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एमानुएल मैक्रोन फ्रांस के नए राष्ट्रपति होंगे

मध्यमार्गी एमानुएल मैक्रोन फ्रांस के नए राष्ट्रपति होंगे। रविवार (सात मई) को फ्रांस में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मैक्रोन ने धुर दक्षिणपंथी मरीन ली पेन को हराया।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति 39 वर्षीय पूर्व इन्वेस्टमेंट बैंकर मैक्रोन आज तक कभी किसी निर्वाचित पद पर नहीं रहे हैं। इस चुनाव को जीतकर फ्रांस के इतिहास में सबसे कम उम्र में चुनाव जीतने वाले राष्ट्रपति बन गये हैं।

राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद मैक्रोन ने कहा कि वो 'देश के अंदरूनी विभाजन' के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।

मैक्रोन ने कहा, ''मैंने आप लोगों के क्रोध, तनाव और संदेहों को सुना है।''

पेरिस स्थित अपने पार्टी के मुख्यालय से मैक्रोन ने कहा, वो 'यूरोप और इसके नागरिकों के साथ लिंक को दोबारा जोड़ेंगे।'

मैक्रोन ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में फ्रांस अगली कतार में रहेगा।

चुनाव जीतने के बाद एक अन्य रैली में मैक्रोन ने कहा कि वो अगले पांच साल में वो सब करेंगे जिससे जनता को अतिवादियों को वोट न देना पड़े।

मैक्रोन ने जून में फ्रांस के निचले सदन के लिए होने वाले चुनाव में बहुमत प्राप्त करने की कोशिशें शुरू कर देने का भी संकेत किया।

फ्रांस के चुनाव में सबसे ज्यादा दिलचस्प बात ये रही कि देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों के राष्ट्रपति उम्मीदवार पहले ही दौड़ से बाहर हो गये थे। मरीन ली पेन की लोकप्रियता पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी थी जिससे इस बात की आशंका बढ़ गयी थी कि कई अन्य देशों की तरह फ्रांस में भी धुर दक्षिणपंथी पार्टी सत्ता में आ सकती है।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 65. 30 प्रतिशत मतदान हुआ है जो 2012 के राष्ट्रपति चुनाव से 6. 6 फीसदी कम है और 23 अप्रैल को हुए प्रथम चरण के चुनाव से चार फीसदी कम है। इस चुनाव में यूरोप समर्थक एवं कारोबार समर्थक मैक्रोन तथा आव्रजन विरोधी एवं यूरोपीय संघ विरोधी मरीन ली पेन के बीच मुकाबला था।

दोनों ही बिल्कुल अलग नजरिए वाले हैं और पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के बीच के विभाजन को रेखांकित करते हैं।  मैक्रोन 23 अप्रैल के प्रथम दौर के चुनाव में शीर्ष पर रहे थे। मरीन ली पेन ने इस चुनाव को मुक्त व्यापार, आव्रजन अ‍ैर साझा संप्रभुता के पक्षधर 'भूमंडलीकरण समर्थकों' और मजबूत सीमाओं और राष्ट्रीय पहचान की वकालत करने वाले राष्ट्रवादियों के बीच का मुकाबला बताया था।

दोनों उम्मीदवार नतीजे देखने के लिए पेरिस पहुंच हुए थे।  मतदान की प्रक्रिया 66,546 मतदान केंद्रों पर भारतीय समयानुसार सुबह साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुई । इनमें से अधिकतर मतदान केंद्र रात साढ़े दस बजे बंद कर दिए गए, जबकि बड़े शहरों के केंद्र एक घंटा अधिक समय तक खुले हुए थे।

गौरतलब है कि 23 अप्रैल को हुए पहले दौर के चुनाव में मैक्रोन को 24.01 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि मरीन ली पेन को 21. 30 प्रतिशत मत मिले थे।

भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के समझौते का अनुमोदन नहीं किया

संयुक्त राष्ट्र की 30 वर्ष पुरानी यातना रोधी संधि के अनुमोदन में भारत अब भी पाकिस्तान समेत 161 देशों से पीछे खड़ा है। संधि के तहत वर्ष 1997 में हस्ताक्षर करने के बावजूद भारत अब तक इस संदर्भ में कानून नहीं बना पाया है।

भारत दुनिया के उन चुनिंदा नौ देशों में शामिल है जिसने अब तक इस अहम संधि का अनुमोदन नहीं किया है जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधि के अनुमोदन के मकसद से हस्ताक्षरकर्ता देश के लिये आवश्यक है।

उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार से पूछा कि आखिर सरकार ने मामले में कानून बनाने की मंशा से अब तक कम से कम नेक इरादे से अपनी प्रतिबद्धता ही क्यों नहीं दर्शायी।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ''हम समझते हैं कि कानूनी प्रक्रिया में समय लग सकता है, लेकिन आप (केंद्र) हमें बताइये कि आखिर कानून बनाने को लेकर आपने अब तक हमारे समक्ष नेक इरादे वाली अपनी प्रतिबद्धता ही क्यों नहीं जाहिर की।''

खेहर की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने कहा, ''इसमें कोई विवाद नहीं है कि राष्ट्रीय हित और इससे परे यह मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है।''

पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा नौ देशों में शामिल है जिन्होंने संधि पर हस्ताक्षर करने के बावजूद अब तक इसका अनुमोदन नहीं किया है।

संयुक्त राष्ट्र यातना रोधी संधि के नाम से विख्यात 'यातना एवं अन्य क्रूरता, अमानवीय या अपमानजनक बर्ताव अथवा सजा रोधी संधि' एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधि है जिसका लक्ष्य दुनियाभर में यातना एवं अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक बर्ताव को रोकना है।

केंद्र की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल रणजीत कुमार ने मामले में इस आधार पर अदालत से कुछ समय की मोहलत मांगी कि कानून बनाने के संदर्भ में नयी मुहिम शुरू किये जाने से पहले कुछ राज्यों से परामर्श किया जाना बाकी है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ''यह कहना अच्छा है कि हमलोग संधि को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन इस संदर्भ में कानून तो होना ही चाहिए।''

बहरहाल, सॉलिसिटर जनरल ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि वर्ष 2010 में पूर्ववर्ती संप्रग-2 सरकार ने लोकसभा में यातना पर विधेयक पेश किया था। पूर्व कानून मंत्री एवं वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार इस प्रक्रिया का हिस्सा थे, लेकिन कानून नहीं बन पाया।

इस पर पीठ ने कहा था, ''यह पक्षपात रहित होना चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।''

नवाज़ शरीफ पर लगा सेना विरोधी बात करते का आरोप, रिपोर्ट दर्ज

पाकिस्तानी पुलिस ने कथित तौर पर सेना के खिलाफ लोगों को उकसाने और नफरत फैलाने के मामले में पाकितान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। नवाज शरीफ के खिलाफ बुधवार को इश्तियाक अहमद मिर्जा नाम के एडवोकेट ने रावलपिंडी के सिविल लाइंस पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया। मिर्जा खुद के 'आई एम पाकिस्तान पार्टी' का प्रमुख होने का दावा करते हैं।

'द डान' अखबार के मुताबिक, पुलिस द्वारा दर्ज की गई यह रिपोर्ट एफआईआर नहीं है और स्थानीय भाषा में इसे 'रोजनामचा' के तौर पर जाना जाता है। मिर्जा ने दावा किया कि उन्हें अपने वाट्सएप पर एक वीडिया क्लिप मिली थी जिसमें एक शख्स भाषण देता दिख रहा था।

उन्होंने कहा कि भाषण देने वाला शख्स खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे जो कथित तौर पर लोगों को उकसा रहे थे और सशस्त्र बलों के खिलाफ नफरत फैला रहे थे। शिकायतकर्ता ने  नवाज़ शरीफ के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की जो पीएमएलएन पार्टी के प्रमुख भी हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, इश्तियाक अहमद मिर्जा ने दावा किया कि उनका 'आईएम पाकिस्तान' राजनीतिक दल पाकिस्तानी निर्वाचन आयोग में पंजीकृत है।

दूसरी ओर खबर ये भी है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जून महीने में कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में होने जा रही शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर बैठक से इतर मुलाकात कर सकते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट में यह कहा गया है।

पाकिस्तानी समाचार पत्र 'एक्सप्रेस ट्रिब्यून' ने राजनयिक सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि एससीओ के प्रभावशाली देश पाकिस्तान और भारत के बातचीत की प्रक्रिया में फिर साथ आने पर जोर दे रहे हैं ताकि अगली शिखर बैठक अनुकूल माहौल में हो सके।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों को एससीओ में इस शर्त पर शामिल किया गया है कि वे द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के साथ संगठन के हित को बढ़ावा देने के लिए काम करेंगे। यही एक मुख्य वजह थी कि 2015 के एससीओ शिखर बैठक से इतर मोदी और शरीफ रूस के उफा शहर में मिले थे।

महिलाओं, दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले रोके भारत

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था की जेनेवा में हो रही एक बैठक में कई देशों ने भारत को दलितों, महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ हिंसा रोकने की सलाह दी है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2008 से यूनिवर्सल पिरियोडिक रिव्यू नाम की परंपरा शुरू की थी जिसके तहत हर चार वर्ष में सदस्य देश मानवाधिकार मामलों पर एक-दूसरे से जवाब मांगते हैं।

भारत की तरफ़ से एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कई देशों के सवालों का जवाब दिया।

उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी भारत के लोकतंत्र के मूल में है।

भारत ने इस बैठक में कहा कि भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है। इसके अलावा भारत ने मानवाधिकार के लिए प्रतिबद्धता जताई।

कई देशों ने इस बैठक में अपनी-अपनी राय रखी है जिसमें मुख्य रूप से भारत में महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव और हिंसा के मुद्दे कई देशों ने उठाए हैं।

कई देशों ने धार्मिक हिंसा, फांसी की सज़ा ख़त्म करने और तस्करी पर लगाम कसने की अपील की है।

नरेंद्र मोदी सरकार के लिए ये पहला और भारत के लिए ये तीसरा मौका है जब सरकार मानवाधिकार मामलों पर अपने ट्रैक रिकॉर्ड पर जवाब दे रही है।

मेक्सिको ने भारत को दलितों और लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को ख़त्म करने और यौन शोषण पीड़ितों के साथ काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को सही ट्रेनिंग देने की अपील की।

लेबनान ने भारत को धार्मिक आज़ादी की रक्षा करने की गारंटी देने को कहा, इसके अलावा लेबनान ने तस्करी पर लगाम कसने को भी कहा है।

लिथुआनिया ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रक्षा करने, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं पर हमलों की जांच की अपील की है।

लातविया ने महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा ख़त्म करने की अपील की, वहीं कीनिया ने अल्पसंख्यकों और महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और भेदभाव के खिलाफ़ कदम उठाने की अपील की है।

भारत ने कहा है कि दलितों के खिलाफ़ भेदभाव रोकने के लिए कानून हैं।

इटली ने फांसी की सज़ा ख़त्म करने के अलावा धार्मिक हमलों के पीड़ितों को न्याय दिलाने की अपील की।

इराक ने भारत से मानवाधिकार को बढ़ावा देने के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में बजट बढ़ाने की अपील की है।

स्पेन ने शादी में बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने, महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और ऑनर किलिंग यानी सम्मान के लिए हत्या को ख़त्म करने के अलावा बाल मज़दूरी को भी ख़त्म करने की अपील की।

आईसलैंड ने कहा है कि कानूनों के बावजूद महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ़ हिंसा में कोई कमी नहीं हुई हैं। आईसलैंड ने धारा 377 को भी वापस लेने की अपील की है, धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।

भारत ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करेगा। वहीं फांसी की सज़ा पर भारत का कहना है कि सिर्फ़ रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में ही फांसी की सज़ा दी जाती है।

स्विट्ज़रलैंड ने सिविल सोसायटी पर पाबंदियों, अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर चिंता ज़ाहिर की। इसके अलावा एफ्सपा की समीक्षा की अपील की।

पाकिस्तान ने भारत के कश्मीर में पेलेट गन का इस्तेमाल बंद करने की अपील की।

अमरीका ने भारत सरकार की लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए तारीफ़ की।

नेपाल और बांग्लादेश ने भी मानवाधिकार में भारत की नीतियों की तारीफ़ की।

अमरीका ने सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फ़ैसले की तारीफ़ की जिसमें अदालत ने कहा था कि सेना को विशेषाधिकार देने वाले आर्म्ड फ़ोर्सेज़ स्पेशल पावर्स एक्ट के तहत सैनिक सज़ा से न बच पाएं।

अमरीका ने कहा कि भारत में अभी भी दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भेदभाव बरकरार है।

ऑस्ट्रिया ने भारत में ग़ैर सरकारी संस्थाओं को एफ़सीआरए के तहत विदेशों से मिलने वाले फंड पर कार्रवाई को लेकर चिंता जताई और कहा कि इससे एनजीओ की गतिविधियों पर असर पड़ेगा।

इस बैठक में कई देशों ने भारत से संयुक्त राष्ट्र के कनवेशन अगेनस्ट टॉर्चर को प्रमाणित करने की अपील की।

अफ़्रीकियों पर हमलों पर भारत ने माना कि ये दुखी करने वाली घटना है, लेकिन ये हमले नस्लवाद से प्रेरित नहीं थे। 

भारत और पाकिस्तान में प्रेस की आज़ादी गंभीर ख़तरे के दौर से गुजर रही है

भारत और पाकिस्तानी मीडिया में कई लोग, भारत के मुक़ाबले पाकिस्तानी मीडिया के ताक़तवर होने के सबूत के तौर पर देखते हैं।

ठीक इसी दौरान, भारत के उदारवादी माने जाने वाले चैनलों में से एक एनडीटीवी ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए भारत के पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम का इंटरव्यू ड्रॉप कर दिया।

