकाइयां होती हैं- कंट्रोल यूनिट और बैलटिंग यूनिट। ये दोनों इकाइयां आपस में पांच मीटर के तार से जुड़ी होती हैं। कंट्रोल यूनिट चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त पोलिंग अफसर के पास होती है। बैलटिंग यूनिट मतदान कक्ष में होती है जिसमें मतदाता अपने वोट देते हैं।  मतदाता पूरी गोपनीयता के साथ अपने पसंदीदा उम्मीदवार और उसके चुनाव चिह्न को वोट देते हैं।

कंट्रोल यूनिट ईवीएम का दिमाग होती है। बैलटिंग यूनिट तभी चालू होती है जब पोलिंग अफसर उसमें लगा बैलट बटन दबाता है। ईवीएम छह वोल्ट के सिंगल अल्काइन बैटरी से चलती है जो कंट्रोल यूनिट में लगी होती है। जिन इलाकों में बिजली न हो वहाँ भी इसका सुविधापूर्वक इस्तेमाल हो सकता है।

चुनाव आयोग ने पहली बार 1977 में इलेक्ट्रानिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईएल) से ईवीएम का प्रोटोटाइप (नमूना) बनाने के लिए संपर्क किया। छह अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को ईवीएम का प्रोटोटाइप दिखाया। उस समय ज्यादातर पार्टियों का रुख इसे लेकर सकारात्मक था। उसके बाद चुनाव आयोग ने भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) को ईवीएम बनाने का जिम्मा दिया।

चुनाव आयोग ने 1982 में केरल विधान सभा चुनाव के दौरान पहली बार ईवीएम का व्यावहारिक परीक्षण किया। जनप्रतिनिधत्व  कानून (आरपी एक्ट) 1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर और बैलट बॉक्स का इस्तेमाल हो सकता था इसलिए आयोग ने सरकार से इस कानून में संशोधन करने की मांग की।

हालांकि आयोग ने संविधान संशोधन का इंतजार किए बगैर आर्टिकल 324 के तहत मिली आपातकालीन अधिकार का इस्तेमाल करके केरल की पारावुर विधान सभा के कुल 84 पोलिंग स्टेशन में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल किया। इस सीट से कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवान पिल्लई के बीच मुकाबला था।

सीपीआई उम्मीदवार सिवान पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन दायर करके ईवीएम के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किए। जब चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट को मशीन दिखायी तो अदालत ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया। लेकिन जब पिल्लई 123 वोटों से चुनाव जीत गए तो कांग्रेसी एसी जोस हाई कोर्ट पहुंच गए। जोस का कहना था कि ईवीएम का इस्तेमाल करके आरपी एक्ट 1951 और चुनाव प्रक्रिया एक्ट 1961 का उल्लंघन हुआ है। हाई कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया।

एसी जोस ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। दोबार चुनाव हुए तो एसी जोस जीत गए।

सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। 1988 में आरपी एक्ट में संशोधन करके ईवीएम के इस्तेमाल को कानूनी बनाया गया। नवंबर 1998 में मध्य प्रदेश और राजस्थान की 16 विधान सभा सीटों (हरेक में पांच पोलिंग स्टेशन) पर प्रयोग के तौर पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। वहीं दिल्ली की छह विधान सभा सीटों पर इनका प्रयोगात्मक इस्तेमाल किया गया। साल 2004 के लोक सभा चुनाव में पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ।

ईवीएम के इस्तेमाल पर उठने वाले सवालों के जवाब में चुनाव आयोग का कहना है कि जिन देशों में ईवीएम विफल साबित हुए हैं उनसे भारतीय ईवीएम की तुलना 'गलत और भ्रामक' है। आयोग ने कहा, ''दूसरे देशों में पर्सनल कम्प्यूटर वाले ईवीएम का इस्तेमाल होता है जो ऑपरेटिंग सिस्टम से चलती हैं इसलिए उन्हें हैक किया जा सकता है। जबकि भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले ईवीएम एक पूरी तरह स्वतंत्र मशीन होते हैं और वो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़े होते और न ही उसमें अलग से कोई इनपुट डाला जा सकता है।''

आयोग ने कहा, ''भारतीय ईवीएम मशीन के सॉफ्टवेयर चिप को केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है और इसे इस तरह बनाया जाता है कि मैनुफैक्चरर द्वारा बर्नट इन किए जाने के बाद इन पर कुछ भी राइट करना संभव नहीं।''

जर्मनी और नीदरलैंड ने पारदर्शिता के अभाव में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इटली को भी लगता है कि ईवीएम से नतीजे प्रभावित किए जा सकते हैं। आयरलैंड ने तीन सालों तक ईवीएम पर शोध में पांच करोड़ 10 लाख पाउंड खर्च करने के बाद इनके इस्तेमाल का ख्याल छोड़ दिया। अमेरिका समेत कई देशों में बिना पेपर ट्रेल वाले ईवीएम पर रोक है। हालांकि इन सभी देशों में मतदाताओं की संख्या भारत की तुलना में बहुत कम है। चुनाव में खर्च होने वाले धन, समय और ऊर्जा के मामले में भी यही हाल है।