एनडीटीवी की सह-संस्थापक और चेयरमैन राधिका रॉय ने ऑनलाइन प्रकाशन 'द वायर' को दिए एक स्टेटमेंट में कहा, ''सर्जिकल स्ट्राइक के मसले पर राजनीतिक छींटाकशी, जो बिना सबूत के की जा रही थी, उससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान हो रहा था।''

पाकिस्तानी पत्रकारों को भी लगता है कि वो ज़्यादा साहसी हैं और वो सरकार का समर्थन करने वाले भारतीय पत्रकारों की तुलना में अपनी सरकार के पक्ष से अलग पक्ष रख सकते हैं।

हालांकि इस बहस का कोई नतीजा नहीं निकल सकता है। इतना ज़रूर साबित होता है कि दोनों देशों में प्रेस की आज़ादी की स्थिति बहुत ख़राब है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बावजूद इसके 'रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स' संस्था की ओर से 2017 में प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक, प्रेस की स्वतंत्रता के पैमाने पर भारत निचले पायदानों पर है।

2017 में प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक, 180 देशों की सूची में भारत का 136 वां स्थान दर्शाता है कि भारत में प्रेस की आज़ादी की स्थिति लगातार बिगड़ रही है।

भारत ज़िम्बॉब्वे और म्यांमार जैसे देशों से भी पीछे है।

निर्भीक पत्रकारिता करने के मामले में नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड अव्वल हैं।

इस मामले में चीन 176वें और पाकिस्तान 139 वें नंबर पर है।

'रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ''भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को मोदी के राष्ट्रवाद से ख़तरा है और मीडिया डर की वजह से ख़बरें नहीं छाप रही है।''

रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारतीय मीडिया में सेल्फ़ सेंसरशिप बढ़ रही है और पत्रकार कट्टर राष्ट्रवादियों के ऑनलाइन बदनाम करने के अभियानों के निशाने पर हैं। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को रोकने के लिए मुक़दमे तक किए जा रहे हैं।''

भारत में 2015 में चार पत्रकारों की हत्या हुई और हर महीने कम से कम एक पत्रकार पर हमला हुआ है। कई मामलों में पत्रकारों पर आपराधिक मानहानि के मुकदमे दर्ज किए गए। इसका नतीजा रहा है कि पत्रकारों ने ख़ुद पर सेंशरशिप लगा ली।

मीडिया पर नजर रखने वाली वेबसाइट द हूट डॉट ओआरजी की गीता सेशू कहती हैं, ''इन हमलों का दायरा चौंकाने वाला है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कश्मीर में इंटरनेट और समाचार पत्रों पर पाबंदी लगाई गई। कारपोरेट धोखाधड़ी पर मानहानि के मुकदमे, स्थानीय माफिया के भ्रष्टाचार की ख़बर करने पर पत्रकारों की हत्याओं से लकर छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बल का स्वतंत्र पत्रकारों को प्रताड़ित करना और जेल भेजने की घटनाएं भी हुई हैं।''

भारत के कश्मीर में मौजूदा तनाव को देखते हुए सरकार ने प्रेस की आज़ादी पर कई तरह के अंकुश लगाए हैं। पत्रकारों को कर्फ्यू के दौरान पास नहीं दिया गया, पत्रकारों पर हमले हुए, राज्य में समाचार पत्रों के प्रसार को रोक दिया गया और कश्मीर रीडर नामक अख़बार पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई।

दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में अगर एक अख़बार पर पाबंदी लगाई जाती तो इस पर हंगामा मच जाता, लेकिन भारतीय मीडिया ने बड़े पैमाने पर इसको नज़रअंदाज़ किया।

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई इस पर लिखते हैं, ''आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। भारत 136वें और पाकिस्तान 139वें नंबर पर है। बहुत कुछ कहा जा चुका है। उन चुनिंदा लोगों को सलाम जो अब भी आवाज़ उठा रहे हैं।''

अपने अगले ट्वीट में राजदीप ने लिखा, ''सच ये है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की महान परंपरा रही है। बिज़नेस मॉडलों और निजी हितों की वजह से इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग हुआ है।''

वहीं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने फ़ेसबुक पर लिखा, ''विश्व प्रेस स्वंत्रता दिवस दुनिया का सबसे बड़ा छलावा है। प्रेस स्वतंत्रता एक मिथक और जनता के साथ एक क्रूर मज़ाक है।''

उन्होंने लिखा, ''दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं।''

काटजू ने लिखा, ''बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वो फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं।''

पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थिति भी डांवांडोल रही है, बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में चरमपंथ भी फैला हुआ है, इसलिए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पाकिस्तान का 139 वें पायदान पर होना बहुत चौंकाता नहीं है।  ये रैंकिंग पाकिस्तान के मुक्त मीडिया के दावे से मेल नहीं खाती है।

2016 की रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट पाकिस्तान के बारे में कहती है, ''पत्रकारों को जो निशाना बनाते हैं, उनमें चरमपंथी समूह, इस्लामिक संगठन, ख़ुफ़िया एजेंसियां शामिल है। ये प्रेस की आज़ादी में बाधा पहुंचाते हैं। ये सब एक-दूसरे से भले लड़ रहे हों, लेकिन जैसे हमेशा मीडिया को चोट पहुँचाने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे में समाचार संगठनों ने सेल्फ-सेंसरशिप को अपना लिया है।''

पाकिस्तान में 2014 में हत्या की नीयत से किए गए हमले में बाल बाल बचे और अब अमरीका में रह रहे पाकिस्तानी पत्रकार रज़ा रूमी कहते हैं, ''जहां तक पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है, अंग्रेजी अख़बारों में थोड़ी जगह अलग विचार व्यक्त करने के लिए हो सकती है, लेकिन टीवी न्यूज़ में सत्ता प्रतिष्ठान का विरोध काफी ख़तरनाक है। संस्थाएं इसकी अनुमति नहीं देती हैं।''

रूमी एक टीवी शो होस्ट करते थे और उन्होंने पाकिस्तान की विदेश नीति से मतभेद जताए थे और अल्पसंख्यकों के अधिकार के मुद्दे को उठाया था।

बलूचिस्तान में मानवाधिकार के मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने के दौरान 2014 में पाकिस्तान के जाने माने एंकर और पत्रकार हामिद मीर पर भी जानलेवा हमला हुआ था। तब मीर के भाई ने टीवी चैनल पर आकर इस हमले के लिए पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहराया था।

वैसे शारीरिक हमला और सीधी सेंसरशिप- समस्या का छोटा हिस्सा भर हैं, भारत और पाकिस्तान में मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिशें बढ़ती जा रही हैं।

टेलीग्राफ़ अख़बार में मानिनी चटर्जी ने लिखा है, ''सेंसरशिप-सेल्फ सेंसरशिप, सच-प्रोपागैंडा और पत्रकारिता-अंधराष्ट्र भक्ति के बीच अंतर को शायद ही कोई जानता समझता हो।''

इतना ही नहीं, भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने ख़बर तक पत्रकारों की पहुंच के तरीके कम कर दिए हैं और पीआर को बढ़ावा दिया है ताकि मीडिया की ख़बरों को बेहतर ढ़ंग से नियंत्रित किया जा सके।

पाकिस्तान में सेना की ओर से दबाव ज़्यादा होता है। पाकिस्तान की सुरक्षा संबंधी नीतियों पर लगातार लिखने वाली आयशा सिद्दिका के लेख पाकिस्तान में कई बार रिजेक्ट कर दिए जाते हैं और वो भारत में कहीं ज़्यादा छपती हैं।

आयशा सिद्दिका ने पाकिस्तानी अख़बार द न्यूज़ में लिखा है, ''मौजूदा समय में इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल हैं, सेना की पीआर एजेंसी आज बड़े पैमाने पर रेडियो चैनल चला रही है, कई टीवी चैनलों में हिस्सेदारी है। फ़िल्म और थिएटर को फ़ाइनेंस करते हैं। यह केवल संस्थागत विस्तार भर नहीं है, बल्कि यह देश (पाकिस्तान) के मीडिया की आवाज़ को आकार देने जैसा मामला है।"

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से जाने की इज़ाजत नहीं है। ऐसे में किस देश का मीडिया ज़्यादा स्वतंत्र है, इस बहस का कोई नतीजा नहीं निकल सकता।

भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में प्रेस की आज़ादी गंभीर ख़तरे के दौर से ज़रूर गुजर रही है।

प्रेस स्वतंत्रता एक मिथक और जनता के साथ एक क्रूर मज़ाक है

तीन मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इस मौक़ै पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर प्रेस की आज़ादी के महत्व को बताया है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ''विश्व प्रेस फ्रीडम डे पर हम स्वतंत्र और बहुमुखी पत्रकारिता का दृढ़ समर्थन करते हैं। यह लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है।''

हालांकि दुनिया भर में पत्रकारिता के लिहाज़ से भारत में कई मुश्किलें हैं। 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने 180 देशों की सूची जारी की है जिसमें प्रेस स्वतंत्रता के हिसाब से भारत का स्थान 136वां है।

भारत ज़िम्बॉब्वे और म्यांमार जैसे देशों से भी पीछे है।

निर्भीक पत्रकारिता करने के मामले में नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड अव्वल हैं।

इस मामले में चीन 176वें और पाकिस्तान 139 नंबर पर है।

मई 2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने थे। तब भारत 140वें नबंर पर था। 2015 में भारत 136वें नंबर पर आया। 2016 में 133वें नबंर आया और 2017 में 136वें पायदान पर आ गया।