ईवीएम से जुड़ा सबसे बड़ा विवाद साल 2010 में हुआ। तीन वैज्ञानिकों ने दावा किया है उन्होंने ईवीएम को हैक करने का तरीका पता कर लिया है। इन शोधकर्ताओं ने इंटरनेट पर एक वीडियो डाला जिसमें ईवीएम को हैक करते हुए दिखाए जाने का दावा किया गया। इस वीडियो में भारतीय चुनाव आयोग की वास्तविक ईवीएम मशीन में एक देसी उपकरण जोड़कर इसे हैक करने का दावा किया गया। इस रिसर्च टीम का नेतृत्व मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे एलेक्स हाल्डरमैन ने किया था। प्रोफेसर एलेक्स ने दावा किया कि वो एक मोबाइल फोन से मैसेज भेजकर ईवीएम को हैक कर सकते हैं।

इस वीडियो के सामने आने के बाद भारतीय चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को खारिज किया। बाद में इस रिसर्च टीम में शामिल भारतीय वैज्ञानिक हरि प्रसाद को मुंबई के कलेक्टर कार्यालय से ईवीएम मशीन चुराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

'मणिपुर विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने पैसे और बाहुबल का दम दिखाया'

अपनी नई पार्टी पीआईजेए बनाकर चुनावी मैदान में उतरी इरोम शर्मिला का कहना है कि बीजेपी ने पैसे और अपने बाहुबल का दम दिखाकर विधानसभा चुनाव जीता है। बीजेपी पर आरोप लगाते हुए मंगलवार को इरोम नें कहा कि मणिपुर के लोगों को ये एहसास होना चाहिए कि राज्य में सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने इन चीजों का इस्तेमाल किया है।

इरोम शर्मिला ने इन चुनावों में केवल 90 वोट ही प्राप्त किए थे। शर्मिला ने कहा कि वह अपने गढ़ राज्य से कुछ समय के लिए दूर रहना चाहती है क्योंकि वह विधानसभा चुनावों के नतीजों से काफी खफा हैं।

शर्मिला ने कहा कि वह एक महीने के लिए केरल के पालक्कड़ जिले स्थित अट्टापड़ी के एक मेडिटेशन सेंटर में रहकर शांति प्राप्त करने के लिए जा रही हैं।

थाउबल सीट पर मुख्यमंत्री इबोबी सिंह 15 हजार से ज्यादा वोटों से लगातार चौथी बार जीत गए वहां मैदान में उतरी इरोम शर्मिला तीन अंकों का आंकड़ा तक नहीं छू सकी और चौथे नंबर पर रहीं। हताश इरोम ने अब राजनीति से तौबा करते हुए भविष्य में कभी चुनाव नहीं लड़ने की कसम खा ली।

वैसे इरोम इसके बावजूद बावजूद हार मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने माना कि नतीजों से वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। इसके साथ ही वह कहती हैं कि लोगों का कोई दोष नहीं है क्योंकि वोट के अधिकार पर पैसों की ताकत भारी पड़ गई है।

वहीं इरोम शर्मिला की हार पर राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना था कि उनकी इस हार का मतलब यह नहीं है कि आम लोगों में उनकी लोकप्रियता खत्म हो गई है। इसकी वजह एक राजनेता के तौर पर उनकी खामियां हैं। उन्होंने बिना सोचे-समझे राजनीति में उतरने का फैसला किया था जिसके कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

मनोहर पर्रिकर ने गोवा के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली

मनोहर पर्रिकर ने गोवा के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। विधानसभा चुनावों में 40 में से 13 सीटें जीतने के बावजूद छोटी पार्टियों के समर्थन से भाजपा गोवा में सरकार बना रही है। उसे महाराष्‍ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के साथ ही निर्दलीयों का भी समर्थन मिला है।

हालांकि कांग्रेस को 17 सीटें मिली थी, लेकिन सरकार बनाने के लिए राज्‍यपाल के बुलावे के इंतजार करना उसे भारी पड़ गया।

सीएम पद की शपथ लेने के बाद मनोहर पर्रिकर ने कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस के बाद समर्थन था तो वे लोग गवर्नर के पास क्यों नहीं गए थे।

बीजेपी को समर्थन देने वाले आठ विधायकों में से सात को मंत्रीपद दिया गया है।

फिर पांडुरंग मडकैकर ने शपथ ली। वह परिवहन मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने इसी साल जनवरी में कांग्रेस छोड़ी थी।

उनके बाद रोहन खाउंते ने शपथ ली। वह निर्दलीय विधायक हैं। वह गोवा के लिए क्रिकेट और फुटबॉल भी खेल चुके हैं।

अगला नंबर मनोहर अजगांवकर का था। मनोहर MGP से हैं। वह पहले कांग्रेस और बीजेपी में भी रह चुके हैं।

उनके बाद विजय सरदेसाई ने शपथ ली। उनका जन्म अर्जंटीना में हुआ है।

मनोहर के बाद सबसे पहले सुदिन धवलीकर ने शपथ ली। वह 2016 में ही बीजेपी छोड़कर MGP में शामिल हुए थे।

मनोहर पर्रिकर को दो बार शपथ लेनी पड़ी। दरअसल, पर्रिकर ने पहले मंत्री बोल दिया था जिसके बाद नितिन गड़की ने उनको रोका, फिर पर्रिकर फिर से शपथ लेने के लिए गए। पहले उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली, फिर सीएम पद की।