2010 में भारत इस सूची में 122वें नंबर पर था और तब यूपीए सरकार सत्ता में थी। इसके बाद भारत 2014 तक 140वें नबंर पर रहा।

'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ''भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को मोदी के राष्ट्रवाद से ख़तरा है और मीडिया डर की वजह से ख़बरें नहीं छाप रही है।''

रिपोर्ट में कहा गया है, ''भारतीय मीडिया में सेल्फ़ सेंसरशिप बढ़ रही है और पत्रकार कट्टर राष्ट्रवादियों के ऑनलाइन बदनाम करने के अभियानों के निशाने पर हैं। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को रोकने के लिए मुक़दमे तक किए जा रहे हैं।''

जबकि मोदी ने अपने ट्वीट में कहा है, ''आज के दौर में सोशल मीडिया लोगों से जुड़ने के एक सक्रिय माध्यम के रूप में उभरा है और इसने स्वतंत्र प्रेस को और अधिक ताक़त दी है।''

वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई इस पर लिखते हैं, ''आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। भारत 136वें और पाकिस्तान 139वें नंबर पर है। बहुत कुछ कहा जा चुका है। उन चुनिंदा लोगों को सलाम जो अब भी आवाज़ उठा रहे हैं।''

अपने अगले ट्वीट में राजदीप ने लिखा, ''सच ये है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की महान परंपरा रही है। बिज़नेस मॉडलों और निजी हितों की वजह से इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग हुआ है।''

वहीं पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने फ़ेसबुक पर लिखा, ''विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस दुनिया का सबसे बड़ा छलावा है। प्रेस स्वतंत्रता एक मिथक और जनता के साथ एक क्रूर मज़ाक है।''

उन्होंने लिखा, ''दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं।''

काटजू ने लिखा, ''बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वो फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं।''

पाकिस्तान ने 48 घंटे में दूसरी बार सीजफायर तोड़ा

पाकिस्तान ने बुधवार सुबह एक बार फिर एलओसी पर सीजफायर का उल्लंघन किया है। सुबह 5.30 बजे पुंछ जिले के मनकोट में पाकिस्तान की तरफ से भारतीय चौकियों पर गोलीबारी की गई है। बीएसएफ इसका मुंहतोड़ जवाब दे रही है।

पाकिस्तान की ओर से 48 घंटे में सीजफायर तोड़ने की यह दूसरी घटना है। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, फिलहाल गोलीबारी जारी है। इस घटना में और जानकारी का इंतजार है।

सोमवार यानी 1 मई को भारतीय जम्मू-कश्मीर के पुंछ सेक्टर में सीमा पार से सीजफायर का उल्लंघन किया गया था। इसमें भारतीय सेना के दो जवान शहीद हो गए थे। शहीद होने वालों में एक जेओसी और बीएसएफ के हेड कांस्टेबल शामिल थे।

हमले पर भारतीय सेना ने आरोप लगाते हुए कहा था कि पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों के साथ बर्बरता भी की है।

बताया गया कि यह करतूत पाक की बॉर्डर एक्शन टीम ने की थी। भारतीय सेना ने कहा था, ''कृष्‍णा घाटी सेक्‍टर में नियंत्रण रेखा के निकट दो फॉरवर्ड पोस्‍ट्स पर पाकिस्‍तानी सेना की ओर से रॉकेट और मोर्टार फायरिंग की गई थी। साथ ही दो पोस्‍ट्स के बीच पैट्रोल ऑपरेटिंग पर बैट एक्‍शन भी किया गया था। पाकिस्‍तानी सेना ने कायरानापूर्ण रवैया दिखाते हुए हमारे दो जवानों के शवों को क्षत-विक्षत कर दिया था। पाकिस्‍तानी सेना का ऐसे नृशंस कृत्‍य का जल्‍द ही उचित जवाब दिया जाएगा।''

पाकिस्तान की ओर से फायरिंग में शहीद हुए नायब सूबेदार परमजीत सिंह का पार्थिव शरीर हेलिकॉप्टर से तरन-तारन लाया गया था, जहां उनके गांव में उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान सरकार की ओर से कोई भी अधिकारी या मंत्री मौजूद नहीं था। इससे पहले उनकी शव यात्रा रोककर उनके परिवार ने शव देखने की मांग उठाई थी।

एएनआई के मुताबिक, उनके परिवारीजनों ने कहा था, यह किसका शव है, ये ताबूत के पीछे है। हमें शव देखने क्यों नहीं दिया जा रहा है। बाद में समझाने पर उनके परिवारीजन अंतिम संस्कार के लिए राजी हुए थे।

दूसरी ओर शहीद प्रेम सागर की बेटी ने पिता की शहादत के बदलने 50 सिरों की मांग की थी। उनकी बेटी सरोज ने कहा था, ''प्रशासन की ओर से पिता (प्रेम सागर) की मौत की कोई जानकारी नहीं दी गई। पिता की कुर्बानी के बदले 50 पाकिस्तानी सैनिकों के सिर चाहिए।''

भारतीय सैनिकों को मारने का खुद आर्मी चीफ बाजवा ने दिया था ऑर्डर

माना जा रहा है कि सोमवार (एक मई) को नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार करके दो भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद उनके शव को क्षत-विक्षत कर देने का बर्बर आदेश सीधे पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने दिए थे।

कमर जावेद बाजवा 30 अप्रैल को पाकिस्तान की हाजी पीर सैन्य चौकी के दौरे पर थे। भारतीय खुफिया एजेंसियों और सेना के सूत्रों ने बताया कि बाजवा ने इस दौरे के दौरान ही भारतीय सैनिकों के संग बर्बरता दिखाने का आदेश दिया था।

सूत्रों के अनुसार, स्थानीय पाक कमांडरों को 17 अप्रैल को भारतीय गोलाबारी में मारे गए सात से 10 पाकिस्तानी सैनिकों का बदला लेने के लिए जवाबी कार्रवाई करने का आदेश दिया गया था।

सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी एक्स कॉर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नदीम रजा ने इस जवाबी कार्रवाई के बाद एलओसी पर तनाव बढ़ने के प्रति आगाह किया था। रजा पाकिस्तानी सेना के कश्मीर मामलों के प्रमुख हैं। मुरी स्थित पाकिस्तानी 12 इनफैंट्री डिविजन के प्रमुख मेजर जनरल अजहर अब्बास भी जवाबी कार्रवाई को लेकर आशंकित थे। एलओसी के निकट स्थित इस डिविजन को ही गोलीबारी का शिकार होना पड़ा है।

एक भारतीय खुफिया अधिकारी ने बताया, ''उरी हमले के बाद एलओसी पार कर की गई कार्रवाई के बाद से ही सीमा पर स्थिति पूरी तरह शांत नहीं हुई है। ये झड़पें पाकिस्तान को भारी पड़ रही हैं।  हमें लगता है कि पाक अब ये दिखाना चाहता है कि वो तनाव बढ़ाने का जोखिम लेना चाहता है जबकि एओसी पर उसकी स्थिति कमजोर है।''

जम्मू-कश्मीर में एलओसी पर दो लाख से सवा दो लाख भारतीय सैनिक तैनात हैं। वहीं पाकिस्तानी सेना के एक लाख से सवा एक लाख तक सैनिक एलओसी पर तैनात हैं। इस मामले में भारत पाकिस्तान से काफी मजबूत है।

जनरल कमर जावेद बाजवा ने उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर किये गए क्रॉस बॉर्डर हमले के बाद सीमा के निकट पाकिस्तानी चौकियों का दौरा किया था। कश्मीर कमर जावेद बाजवा की प्राथमिकता सूची में काफी ऊपर है। मार्च में कमर जावेद बाजवा ने केल सेक्टर स्थित पाक चौकियों का दौरा किया था। वहीं पिछले साल दिसंबर और इस साल फरवरी में उन्होंने भीमबर सेक्टर में गोलाबारी से प्रभावित पाक चौकियों का दौरा किया था।

30 अप्रैल को जिस हाजी पीर चौकी का कमर जावेद बाजवा ने दौरा किया वो रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। 1965 के युद्ध में भारत ने ये इलाका जीत लिया था, लेकिन बाद में जीते गए इलाकों की अदला-बदली में ये चौकी पाकिस्तान को वापस कर दिया।

मेनधार स्थित कृष्णा घाटी सेक्टर  में भारत की आखिरी सैन्य चौकी है। इसी इलाके में एक मई को भारतीय सैनिकों की हत्या की गयी थी।

सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान की एलीट स्पेशल फोर्स भारतीय गश्ती दल पर निगाह रखे हुए था।

चीन ने बच्चों के सद्दाम और जिहाद जैसे इस्लामी नाम रखने पर पाबंदी लगा दी

चीन ने अशांत मुस्लिम बहुल शिनक्षियांग प्रांत में बच्चों के सददाम और जिहाद जैसे दर्जनों इस्लामी नाम रखने पर पाबंदी लगा दी है जिसके बारे में एक प्रमुख मानवाधिकार समूह का कहना है कि इस कदम से इस समुदाय के बच्चे शिक्षा और सरकारी योजनाओं के लाभों से वंचित होंगे।

मानवाधिकार संगठन हयूमन राइटस वाच (एचआरडब्ल्यू) के अनुसार, शिनक्षियांग के अधिकारियों ने हाल ही में धार्मिक संकेत देने वाले दर्जनों नामों पर प्रतिबंध लगा दिया है जो दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय में आम हैं। पाबंदी लगाने के पीछे कारण बताया गया है कि इन नामों से धार्मिक भावनाएं तेज हो सकती हैं।

रेडियो फ्री एशिया ने एक अधिकारी के हवाले से बताया कि सत्तारूढ़ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के जातीय अल्पसंख्यकों के नाम रखने के नियमों के तहत बच्चों के इस्लाम, कुरान, मक्का, जिहाद, इमाम, सददाम, हज और मदीना जैसे कई नाम रखने पर रोक लगाई गयी है।

संगठन के अनुसार, प्रतिबंधित नाम वाले बच्चे हुकोउ यानी घर का पंजीकरण नहीं हासिल कर सकेंगे जो सरकारी स्कूलों और अन्य सामाजिक सेवाओं का लाभ उठाने के लिए जरूरी है।

नया फैसला इस संकटग्रस्त क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ चीन की लड़ाई का हिस्सा है। इस क्षेत्र में एक करोड़ मुस्लिम उइगर जातीय अल्पसंख्यक आबादी रहती है।

एचआरडब्ल्यू ने कहा कि धार्मिक कटटरता को रोकने के नाम पर धार्मिक आजादी पर लगाम लगाने के नियमों की कड़ी में यह ताजा फैसला है।

शिनक्षियांग में उइगर समुदाय और बहुसंख्यक हान के बीच टकराव की घटनाएं आम बात हैं। हान समुदाय का सरकार पर भी नियंत्रण है।

एचआरडब्ल्यू ने कहा कि नामों की पूरी सूची अभी तक प्रकाशित नहीं की गयी है।

अलकायदा सरगना अयमान अल जवाहिरी कराची में छिपा है

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने खूंखार आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना अयमान अल जवाहिरी को कराची में छुपा रखा है। पिछले साल अफगान सीमा पर उस पर एक ड्रोन हमला हुआ था, लेकिन वह उस हमले में बचने में सफल रहा था। उसके बाद से जवाहिरी को कराची में पनाह मिली हुई है।

न्यूजवीक ने अधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि 2001 में अमेरिकी फौजों के द्वारा अलकायदा को अफगानिस्तान से खदेड़ने के बाद मिस्र में जन्मे जवाहिरी को आईएसआई सुरक्षा दे रहा है।

सूत्र के अनुसार, उसके कराची में छुपे होने की सबसे ज्यादा संभावना है। सीआईए के ब्रूस रिडेल ने कहा कि जहां तक उसकी लोकेशन की बात है तो हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं है कि इस समय वह किस जगह पर छुपा है। रिडेल यूएस राष्ट्रपति के दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के शीर्ष सलाहकारों में रह चुके हैं।

रिडेल ने कहा कि हमें काफी अच्छे संकेत मिले है जिसमें एबटाबाद में कुछ सामग्री भी मिली है। एबटाबाद में ही ओसामा बिन लादेन मिला था जिसे अमेरिकी सेना ने 2011 में मार दिया था। हमारा लक्ष्य उसी दिशा में है।

उन्होंने कहा कि हमारे विचार से यह सही जगह है जहां अल-जवाहिरी छुपा हो सकता है। यहां उसे आसानी होगी और वह सोच रहा होगा कि यहां अमेरिकी सेना नहीं आ सकती है और उसे पकड़ नहीं पाएगी।

न्यूजवीक को कई सूत्रों ने बताया कि जनवरी 2016 के पहले हफ्ते में बराक ओबामा प्रशासन ने जवाहिरी को लक्ष्य बनाते हुए दूरदराज की शावल घाटी में ड्रोन से हमला किया था। यह घाटी पाकिस्तान के संघीय प्रशासित आदिवासी क्षेत्र में स्थित है।

इस क्षेत्र के एक आतंकवादी ने बताया कि इस हमले में जवाहिरी बच गया है, लेकिन उसके पांच सुरक्षा गार्ड मारे गए हैं। उसने कहा कि जवाहिरी जिस कमरे में ठहरा था। उसके बगल वाले कमरे में हमला हुआ था। उसने कहा कि दोनों कमरों की दीवाल पूरी तरह ढह गई और धमाके के कारण मलबा उसके ऊपर गिरा था। इसमें उसका चश्मा टूट गया था। हालांकि किस्मत से वह बच गया।

उस आतंकवादी ने बताया कि जिस कमरे पर हमले हुआ था उसको जवाहिरी ने सिर्फ दस मिनट पहले सोने के लिए जाने के कारण छोड़ा था।

आतंकी ने आगे कहा कि जवाहिरी ने कसम खाई है कि वह कभी जिंदा अमेरिकी सेना के हाथों नहीं आएगा।